मुगल साम्राज्य

मुगल साम्राज्य

मुगल साम्राज्य :- अपने पूर्ववर्तीयों के विपरीत मुगलों ने एक साम्राज्य की स्थापना की।

सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध से , इन्होने दिल्ली और आगरा से अपने राज्य का विस्तार शुरू किया और सत्रहवीं शताब्दी में लगभग संपूर्ण महाद्वीप पर अधिकार प्राप्त कर लिया।

उन्होंने प्रशासन के ढाँचे तथा शासन संबंधी जो विचार लागू किए , वे उनके राज्य के पतन के बाद भी टिके रहे।

मुगल दो महान शासक वंशों के वंशज थे। मुगल साम्राज्य

माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज खान जो चीन और मध्य एशिया के कुछ भागों पर राज करता था , के उत्तराधिकारी थे।

पिता की ओर से वे ईरान , इराक एवं वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर ( जिसकी मृत्यु 1404 में हुई ) के वंशज थे।

मुगल अपने को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे। ऐसा इसलिए था , क्योंकि चंगेज खान से जुडी स्मृतियाँ सैंकड़ों व्यक्तियों के नरसंहार से संबंधित थी।

मुगल , तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे , ज्यादा इसलिए क्योंकि उनके इस महान पूर्वज ने 1398 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। मुगल साम्राज्य

प्रत्येक मुगल शासक ने तैमूर के साथ अपना चित्र बनवाया।

प्रथम मुगल शासक बाबर ( 1526 – 1530 ) ने जब 1449 में फरघाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया , तो उसकी उम्र केवल बारह वर्ष की थी।

मंगोलो की दूसरी शाखा , उजबेगों के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी।

अनके वर्षों तक भटकने के बाद बाबर ने 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया। उसने 1526 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया और दिल्ली और आगरा को अपने कब्जे में लिया। मुगल साम्राज्य

मुगल सम्राट

बाबर (1526 – 1530) ने

1526 में पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी एवं उसके अफगान समर्थकों को हराया।

1527 में खानुवा में राणा सांगा, राजपूत राजाओं और उनके समर्थकों को हराया।

1528 में चंदेरी में राजपूतों को हराया।

अपनी मृत्यु से पहले दिल्ली और आगरा में मुगल नियंत्रण स्थापित किया। मुगल साम्राज्य

हुमायूँ 1530 – 1540 एवं 1555 – 1556

हुमायूँ ने अपने पिता की वसीयत के अनुसार जायदाद का बँटवारा किया।

प्रत्येक भाई को एक एक प्रान्त मिला।

उसके भाई मिर्जा कामरान की महत्त्वाकाँक्षाओं के कारण हुमायूँ अपने अफगान प्रतिद्वंद्वीयों के सामने फीका पड़ गया।

शेर खान ने हुमायूँ को दो बार हराया – 1539 में चौसा में और 1540 में कन्नौज में। इन पराजयों ने उसे ईरान की ओर भागने को बाध्य किया।

ईरान में हुमायूँ ने सफ़ाविद शाह की मदद ली।

उसने 1555 में दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया परन्तु उससे अगले वर्ष दिनपनाह पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर उसकी मृत्यु हो गयी। मुगल साम्राज्य

अकबर 1556 – 1605

13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना।

उसके शासनकाल को तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है।

1556 और 1570 के मध्य अकबर अपने संरक्षक बैरम खान और अपने घरेलू कर्मचारियों से स्वतंत्र हो गया।

उसने सूरी और अन्य अफगानों , निकटवर्ती राज्यों मालवा और गोंडवाना तथा अपने सौतेले भाई मिर्जा हाकिम और उजबेगों के विद्रोहों को दबाने के लिए सैन्य अभियान चलाए। मुगल साम्राज्य

मुगल साम्राज्य image

1568 में सिसौदियों की राजधानी चित्तौड़ और 1569 में रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया गया।

1570 और 1585 के मध्य गुजरात के विरुद्ध सैनिक अभियान हुए।

इन अभियानों के पश्चात उसने पूर्व में बिहार , बंगाल और उड़ीसा में अभियान चलाए, जिन्हे 1579 – 80 में मिर्जा हाकिम के पक्ष में हुए विद्रोह ने और जटिल कर दिया।

1585 – 1605 के मध्य अकबर के साम्राज्य का विस्तार हुआ। मुगल साम्राज्य

उत्तर – पश्चिम में अभियान चलाए गए। सफ़ाविदों को हराकर कंधार पर कब्जा किया गया और कश्मीर को भी जोड़ लिया गया।

मिर्जा हाकिम की मृत्यु के पश्चात काबुल को भी उसने अपने राज्य में मिला लिया।

दक्कन में अभियानों की शुरुआत हुई और बरार , खानदेश और अहमदनगर के कुछ हिस्सों को भी उसने अपने राज्य में मिला लिया।

अपने शासन के अंतिम वर्षों में अकबर की सत्ता राजकुमार सलीम के विद्रोहों के कारण लड़खड़ायी।

यही सलीम आगे चलकर सम्राट जहाँगीर कहलाया। मुगल साम्राज्य

जहाँगीर 1605 – 1627

जहाँगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया।

मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की।

इसके बाद सिक्खों , अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए , जो पूर्णतः सफल नहीं हुए।

जहाँगीर के शासन के अंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम, जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया , ने विद्रोह किया।

जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने शाहजहाँ को हाशिए पर धकेलने के प्रयास किए , जो असफल रहे। मुगल साम्राज्य

शाहजहाँ 1627 – 1658

दक्कन में शाहजहाँ के अभियान जारी रहे। अफगान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह पराजित हुआ।

अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ जिसमे बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया।

उत्तर – पश्चिम में बल्ख पर कब्जा करने के लिए उजबेगों के विरुद्ध अभियान हुआ जो असफल रहा। परिणामस्वरूप कंधार सफ़ाविदों के हाथ में चला गया। मुगल साम्राज्य

1632 में अंततः अहमदनगर को मुगलों के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेनाओं ने सुलह के लिए निवेदन किया।

1657 – 58 में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया।

इसमें औरंगजेब की विजय हुई और दारा शिकोह समेत उसके तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया गया।

शाहजहाँ को उसकी शेष जिंदगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया। मुगल साम्राज्य

औरंगजेब 1658 – 1707

1663 में उत्तर – पूर्व में अहोमों की पराजय हुई परन्तु उन्होंने 1680 में पुनः विद्रोह कर दिया।

उत्तर – पश्चिम में यूसफजई और सिक्खों के विरुद्ध अभियान को अस्थायी सफलता मिली।

मारवाड़ के राठौर राजपूतों ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीती और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलों का हस्तक्षेप।

मराठा सरदार , शिवजी के विरुद्ध मुगल अभियान प्रारंभ में सफल रहे। मुगल साम्राज्य

परन्तु औरंगजेब ने शिवजी का अपमान किया और शिवजी आगरा स्थित मुगल कैदखाने से भाग निकले।

शिवजी ने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित करने के पश्चात मुगलों के विरुद्ध पुनः अभियान चलाए।

राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया , जिसमें उसे मराठों और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला। अंततः वह सफ़ाविद ईरान भाग गया।

अकबर के विद्रोह के पश्चात औरंगजेब ने दक्कन के शासकों के विरुद्ध सेनाएँ भेजी। मुगल साम्राज्य

1685 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा को मुगलों ने अपने राज्य में मिला लिया।

1698 में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों , जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे , के विरुद्ध अभियान का प्रबंध स्वयं किया।

औरंगजेब को उत्तर भारत में सिक्खों , जाटों और सतनामियों , उत्तर – पूर्व में अहोमों और दक्कन में मराठों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा।

उसकी मृत्यु के पश्चात उत्तराधिकार के लिए युद्ध शुरू हो गया। मुगल साम्राज्य

मुगल ज्येष्ठाधिकार के नियम में विश्वास नहीं करते थे जिसमें ज्येष्ठ पुत्र अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी होता था।

उत्तराधिकार में वे सहदायाद की मुगल और तैमूर वंशों की प्रथा को अपनाते थे जिसमें उत्तराधिकार का विभाजन समस्त पुत्रों में कर दिया जाता था।

मुगलों ने उन शासकों के विरुद्ध अभियान किए , जिन्होंने उनकी सत्ता को स्वीकार नहीं किया।

जब मुगल शक्तिशाली हो गए तो अन्य कई शासकों ने स्वेच्छा से उनकी सत्ता स्वीकार कर ली। जैसे राजपूत मुगल साम्राज्य

पराजित करने परन्तु अपमानित न करने के बीच सावधानी से बनाए गए संतुलन की वजह से मुगल भारत के अनेक शासकों और सरदारों पर अपना प्रभाव बढ़ा पाए।

मुगलों की सेवा में आने वाले नौकरशाह ‘ मनसबदार ‘ कहलाए।

‘ मनसबदार ‘ शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता था , जिन्हें कोई मनसब यानी कोई सरकारी हैसियत अथवा पद मिलता था।

यह मुगलों द्वारा चलाई गई श्रेणी व्यवस्था थी , जिसके जरिए ( 1 ) पद; ( 2 ) वेतन ; एवं ( 3 ) सैन्य उत्तरदायित्व , निर्धारित किए जाते थे। मुगल साम्राज्य

पद और वेतन का निर्धारण जात की संख्या पर निर्भर था।

जात की संख्या जितनी अधिक होती थी , दरबार में अभिजात की प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती थी और उसका वेतन भी उतना ही अधिक होता था।

जो सैन्य उत्तरदायित्व मनसबदारों को सौंपे जाते थे उन्ही के अनुसार उन्हें घुड़सवार रखने पड़ते थे।

मनसबदार अपने सवारों को निरीक्षण के लिए लाते थे। वे अपने सैनिकों के घोड़ों को दगवाते थे एवं सैनिकों का पंजीकरण करवाते थे।

इन कार्यवाहियों के बाद ही उन्हें सैनिकों को वेतन देने की लिए धन मिलता था। मुगल साम्राज्य

मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे , जिन्हे जागीर कहते थे और जो तकरीबन ‘ इकताओं ‘ के समान थी।

परन्तु मनसबदार , मुक्तियों से भिन्न , अपने जागीरों पर नहीं रहते थे और न ही उन पर प्रशासन करते थे।

उनके पास अपनी जागीरों से केवल राजस्व एकत्रित करने का अधिकार था।

यह राजस्व उनके नौकर उनके लिए एकत्रित करते थे , जबकि वे स्वयं देश के किसी अन्य भाग में सेवारत रहते थे। मुगल साम्राज्य

अकबर के शासन कल में जागीरों का राजस्व मनसबदार के वेतन के तकरीबन बराबर होता था।

औरंगजेब के शासनकाल तक पहुँचते – पहुँचते स्थिति बदल गई। अब प्राप्त राजस्व , मनसबदार के वेतन से बहुत कम था।

मनसबदारों की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हुई, जिसके कारण उन्हें जागीर मिलने से पहले एक लंबा इंतजार करना पड़ता था।

इन सभी कारणों से जागीरों की संख्या में कमी हो गई। मुगल साम्राज्य

मुगलों की आमदनी का प्रमुख साधन किसानों की उपज से मिलने वाला राजस्व था।

अधिकतर स्थानों पर किसान ग्रामीण कुलीनों यानी कि मुखिया या स्थानीय सरदरों के माध्यम से राजस्व देते थे।

समस्त मध्यस्थों के लिए , चाहे वे स्थानीय ग्राम के मुखिया हो या फिर शक्तिशाली सरदार हों , मुगल एक ही शब्द ‘ जमींदार ‘ का प्रयोग करते थे।

अकबर के राजस्वमंत्री टोडरमल ने दस साल ( 1570 – 1580 ) की कालावधि के लिए कृषि की पैदावार , कीमतों और कृषि भूमि का सावधानीपूर्वक सर्वेक्षण किया। इन आँकड़ों के आधार पर , प्रत्येक फसल पर नकद के रूप में कर ( राजस्व ) निश्चित कर दिया गया। मुगल साम्राज्य

प्रत्येक सूबे ( प्रान्त ) को राजस्व मंडलों में बाँटा गया और प्रत्येक की हर फसल के लिए राजस्व दर की अलग सूचि बनायी गई।

राजस्व प्राप्त करने की इस व्यवस्था को ‘ जब्त ‘ कहा जाता था।

यह व्यवस्था उन स्थानों पर प्रचलित थी जहाँ पर मुगल प्रशासनिक अधिकारी भूमि का निरीक्षण कर सकते थे और सावधानीपूर्वक उनका हिसाब रख सकते थे। मुगल साम्राज्य

अकबर की नीतियाँ

प्रशासन के मुख्य अभिलक्षण अकबर ने निर्धारित किए थे और इनका विस्तृत वर्णन अबुल फ़ज़्ल की अकबरनामा, विशेषकर आइने – अकबरी में मिलता है।

अबुल फ़ज़्ल के अनुसार साम्राज्य कई प्रांतो में बँटा हुआ था , जिन्हें ‘ सूबा ‘ कहा जाता था।

सूबों के प्रशासक ‘ सूबेदार ‘ कहलाते थे , जो राजनैतिक तथा सैनिक , दोनों प्रकार के कार्यों का निर्वाह करते थे।

प्रत्येक प्रान्त में एक वित्तीय अधिकारी भी होता था जो ‘ दिवान ‘ कहलाता था। मुगल साम्राज्य

कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सूबेदार “को अन्य अफसरों का सहयोग प्राप्त था , जैसे कि बक्शी ( सैनिक वेतनाधिकारी), सदर ( धार्मिक और धर्मार्थ किए जाने वाले कार्यों का मंत्री ), फौजदार ( सेनानायक ) और कोतवाल ( नगर का पुलिस अधिकारी ) का।

अकबर के अभिजात , बड़ी सेनाओं का संचालन करते थे।

धार्मिक चर्चाओं के लिए उसने ( अकबर ने ) फतेहपुर सिकरी में इबादतखाना का निर्माण कराया।

इन चर्चाओं से अकबर कि समझ बनी कि जो विद्वान् धार्मिक रीति और मतांधता पर बल देते है , वे अकसर कट्टर होते है।

मतांधता – ऐसी व्याख्या या कथन जिसे अधिकारपूर्ण कहकर यह आशा की जाए कि उस पर बिना कोई प्रश्न उठाए उसे स्वीकार कर लिया जाएगा। मुगल साम्राज्य

ये अनुभव अकबर को सुलह – ए – कुल या ‘ सर्वत्र शांति ‘ के विचार की ओर ले गए।

सहिष्णुता की यह धारणा विभिन्न धर्मों के अनुयायियों में अंतर नहीं करती थी अपितु इसका केंद्रबिंदु थी नीतिशास्त्र की एक व्यवस्था , जो सर्वत्र लागू की जा सकती थी और जिसमें केवल सच्चाई , न्याय और शांति पर बल था।

अबुल फ़ज़्ल ने सुलह – ए – कुल के इस विचार पर आधारित शासन – दृष्टि बनाने में अकबर की मदद की।

शासन के इस सिद्धांत को जहाँगीर और शाहजहाँ ने भी अपनाया। मुगल साम्राज्य

अन्यत्र

युद्ध में प्रयोग होने वाले बारूद की तकनीक भारत में 14 वीं शताब्दी में लायी गयी।

आग्नेयास्त्रों के लिए इसका प्रयोग सबसे पहले गुजरात , मालवा और दक्कन जैसे प्रदेशों में हुआ एवं आरंभिक 16 वीं सदी में बाबर द्वारा इसका प्रयोग किया गया था।

जहाँगीर की माँ कच्छवा की राजकुमारी थी। वह अंबर ( वर्तमान में जयपुर ) के राजपूत शासक की पुत्री थी।

शाहजहाँ की माँ एक राठौर राजकुमारी थी। वह मारवाड़ ( जोधपुर ) के राजपूत शासक की पुत्री थी। मुगल साम्राज्य

5,000 जात वाले अभिजातों का दर्जा 1 ,000 जात वाले अभिजात से ऊँचा था।

अकबर के शासन कल में 29 ऐसे मनसबदार थे जो 5000 जात की पदवी के थे।

औरंगजेब के शासन काल तक ऐसे मनसबदारों की संख्या 79 हो गई।

अकबर ने अपने करीबी मित्र और दरबारी अबुल फ़ज़्ल को आदेश दिया कि वह उसके शासनकाल का इतिहास लिखे। मुगल साम्राज्य

अबुल फ़ज़्ल ने यह इतिहास तीन जिल्दों में लिखा और इसका शीर्षक है अकबरनामा।

पहली जिल्द में अकबर के पूर्वजों का बयान है और दूसरी अकबर के शासन काल की घटनाओं का विवरण देती है।

तीसरी जिल्द आइने – अकबरी है। इसमें अकबर के प्रशासन , घराने , सेना , राजस्व , और साम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा मिलता है।

इसमें समकालीन भारत के लोगों की परंपराओं और संस्कृतियों का भी विस्तृत वर्णन है। मुगल साम्राज्य

आइने – अकबरी का सब से रोचक आयाम है , विविध प्रकार की चीजों – फसलों , पैदावार , कीमतों , मजदूरी और राजस्व -का सांख्यिकीय विवरण।

मेहरुन्निसा ने 1611 में जहाँगीर से विवाह किया और उसे नूरजहाँ का ख़िताब मिला।

नूरजहाँ के सम्मान में जहाँगीर ने चाँदी के सिक्के जारी किए , जिनमे एक ओर उसके स्वयं के ख़िताब उत्कीर्ण थे और दूसरी ओर यह वाक्य : ‘ रानी बेगम नूरजहाँ के नाम से गढ़ा हुआ। ‘

अकबर ने कई संस्कृत ग्रंथो के फ़ारसी में अनुवाद कार्यों को संपन्न कराया।

इस उद्देश्य हेतु उन्होंने फतेहपुर सिकरी में एक मकतबखाना या अनुवाद ब्यूरो की स्थापना की। मुगल साम्राज्य

महाभारत , रामायण , लीलावती और योगवशिष्ठ जैसे कुछ उल्लेखनीय संस्कृत ग्रंथ को अनुवाद कार्य के लिए चुना गया।

रज्मनामा , जो महाभारत का फ़ारसी अनुवाद है , में महाभारत की घटनाओं का विस्तृत चित्रांकन है।

मुगलों से लगभग समकालीन ऑटोमन तुर्की के सुल्तान सुलेमान ( 1520 – 1566 ) को ‘ अल – क़ानूनी ‘ ( विधिनिर्माता ) का ख़िताब दिया गया है क्योंकि उसके शासनकाल में बड़ी संख्या में नियम – कानून बनाए गए थे।

अकबर के समकालीन शासक – इंग्लैंड की शासक रानी एलिजाबेथ ( 1558 – 1603 ); ईरान का सफ़ाविद शासक शाह अब्बास ( 1588 – 1629 ); और ज्यादा विवादास्पद रुसी शासक जार ईवान चतुर्थ बेसिलयेविच ( 1530 – 1584 ) जो ‘ ईवान दि टेरिबल ‘ नाम से कुख्यात हैं। मुगल साम्राज्य

MCQ

प्रश्न 1. माता की ओर से मुगल वंशज थे –

उत्तर- चंगेज खान के

प्रश्न 2. पिता की ओर से मुगल वंशज थे –

उत्तर- तैमूर के

प्रश्न 3. मुगल वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे –

उत्तर- तैमूर के

प्रश्न 4. प्रत्येक मुगल शासक ने अपना चित्र बनवाया –

उत्तर- तैमूर के साथ

प्रश्न 5. प्रथम मुगल शासक बाबर ने केवल बारह वर्ष की उम्र में उत्तराधिकार प्राप्त किया –

उत्तर- फरघाना राज्य का

प्रश्न 6. बाबर को अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी –

उत्तर- उजबेगों के आक्रमण के कारण

प्रश्न 7. बाबर ने 1504 में कब्जा कर लिया –

उत्तर- काबुल पर

प्रश्न 8. बाबर ने सुल्तान इब्राहिम लोदी को 1526 में हराया –

उत्तर- पानीपत के युद्ध में

प्रश्न 9. बाबर ने 1527 में खानुवा के युद्ध में हराया –

उत्तर- राणा सांगा को

प्रश्न 10. बाबर ने 1528 में चंदेरी के युद्ध में हराया –

उत्तर- राजपूतों को

प्रश्न 11. शेर खान ने हुमायूँ को दो बार हराया –

उत्तर- 1539 में चौसा में और 1540 में कन्नौज में

प्रश्न 12. मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की –

उत्तर- जहाँगीर के शासनकाल में

प्रश्न 13. मुगलों की सेवा में आने वाले नौकरशाह कहलाए –

उत्तर- मनसबदार

प्रश्न 14. पद और वेतन का निर्धारण पर निर्भर था –

उत्तर- जात की संख्या

प्रश्न 15. मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे , जिन्हे कहते थे –

उत्तर- जागीर

प्रश्न 16. मुगलों की आमदनी का प्रमुख साधन था –

उत्तर- किसानों की उपज से मिलने वाला राजस्व

प्रश्न 17. अधिकतर स्थानों पर किसान राजस्व देते थे –

उत्तर- मुखिया या स्थानीय सरदरों के माध्यम से

प्रश्न 18. अबुल फ़ज़्ल के अनुसार साम्राज्य कई प्रांतो में बँटा हुआ था , जिन्हें कहा जाता था –

उत्तर- सूबा

प्रश्न 19. सूबों के प्रशासक कहलाते थे –

उत्तर- सूबेदार

प्रश्न 20. प्रत्येक प्रान्त में एक वित्तीय अधिकारी भी होता था जो कहलाता था –

उत्तर- दिवान

प्रश्न 21. सैनिक वेतनाधिकारी कहलाता था –

उत्तर- बक्शी

प्रश्न 22. धार्मिक और धर्मार्थ किए जाने वाले कार्यों का मंत्री कहलाता था –

उत्तर- सदर

प्रश्न 23. धार्मिक चर्चाओं के लिए अकबर ने फतेहपुर सिकरी में निर्माण कराया –

उत्तर- इबादतखाना का

प्रश्न 24. सुलह – ए – कुल के सिद्धांत की स्थापना की –

उत्तर- अकबर ने

प्रश्न 25. युद्ध में प्रयोग होने वाले बारूद की तकनीक भारत में लायी गयी –

उत्तर- 14 वीं शताब्दी में

प्रश्न 26. जहाँगीर की माँ राजकुमारी थी –

उत्तर- कच्छवा की

प्रश्न 27. अकबर ने अपने शासनकाल का इतिहास लिखने का आदेश दिया –

उत्तर- अबुल फ़ज़्ल को

प्रश्न 28. अकबरनामा के लेखक है –

उत्तर- अबुल फ़ज़्ल

प्रश्न 29. अकबरनामा कितने जिल्दों में लिखी गयीं है ?

उत्तर- तीन

प्रश्न 30. अकबर के प्रशासन , घराने , सेना , राजस्व , और साम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा मिलता है –

उत्तर- आइने – अकबरी ( तीसरी जिल्द )

प्रश्न 31. अकबर के पूर्वजों का बयान है –

उत्तर- अकबरनामा की पहली जिल्द में

प्रश्न 32. मेहरुन्निसा ने 1611 में जहाँगीर से विवाह किया और उसे ख़िताब मिला –

उत्तर- नूरजहाँ का

प्रश्न 33. नूरजहाँ के सम्मान में चाँदी के सिक्के जारी किए –

उत्तर- जहाँगीर ने

प्रश्न 34. फतेहपुर सिकरी में एक मकतबखाना या अनुवाद ब्यूरो की स्थापना की –

उत्तर- अकबर ने

प्रश्न 35. महाभारत का फ़ारसी अनुवाद है –

उत्तर- रज्मनामा

प्रश्न 36. ‘ ईवान दि टेरिबल ‘ नाम से कुख्यात हैं –

उत्तर- रुसी शासक जार ईवान चतुर्थ बेसिलयेविच