कार्य ,ऊर्जा एवं सामर्थ्य
कार्य , ऊर्जा एवं सामर्थ्य – कार्य वह भौतिक क्रिया है जिसमें किसी वस्तु पर बाल लगाकर उसे बल की दिशा में विस्थापित किया जाता है अर्थात वस्तु की स्थिति में परिवर्तन किया जाता है।
उदाहरण – किसी सतह पर रखे बॉक्स को धकेलना , ट्राली को खींचना , कुँए से जल खींचना , साइकिल चलाना आदि।
कार्य करने के लिए दो दशाओं का होना आवश्यक है –
1. वस्तु पर कोई बाल लगना चाहिए , तथा
2. वस्तु विस्थापित होनी चाहिए।
यदि इनमे से कोई भी दशा पूरी नहीं होती तो कार्य नहीं किया गया।
SI पद्धति में कार्य का मात्रक जूल होता है।
यदि 1 न्यूटन का बाल किसी वस्तु को 1 मी विस्थापित कर देता है , तो किया गया कार्य 1 जूल होता है।
CGS पद्धति में कार्य का मात्रक अर्ग होता है।
1 जूल = 107 अर्ग कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
एक नियत बल द्वारा किया गया कार्य
यदि कोई बल F किसी वस्तु पर कार्य करके उसे बल की दिशा में s दूरी तक विस्थापित कर दें , तो किया गया का कार्य
W = F × s
अर्थात कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन
यदि किसी वस्तु पर F बल लगाने से उसमें बल की दिशा के साथ कोण पर s विस्थापन होता है , तो किया गया कार्य
W = ( F cosθ) × s
जहाँ F cosθ, बल F का विस्थापन s की दिशा में घटक है।
किसी वस्तु पर किसी बल द्वारा किया गया कार्य एक अदिश राशि होता है।
किसी वस्तु पर लगने वाले बल द्वारा किया गया कार्य बल के परिमाण तथा बल की दिशा में चली गई दूरी के गुणनफल के बराबर होता है।
कार्य में केवल परिमाण होता है तथा कोई दिशा नहीं होती। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
विशिष्ट स्थितियाँ
1. जब वस्तु पर कार्यरत बल ( F ) व विस्थापन (s) एक ही दिशा में हो , तब θ = 0
W = F s cos 0o
W = F s
अतः किया गया कार्य अधिकतम होगा।
2. यदि विस्थापन बल की दिशा में अभिलंबवत हो , तब θ = 90o
W = F s cos 90o
W = 0
अतः किया गया कार्य शून्य होगा।
3. यदि बाल लगाने पर , वास्तु में कोई विस्थापन नहीं होता , तब भी किया गया कार्य शून्य होता है।
W = F cosθ × 0 = 0
यदि बल शून्य हो , तो कार्य भी शून्य होता है , चाहे वस्तु में विस्थापन हो रहा हो। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
धनात्मक कार्य – यदि बल और विस्थापन के मध्य बन रहे कोण का मान 90o से कम हो , तो किया गया कार्य धनात्मक होगा।
या
जब बल विस्थापन की दिशा में लगता है तो किया गया कार्य धनात्मक होता है।
उदाहरण – एक बच्चा एक खिलौना कार को विस्थापन की दिशा में खींच रहा है, अर्थात जिस दिशा में खिलौना वाली कार चल रही है उसी दिशा में बल लगा रहा है अतः बल द्वारा किया गया कार्य धनात्मक होगा।
ऋणात्मक कार्य – यदि बल और विस्थापन के मध्य बन रहे कोण का मान 90o से अधिक हो , तो किया गया कार्य ऋणात्मक होगा।
या
जब बल विस्थापन की दिशा के विपरीत दिशा में लगता है तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है।
उदाहरण – जब किसी वस्तु को खुरदरे धरातल पर खींचा जाता है , तब घर्षण बल तथा विस्थापन परस्पर विपरीत दिशा में होते हैं। अतः घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है।
शून्य कार्य – जब बल तथा विस्थापन लंबवत दिशा में होते हैं , तो बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होगा।
उदाहरण – यदि कोई कुली सर पर बोझ उठाकर प्लेटफार्म पर चल रहा है , तो वह कोई कार्य नहीं करता ( क्योंकि उसका कार्य गुरुत्व बल के लंबवत है )। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
ऊर्जा
किसी वस्तु द्वारा कार्य करने की क्षमता उसकी ऊर्जा कहलाती है।
किसी वस्तु में निहित ऊर्जा का मापन , वस्तु द्वारा किए गए कार्य से करते हैं।
जो वस्तु कार्य करती है उसमें ऊर्जा की हानि होती है और जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है उसमें ऊर्जा की वृद्धि होती है।
ऊर्जा का मात्रक वही है जो कार्य का है अर्थात जूल।
एक जूल कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा 1 जूल होती है।
कभी-कभी ऊर्जा के बड़े मात्रक किलो जूल का उपयोग किया जाता है।
1 kJ , 1000 J के बराबर होता है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
गतिज ऊर्जा
किसी वस्तु की गति के कारण उसमें जो कार्य करने की क्षमता होती है , वह उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहलाती है।
किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा उसकी चाल के साथ बढ़ती है।
गतिशील कार , लुढ़कता हुआ पत्थर , उड़ता हुआ हवाई जहाज , बहता हुआ पानी , दौड़ता हुआ खिलाड़ी आदि सभी में गतिज ऊर्जा विद्यमान है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
गतिज ऊर्जा का व्यंजक
गतिज ऊर्जा का मापन उस कार्य के तुल्य है जो उस वस्तु को विरामावस्था से वर्तमान अवस्था तक लाने में किया गया है।
मन कि m द्रव्यमान की कोई वस्तु स्थिर अवस्था में है। जब वस्तु पर F बल लगाया जाता है , तब उसकी गति में a त्वरण उत्पन्न हो जाता है , तो न्यूटन के द्वितीय नियम से
लगाया गया बल , F = ma => a = F / m
यदि लगाए गए बाल के कारण s दूरी चलने में वस्तु की चाल 0 से v हो जाती है , तो
गति के द्वितीय समीकरण से, v2 = u2 + 2as
यहाँ u = 0 ( वस्तु प्रारंभ में स्थिर है )
v2 = 0 + 2as = 2 ( F / m ) × s
अतः m v2 = 2 ( F × s )
या F × s = (1/2) mv2
कार्य की परिभाषा से F × s वस्तु पर किए गए कार्य (W )के बराबर होगा।
अतः W = F × s
यह कार्य ही वस्तु की गतिज ऊर्जा के बराबर होगा , अतः वस्तु की गतिज ऊर्जा ,
K = F × s = 1/2 mv2
K = 1/2 mv2
जहाँ , m = वस्तु का द्रव्यमान तथा v = वस्तु का वेग है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
गतिज ऊर्जा के सूत्र से प्राप्त परिणाम
1. यदि वस्तु का द्रव्यमान दोगुना कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा भी दुगनी हो जाती है।
2. यदि वस्तु का द्रव्यमान आधा कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा भी आधी हो जाती है।
3. यदि वस्तु का वेग दोगुना कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाती है।
4. यदि वस्तु का वेग आधा कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा एक – चौथाई हो जाती है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
स्थितिज ऊर्जा
किसी वस्तु द्वारा इसकी स्थिति अथवा विन्यास में परिवर्तन के कारण प्राप्त ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते है।
किसी ऊँचाई पर वस्तु की स्थितिज ऊर्जा
वस्तु को किसी ऊँचाई तक उठाने में उसकी ऊर्जा में वृद्धि होती है।
इसका कारण है कि इसको ऊपर उठाने में इस पर गुरुत्व बल के विरुद्ध कार्य किया जाता है।
इस प्रकार की वस्तु में विद्यमान ऊर्जा उसकी गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा है।
भूमि के ऊपर किसी बिंदु पर किसी वस्तु की स्थितिज ऊर्जा को वस्तु को भूमि से उस बिंदु तक उठाने में गुरुत्वीय बल के विरुद्ध किया गया कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
स्थितिज ऊर्जा का व्यंजन
यदि m द्रव्यमान का कोई पिंड पृथ्वी की सतह से h ऊंचाई पर स्थित है , तो पिंड को गुरुत्वीय बल के विरुद्ध विस्थापित करने में किया गया कार्य ही पिंड में स्थित ऊर्जा को प्रदर्शित करेगा।
कार्य = बल × विस्थापन
W = mgh
वस्तु को उठाने के लिए आवश्यक न्यूनतम बल वस्तु के भार के बराबर अर्थात mg है
जहां, g गुरुत्वीय त्वरण है।
यही कार्य , वस्तु की स्थितिज ऊर्जा के बराबर होगा।
अतः स्थितिज ऊर्जा (U) = mgh
अथवा स्थितिज ऊर्जा = द्रव्यमान × गुरुत्वीय त्वरण × ऊँचाई
गुरुत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य वस्तु की प्रारंभिक तथा अंतिम स्थितियों के ऊर्ध्वाधर ऊँचाई पर निर्भर करता है ना कि उस पथ पर जिस पर वस्तु ने गति की है।
वस्तु की किसी ऊँचाई पर स्थितिज ऊर्जा भूमि तल या आपके द्वारा चुने गए शून्य तल पर निर्भर है।
किसी वस्तु के लिए दी हुई स्थिति के लिए एक तल के सापेक्ष स्थितिज ऊर्जा का कोई विशेष मान हो सकता है और किसी दूसरे तल के सापेक्ष स्थितिज ऊर्जा का कोई दूसरा मान हो सकता है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
ऊर्जा संरक्षण का नियम
इस नियम के अनुसार, ” ऊर्जा को ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और न हीं नष्ट, किंतु इसे एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ” अतः संसार की कुल ऊर्जा का परिमाण स्थिर हो रहता है।
यांत्रिक ऊर्जा का संरक्षण
किसी भी निकाय की यांत्रिक ऊर्जा अर्थात उसकी गतिज व स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव स्थिर रहता है।
अनेक निकायों में गतिज ऊर्जा , स्थितिज ऊर्जा में तथा स्थितिज ऊर्जा , गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होती रहती है , परन्तु प्रत्येक क्षण उनका योग नियत रहता है। यही यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
गुरुत्व के अधीन गिरती वस्तु में ऊर्जा संरक्षण
माना m द्रव्यमान की कोई वस्तु पृथ्वी तल से h ऊंचाई पर स्थित किसी बिंदु A से गिरना प्रारंभ करती है।
बिंदु A पर वस्तु की गतिज ऊर्जा K = 0
बिंदु A पर वस्तु की स्थितिज ऊर्जा U = mgh
बिंदु A पर वस्तु की कुल ऊर्जा ,
EA= गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
EA = 0 + mgh
EA = mgh
माना कि वस्तु बिंदु B तक x दूरी तय कर चुकी है। यदि वस्तु का बिंदु B पर वेग v है , तो गति के तृतीय समीकरण से
v2 = u2 + 2gx
( वस्तु स्थिर अवस्था से गिरना प्रारंभ करती है ; u = 0 )
v2 = 0 + 2gx
v2 = 2gx
बिंदु B पर वस्तु की गतिज ऊर्जा
KB = 1/2 mv2 = 1/2 m × 2gx = mgx
बिंदु B पर वस्तु की स्थितिज ऊर्जा
UB = mg (h-x)
( अब वस्तु की पृथ्वी तल से ऊंचाई h-x है )
बिंदु B पर कुल ऊर्जा
EB = KB + UB
EB = mgx + mg( h-x )= mgh
EB = mgh
जब वस्तु गिरते समय पृथ्वी के ताल के निकट बिंदु C पर है। यदि बिंदु C पर वेग vc है , तो
vc2 = u2 +2gh
vc2 = 0 + 2gh = 2gh
गतिज ऊर्जा Kc = 1/2 mvc2
Kc = 1/2 m × 2gh = mgh
स्थितिज ऊर्जा U = 0 ( वस्तु की पृथ्वी तल से ऊंचाई शून्य है )
बिंदु C पर कुल ऊर्जा
Ec = Kc + Uc = mgh + 0 =mgh
Ec = mgh
अतः EA = EB = EC
हम देखते हैं कि किसी पिंड के मुक्त रूप से गिरते समय इसके पथ में किसी बिंदु पर स्थितिज ऊर्जा में जितनी कमी होती है , गतिज ऊर्जा में उतनी ही वृद्धि हो जाती है।
अतः कुल ऊर्जा प्रत्येक बिंदु पर संरक्षित रहती है तथा किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा तथा स्थित ऊर्जा का योग उसकी कुल यांत्रिक ऊर्जा है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
शक्ति
कार्य करने की दर या ऊर्जा रूपांतरण की दर को शक्ति कहते है। इसे P से प्रदर्शित करते हैं।
यदि कोई अभिकर्ता t समय में W कार्य करता है , तो शक्ति का मान होगा :-
शक्ति = कार्य / समय
P = W / t
शक्ति या समर्थ शक्ति एक अदिश राशि है।
शक्ति का मात्रक वाट है तथा इसका प्रतीक W है।
यह मात्रक जेम्स वाट के सम्मान में रखा गया है।
1 वाट = 1 जूल / सेकंड कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
कोई अभिकर्ता विभिन्न समय अंतरालों में विभिन्न दरों से कार्य कर सकता है , इसलिए उसकी औसत शक्ति का मान , उसके द्वारा कुल उपयोग की गई ऊर्जा को कुल लिए गए समय से विभाजित करके प्राप्त कर सकते है।
यदि कोई निकाय 1 सेकंड में 1 जूल कार्य करता है , तो उसकी शक्ति 1 वाट होगी।
वाट शक्ति का छोटा मात्रक है। व्यवहार में किलोवाट या मेगावाट का उपयोग करते है।
1 किलोवाट ( kW) = 1000 वाट (W)
1 मेगावाट (MW)= 106 वाट
1 अश्व शक्ति = 746 वाट
साधारणतः मशीनों की शक्ति को अश्व शक्ति से प्रदर्शित किया जाता है। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक
कार्य अथवा ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक वाट – घंटा या किलोवाट – घंटा है।
1 वाट – घंटा = 3.6 × 103 जूल
इससे बड़ा मात्रक , किलोवाट – घंटा है।
1 kW के दर से एक घंटे में व्यय हुई ऊर्जा एक किलोवाट घंटा ( 1 kW h ) के बराबर होती है।
1 किलोवाट – घंटा (kWh) = 3.6 × 106 जूल
एक किलोवाट – घंटा को 1 यूनिट कहते है।
विद्युत मीटर में व्यय ऊर्जा को किलोवाट – घंटा में ही दर्शाते हैं। बिजली विभाग से प्राप्त बिजली के बिल इसी यूनिट में आते हैं। कार्य ऊर्जा एवं सामर्थ्य
MCQ
प्रश्न 1. वह भौतिक क्रिया जिसमें किसी वस्तु पर बाल लगाकर उसे बल की दिशा में विस्थापित किया जाता है –
उत्तर- बल
प्रश्न 2. SI पद्धति में कार्य का मात्रक होता है –
उत्तर- जूल
प्रश्न 3. CGS पद्धति में कार्य का मात्रक होता है –
उत्तर- अर्ग
प्रश्न 4. किसी वस्तु पर किसी बल द्वारा किया गया कार्य एक राशि होता है –
उत्तर- अदिश
प्रश्न 5. किसी वस्तु पर लगने वाले बल द्वारा किया गया कार्य बल के परिमाण तथा बल की दिशा में चली गई दूरी के बराबर होता है –
उत्तर- गुणनफल के
प्रश्न 6. कार्य में केवल होता है –
उत्तर- परिमाण
प्रश्न 7. जब वस्तु पर कार्यरत बल व विस्थापन एक ही दिशा में हो , तब किया गया कार्य होगा –
उत्तर- अधिकतम
प्रश्न 8. यदि विस्थापन बल की दिशा में अभिलंबवत हो , तब किया गया कार्य होगा –
उत्तर- शून्य
प्रश्न 9. यदि बाल लगाने पर , वास्तु में कोई विस्थापन नहीं होता , तब भी किया गया कार्य होता है –
उत्तर- शून्य
प्रश्न 10. जब बल विस्थापन की दिशा में लगता है तो किया गया कार्य होता है –
उत्तर- धनात्मक
प्रश्न 11. जब बल विस्थापन की दिशा के विपरीत दिशा में लगता है तो किया गया कार्य होता है –
उत्तर- ऋणात्मक
प्रश्न 12. किसी वस्तु द्वारा कार्य करने की क्षमता उसकी कहलाती है –
उत्तर- ऊर्जा
प्रश्न 13. किसी वस्तु में निहित ऊर्जा का मापन करते हैं –
उत्तर- वस्तु द्वारा किए गए कार्य से
प्रश्न 14. ऊर्जा का मात्रक होता है –
उत्तर- जूल
प्रश्न 15. किसी वस्तु की गति के कारण उसमें जो कार्य करने की क्षमता होती है , वह उस वस्तु की कहलाती है –
उत्तर- गतिज ऊर्जा
प्रश्न 16. यदि वस्तु का द्रव्यमान दोगुना कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा भी हो जाती है –
उत्तर- दुगनी
प्रश्न 17. यदि वस्तु का द्रव्यमान आधा कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा भी हो जाती है –
उत्तर- आधी
प्रश्न 18. यदि वस्तु का वेग दोगुना कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा हो जाती है –
उत्तर- चार गुनी
प्रश्न 19. यदि वस्तु का वेग आधा कर दिया जाए , तो उसकी गतिज ऊर्जा हो जाती है –
उत्तर- एक – चौथाई
प्रश्न 20. किसी वस्तु द्वारा इसकी स्थिति अथवा विन्यास में परिवर्तन के कारण प्राप्त ऊर्जा को कहते है –
उत्तर- स्थितिज ऊर्जा
प्रश्न 21. किसी भी निकाय की यांत्रिक ऊर्जा अर्थात उसकी गतिज व स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव रहता है –
उत्तर- स्थिर
प्रश्न 22. कार्य करने की दर या ऊर्जा रूपांतरण की दर को कहते है –
उत्तर- शक्ति
प्रश्न 23. शक्ति या समर्थ शक्ति एक राशि है –
उत्तर- अदिश
प्रश्न 24. शक्ति का मात्रक है –
उत्तर- वाट (W )
प्रश्न 25. साधारणतः मशीनों की शक्ति को प्रदर्शित किया जाता है –
उत्तर- अश्व शक्ति से