नगर , व्यापारी और शिल्पीजन
कुंजरमल्लन राजराज पेरूथच्चन राजराजेश्वर मंदिर का वास्तुकार था।
काँसा एक मिश्रधातु होती है , जो ताँबे और राँगे ( टिन ) के मेल से बनती है।
घंटा – धातु में राँगे का अनुपात किसी भी अन्य किस्म के काँसे से अधिक होता है। यह घंटे जैसी ध्वनि उत्पन्न करती है।
चोलकालीन कांस्य मूर्तियाँ ‘ लुप्तमोम ‘ तकनीक से बनाई जाती थी।
मध्य प्रदेश में भिल्लास्वामिन , गुजरात में सोमनाथ , तमिलनाडु में कांचीपुरम तथा मदुरै और आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर नगर के उदाहरण है। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
अजमेर ( राजस्थान ), बारहवीं शताब्दी में चौहान राजाओं की राजधानी था और आगे चलकर मुगलों के शासन में वह ‘ सूबा ‘ मुख्यालय बन गया।
सुप्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती बारहवीं शताब्दी में अजमेर में आकर बसे।
अजमेर के पास ही पुष्कर सरोवर है ,जहाँ प्राचीनकाल से ही तीर्थयात्री आते रहे है।
आठवीं शताब्दी से ही उपमहाद्वीप में अनेक छोटे – छोटे नगरों का संजाल – सा बिछने लगा था।
संभवतः उनका प्रादुर्भाव बड़े – बड़े गाँवो से हुआ था। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
उनमे आमतौर पर एक मण्डपिका ( बाद में जिसे ‘ मंडी ‘ कहा जाने लगा ) होती थी , जहाँ आस – पास के गाँव वाले अपनी उपज बेचने के लिए लाते थे।
उनमे ऐसी गलियाँ थी , जहाँ दुकानें एवं बाजार थे जिन्हें ‘ हट्ट ‘ ( बाद में ‘ हाट ‘ कहा जाने लगा ) कहा जाता था।
इसके आलावा भिन्न – भिन्न प्रकार के कारीगरों तथा शिल्पियों के अलग – अलग बाजार होते थे।
कुछ व्यापारी तो नगर में स्थायी रूप से बसकर अपना कारोबार करते थे , जबकि कुछ अन्य व्यापारी नगर – नगर घूमकर क्रय – विक्रय किया करते थे। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
आमतौर पर कोई सामंत यानी परवर्ती काल का जमींदार इन नगरों में या इनके आस – पास किलेबंदी कर महल बना लेता था।
ऐसे सामंत व्यापारियों , शिल्पकारों तथा उनके व्यापार की वस्तुओं पर कर लगते थे और कभी – कभी इन करों के संग्रहण का ‘ अधिकार ‘ उन स्थानीय मंदिरों को ‘ प्रदान ‘ कर देते थे , जिनका निर्माण स्वयं उनके द्वारा या धनाढ़य व्यापारियों द्वारा कराया गया होता था।
व्यापारी कई प्रकार के हुआ करते थे। उनमें बंजारे लोग भी शामिल थे।
चूँकि व्यापारियों को अनेक राज्यों तथा जंगलों से होकर गुजरना पड़ता था। इसलिए वे आमतौर पर काफिले बनाकर एक साथ यात्रा करते थे और अपने हितों की रक्षा के लिए व्यापार – संघ ( गिल्ड ) बनाते थे। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
दक्षिण भारत में आठवीं शताब्दी और परवर्ती काल में अनेक ऐसे संघ थे। उनमें सबसे प्रसिद्ध ‘ मणिग्रामम ‘ और ‘ नानादेशी ‘ थे।
ये व्यापार संघ प्रायद्वीप के भीतर और दक्षिण – पूर्व एशिया तथा चीन के साथ भी दूर – दूर तक व्यापार करते थे।
इनके आलावा चेट्टियार और मारवाड़ी ओसवाल जैसे समुदाय भी थे , जो आगे चलकर देश के प्रधान व्यापारी समूह बन गए।
गुजरती व्यापारियों में हिन्दू बनिया और मुस्लिम बोहरा दोनों समुदाय शामिल थे। वे दूर – दूर तक लाल सागर के बंदरगाहों व फारस की खाड़ी, पूर्वी अफ्रीका , दक्षिण – पूर्व एशिया तथा चीन से व्यापार करते थे। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
वे इन पत्तनों में कपड़े और मसाले बेचते थे और बदले में अफ्रीका से सोना और हाथी दाँत एवं दक्षिण – पूर्व एशिया और चीन से मसाले , टिन, मिटटी के नीले बर्तन और चाँदी लाते थे।
काबुल अपने पहाड़ी और विषम भू – दृश्य के साथ सोलहवीं शताब्दी से राजनितिक और वाणिज्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बन गया।
काबुल और कंधार सुप्रसिद्ध रेशम मार्ग से जुड़े हुए थे। साथ ही घोड़ों का व्यापार भी मुख्य रूप से इसी मार्ग से होता था। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
सत्रहवीं शताब्दी में हीरों के एक सौदागर जौ बेपटिस्टे टेवर्नियर ने अनुमान लगाया था कि काबुल में घोड़ों का व्यापार प्रतिवर्ष 30 ,000 रुपयों का होता था , जो उन दिनों में एक बड़ी भारी रकम समझी जाती थी।
बीदर के शिल्पकार ताँबे तथा चाँदी में जड़ाई के काम के लिए इतने अधिक प्रसिद्ध थे कि इस शिल्प का नाम ही ‘ बिदरी ‘ पड़ गया। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
हम्पी
हम्पी नगर , कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों की घाटी में स्थित है। यह नगर 1336 में स्थापित विजयनगर साम्राज्य का केंद्र स्थल था।
हम्पी के शानदार खंडहरों से पता चलता है कि उस शहर की किलेबंदी उच्च कोटि की थी।
किले की दीवारों के निर्माण में कहीं भी गारे – चूने जैसे किसी भी जोड़ने वाले मसाले का प्रयोग नहीं किया गया था और शिलाखंडों को आपस में फँसाकर गूँथा गया था।
हम्पी की वास्तुकला विशिष्ट प्रकार की थी। वहाँ के शाही भवनों में भव्य मेहराब और गुंबद थे। वहाँ स्तंभों वाले कई विशाल कक्ष थे। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
वहाँ सुनियोजित बाग – बगीचे थे , जिनमे कमल और टोडों की आकृति वाले मूर्तिकला के नमूने थे।
पंद्रहवीं – सोलहवीं शताब्दियों के अपने समृद्धिकाल में हम्पी कई वाणिज्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से गुंजायमान रहता था।
महानवमी मंच पर राजा अपने अतिथियों का स्वागत – सत्कार करता था और अधीनस्थ व्यक्तियों से नजारे – उपहार लिया करता था। वहीं विराजमान होकर राजा , नृत्य एवं संगीत तथा मल्लयुद्ध के कार्यक्रम भी देखा करता था।
अपने शासन काल के विजयनगर के शासकों ने जलाशयों एवं नहरों के निर्माण में काफी रूचि ली। मालदेवी नदी के ऊपर 1.37 किमी. लम्बे मिटटी के बाँध वाले अंतराज सागर जलाशय का निर्माण हुआ। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेज ने हम्पी नगर का वर्णन किया है।
1565 में दक्कनी सुल्तानों – गोलकुंडा , बीजापुर , अहमदनगर , बरार और बीदर के शासकों – के हाथों विजयनगर की पराजय के बाद हम्पी का विनाश हो गया।
सूरत – पश्चिम का प्रवेश द्वार
सूरत , मुगलकाल में कैंबे ( आज के खंबात ) और कुछ समय बाद के अहमदाबाद के साथ – साथ , गुजरात में पश्चिमी व्यापर का वाणिज्य केंद्र बन गया।
वाणिज्य केंद्र – एक ऐसा स्थान जहाँ विभिन्न उत्पादन केंद्रों से आने वाला माल खरीदा और बेचा जाता है।
सूरत ओरमुज की खाड़ी से होकर पश्चिमी एशिया के साथ व्यापार करने के लिए मुख्य द्वार था। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
सूरत को मक्का का प्रस्थान द्वार भी कहा जाता था , क्योंकि बहुत – से हजयात्री , जहाज से यहीं से रवाना होते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में सूरत में पुर्तगालियों , डचों और अँग्रेजों के कारखाने एवं मालगोदाम थे।
अँग्रेज इतिहासकार ओविंगटन ने 1689 में सूरत बंदरगाह का वर्णन करते हुए लिखा है कि किसी भी एक वक्त पर भिन्न – भिन्न देशों के औसतन एक सौ जहाज इस बंदरगाह पर लंगर डाले खड़े देखे जा सकते थे।
सूरत के वस्त्र अपने सुनहरे गोटा – किनारियों ( जरी ) के लिए प्रसिद्ध थे और उनके लिए पश्चिम एशिया , अफ्रीका और यूरोप में बाजार उपलब्ध थे।
सूरत में काठियावाड़ी सेठों तथा महाजनों की बड़ी – बड़ी साहूकारी कंपनियाँ थीं। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
सूरत से जारी की गई हुंडियों को दूर – दूर तक मिस्र में काहिर , इराक में बसरा और बेल्जियम में एंटवर्प के बाजारों में मान्यता प्राप्त थी।
हुंडी – एक ऐसा दस्तावेज , जिसमें एक व्यक्ति द्वारा जमा कराई गई रकम दर्ज रहती है। हुंडी को कहीं अन्यत्र प्रस्तुत करके जमा की गई राशि प्राप्त की जा सकती है।
सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में सूरत का भी अधःपतन प्रारंभ हो गया।
इसके कई कारण थे – मुगल साम्राज्य के पतन के कारण बाजारों तथा उत्पादकता की हानि , पुर्तगालियों द्वारा समुद्री मार्गों पर नियंत्रण और बंबई ( वर्तमान मुंबई ) से प्रतिस्पर्धा जहाँ 1668 में अँग्रेजी ईस्ट इण्डिया कंपनी ने अपना मुख्यालय स्थापित कर लिया था। आज सूरत एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र है। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
मसूलीपट्टनम
मसूलीपट्टनम या मछलीपट्टनम नगर कृष्णा नदी के डेल्टा पर स्थित है। सत्रहवीं शताब्दी में यह भिन्न – भिन्न प्रकार की गतिविधियों का नगर था।
हॉलैंड और इंग्लैंड दोनों देशों की ईस्ट इंडिया कंपनियों ने मसूलीपट्टनम पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयत्न किया।
मसूलीपट्टनम का किला , हॉलैंडवासियों ने बनाया था।
गोलकुंडा के कुत्बशाही शासकों ने कपड़ों , मसालों और अन्य चीजों की बिक्री पर शाही एकाधिकार लागू किया ; जिससे कि वहाँ का व्यापार पूरी तरह ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में न चला जाए। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
जब मुगलों ने गोलकुंडा तक अपनी शक्ति बढ़ा ली , तो उनके प्रतिनिधि सूबेदार मीर जुमला ने , जो कि स्वयं एक सौदागर था , हॉलैंडवासियों और अँग्रेजों को आपस में भिड़ना शुरू कर दिया।
अँग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के एक गुमाश्ते विलियम मेथवल्ड ने 1620 ई में मसूलीपट्टनम का वर्णन किया था।
गुमाश्ता – यूरोपीय ट्रेडिंग कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों के प्रभारी अधिकारी।
1686 – 87 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
अठारहवीं शताब्दी के दौरान मसूलीपट्टनम का अधःपतन हो गया और आज वह एक छोटे – से जीर्ण – शीर्ण नगर से अधिक कुछ नहीं है।
अँग्रेजों , हॉलैंडवासियों और फ्रांसीसियों ने पूर्व में अपनी वाणिज्यिक गतिविधियों का विस्तार करने के लिए अपनी – अपनी ईस्ट इंडिया कंपनी बनाईं।
प्रारंभ में तो मुल्ला अब्दुल गफूर और वीरजी वोरा जैसे कुछ बड़े भारतीय व्यापारियों ने जिनके पास बड़ी संख्या में जहाज थे , उनका मुकाबला किया।
किन्तु यूरोपीय कंपनियों ने समुद्री व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपनी नौ – शक्ति का प्रयोग किया और भारतीय व्यापारियों को अपने एजेंट के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर कर दिया।
अंततः अँग्रेज , उपमहाद्वीप में सर्वाधिक सफल वाणिज्यिक एवं राजनितिक शक्ति के रूप में उभरकर स्थापित हो गए। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
शिल्पीजन पेशगी की प्रणाली पर काम करने लगे , जिसका अर्थ यह था कि उन्होंने जिन यूरोपीय एजेंटो से पहले ही पेशगी ले ली थी ,उन्ही के लिए उन्हें कपड़ा बुनना होता था।
अठारहवीं शताब्दी में बंबई , कलकत्ता और मद्रास नगरों का उदय हुआ ,जो आज प्रमुख महानगर है।
शिल्प और वाणिज्य में बड़े – बड़े परिवर्तन आए , जब बुनकर जैसे कारीगर तथा सौदागर यूरोपीय कंपनियों द्वारा इन नए नगरों में स्थापित ‘ ब्लैक टाउन्स ‘ में सीमित कर दिया गया , जबकि गोरे शासकों ने मद्रास में फोर्ट सेंट जॉर्ज और कलकत्ता में फोर्ट सेंट विलियम की शानदार कोठियों में अपने आवास बनाए। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
पंद्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय नाविकों द्वारा समुद्री मार्ग खोजने के अभूतपूर्व कार्य किए गए।
पुर्तगाली नाविक वास्को – डि – गामा अटलांटिक महासागर के साथ – साथ यात्रा करते हुए केप ऑफ गुड़ होप से निकलकर और हिन्द महासागर को पार करके 1498 में भारत के कालीकट पहुँचा और अगले वर्ष पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन लौट गया।
एक इटलीवासी क्रिस्टोफर कोलंबस 1492 में वेस्टइंडीज के तट पर पहुँचा। नगर व्यापारी और शिल्पीजन
MCQ
प्रश्न 1. राजराजेश्वर मंदिर का वास्तुकार था –
उत्तर- कुंजरमल्लन राजराज पेरूथच्चन
प्रश्न 2. चोलकालीन कांस्य मूर्तियाँ तकनीक से बनाई जाती थी –
उत्तर- लुप्तमोम
प्रश्न 3. सुप्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती अजमेर में आकर बसे –
उत्तर- बारहवीं शताब्दी में
प्रश्न 4. दक्षिण भारत में आठवीं शताब्दी और परवर्ती काल में अनेक व्यापारी संघ थे। उनमें सबसे प्रसिद्ध थे –
उत्तर- मणिग्रामम और नानादेशी
प्रश्न 5. सत्रहवीं शताब्दी में अनुमान लगाया था कि काबुल में घोड़ों का व्यापार प्रतिवर्ष 30 ,000 रुपयों का होता था –
उत्तर- हीरों के एक सौदागर जौ बेपटिस्टे टेवर्नियर ने
प्रश्न 6. हम्पी नगर स्थित है –
उत्तर- कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों की घाटी में
प्रश्न 7. हम्पी में सुनियोजित बाग – बगीचे थे , जिनमे आकृति वाले मूर्तिकला के नमूने थे –
उत्तर- कमल और टोडों की
प्रश्न 8. अपने शासन काल के विजयनगर के शासकों ने निर्माण में काफी रूचि ली –
उत्तर- जलाशयों एवं नहरों के
प्रश्न 9. पुर्तगाली यात्री ने हम्पी नगर का वर्णन किया है –
उत्तर- डोमिंगो पेज
प्रश्न 10. एक ऐसा स्थान जहाँ विभिन्न उत्पादन केंद्रों से आने वाला माल खरीदा और बेचा जाता है –
उत्तर- वाणिज्य केंद्र
प्रश्न 11. मक्का का प्रस्थान द्वार कहा जाता था –
उत्तर- सूरत को
प्रश्न 12. अँग्रेज इतिहासकार 1689 में सूरत बंदरगाह का वर्णन किया –
उत्तर- ओविंगटन ने
प्रश्न 13. मसूलीपट्टनम या मछलीपट्टनम नगर डेल्टा पर स्थित है –
उत्तर- कृष्णा नदी के
प्रश्न 14. मसूलीपट्टनम का किला बनाया था –
उत्तर- हॉलैंडवासियों ने
प्रश्न 15. अठारहवीं शताब्दी में नगरों का उदय हुआ ,जो आज प्रमुख महानगर है –
उत्तर- बंबई , कलकत्ता और मद्रास
प्रश्न 16. यूरोपीय नाविकों द्वारा समुद्री मार्ग खोजने के अभूतपूर्व कार्य किए गए –
उत्तर- पंद्रहवीं शताब्दी में
प्रश्न 17. पुर्तगाली नाविक1498 में भारत के कालीकट पहुँचा –
उत्तर- वास्को – डि – गामा
प्रश्न 18. एक इटलीवासी 1492 में वेस्टइंडीज के तट पर पहुँचा –
उत्तर- क्रिस्टोफर कोलंबस