आखेटक - खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक : – वे लोग , जो इस उपमहाद्वीप में बीस लाख साल पहले रहा करते थे। आज हम उन्हें आखेटक – खाद्य संग्राहक के नाम से जानते है।
भोजन का इन्तज़ाम करने की विधि के आधार पर उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है।
आमतौर पर खाने के लिए वे जंगली जानवरों का शिकार करते थे , मछलियाँ और चिड़िया पकड़ते थे , फल – मूल , दाने , पौधे – पत्तियाँ , अंडे इकट्ठा किया करते थे।
आखेटक – खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग भोजन और पानी की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहते थे।
पुरातत्त्वविदों को कुछ ऐसी वस्तुएँ मिली हैं जिनका निर्माण और उपयोग आखेटक – खाद्य संग्राहक किया करते थे।
यह संभव है कि लोगों ने अपने काम के लिए पत्थरों , लकड़ियों और हड्डियों के औजार बनाए हों।
कुछ औजारों का उपयोग फल – फूल काटने , हड्डियाँ और मांस काटने तथा पेड़ों की छल और जानवरों की खाल उतरने के लिए किया जाता था।
कुछ के साथ हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगा कर भाले और बाण जैसे हथियार बनाए जाते थे।
कुछ औजारों से लकड़ियाँ काटी जाती थी।
लकड़ियों का उपयोग ईंधन के साथ – साथ झोपड़ियाँ और औजार बनाने के लिए भी किया जाता था।
भीमबेटका ,इनामगावँ , हुंसी , कुरनूल गुफाएँ वे पुरास्थल है जहाँ पर आखेटक – खाद्य संग्राहकों के होने के प्रमाण मिले हैं।
इनके आलावा भी और कई स्थानों पर आखेटक – खाद्य संग्राहक रहते थे।
भीमबेटका ( आधुनिक मध्य प्रदेश ) इस पुरास्थल पर गुफाएँ व कंदराएँ मिली है।
लोग इन गुफाओं में इसलिए रहते थे , क्योंकि यहाँ उन्हें बारिश ,धूप और हवाओं से राहत मिलती थी।
ये गुफाएँ नर्मदा घाटी के पास हैं।
जिन गुफाओं में लोग रहते थे , उनमें से कुछ की दीवारों पर चित्र मिले है। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
इनमें कुछ सुंदर उदाहरण मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश की गुफाओं से मिले चित्र हैं।
इनमें जंगली जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है।
पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औजारों, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते है।
ऐसी वस्तओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीं छोड़ गए।
ये जमीन के ऊपर , अन्दर , कभी – कभी समुद्र और नदी के तल में भी पाए जाते हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
कुरनूल गुफा में राख के अवशेष मिले है।
इसका मतलब यह है कि आरंभिक लोग आग जलाना सीख गए थे।
आग का उपयोग प्रकाश , मांस बुनने और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भगाने के लिए किया जाता होगा।
लगभग 12000 साल पहले दुनिया की जलवायु में बड़े बदलाव आए और गर्मी बढ़ने लगी। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
इसके परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में घास वाले मैदान बनने लगे और उन पर जीवित रहने वाले जानवरों की संख्या बढ़ने लगी।
इसी दौरान उपमहाद्वीप के भिन्न – भिन्न इलाकों में गेहूँ , जौ और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप से उगने लगे थे।
धीरे – धीरे लोगो ने अनाजों को खुद पैदा करना तथा जानवरों को पालतू बनाना सीख लिया और इस प्रकार वे कृषक और पशुपालक बन गये।
सबसे पहले जिस जंगली जानवर को पालतू बनाया गया वह कुत्ते का जंगली पूर्वज था। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
अनाज को भोजन और बीज , दोनों ही रूपों में बचा कर रखना आवश्यक था , इसलिए लोगों को इसके भंडारण की बात सोचनी पड़ी।
बहुत – से इलाकों में लोगों ने मिटटी के बड़े – बड़े बर्तन बनाए, टोकरियाँ बुनी या फिर जमीन में गड्ढा खोदा।
बुर्जहोम , मेहरगढ़ ,चिरांद ,दाओजली हेडिंग ,कोल्डिहवा ,महागढ़ा,हल्लूर,पैययमपल्ली ये वो स्थान हैं, जहाँ पुरातत्त्वविदों को शुरुआती कृषकों और पशुपालकों के होने के साक्ष्य मिले हैं।
ये स्थान पूरे उपमहाद्वीप में पाए गए हैं। इनमे सबसे महत्वपूर्ण पश्चिमोत्तर क्षेत्र में , आधुनिक कश्मीर में , और पूर्वी तथा दक्षिण भारत में पाए गए हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
पुरातत्त्वविदों को कुछ पुरास्थलों पर झोपड़ियों और घरों के निशान मिले हैं।
जैसे कि बुर्जहोम ( वर्तमान कश्मीर में ) के लोग गड्ढे के नीचे घर बनाते थे जिन्हे गर्तवास कहा जाता हैं।
इनमें उतरने के लिए सीढियाँ होती थीं।
इससे उन्हें ठंढ के मौसम में सुरक्षा मिलती होगी।
पुरातत्त्वविदों को झोपड़ियों के अंदर और बाहर दोनों ही स्थानों पर आग जलाने की जगहे मिली हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
लोग मौसम के अनुसार घर के अंदर या बाहर खाना पकाते होंगे।
बहुत सारी जगहों से पत्थर के औजार भी मिले हैं।
इनमें से कई ऐसे हैं , जो पुरापाषाणयुगीन उपकरणों से भिन्न हैं।
इसीलिए इन्हें नवपाषाण युग का माना गया हैं।
इनमें वे औजार भी हैं , जिनकी धार को और अधिक पैना करने के लिए उन पर पॉलिश चढ़ाई जाती थीं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
ओखली और मूसल का प्रयोग अनाज तथा वनस्पतियों से प्राप्त अन्य चीजों को पीसने के लिए किया जाता था।
प्राचीन प्रस्तरयुगीन औजारों का निर्माण और प्रयोग लगातार होता रहा।
कुछ औजार हड्डियों से भी बनाए जाते थे।
नवपाषाण युग के पुरास्थलों से कई प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
कभी – कभी इन पर अलंकरण भी किया जाता था। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
बर्तनों का प्रयोग चीजों को रखने और भोजन बनाने के लिए किया जाता था।
चावल , गेहूँ तथा दलहन जैसे अनाज अब आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे।
अब लोग कपड़े भी बुनने लगे थे। इसके लिए कपास जैसे आवश्यक पौधे उगाए जा सकते थे।
ये परिवर्तन हर जगह समान नहीं था ,एक तरफ जहाँ कई जगहों पर स्त्री – पुरुष शिकार और भोजन – संग्रह करने का काम करते रहे थे वहीं अन्य लोगों ने हजारो सालो के दरम्यान धीरे – धीरे खेती और पशुपालन को अपना लिया। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
बहुत जगह लोग मौसम के मुताबिक बदल – बदल कर अपनी जीविका चलाया करते थे।
मेहरगढ़ , ईरान जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण रास्ते , बोलन दर्रे के पास एक हराभरा समतल स्थान हैं।
मेहरगढ़ संभवतः वह स्थान है, जहाँ के स्त्री – पुरुषों ने , इस इलाके में सबसे पहले जौ , गेहूँ उगाना और भेड़ – बकरी पलना सीखा।
यहाँ विभिन्न प्रकार के जानवरों की हड्डियाँ मिलीं।
इनमें हिरण तथा सूअर जैसे जंगली जानवरों तथा भेड़ और बकरियों की हड्डियाँ हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
मेहरगढ़ में इसके आलावा चौकोर तथा आयताकार घरों के अवशेष मिले हैं।
प्रत्येक घर में चार या उससे ज्यादा कमरे हैं , जिनमें से कुछ संभवत भंडारण के काम आते होंगे।
लोगो की आस्था हैं कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता हैं।
इसीलिए कब्रों में मृतकों के साथ कुछ सामान भी रखे जाते थे। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
मेहरगढ़ में ऐसी कई कब्रें मिली हैं।
एक कब्र में एक मृतक के साथ एक बकरी को भी दफनाया गया था।
संभवतः इसे परलोक में मृतक के खाने के लिए रखा गया होगा।
पुरातत्त्वविद आरंभिक काल को पुरापाषाण काल कहते हैं।
यह दो शब्दों पुरा यानी ‘ प्राचीन ‘ , और पाषाण यानी ‘ पत्थर ‘ से बना हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
यह नाम पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औजारों के महत्त्व को बताता हैं।
पुरापाषाण काल बीस लाख साल पहले से 12,000 साल पहले के दौरान माना जाता हैं।
इस काल को भी तीन भागों में विभाजित किया गया हैं : ‘ आरंभिक ‘, ‘ मध्य ‘, एवं ‘ उत्तर ‘ पुरापाषाण युग।
मानव इतिहास की लगभग 99 प्रतिशत कहानी इसी काल के दौरान घटित हुई। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
जिस काल में हमें पर्यावरणीय बदलाव मिलते हैं , उसे ‘ मेसोलिथ ‘ यानी मध्यपाषाण युग कहते हैं।
इसका समय लगभग 12,000 साल पहले से लेकर 10,000 साल पहले तक माना गया हैं।
इस काल के पाषाण औजार आमतौर पर बहुत छोटे होते थे।
इन्हें ‘ माइक्रोलिथ ‘ यानी लघुपाषाण कहा जाता हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
प्रायः इन औजारों में हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हँसिया और आरी जैसे औजार मिलते थे।
साथ – साथ पुरापाषाण युग वाले औजार भी इस दौरान बनाए जाते रहे।
अगले युग की शुरुआत लगभग 10,000 साल पहले से होती हैं। इसे नवपाषाण युग कहा जाता हैं।
लोगों द्वारा पौधे उगाने और जानवरों की देखभाल करने को ‘ बसने की प्रक्रिया ‘ का नाम दिया गया हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
बसने की प्रक्रिया पूरी दुनिया में धीरे – धीरे चलती रही।
यह करीब 12,000 साल पहले शुरू हुई।
वास्तव में आज हम जो भोजन करते हैं वो इसी बसने की प्रक्रिया की वजह से हैं।
कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसलों में गेहूँ तथा जौ आते हैं , उसी तरह सबसे पहले पालतू बनाए गए जानवरों में कुत्ते के बाद भेड़ – बकरी आते हैं। आखेटक – खाद्य संग्राह से भोजन उत्पादन तक
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
मध्यपाषाण युग ( 12,000 – 10,000 साल पहले )
बसने की प्रक्रिया का आरंभ ( लगभग 12,000 साल पहले )
मेहरगढ़ में बस्ती का आरंभ (लगभग 8000 साल पहले )
नवपाषाण युग का आरंभ ( 10,000 साल पहले )
MCQ
प्रश्न 1. वे लोग , जो खाने के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते थे , मछलियाँ और चिड़िया पकड़ते थे , फल – मूल , दाने , पौधे – पत्तियाँ , अंडे इकट्ठा किया करते थे आज किस नाम से जाने जाते है ?
उत्तर- आखेटक – खाद्य संग्राहक
प्रश्न 2. वे लोग , जो इस उपमहाद्वीप में बीस लाख साल पहले रहा करते थे। आज हम उन्हें जानते है –
उत्तर- आखेटक – खाद्य संग्राहक के नाम से
प्रश्न 3. अतीत के लोगो को किस आधार पर आखेटक – खाद्य संग्राहक के नाम से पुकारा जाता है –
उत्तर- भोजन का इन्तज़ाम करने की विधि के
प्रश्न 4. भीमबेटका ,इनामगावँ , हुंसी , कुरनूल गुफाएँ वे पुरास्थल है जहाँ पर होने के प्रमाण मिले हैं –
उत्तर- आखेटक – खाद्य संग्राहकों के
प्रश्न 5. भीमबेटका की गुफाओं में बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है –
उत्तर- जंगली जानवरों का
प्रश्न 6. जहाँ औजारों, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते है , उस स्थान को कहते है –
उत्तर- पुरास्थल
प्रश्न 7. कुरनूल गुफा में अवशेष मिले है –
उत्तर- राख के
प्रश्न 8. सबसे पहले जिस जंगली जानवर को पालतू बनाया गया वह था –
उत्तर- कुत्ते का जंगली पूर्वज
प्रश्न 9. बुर्जहोम , मेहरगढ़ ,चिरांद ,दाओजली हेडिंग ,कोल्डिहवा ,महागढ़ा,हल्लूर,पैययमपल्ली ये वो स्थान हैं, जहाँ पुरातत्त्वविदों को साक्ष्य मिले हैं –
उत्तर- शुरुआती कृषकों और पशुपालकों के होने के
प्रश्न 10. बुर्जहोम ( वर्तमान कश्मीर में ) के लोग गड्ढे के नीचे घर बनाते थे जिन्हे कहा जाता हैं –
उत्तर- गर्तवास
प्रश्न 11. मेहरगढ़ संभवतः वह स्थान है, जहाँ के स्त्री – पुरुषों ने , इस इलाके में सबसे पहले सीखा –
उत्तर- जौ , गेहूँ उगाना और भेड़ – बकरी पलना
प्रश्न 12. मेहरगढ़ में जानवरों की हड्डियाँ आलावा अवशेष मिले हैं –
उत्तर- चौकोर तथा आयताकार घरों के
प्रश्न 13. प्रचीन लोग विश्वास करते थे –
उत्तर- मृत्यु के बाद जीवन में
प्रश्न 14. मेहरगढ़ की एक कब्र में एक मृतक के साथ दफनाया गया था –
उत्तर- एक बकरी को
प्रश्न 15. पुरातत्त्वविद आरंभिक काल को कहते हैं –
उत्तर- पुरापाषाण काल
प्रश्न 16. पुरापाषाण काल को भी तीन भागों में विभाजित किया गया हैं , ये है –
उत्तर- ‘ आरंभिक ‘, ‘ मध्य ‘, एवं ‘ उत्तर ‘ पुरापाषाण युग
प्रश्न 17. जिस काल में हमें पर्यावरणीय बदलाव मिलते हैं , उसे कहते हैं –
उत्तर- ‘ मेसोलिथ ‘ यानी मध्यपाषाण युग
प्रश्न 18. मध्यपाषाण काल के पाषाण औजार आमतौर पर होते थे –
उत्तर- बहुत छोटे
प्रश्न 19. मध्यपाषाण काल के पाषाण औजार को कहा जाता है –
उत्तर- ‘ माइक्रोलिथ ‘ यानी लघुपाषाण
प्रश्न 20. जिस युग की शुरुआत लगभग 10,000 साल पहले से होती हैं। इसे कहा जाता हैं –
उत्तर- नवपाषाण युग
प्रश्न 21. लोगों द्वारा पौधे उगाने और जानवरों की देखभाल करने को नाम दिया गया हैं –
उत्तर- ‘ बसने की प्रक्रिया ‘ का
प्रश्न 22. कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसलों में आते हैं –
उत्तर- गेहूँ तथा जौ
प्रश्न 23. सबसे पहले पालतू बनाए गए जानवरों में कुत्ते के बाद आते हैं –
उत्तर- भेड़ – बकरी