खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर : – भारतीय उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ।
महापाषाण कब्रों में लोहे के औजार और हथियार बड़ी संख्या में मिले है।
करीब 2500 वर्ष पहले लोहे के औजारों के बढ़ते उपयोग का प्रमाण मिलता है। इनमे जंगलों को साफ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ और जुताई के लिए हलों के फाल शामिल हैं।
इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे।
तमिल क्षेत्र में बड़े भूस्वामियों को वेल्लला, साधारण हलवाहों को उणवार और भूमिहीन मजदूर , दस कडैसियार और अदिमई कहलाते थे। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
गाँव में रहने वालों के जिन तमिल नामों का उल्लेख यहाँ किया गया है , वे संगम साहित्य में पाए जाते है।
देश के उत्तरी हिस्से में, गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम – भोजक कहलाता था। यह पद आनुवंशिक था।
ग्राम – भोजक के पद पर आमतौर पर गाँव का सबसे बड़ा भू – स्वामी होता था। ये कर वसूलने ,न्यायाधीश और कभी – कभी पुलिस का काम भी करते थे। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
ग्राम – भोजकों के आलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे , जिन्हें गृहपति कहते थे। इनमें ज्यादातर छोटे किसान ही होते थे।
वे लोग जो दूसरों की जमीन पर काम करके अपनी जीविका चलते थे ,दस कर्मकार कहलाते थे।
अधिकांश गाँवों में लोहार, कुम्हार, बढ़ई तथा बुनकर जैसे कुछ शिल्पकार भी होते थे।
तमिल की प्राचीन रचनाओं को संगम साहित्य कहते है। इनकी रचना करीब 2300 साल पहले की गई।
इन्हें संगम इसलिए कहा जाता है क्योंकि मुदरै के कवियों के सम्मेलनों में इनका संकल किया जाता था। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
प्राचीन नगरों का बारे में जातक कथाओ ( जिनका संकलन बौद्ध भिक्खुओं ने किया ), मूर्तिकारों की मूर्तियों ( इनमें शहरों, गाँवो या जंगलो के जीवन से जुड़ी घटनाओं को उकेरा जाता था ), नाविकों तथा यात्रियों के विवरणों से पता चलता है।
अनेक शहरों में वलयकूप मिले हैं। ये वलयकूप गुसलखाने , नाली या कूड़ेदान के लिए प्रयुक्त होते थे।
प्रायः ये वलयकूप लोगों के घरों में होते थे। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
पुरातत्त्वविदों को इस युग के हजारों सिक्के मिले हैं।
सबसे पुराने आहत सिक्के थे , जो करीब 500 साल चले।
चाँदी या सोने के सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों को आहत कर बनाए जाने के कारण इन्हें आहत सिक्का कहा जाता था। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
आहत सिक्के
आहत सिक्के सामान्यतः आयताकार और कभी – कभी वर्गाकार या गोल होते थे।
ये या तो धातु की चादर को काटकर या धातु के चपटे गोलिकाओं से बनाये जाते थे।
इन सिक्कों पर कुछ लिखा हुआ नहीं था , बल्कि इन पर कुछ चिन्ह ठप्पे से बनाये जाते थे। इसलिए ये आहत सिक्के कहलाए।
ये सिक्के उपमहाद्वीप के लगभग अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं और ईसा की आरंभिक सदियों तक ये प्रचलन में रहे। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
मथुरा
मथुरा 2500 साल से भी ज्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रहा है क्योंकि यह यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्तों पर स्थित था।
इनमें से एक रास्ता उत्तर – पश्चिम से पूरब की और , दूसरा उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाला था।
मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था।
लगभग 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
मथुरा एक धार्मिक केंद्र भी रहा है। यहाँ बौद्ध विहार और मंदिर हैं। यह कृष्ण भक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
मथुरा में प्रस्तर – खंडों तथा मूर्तियों पर अनेक अभिलेख मिले हैं।
आमतौर पर ये संक्षिप्त अभिलेख है , जो स्त्रियों तथा पुरुषों द्वारा मठों या मंदिर को दिए जाने वाले दान का उल्लेख करते है।
मथुरा के अभिलेख में सुनारों , लोहारों , बुनकरों , टोकरी बुनने वालों , माला बनाने वालों और इत्र बनाने वालों के उल्लेख मिलते हैं। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
शिल्प तथा शिल्पकार
पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं।
इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले है , जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज्यादातर उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में मिले है।
उत्तर में वाराणसी और दक्षिण में मुदरै कपड़ों के उत्पादन के प्रसिद्ध केंद्र थे।
अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने – अपने संघ बनाने लगे थे , जिन्हें श्रेणी कहते थे। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
शिल्पकारों की श्रेणियों का काम प्रशिक्षण देना , कच्चा माल उपलब्ध करना तथा तैयार माल का वितरण करना था।
जबकि व्यापारियों की श्रेणियाँ व्यापार का संचालन करती थीं।
श्रेणियाँ बैंको के रूप में काम करती थीं, जहाँ लोग पैसे जमा रखते थे।
इस धन का निवेश लाभ के लिए किया जाता था। उससे मिले लाभ का कुछ हिस्सा जमा करने वाली को लौटा दिया जाता था या फिर मठ आदि धार्मिक संस्थानों को दिया जाता था। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
उत्तरी काले चमके पात्र
ये एक कठोर , चाक निर्मित , धातु की तरह दिखने वाले तथा चमकदार काली सतह वाले पात्र है।
इसे बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को भट्टों पर उच्च तापमान पर रखते थे जिसके परिणामस्वरूप इन बर्तनों की बहरी सतह काली हो जाती थीं।
इन पर एक पतली काली लेप भी लगायी जाती थीं जो इस बर्तन को शीशे जैसी चमक प्रदान करता था। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
अरिकामेडु
लगभग 2200 से 1900 साल पहले अरिकामेडु (पुदुच्चेरी में ) एक पत्तन था , यहाँ दूर – दूर से आए जहाजों से सामान उतारे जाते थे।
यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवतः गोदाम रहा हो।
यहाँ भूमध्य – सागरीय क्षेत्र के एनफोरा जैसे पात्र मिले है। इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे। इनमें दोनों तरफ से पकड़ने के लिए हत्थे लगे है।
यहाँ ‘ एरेटाइन’ जैसे मुहर लगे लाल – चमकदार बर्तन भी मिले है। इन्हें इटली के शहर के नाम पर ‘ एरेटाइन ‘ पात्र के नाम से जाना जाता है। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
इसे मुहर लगे साँचे पर गीली चिकनी मिट्टी को दबा कर बनाया जाता था।
कुछ ऐसे बर्तन भी मिले है , जिनका डिजाइन तो रोम का था , किन्तु वे यहीं बनाए जाते थे।
यहाँ रोमन लैंप , शीशे के बर्तन तथा रत्न भी मिले है।
यहाँ छोटे – छोटे कुण्ड मिले हैं , जो संभवतः कपड़े की रंगाई के पात्र रहे होंगे।
यहाँ पर शीशे और अर्ध – बहुमूल्य पत्थरों से मनके बनाने के पर्याप्त साक्ष्य मिले है। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
अन्यत्र
रोम , यूरोप के सबसे पुराने शहरों में से एक है।
इसका विकास लगभग तभी हुआ , जब गंगा के मैदान के शहर बस रहे थे।
रोम एक बहुत बड़े साम्राज्य की राजधानी था।
यह यूरोप , उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया तक फैला साम्राज्य था।
इसके सबसे महत्वपूर्ण शासकों में से एक ऑगस्टस ने करीब 2000 साल पहले शासन किया था।
उसने कहा था कि रोम ईंटों का शहर था , जिसे मैंने संगमरमर का बनवाया। खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
उपमहाद्वीप में लोहे के प्रयोग की शुरुआत ( करीब 3000 साल पहले )
लोहे के प्रयोग में बढ़ोतरी , नगर , आहत सिक्के ( करीब 2500 साल पहले )
संगम साहित्य की रचना की शुरुआत ( करीब 2300 साल पहले )
अरिकामेडु का पत्तन ( करीब 2200 तथा 1900 साल पहले )
MCQ
प्रश्न 1. भारतीय उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग शुरू हुआ –
उत्तर- लगभग 3000 साल पहले
प्रश्न 2. महापाषाण कब्रों में बड़ी संख्या में मिले है –
उत्तर- लोहे के औजार और हथियार
प्रश्न 3. तमिल क्षेत्र में बड़े भूस्वामियों को क्या कहते थे ?
उत्तर- वेल्लला
प्रश्न 4. तमिल क्षेत्र में उणवार कहते थे –
उत्तर- साधारण हलवाहों को
प्रश्न 5. तमिल क्षेत्र में दस कडैसियार और अदिमई कहा जाता था –
उत्तर- भूमिहीन मजदूर को
प्रश्न 6. देश के उत्तरी हिस्से में, गाँव का प्रधान व्यक्ति कहलाता था –
उत्तर- ग्राम – भोजक
प्रश्न 7. ग्राम – भोजक के पद पर आमतौर पर कौन होता था ?
उत्तर- गाँव का सबसे बड़ा भू – स्वामी
प्रश्न 8. ग्राम – भोजकों के आलावा अन्य स्वतंत्र कृषक को क्या कहा जाता था ?
उत्तर- गृहपति
प्रश्न 9. वे लोग जो दूसरों की जमीन पर काम करके अपनी जीविका चलते थे , वे कहलाते थे –
उत्तर- दस कर्मकार
प्रश्न 10. तमिल की प्राचीन रचनाओं को कहते है –
उत्तर- संगम साहित्य
प्रश्न 11. चाँदी या सोने के सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों को आहत कर बनाए जाने के कारण इन्हें क्या कहा जाता था ?
उत्तर- आहत सिक्का
प्रश्न 12. प्राचीन कल में अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने – अपने संघ बनाने थे , जिन्हें कहते थे –
उत्तर- श्रेणी
प्रश्न 13. किसने कहा था कि रोम ईंटों का शहर था , जिसे मैंने संगमरमर का बनवाया ?
उत्तर- ऑगस्टस