नए राजा और उनके राज्य

नए राजा और उनके राज्य

नए राजा और उनके राज्य :- सातवीं सदी आते – आते उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में बड़े भूस्वामी और योद्धा – सरदार अस्तित्व में आ चुके थे।

राजा लोग प्रायः उन्हें अपने मातहत या सामंत के रूप में मान्यता देते थे।

उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे राजा को उपहार , दरबार में हाजिरी और उन्हें सैन्य सहायता प्रदान करे।

अधिक सत्ता और संपदा हासिल करने पर सामंत अपने – आप को महासामंत , महामंडलेश्वर ( पूरे मंडल का महान स्वामी ) इत्यादि घोषित के देते थे। नए राजा और उनके राज्य

कभी – कभी वे अपने स्वामी के आधिपत्य से स्वतंत्र हो जाने का दावा भी करते थे।

दक्कन के राष्ट्रकूट शुरुआत में कर्नाटक के चालुक्य राजाओं के अधीनस्थ थे।

आठवीं सदी के मध्य में एक राष्ट्रकूट प्रधान दन्तिदुर्ग ने अपने चालुक्य स्वामी की अधीनता से इंकार कर दिया , उसे हराया और हिरण्यगर्भ ( शाब्दिक अर्थ – सोने का गर्भ ) नामक एक अनुष्ठान कर राष्ट्रकूट राज्य की स्थापना की।

हिरण्यगर्भ अनुष्ठान ब्राह्मणों की सहायता से संपन्न किया जाता था , तो यह माना जाता था कि इससे याजक , जन्मना क्षत्रिय न होते हुए भी क्षत्रिय के रूप में दुबारा क्षत्रियत्व प्राप्त कर लेगा। नए राजा और उनके राज्य

कदंब मयूरशर्मण और गुर्जर – प्रतिहार हरिचन्द्र ब्राह्मण थे , जिन्होंने अपने परंपरागत पेशे को छोड़कर शस्त्र को अपना लिया और क्रमशः कर्नाटक और राजस्थान में अपने राज्य सफलतापूर्वक स्थापित किए।

इन नए राजाओं में से कइयों ने महाराजाधिराज ( राजाओं के राजा ), त्रिभुवन – चक्रवर्तिन ( तीन भुवनों का स्वामी ) और इसी तरह कीअन्य भरी – भरकम उपाधियाँ धारण की।

लेकिन , इस तरह के दावों के बावजूद , वे अपने सामंतों और साथ – ही – साथ किसान ,व्यापारी तथा ब्राह्मणों के संगठनों के साथ अपनी सत्ता की साझेदारी करते थे।

इन सभी राज्यों द्वारा उत्पादकों अर्थात किसानों , पशुपालकों , कारीगरों से संसाधन इकट्ठे किए जाते थे। इनकों अकसर अपने उत्पादों का एक हिस्सा त्यागने के लिए मनाया या बाध्य किया जाता था। नए राजा और उनके राज्य

कभी – कभी इस हिस्से को ‘ लगान ‘ मानकर वसूला जाता था।

राजस्व व्यापारियों से भी लिया जाता था।

राजस्व – वसूली के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति सामान्यतः प्रभावशाली परिवारों के बीच से ही की जाती थी और प्रायः वंशानुगत होती थी।

सेना में भी ऐसा ही होता था। कई बार राजा के निकट संबंधी ही इन ओहदों पर होते थे। नए राजा और उनके राज्य

तमिलनाडु में शासन करने वाले चोल वंश के अभिलेखों में विभिन्न किस्म के करों के लिए 400 से ज्यादा सूचक शब्द मिलते है।

सबसे अधिक उल्लिखित कर है वेट्टी, जो नकद की बजाए जबरन श्रम कर के रूप में लिया जाता था , यानी जबरन श्रम और कदमाई यानी कि भू – राजस्व थे।

राजा लोग प्रायः ब्राह्मणों को भूमि अनुदान से पुरस्कृत करते थे। ये ताम्र पत्रों पर अभिलिखित होते थे , जो भूमि पाने वाले को दिए जाते थे।

संस्कृत में लिखी गई , ग्वालियर ( मध्य प्रदेश ) में पाई गई एक प्रशस्ति में प्रतिहार नरेश , नागभट्ट के कामों का वर्णन किया गया हैं। नए राजा और उनके राज्य

दिल्ली के सुल्तान image

बारहवीं शताब्दी में एक बृहत संस्कृत काव्य ‘ राजतरंगिणी ‘ रचा गया, जिसमें कश्मीर पर शासन करने वाले राजाओं का इतिहास दर्ज है। इसे कल्हण नामक एक रचनाकार द्वारा रचा गया।

कल्हण ने अपना वृत्तांत लिखने के लिए शिलालेखों , दस्तावेजों , प्रत्यक्षदर्शियों के वर्णनों और पहले के इतिहासों समेत अनेक तरह के स्त्रोतों का इस्तेमाल किया।

प्रशस्तियों के लेखकों से भिन्न वह अकसर शासकों और उनकी नीतियों के बारे में आलोचनात्मक रुख दिखलाता है , इसलिए बारहवीं सदी के लिए यह असाधारण ग्रंथ था।

गुर्जर – प्रतिहार , राष्ट्रकूट और पाल वंशों के शासक सदियों तक कन्नौज के ऊपर नियंत्रण को लेकर आपस में लड़ते रहे।

चूँकि इस लंबी चली लड़ाई में तीन पक्ष थे , इसलिए इतिहासकारों ने प्रायः इसकी चर्चा ‘ त्रिपक्षीय संघर्ष ‘ के रूप में कि है। नए राजा और उनके राज्य

अफगानिस्तान के गजनी पर सुल्तान महमूद ने 997 से 1030 तक शासन किया और अपने नियंत्रण का विस्तार मध्य एशिया के भागों , ईरान और उपमहाद्वीप के उत्तर – पश्चिमी हिस्से तक किया।

सुल्तान अरबी भाषा का शब्द है , जिसका मतलब है , शासक

वह लगभग हर साल उपमहाद्वीप पर हमला करता था। उसका निशाना थे – संपन्न मंदिर , जिसमें गुजरात का सोमनाथ मंदिर भी शामिल है।

सुल्तान महमूद अपने द्वारा जीते गए लोगों के बारे में भी कई बातें जानना चाहता था और उसने अल – बेरुनी नामक एक विद्वान् को इस उपमहाद्वीप का लेखा – जोखा लिखने का काम सौंपा। नए राजा और उनके राज्य

अरबी में लिखी गई उसकी कृति, किताब अल – हिन्द , आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है।

अल – बेरुनी ने इसे तैयार करने के लिए संस्कृत के विद्वानों से परामर्श किया।

चाहमान राजा जो बाद में चौहान के रूप में जाने गए , दिल्ली और अजमेर के आस – पास के क्षेत्र पर शासन करते थे।

उन्होंने पश्चिम और पूर्व कि और अपने नियंत्रण – क्षेत्र का विस्तार करना चाहा , जहाँ उन्हें गुजरात के चालुक्यों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गहड़वालों से टक्कर लेनी पड़ी। नए राजा और उनके राज्य

चाहमानों का सबसे प्रसिद्ध शासक था – पृथ्वीराज तृतीय ( 1168 – 1192 ), जिसने सुल्तान मुहम्मद गोरी नामक अफगान शासक को 1191 में हराया , लेकिन दूसरे ही साल 1192 में उसके हाथों हार गया।

कावेरी डेल्टा में मुट्टरियार नाम से प्रसिद्ध एक छोटे – से मुखिया परिवार की सत्ता थी। वे कांचीपुरम के पल्लव राजाओं के मातहत थे।

उरइयार के चोलवंशीय प्राचीन मुखिया परिवार के विजयालय ने नौवीं सदी के मध्य में मुट्टरियारों को हरा कर इस डेल्टा पर कब्जा जमाया और चोल राज्य की स्थापना की।

उसने वहाँ तंजावूर शहर और निशुम्भसुदिनी देवी का मंदिर बनवाया। नए राजा और उनके राज्य

दक्षिण और उत्तर के पांड्यन और पल्लव के इलाके इस राज्य का हिस्सा बना लिए गए।

राजराज प्रथम , जो सबसे शक्तिशाली चोल शासक माना जाता है , 985 में राजा बना और उसी ने ज्यादातर क्षेत्रों पर अपने नियंत्रण का विस्तार किया। उसने साम्राज्य के प्रशासन का भी पुनर्गठन किया।

राजराज के पुत्र राजेंद्र प्रथम ने उसकी नीतियों को जारी रखा और उसने गंगा घाटी , श्री लंका तथा दक्षिण – पूर्व एशिया के देशो पर हमला भी किया। इन अभियानों के लिए उसने एक जलसेना भी बनाई।

राजराज और राजेंद्र प्रथम द्वारा बनवाए गए तंजावूर और गंगईकोंडचोलपुरम के बड़े मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला की दृष्टि से एक चमत्कार है। नए राजा और उनके राज्य

मंदिर सिर्फ पूजा – आराधना के स्थान नहीं थे – वे आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के केंद्र भी थे।

मंदिर के साथ जुड़े हुए शिल्पों में सबसे विशिष्ट था – कांस्य प्रतिमाएँ बनाने का काम।

चोल कांस्य प्रतिमाएँ संसार की सबसे उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमाओं में गिनी जाती है।

ज्यादातर प्रतिमाएँ तो देवी – देवताओं की ही होती थी , लेकिन कुछ प्रतिमाएँ भक्तों की भी बनाई गई थीं। नए राजा और उनके राज्य

चोलो की कई उपलब्धियाँ कृषि में हुए नए विकासों के माध्यम से संभव हुई।

सिंचाई के लिए कई पद्धतियाँ अपनाई जाती थी।

किसानों की बस्तियाँ, जो ‘ उर ‘ कहलाती थी , सिंचित खेती के साथ बहुत समृद्ध हो गई थीं। इस तरह के गाँवों के समूह को ‘ नाडु ‘ कहा जाता था।

ग्राम परिषद और नाडु , न्याय करने और कर वसूलने जैसे कई प्रशासकीय कार्य करते थे। नए राजा और उनके राज्य

वेल्लाल जाति के धनी किसानों को केंद्रीय चोल सरकार की देख – रेख में ‘ नाडु ‘ के काम – काज में अच्छा – खासा नियंत्रण हासिल था।

उनमे से कई धनी भूस्वामियों को चोल राजाओं ने सम्मान के रूप में ‘ मुवेंदवेलन ‘ ( तीन राजाओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करने वाला वेलन या किसान ), ‘ अरइयार ‘ (प्रधान) जैसी उपाधियाँ दी और उन्हें केंद्र में महत्वपूर्ण राजकीय पद सौंपे।

चोल अभिलेखों में भूमि की विभिन्न कोटियों का उल्लेख मिलता है। नए राजा और उनके राज्य

वेल्लनवगाई – गैर – ब्राह्मण किसान स्वामी की भूमि

ब्रह्मदेय – ब्राह्मणों को उपहार में दी गई भूमि

शालाभोग – किसी विद्यालय के रखरखाव के लिए भूमि

देवदान , तिरुनमदुक्कन – मंदिर को उपहार में दी गई भूमि

पल्लिच्छंदम – जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि   नए राजा और उनके राज्य

प्रत्येक ब्रह्मदेय की देख – रेख प्रमुख ब्राह्मण भूस्वामियों की एक सभा द्वारा की जाती थी।

ये सभाएँ बहुत कुशलतापूर्वक काम करती थी। इनके निर्णय , शिलालेखों में प्रायः मंदिरों की पत्थर की दीवारों पर , ब्यौरेवार दर्ज किए जाते थे।

‘ नगरम ‘ के नाम से ज्ञात व्यापारियों के संघ भी अकसर शहरों में प्रशासनिक कार्य संपादित करते थे।

तमिलनाडु के चिंगलपुट जिले के उत्तरमेरूर से प्राप्त अभिलेखों में इस बात का सविस्तार वर्णन है कि ब्राह्मणो की सभा का संगठन कैसा था। नए राजा और उनके राज्य

सिंचाई के काम काज , बाग – बगीचों , मंदिरों इत्यादि की देख – रेख के लिए सभा में विभिन्न समितियाँ होती थी।

इनमे सदस्यता के लिए जो लोग योग्य होते थे , उनके नाम तालपत्र के छोटे टिकटों पर लिखे जाते थे और मिटटी के बर्तन में रख दिए जाते थे और किसी छोटे लड़के को हर समिति के लिए एक के बाद एक टिकट निकालने के लिए कहा जाता था।

पेरियापूरणम बारहवीं शताब्दी की तमिल कृति है। नए राजा और उनके राज्य

चीन में तांग राजवंश के तहत एक साम्राज्य स्थापित हुआ , जो लगभग तीन सौ वर्षों तक ( सातवीं से दसवीं सदी तक ) सत्ता में रहा।

इसकी राजधानी शिआन दुनिया के सबसे बड़े नगरों में से एक थी।

तांग साम्राज्य परीक्षा के माध्यम से नियुक्त की गई नौकरशाही द्वारा प्रशासित होता था।

इन परीक्षाओं में हर इच्छुक व्यक्ति बैठ सकता था। अधिकारियों के चयन की यह व्यवस्था कुछ बदलावों के साथ 1911 तक कायम रही। नए राजा और उनके राज्य

MCQ

प्रश्न 1. दक्कन के राष्ट्रकूट शुरुआत में अधीनस्थ थे –

उत्तर- कर्नाटक के चालुक्य राजाओं के

प्रश्न 2. राष्ट्रकूट राज्य की स्थापना किसने की ?

उत्तर- दन्तिदुर्ग ने

प्रश्न 3. किसने ‘ हिरण्यगर्भ ‘ नामक अनुष्ठान कराया ?

उत्तर- दन्तिदुर्ग ने

प्रश्न 4. कदंब राज्य की स्थापना किसने की ?

उत्तर- मयूरशर्मण

प्रश्न 5. जबरन श्रम कर रूप में लिया जाने वाला कर –

उत्तर- वेट्टी

प्रश्न 6. संस्कृत में लिखी गई , ग्वालियर ( मध्य प्रदेश ) में पाई गई एक प्रशस्ति में किस प्रतिहार नरेश के कामों का वर्णन किया गया हैं –

उत्तर- नागभट्ट

प्रश्न 7. कल्हण की पुस्तक का नाम क्या हैं ?

उत्तर- राजतरंगिणी

प्रश्न 8. कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी किससे संबंधित हैं ?

उत्तर- कश्मीर के इतिहास से

प्रश्न 9. कन्नौज को लेकर, गुर्जर – प्रतिहार , राष्ट्रकूट और पाल वंशों के संघर्ष को इतिहासकरो ने क्या नाम दिया है ?

उत्तर- त्रिपक्षीय संघर्ष

प्रश्न 10. अफगानिस्तान के गजनी पर 997 से 1030 तक शासन किया –

उत्तर- सुल्तान महमूद ने

प्रश्न 11. सुल्तान अरबी भाषा का शब्द है , जिसका मतलब है –

उत्तर- शासक

प्रश्न 12. किताब अल – हिन्द किसके द्वारा लिखी गई है ?

उत्तर- अल – बेरुनी

प्रश्न 13. चाहमानों का सबसे प्रसिद्ध शासक था –

उत्तर- पृथ्वीराज तृतीय

प्रश्न 14. चोल साम्राज्य की नींव किसने डाली ?

उत्तर- विजयालय

प्रश्न 15. गंगईकोंडचोलपुरम की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर- राजेंद्र प्रथम

प्रश्न 16. किस चोल राजा ने जल सेना प्रारंभ की थी ?

उत्तर- राजराज प्रथम

प्रश्न 17. कुशल ग्रामीण प्रशासन के लिए प्रसिद्ध राजवंश था –

उत्तर- चोल

प्रश्न 18. चोल राज्य में गैर – ब्राह्मण किसान स्वामी की भूमि को कहा जाता था –

उत्तर- वेल्लनवगाई

प्रश्न 19. चोल राज्य में ब्राह्मणों को उपहार में दी गई भूमि को कहा जाता था –

उत्तर- ब्रह्मदेय

प्रश्न 20. चोल राज्य में किसी विद्यालय के रखरखाव के लिए दी गई भूमि को कहा जाता था –

उत्तर- शालाभोग

प्रश्न 21. चोल राज्य में मंदिर को उपहार में दी गई भूमि को कहा जाता था –

उत्तर- देवदान , तिरुनमदुक्कन

प्रश्न 22. चोल राज्य में जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि को कहा जाता था –

उत्तर- पल्लिच्छंदम

प्रश्न 23. चोलों के अधीन ग्राम प्रशासन के बहुत से ब्यौरे जिन शिलालेखों में हैं , वे कहां हैं ?

उत्तर- उत्तर मेरूर