दिल्ली के सुल्तान

दिल्ली के सुल्तान

दिल्ली के सुल्तान :- बारहवीं शताब्दी में दिल्ली महत्वपूर्ण शहर बना।

बारहवीं सदी के मध्य में तोमरों को अजमेर के चौहानो ( जिन्हें चाहमान नाम से भी जाना जाता है ) ने परास्त किया।

तोमरों और चौहानों के राज्यकाल में ही दिल्ली वाणिज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

इस शहर में बहुत सारे समृद्धिशाली जैन व्यापारी रहते थे जिन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।

यहाँ देहलीवाल कहे जाने वाले सिक्के भी ढाले जाते थे जो काफी प्रचलन में थे।

तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और इसके साथ दिल्ली एक ऐसी राजधानी में बदल गई जिसका नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर फैला था। दिल्ली के सुल्तान

दिल्ली के शासक

राजपूत वंश

तोमर ( आरंभिक बारहवीं शताब्दी – 1165 )

अनंगपाल ( 1130 – 1145 )

चौहान (1165 – 1192 )

पृथ्वीराज चौहान (1175 – 1192 )

प्रारंभिक तुर्की शासक (1206 – 1290 )

कुतुबुद्दीन ऐबक ( 1206 – 1210 )

शमसुद्दीन इल्तुतमिश ( 1210 – 1236 )

रजिया ( 1236 – 1240 )

गयासुद्दीन बलबन ( 1266 – 1287 )

खलजी वंश ( 1290 – 1320 )

जलालुद्दीन खलजी ( 1290 – 1296 )

अलाउद्दीन खलजी ( 1296 – 1316 )

तुगलक वंश ( 1320 – 1414 )

गयासुद्दीन तुगलक ( 1320 – 1324 )

मुहम्मद तुगलक ( 1324 – 1351 )

फिरोज शाह तुगलक ( 1351 – 1388 )

सैयद वंश ( 1414 – 1451 )

खिज्र खान ( 1414 – 1421 )

लोदी वंश ( 1451 – 1526 )

बहलोल लोदी ( 1451 – 1489 )

दिल्ली के सुल्तानों के बारे में अभिलेख , सिक्कों और स्थापत्य ( भवन निर्माण कला ) के माध्यम से काफी सूचना मिलती है , मगर और भी महत्त्वपूर्ण वे ‘ इतिहास ‘ , तारीख ( एकवचन ) / तवारीख ( बहुवचन ) है जो सुल्तानों के शासनकाल में , प्रशासन की भाषा फारसी में लिखे गए थे।

तवारीख के लेखक सचिव , प्रशासक , कवि और दरबारियों जैसे सुशिक्षित व्यक्ति होते थे जो घटनाओं का वर्णन भी करते थे और शासकों को प्रशासन संबंधी सलाह भी देते थे।

ये लेखक नगरों में ( विशेषकर दिल्ली में ) रहते थे , गाँव में शायद ही कभी रहते हों।

वे अकसर अपने इतिहास सुल्तानों के लिए , उनसे ढेर सारे इनाम – इकराम पाने की आशा में लिखा करते थे। दिल्ली के सुल्तान

ये लेखक अकसर शासकों को जन्मसिद्ध ( जन्म के आधार पर विशेषाधिकार का दावा ) अधिकार और लिंगभेद ( स्त्रियों तथा पुरषों के बीच सामाजिक तथा शरीर – रचना संबंधी अंतर ) पर आधारित ‘ आदर्श ‘ समाज व्यवस्था बनाए रखने की सलाह देते थे।

उनके विचारों से सारे लोग सहमत नहीं होते थे।

सन 1236 में सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी रजिया सिंहासन पर बैठी।

उस युग के इतिहासकार मिन्हाज – ए – सिराज ने स्वीकार किया है कि वह अपने सभी भाइयों से अधिक योग्य और सक्षम थी ,लेकिन फिर भी वह एक रानी को शासक के रूप में मान्यता नहीं दे पा रहा था। दिल्ली के सुल्तान

दिल्ली के सुल्तान image

दरबारी जन भी उसके स्वतंत्र रूप से शासन करने की कोशिशों से प्रसन्न नहीं थे। सन 1240 में उसे सिंहासन से हटा दिया गया।

रजिया ने अपने अभिलेखों और सिक्कों पर अंकित करवाया कि वह सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी थी।

आधुनिक आंध्र प्रदेश के वारंगल क्षेत्र में किसी समय काकतीय वंश का राज्य था।

उस वंश की रानी रुद्रम्मा देवी ( 1262 – 1289 ) ने अपने अभिलेखों में अपना नाम पुरुषों जैसा लिखवाकर अपने पुरुष होने का भ्रम पैदा किया था। दिल्ली के सुल्तान

कश्मीर की रानी दिददा ( 980 – 1003 ) का यह नाम ‘ दीदी ‘ ( बड़ी बहन ) से निकला , जाहिर है प्रजा ने अपनी प्रिय रानी को यह स्नेहभरा संबोधन दिया होगा।

तेरहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में दिल्ली के सुल्तानों का शासन गैरिसनों ( रक्षक सैनिकों की टुकड़ियों ) के निवास के लिए बने मजबूत किलेबंद शहरों तक था।

शहरों से संबंद्ध, लेकिन उनसे दूर भीतरी प्रदेशों पर उनका नियंत्रण न के बराबर था और इसलिए उन्हें आवश्यक सामग्री , रसद आदि के लिए व्यापर , कर या लूटमार पर ही निर्भर रहना पड़ता था।

भीतरी प्रदेश – किसी शहर या बंदरगाह के आस – पास के इलाके जो उस शहर के लिए वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति करें।

गैरिसन शहर – किलेबंद बसाव जहाँ सैनिक रहते है। दिल्ली के सुल्तान

सल्तनत का संस्थापन गयासुद्दीन बलबन के शासन काल में हुआ और इसका विस्तार अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में हुआ।

सल्तनत की ‘ भीतरी सीमाओं ‘ में जो अभियान चले उनका लक्ष्य था गैरिसन शहरों की पृष्ठभूमि में स्थित भीतरी क्षेत्रों की स्थिति को मजबूत करना।

दूसरा विस्तार सल्तनत की बाहरी सीमा पर हुआ।

अलाउद्दीन खलजी के शासनकाल में दक्षिण भारत को लक्ष्य करके सैनिक अभियान शुरू हुए और ये अभियान मुहम्मद तुगलक के समय में अपनी चरम सीमा पर पहुँचे। दिल्ली के सुल्तान

दिल्ली के आरंभिक सुल्तान , विशेषकर इल्तुतमिश , सामंतों और ज़मींदारो के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसंद करते थे।

इन गुलामों को फ़ारसी में बंदगाँ कहा जाता है तथा इन्हें सैनिक सेवा के लिए खरीदा जाता था।

उन्हें राज्य के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण राजनितिक पदों पर काम करने के लिए बड़ी सावधानी से प्रशिक्षित किया जाता था।

वे चूँकि पूरी तरह अपनी मालिक पर निर्भर होते थे , इसलिए सुल्तान भी विश्वास करके उन पर निर्भर हो सकते थे। दिल्ली के सुल्तान

खलजी तथा तुगलक शासक बंदगाँ का इस्तेमाल करते रहे और साथ ही अपने पर आश्रित निम्न वर्ग के लोगों को भी ऊँचे राजनितिक पदों पर बैठते रहे।

आश्रित – जो किसी अन्य व्यक्ति के संरक्षण में रहता हो , उस पर निर्भर हो।

ऐसे लोगो को सेनापति और सूबेदार जैसे पद दिए जाते थे। लेकिन इससे राजनितिक अस्थिरता भी पैदा होने लगी।

गुलाम और आश्रित अपने मालिकों और संरक्षकों के प्रति तो वफादार रहते थे मगर उनके उत्तराधिकारियों के प्रति नहीं। दिल्ली के सुल्तान

फ़ारसी तवारीख के लेखकों ने ‘ निचले खानदान ‘ के लोगो को ऊँचे पदों पर बैठने के लिए दिल्ली के सुल्तानों की आलोचना भी की है।

पहले वाले सुल्तानों की ही तरह खलजी और तुगलक शासकों ने भी सेनानायकों को भिन्न – भिन्न आकर के इलाकों के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया।

ये इलाके इक्ता कहलाते थे और इन्हें सँभालने वाले अधिकारी इकतदार या मुक्ति कहे जाते थे।

मुक्ति का फर्ज था सैनिक अभियानों का नेतृत्व करना और अपने इक्तों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना। दिल्ली के सुल्तान

मुक्ति का पद वंशागत नहीं था थोड़े – थोड़े समय बाद उनका स्थानांतरण होता रहता था।

मुक्ति लोगों द्वारा एकत्रित किए गए राजस्व की रकम का हिसाब लेने के लिए राज्य द्वारा लेखा अधिकारी नियुक्त किए जाते थे।

इस बात का ध्यान रखा जाता था कि मुक्ति राज्य द्वारा निर्धारित कर ही वसूलें और तय संख्या के अनुसार सैनिक रखें।

अलाउद्दीन के शासन में भू – राजस्व के निर्धारण और वसूली के कार्य को राज्य ने अपने नियंत्रण में ले आया। दिल्ली के सुल्तान

स्थानीय सामंतो से कर लगाने का अधिकार छीन लिया गया , बल्कि स्वयं उन्हें भी कर चुकाने को बाध्य किया गया।

उस समय तीन तरह के कर थे : (1 ) कृषि पर , जिसे खराज कहा जाता था और जो किसान की उपज का लगभग पचास प्रतिशत होता था ; ( 2 ) मवेशियों पर ; तथा ( 3 ) घरों पर।

चंगेज खान के नेतृत्व में मंगोलो ने 1219 में उत्तर – पूर्वी ईरान में ट्रांसऑक्ससियाना ( आधुनिक उजबेकिस्तान ) पर हमला किया और इसके शीघ्र बाद ही दिल्ली सल्तनत को उनका धावा झेलना पड़ा। दिल्ली के सुल्तान

अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक के शासनकालों के आरंभ में दिल्ली पर मंगोलों के धावे बढ़ गए।

इससे मजबूर होकर दोनों ही सुल्तानों को एक विशाल स्थानीय सेना खड़ी करनी पड़ी।

इतनी विशाल सेना को संभालना प्रशासन के लिए भरी चुनौती थी। इसका सामना करने के लिए उन दोनों द्वारा उठाये हुए कदम –

अलाउद्दीन खलजी

दिल्ली पर दो बार हमले हुए : 1299 / 1300 में और 1302 – 1303 में। इनका सामना करने के लिए अलाउद्दीन ने एक विशाल स्थानीय सेना खड़ी की।

अलाउद्दीन ने अपने सैनिकों के लिए सीरी नामक एक नया गैरिसन शहर बनाया।

सैनिको के पेट भरने की समस्या को गंगा – यमुना के बीच की भूमि से कर, कर रूप में खेती की पैदावार इकट्ठी करके हल किया।

किसानों की पैदावार का 50 प्रतिशत हिस्सा कर के तौर पर तय कर दिया गया था। दिल्ली के सुल्तान

अलाउद्दीन ने सैनिकों को इक्ता के स्थान पर नकद वेतन देना तय किया। सैनिको को आवश्यक समान सस्ता मिले इसके लिए उसने दिल्ली में चीजों की कीमतों पर नियंत्रण लागू कर दिया।

अफसर बड़ी सावधानी से कीमतों का सर्वेक्षण करते थे और जो व्यापारी निश्चित दरों का उल्लंघन करते थे , उन्हें सजा मिलती थी।

अलाउद्दीन के प्रशासनिक कदम काफी सफल रहे। मंगोल आक्रमणों के खतरे का भी उसने सफलतापूर्वक सामना किया। दिल्ली के सुल्तान

मुहम्मद तुगलक

मुहम्मद तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्षों में सल्तनत पर हमला हुआ। मंगोल सेना परास्त हो गई।

तुगलक ने ट्रांसऑक्ससियाना पर आक्रमण करने के लिए एक स्थायी सेना तैयार की।

नया गैरिसन शहर बनाने के स्थान पर दिल्ली के चार शहरों में से सबसे पुराने शहर देहली – ए – कुहना को निवासियों से खाली करवा कर वहाँ सैनिक छावनी बना दी गई।

पुराने शहर के निवासियों को दक्षिण में बनी नयी राजधानी दौलताबाद भेज दिया गया। दिल्ली के सुल्तान

सेना को खिलाने के लिए उसी इलाके से खाद्यान्न इकट्ठा किया गया।

लेकिन सैनिकों की विशाल संख्या की जरूरतें पूरी करने के लिए सुल्तान ने अतिरिक्त कर भी लगाए। इस दौरान उस क्षेत्र में अकाल भी पड़ा।

तुगलक भी अपनी सैनिकों को नकद वेतन देता था।

लेकिन कीमतों पर नियंत्रण करने की जगह उसने कुछ – कुछ आज की कागजी मुद्रा की तरह ‘ टोकन ‘ ( सांकेतिक ) मुद्रा चलाई। दिल्ली के सुल्तान

ये सिक्के धातु के बने होते थे लेकिन सोने – चाँदी के न होकर सस्ती धातु के।

चौदहवीं सदी के लोगों को इस मुद्रा पर भरोसा नहीं था। इस मुद्रा जैसे जाली सिक्के भी बड़ी आसानी से बनाए जा सकते थे।

तुगलक द्वारा उठाए गए प्रशासनिक कदम बेहद असफल रहे।

कश्मीर पर उसका आक्रमण पूरी तरह विफल रहा था। तब उसने तूरान पर हमला करने का इरादा छोड़ दिया और अपनी विशाल सेना को भंग कर दिया। दिल्ली के सुल्तान

इस बीच उसने जो प्रशासन संबंधी जो कदम उठाए थे , उनसे कई परेशानियाँ पैदा हो गईं।

दौलताबाद ले जाए जाने से लोग बहुत नाराज थे। करों में वृद्धि और गंगा – यमुना के दोआब में अकाल से विक्षुब्ध जनता , बगावत पर उत्तर आई और तुगलक को अंततः टोकन मुद्रा भी वापस लेनी पड़ी।

लेकिन सल्तनत के इतिहास में पहली बार दिल्ली के किसी सुल्तान ( तुगलक ) ने मंगोल इलाके को फतह करने के अभियान की योजना बनाई थी।

जहाँ अलाउद्दीन का बल प्रतिरक्षा पर था , वहाँ तुगलक के द्वारा उठाए गए कदम मंगोलों के विरुद्ध सैनिक आक्रमण की योजना का हिस्सा थे। दिल्ली के सुल्तान

तुगलक वंश के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैयद तथा लोदी वंशों का राज्य रहा।

इसी काल में अफगान था राजपूतों जैसे नए शासक समूह भी उभरे।

शेरशाह सूर ( 1540 – 1545 ) ने बिहार में अपने चाचा के एक छोटे – से इलाके के प्रबंधक के रूप में काम शुरू किया था और आगे चलकर उसने इतनी उन्नति की कि मुगल सम्राट हुमायूँ ( 1530 – 1540 , 1555 -1556 ) तक को चनौती दी और परास्त किया। दिल्ली के सुल्तान

शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार करके स्वयं अपना राजवंश स्थापित किया।

सूर वंश ने केवल पंद्रह वर्ष ( 1540 – 1555 ) शासन किया , लेकिन इसके प्रशासन ने अलाउद्दीन वाले कई तरीकों को अपनाकर उन्हें और भी चुस्त बना दिया।

अकबर ( 1556 – 1605 ) ने जब मुगल साम्राज्य को समेकित किया , तो उसने अपने प्रतिमान के रूप में शेरशाह की प्रशासन व्यवस्था को ही अपनाया था। दिल्ली के सुल्तान

अन्यत्र

तीन श्रेणियों का विचार सबसे पहले ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में फ़्रांस में सूत्रबद्ध किया गया।

इसके अनुसार समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया गया – प्रार्थना करने वाला वर्ग , युद्ध करने वाला वर्ग और खेती करने वाला वर्ग।

तीन वर्गों में समाज के इस विभाजन को ईसाई धर्म का समर्थ भी प्राप्त था।

यरुशलम शहर को लेकर मुसलमानो और नाइट (ईसाईयों ) के बीच हुए युद्ध को ‘ क्रूसेड ‘ ( धर्मयुद्ध ) कहा गया। दिल्ली के सुल्तान

मस्जिद अरबी का एक शब्द है , जिसका शाब्दिक अर्थ है – ऐसा स्थान जहाँ मुसलमान अल्लाह की आराधना में सजदा करते है।

जामा मस्जिद ( या मस्जिद – ए – जामी ) वह मस्जिद होती है , जहाँ अनेक मुसलमान एकत्र होकर साथ – साथ नमाज पढ़ते है।

मक्का की ओर की दिशा को ‘ क़िबला ‘ कहा जाता है।

कुव्वत अल – इस्लाम मस्जिद तथा उसकी मीनारे बारहवीं सदी के आखिरी दशक में बनी। यह जामा मस्जिद दिल्ली के सुल्तानों द्वारा बनाए गए सबसे पहले शहर ( देहली – ए – कुहना ) में स्थित है। दिल्ली के सुल्तान

इस मस्जिद का इल्तुतमिश ओर अलाउद्दीन ने और विस्तार किया। मीनार तीन सुल्तानों – कुतुबुद्दीन ऐबक ,इल्तुतमिश और फिरोज शाह तुगलक द्वारा बनवाई गई थी।

बेगमपुरी मस्जिद मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में , दिल्ली में उसकी नई राजधानी जहाँपनाह ( विश्व की शरणस्थली ) की मुख्य मस्जिद के तौर पर बनाई गई थी।

मोठ की मस्जिद , सिकंदर लोदी के शासनकाल में उसके मंत्री द्वारा बनवाई गई।

जमाली कमाली की मस्जिद का , 1520 के दशक के आखिरी दिनों में निर्माण हुआ।

अफ़्रीकी देश , मोरक्को से चौदहवी सदी में इब्नबतूता भारत आया। दिल्ली के सुल्तान

MCQ

प्रश्न 1. तोमरों और चौहानों के राज्यकाल में ही एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया –

उत्तर- दिल्ली वाणिज्य का

प्रश्न 2. सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी रजिया सिंहासन पर बैठी –

उत्तर- सन 1236 में

प्रश्न 3. किसी समय काकतीय वंश का राज्य था –

उत्तर- आधुनिक आंध्र प्रदेश के वारंगल क्षेत्र में

प्रश्न 4. तेरहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में दिल्ली के सुल्तानों का शासन था –

उत्तर- गैरिसनों के निवास के लिए बने मजबूत किलेबंद शहरों तक

प्रश्न 5. किसी शहर या बंदरगाह के आस – पास के इलाके जो उस शहर के लिए वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति करें , कहलाते है –

उत्तर- भीतरी प्रदेश

प्रश्न 6. किलेबंद बसाव जहाँ सैनिक रहते है –

उत्तर- गैरिसन शहर

प्रश्न 8. गुलामों को फारसी में कहा जाता था –

उत्तर- बंदगाँ

प्रश्न 9. फ़ारसी तवारीख के लेखकों ने ‘ निचले खानदान ‘ के लोगो को ऊँचे पदों पर बैठने के लिए दिल्ली के सुल्तानों की की है –

उत्तर- आलोचना

प्रश्न 10. इक्ता सँभालने वाले अधिकारी कहे जाते थे –

उत्तर- इकतदार या मुक्ति

प्रश्न 11. कृषि पर कर को कहा जाता था –

उत्तर- खराज

प्रश्न 12. अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक के शासनकालों के आरंभ में दिल्ली पर धावे बढ़ गए –

उत्तर- मंगोलों के

प्रश्न 13. अपने सैनिकों के लिए सीरी नामक एक नया गैरिसन शहर बनाया –

उत्तर- अलाउद्दीन खलजी ने

प्रश्न 14. बाजार नियंत्रण की निति लागू की –

उत्तर- अलाउद्दीन खलजी ने

प्रश्न 15. मुहम्मद बिन तुगलक अपनी राजधानी दिल्ली से ले गया –

उत्तर- दौलताबाद

प्रश्न 16.भारत में सर्वप्रथम सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किया था ?

उत्तर- मुहम्मद बिन तुगलक ने

प्रश्न 17. मध्यकालीन यात्री एवं लेखक इबनबतूता किस देश का निवासी था ?

उत्तर- मोरक्को

प्रश्न 18. इब्नबतूता भारत में किसके शासन काल में आया ?

उत्तर- मुहम्मद बिन तुगलक

प्रश्न 19. सल्तनत के इतिहास में पहली बार दिल्ली के किस सुल्तान ने मंगोल इलाके को फतह करने के अभियान की योजना बनाई थी ?

उत्तर- मुहम्मद बिन तुगलक

प्रश्न 20. तुगलक वंश के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर राज्य रहा –

उत्तर- सैयद तथा लोदी वंशों का

प्रश्न 21. मस्जिद जो मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में , दिल्ली में उसकी नई राजधानी जहाँपनाह ( विश्व की शरणस्थली ) की मुख्य मस्जिद के तौर पर बनाई गई थी –

उत्तर- बेगमपुरी मस्जिद

प्रश्न 22. मोठ की मस्जिद , सिकंदर लोदी के शासनकाल में बनवाई गई –

उत्तर- उसके मंत्री द्वारा