सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु

सूक्ष्मजीव

कुछ जीव ऐसे भी है जिन्हे हम बिना यंत्र की सहायता से केवल आँखों से नहीं देख सकते। इन्हे सूक्ष्मजीव कहते है।

सूक्ष्मजीव के प्रकार

सूक्ष्मजीवों को चार मुख्य वर्गों में बाटा गया है। यह वर्ग हैं :-
1. जीवाणु
2. कवक
3. प्रोटोज़ोआ
4. शैवाल।

विषाणु (वायरस) भी सूक्ष्म होते है परन्तु वे अन्य सूक्ष्मजीवों से भिन्न है। वे केवल परपोषी में ही गुणन करते है अर्थार्त जीवाणु, पौधे अथवा जंतु कोशिका में गुणन करते है।

कुछ सामान्य रोग जैसे कि जुकाम , फ्लू एवं अधिकतर खांसी विषाणु द्वारा होते है। कुछ विशेष रोग जैसे कि पोलिया एवं खसरा भी विषाणु (वायरस) द्वारा होते है।

अतिसार एवं मलेरिया प्रोटोज़ोआ द्वारा होते है।

टाइफाइड एवं टीबी जीवाणु द्वारा होना वाले रोग है।

सूक्ष्मजीव कहां पाए जाते हैं ?

सूक्ष्मजीव एक कोशिका हो सकते है जैसे कि जीवाणु, कुछ शैवाल एवं प्रोटोज़ोआ , अथवा बहुकोशिका जैसे कि कई शैवाल एवं कवक।

सूक्ष्मजीव बर्फीले शीत मौसम से ऊष्ण झरनों तथा मरुस्थल से दलदल तक हर प्रकार के पर्यावरण में जीवित रह सकते है। यह मनुष्य सहित सभी जंतुओं के शरीर के अंदर भी पाए जाते है।

कुछ सूक्ष्मजीव दूसरा सजीवों पर आश्रित होते है जबकि कुछ अन्य स्वतंत्र रूप से पाए जाते है। अमीबा जैसे सूक्ष्मजीव अकेले रह सकते है , जबकि कवक एवं जीवाणु समूह में रहते है।

सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु

सूक्ष्मजीवों की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है।

इनमे से कुछ हमारे लिए लाभदायक हैं तथा कुछ अन्य हानिकारक तथा जीवों में रोग के कारक है।

मित्रवत सूक्ष्मजीव

सूक्ष्मजीव विभिन्न कार्यों में उपयोग किए जाते है। इनका उपयोग दही , ब्रेड एवं केक बनाने में किया जाता हैं।

प्राचीन काल से ही सूक्ष्मजीवों का उपयोग एल्कोहल बनाने में किया जाता रहा है।

पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए , कार्बनिक अवशिष्ट ( सब्जियों के छिलके , जंतु अवशेष , विष्ठा इत्यादि) का अपघटन जीवाणुओं द्वारा किया जाते है तथा हानिरहित पदार्थ बनते है।

जीवाणुओं का उपयोग औषधि उत्पादन एवं कृषि में मृदा की उर्वरता में वृद्धि करने में किया जाते है जिससे नाइट्रोजन स्थिरकरण होता है।

जीवाणु दूध को दही में परिवर्तित कर देते है। दही में अनेक सूक्ष्मजीव पाय जाते है जिनमे लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु प्रमुख है जो दूध को दही में परिवर्तित कर देते है।

जीवाणु पनीर ( चीज़ ), अचार एवं अनेक खाघ पदार्थो के उत्पादन में सहायक हैं।

जीवाणु एवं यीस्ट चावल के आटे के किण्वण में सहायक होते है जिससे इडली एवं डोसा बनता है।

सूक्ष्मजीवों का वाणिज्यिक उयोग

बड़े स्तर पर एल्कोहल , शराब एवं एसिटिक एसिड के उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है।

जौ, गेहू , चावल एवं फलों के रस में उपस्तिथ प्राकृतिक शर्करा में यीस्ट द्वारा एल्कोहल एवं शराब का उत्पादन किया जाता है।

लुइ पास्चर ने किण्वन की खोज 1857 में की।

सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग

आजकल जीवाणु और कवक से अनेक प्रतिजैविक औषिधियो का उत्पादन हो रहा है।

स्ट्रेप्टोमाइसिन , टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली प्रतिजैविक है जिन्हे कवक एवं जीवाणु से उत्पादित किया जाता है।

किसी विशिष्ट प्रकार के सूक्ष्मजीव का सवंर्धन करके प्रतिजैविक का उत्पादन किया जाता है जिन्हे अनेक रोगों की चिकित्सा में उपयोग में लाते है।

सन 1929 में अलेक्जेंडर फ्लैमिंग जीवाणु रोगों से बचाव हेतु एक सवंर्धन पर प्रयोग कर रहे थे। अचानक उहोंने सवंर्धन तस्तरी पर हरे रंग की फफूँद के छोटे बीजाणु देखे।

उन्होने पाया कि यह फफूँद जीवाणु की वृद्धि को रोकते है। यह तथ्य पाया कि बहुत सारे जीवाणु फफूंद द्वारा मारे गए।

इस प्रकार फफूँद से ‘ पेनिसिलिन ‘ बनाई गई।

आजकल सूक्ष्मजीवों से टिके का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है जिसमे मनुष्य एवं अनेक जंतुओं को अनेक रोगों से बचाया जाता है।

पोलियो -ड्राप बच्चों को दिया जाने वाला वास्तव में एक टिका ( वैक्सीन ) है।

एडवर्ड जेनर ने चेचक के लिए 1798 में चेचक के टिके की खोज की थी।

मिटटी की उर्वरता में वृद्धि

कुछ जीवाणु एवं नीले-हरे शैवाल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकता है। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन का संवर्धन होता है तथा उसकी उर्वरता में वृद्धि होती है। इन्हें सामान्यतः जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकारक कहते हैं।

पर्यावरण का शुद्धिकरण

सूक्ष्मजीव ,मृत जैविक अवशिष्ट का अपघटन करके उन्हे सरल पदार्थों में परिवर्तित कर देते है। यह पदार्थ अन्य पौधों एवं जंतुओं द्वारा पुन: उपयोग कर लिए जाते है।

हानिकारक सूक्ष्मजीव

कुछ सूक्ष्मजीव मनुष्य , जंतुओं एवं पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले ऐसे सूक्ष्मजीवों को रोगाणु अथवा रोगजनक कहते है।

मनुष्य में रोगकारक सूक्ष्मजीव

सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा कायिक संपर्क द्वारा फैलते है, संचरणीय रोग कहलाते है।

इस प्रकार के रोगों के कुछ उदाहरण है – हैजा , सामान्य सर्दी -जुकाम , चिकनपॉक्स एवं क्षय रोग।

कुछ कीट एवं जंतु ऐसे भी है जो रोगकारक सूक्ष्मजीवों के रोग-वाहक का कार्य करते है। घरेलू मक्खी इसका एक उदाहरण है।

मादा एनाफ्लीज मच्छर रोग-वाहक का एक अन्य उदाहरण है। मच्छर प्लैज्मोडियम ( मलेरिया परजीवी ) का वाहक है। मादा एडिस मच्छर डेंगू के वायरस का वाहक है।

मानव रोग रोगकारक सूक्ष्मजीव संचरण का तरीका
क्षयरोग
जीवाणु
वायु
खसरा
वायरस
वायु
चिकनपॉक्स
वायरस
वायु / सीधे संपर्क
पोलियो
वायरस
वायु / जल
हैजा
जीवाणु
जल / भोजन
टाइफायड
जीवाणु
जल
हैपेटाइटिस – ए
वायरस
जल
मलेरिया
प्रोटोजोआ
मच्छर

एंथ्रेक्स , मनुष्य एवं मवेसियों में होने वाला भयानक रोग है जो जीवाणु द्वारा होता है। गाय में खुर एवं मुँह का रोग वायरस द्वारा होता है।

रोबर्ट कोच ने सन 1876 में बैसीलस एन्थ्रेसिस नमक जीवाणु की खोज की जो एंथ्रेक्स रोग का कारक है।

सूक्ष्मजीवों द्वारा पौधों में होने वाले कुछ सामान्य रोग

पादप रोग सूक्ष्मजीव संचरण का तरीका
नींबू कैंकर
जीवाणु
वायु
गेहू की रस्ट
कवक
वायु एवं बीज
भिंडी की पीत
वायरस
किट
सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु image

खाद्य विषाक्तन

सूक्ष्मजीवों द्वारा संदूषित भोजन करने से खाद्य विषाक्तन हो सकता है। हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मजीव कभी-कभी विषैले पदार्थ उत्पन्न करते है। यह भोजन को विषाक्त बना देते है।

खाद्य परिरक्षण

नमक एवं खाद्य तेल का उपयोग सूक्ष्मजीवों की वृद्धि रोकने के लिए सामान्य रूप से किया जाता है। अतः इन्हे परिरक्षक कहते है।

हम नमक अथवा खाद्य अम्ल का प्रयोग अचार बनाने में करते है जिससे सूक्ष्मजीवों की वृद्धि नहीं होती।

सोडियम बेंजोएट तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट सामान्य परिरक्षक है। जैम एवं स्क्वैश बनाने में इन रसयानो का उपयोग उन्हे संदूषित होने से बचाता है।

सामान्य नमक का उपयोग मांस एवं मछली के परिरक्षण के लिए काफी लम्बे अरसे से किया जा रहा है।

जीवाणु की वृद्धि रोकने के लिया मांस तथा मछली को सूखे नमक से ढक देते है। नमक का उपयोग आम ,आवला एवं इमली के परिरक्षण में भी किया जाता है।

जैम , जेली एवं स्क्वैश का परिरक्षण चीनी द्वारा किया जाता है। चीनी के प्रयोग से खाद्य पदार्थ की नमी में कमी आती है जो संदूषण करने वाले जीवाणुओं की वृद्धि को नियंत्रित करता है।

तेल एवं सिरके का उपयोग अचार को संदूषण से बचाने में किया जाता है क्योंकि इसमे जीवाणु जीवित नहीं रह सकते। सब्जियाँ, फल , मछली तथा मांस का परिरक्षण इस विधि द्वारा करते है।

लुई पाश्चर नामक वैज्ञानिक ने पाशचरीकरण प्रक्रिया की खोज की थी। इस प्रक्रिया के अंतरगर्त दूध को सूक्ष्मजीवों से मुक्त करने के लिए दूध को 70 degree celsius पर 15 – 30 सेकंड के लिए गर्म करते हैं फिर एकाएक ठंडा कर उसका भंडारण कर लेते है।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण

राइजोबियम जीवाणु , लैग्यूम पौधों ( दलहन ) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होते हैं।

ये लैग्यूम पौधों की ग्रंथिकाओं में रहते है जैसे सेम और मटर जो एक सहजीवता है।

कभी – कभी तड़ित विधुत द्वारा भी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है।

नाइट्रोजन चक्र

हमारे वायुमंडल में 78 % नाइट्रोजन गैस है। नाइट्रोजन सभी सजीवों का आवश्यक संघटक है। जो प्रोटीन, क्लोरोफिल न्यूकिलक एसिड एवं विटामिन में उपस्तिथ होता है।

पौधे एवं जंतु वायुमंडल नाइट्रोजन का उपयोग सीधे नहीं कर सकते। मिटटी में उपस्तिथ जीवाणु व नील-हरे शैवाल वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके नाइट्रोजन यौगिकों में बदल देते है।

पौधे इसका उपयोग मिट्टी में से जड़ तंत्र द्वारा करते हैं। इसके पश्चात अवशोषित नाइट्रोजन का उपयोग प्रोटीन एवं अन्य यौगिकों के संश्लेषण में करते है।

पौधों पर निर्भर करने वाले जंतु उनसे प्रोटीन एवं अन्य नाइट्रोजनी यौगिक प्राप्त करते है।

पौधों एवं जंतुओं की मृत्यु के बाद, मिटटी में उपस्तिथ जीवाणु एवं कवक नाइट्रोजनी अपशिष्ट को नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर देते है जो पौधों द्वारा पुनः उपयोग होता है।

कुछ विशिष्ट जीवाणु नाइट्रोजनी यौगिकों को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते है जो वायुमंडल में चली जाती है। परिणामतः वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग स्थिर रहती है।

MCQ

प्रश्न 1. सूक्ष्मजीवों को चार मुख्य वर्गों में बाटा गया है। यह वर्ग हैं :-

उत्तर- 1. जीवाणु
2. कवक
3. प्रोटोज़ोआ
4. शैवाल।

प्रश्न 2. विषाणु (वायरस) भी सूक्ष्म होते है परन्तु वे अन्य सूक्ष्मजीवों से भिन्न है। वे केवल गुणन करते है –

उत्तर- परपोषी में ही

प्रश्न 3. पोलिया एवं खसरा होते है –

उत्तर- विषाणु (वायरस) द्वारा

प्रश्न 4. अतिसार एवं मलेरिया होते है –

उत्तर- प्रोटोज़ोआ द्वारा

प्रश्न 5. टाइफाइड एवं टीबी होना वाले रोग है –

उत्तर- जीवाणु द्वारा

प्रश्न 6. कवक एवं जीवाणु रहते है –

उत्तर- समूह में

प्रश्न 7. प्राचीन काल से ही सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता रहा है –

उत्तर- एल्कोहल बनाने में

प्रश्न 8. दूध को दही में परिवर्तित कर देते है –

उत्तर- लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु

प्रश्न 9. चावल के आटे के किण्वण में सहायक होते है जिससे इडली एवं डोसा बनता है –

उत्तर- जीवाणु एवं यीस्ट

प्रश्न 10. किण्वन की खोज 1857 में की –

उत्तर- लुइ पास्चर ने

प्रश्न 11. स्ट्रेप्टोमाइसिन , टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली प्रतिजैविक है जिन्हे उत्पादित किया जाता है –

उत्तर- कवक एवं जीवाणु से

प्रश्न 12. चेचक के लिए 1798 में चेचक के टिके की खोज की थी –

उत्तर- एडवर्ड जेनर ने

प्रश्न 13. सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा कायिक संपर्क द्वारा फैलते है, कहलाते है –

उत्तर- संचरणीय रोग

प्रश्न 14. मादा एडिस मच्छर वाहक है –

उत्तर- डेंगू के वायरस का

प्रश्न 15. चीनी को एल्कोहल में परिवर्तित करने के प्रक्रम का नाम है –

उत्तर- किण्वन

प्रश्न 16. क्षयरोग , हैजा और टाइफायड के कारक है –

उत्तर- जीवाणु

प्रश्न 17. खसरा, चिकनपॉक्स , हैपेटाइटिस – ए और पोलियो के कारक है –

उत्तर- वायरस

प्रश्न 18. मलेरिया के कारक है –

उत्तर- प्रोटोजोआ

प्रश्न 19. एंथ्रेक्स , मनुष्य एवं मवेसियों में होने वाला भयानक रोग है जो होता है –

उत्तर- जीवाणु द्वारा

प्रश्न 20. रोबर्ट कोच ने सन 1876 में जीवाणु की खोज की जो एंथ्रेक्स रोग का कारक है –

उत्तर- बैसीलस एन्थ्रेसिस नमक

प्रश्न 21. नींबू कैंकर का कारक है –

उत्तर- जीवाणु

प्रश्न 22. गेहू की रस्ट का कारक है –

उत्तर- कवक

प्रश्न 23. भिंडी की पीत का कारक है –

उत्तर- वायरस

प्रश्न 24. सोडियम बेंजोएट तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट है –

उत्तर- सामान्य परिरक्षक

प्रश्न 25. लैग्यूम पौधों ( दलहन ) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होते हैं –

उत्तर- राइजोबियम जीवाणु

प्रश्न 26. पाशचरीकरण प्रक्रिया की खोज की थी –

उत्तर- लुई पाश्चर नामक वैज्ञानिक ने