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शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

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शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर 67 साल की ढलती उम्र में बैठा। उसका मूल नाम फरीद था और उसका पिता जौनपुर का एक छोटा सा जागीरदार था।

अपने पिता की जागीर की देख – रेख की जिम्मेदारी संभालते हुए फरीद ने प्रशासन का अच्छा अनुभव प्राप्त कर लिया।

इब्राहिम लोदी की पराजय और मृत्यु के बाद अफ़गानों के बीच जो अनिश्चितता और अव्यवस्था फैल गई थी उसमे से फरीद एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण अफगान सरदार के रूप में उभरा।

फरीद को शेर खां का किताब उसके संरक्षक ने एक शेर को मारने पर दिया था। 

शीघ्र ही शेरशाह सूरी बिहार के शासक का दाहिना हाथ बन गया और बिहार का वास्तविक स्वामी भी। वहां का शासक नाम मात्र को ही शासक रह गया था।

शेरशाह ने मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद से उत्तर भारत में स्थापित सबसे बड़े साम्राज्य पर शासन किया। उसका साम्राज्य बंगाल से लेकर सिंधु नदी तक फैला हुआ था।

पश्चिमी में उसने मालवा और लगभग पूरे राजस्थान को जीत लिया। 

1532 ईस्वी में मारवाड़ की गद्दी पर बैठने वाले राजा मालदेव ने बहुत तेजी से पूरे पश्चिमी और उत्तरी – राजपूताना पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। जैसलमेर के भाटियों की सहायता से उसने अजमेर को जीत लिया।

राजस्थान में एक बड़ा केंद्रीकृत राज्य स्थापित करने के मालदेव के प्रयत्नों को दिल्ली और आगरा के लिए खतरा माना जाएगा , यह बात निश्चित था लेकिन इस बात को कोई प्रमाण नहीं मिलता कि वह दिल्ली या आगरा पर अधिकार करना चाहता था।

दोनों के बीच झगड़े का कारण सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पूर्वी राजस्थान पर प्रभुत्व स्थापित करने की स्पर्धा थी। 

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राजपूत और अफगान फौजों की भिड़ंत अजमेर और जोधपुर के बीच सामेल नामक स्थान में हुई। मालदेव सहसा जोधपुर की ओर वापस लौट चला। समकालीन लेखकों के अनुसार इसका कारण शेरशाह सूरी की एक चाल थी।

उसने राजपूत सेनापतियों के नाम लिखे कुछ पत्र मालदेव के शिविर के पास गिरवा दिए थे। जिनका उद्देश्य राजा के मन में उनकी वफादारी के प्रति संदेह के बीज बोना था।

कुछ राजपूत सरदारों ने पीछे हटने से इंकार कर दिया। उन्होंने शेरशाह सूरी से युद्ध किया लेकिन वे पराजित हो गए। शेरशाह सूरी

सामेल की लड़ाई ने राजस्थान के भाग्य का फैसला कर दिया। अब शेरशाह ने अजमेर और जोधपुर पर घेरा डालकर उन्हें जीत और मालदेव को सिवाना के किले के में शरण लेने पड़ी। उसके बाद वह मेवाड़ की ओर मुड़ा।

राणा प्रतिरोध करने की स्थिति में नहीं था सो उसने चित्तौड़ की चाबियाँ शेरशाह सूरी को भिजवा दी जिसने की माउंट आबू तक अपनी सीमावर्ती चौकियां स्थापित कर ली थी। शेरशाह सूरी

इस प्रकार 10 महीनों की अल्प अवधि में ही शेरशाह सूरी ने लगभग पूरे राजस्थान को चल कर रख दिया था। उसका आखिरी सैनिक अभियान कालिंजर के खिलाफ था।

कालिंजर एक मजबूत किला था जिस पर अधिकार करने का मतलब बुंदेलखंड में आसानी से पैर जमा लेना था।

कलिंजर की घेराबंदी के दौरान एक तोप फट गई , जिससे शेरशाह सूरी बुरी तरह से घायल हो गया। किले पर अधिकार हो जाने की खबर सुनने के बाद ( 1545 ई ) में उसकी मृत्यु हो गई। शेरशाह सूरी

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