चोल प्रशासन
चोल प्रशासन में राजा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति था। सारी सत्ता उसके हाथों में केंद्रित रहती थी , लेकिन उसे सलाह देने के लिए मंत्रियों की परिषद थी। प्रशासन से संपर्क रखने के लिए राजा दौरे पर निकलता रहता था।
चोलो के पास एक विशाल सेना थी , जिसमे हस्ती – सेना , अश्वारोही और पैदल सेना शामिल थी। ये तीनों शाखाएं सेना के तीन अंग मानी जाती थी। चोल प्रशासन
अधिकतर राजा अंगरक्षक रखते थे , जो जान देकर भी उनकी हिफाजत करने के लिए प्रतिबंध होते थे। वेनेशियाई यात्री मार्को पोलो ने तेरहवीं सदी में केरल की यात्रा की थी। उसका कहना था कि जब राजा मरता था तो उसके सभी अंगरक्षक सैनिक उसके साथ ही चिता में जल मरते थे। चोल प्रशासन
चोल साम्राज्य मंडलों या प्रांतों में विभाजित था और मंडलम वलनाडुओं और नाडुओं में बँटे होते थे। कभी – कभी राज परिवार के सदस्य प्रांतीय शासक नियुक्त किए जाते थे। अधिकारियों को आमतौर पर राजस्वदायी भूमिदान द्वारा भुगतान किया जाता था।
चोल साम्राज्य में वाणिज्य व्यापार खूब फल – फूल रहे थे और व्यापारियों की कुछ बड़ी – बड़ी श्रेणियाँ जावा और सुमात्रा के साथ व्यापार करती थी। चोल प्रशासन
चोले ने सिंचाई की ओर भी ध्यान दिया। कावेरी तथा अन्य नदियों का प्रयोग इस परियोजना के लिए किया जाता था।
भूमिकर के अलावा चोल शासको की आमदनी के दूसरे जरिए भी थे जैसे व्यापारिक चुंगी , पेशों पर लगाए जानेवाले कर और पड़ोसी प्रदेशों की लूट से मिलने वाला माल – असवाब। चोल प्रशासन
चोलकालीन अभिलेखों में दो सभाओं का उल्लेख देखने को मिलता है। इनमे से एक है उर ओर दूसरी सभा या महासभा। उर गांव की आम सभा थी लेकिन महासभा के कार्य – कलाप के संबंध में हमें अधिक जानकारी नहीं है।
यह अग्रहार कहे जाने वाले ब्राह्मण गाँवों के वयस्क सदस्यों कि सभा थी। अग्रहारों में ब्राह्मण लोग निवास करते थे और वहां की अधिकांश भूमि लगनमुक्त होती थी। इन गांवों को काफी स्वायत्तता प्राप्त होती थी। चोल प्रशासन
गांव के मामलों को एक कार्यकारिणी समिति संभालती थी। इस समिति के सदस्य संपत्तिशाली शिक्षित लोग होते थे। सदस्यों का चुनाव पर्चियाँ निकालकर या बारी के अनुसार किया जाता था। ये सदस्य हर 3 वर्ष बाद हटा जाते थे।
शांति-व्यवस्था कायम रखने , न्याय व्यवस्था चलाने , भू – राजस्व के निर्धारण और वसूली आदि में सहायता देने के लिए दूसरी समितियां होती थी। तालाब समिति एक महत्वपूर्ण समिति थी। यह खेतों को पानी वितरित करने के काम की देखरेख करती थी।
महासभा नई जमीनों का बंदोबस्त कर सकती थी और उन पर स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग कर सकती थी। वह गांव के लिए ऋण भी ले सकती थी और कर लगा सकती थी। इन चोल गाँवों को प्राप्त स्वशासन एक श्रेष्ठ व्यवस्था थी। चोल प्रशासन
निष्कर्ष
इस आर्टिकल में हमने आपको चोल प्रशासन के बारे में बताया। अगर आपको आर्टिकल अच्छा लगा हो तो जरूर आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें. अगर आपको कोई भी कंफ्यूजन है तो आप कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं धन्यवाद. चोल प्रशासन
FOR HISTORY NOTES CLICK ON LINK – HISTORY