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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में सन 1897 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था। बालक सूर्यकांत के सिर से माता-पिता की छाया अल्पायु में ही उठ गई थी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा राज्य के ही विद्यालय में हुई।

बचपन से ही सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी कुश्ती, घुड़सवारी इन सब खेलों में अत्यधिक रूचि रखते थे। कुछ समय पश्चात इनके पिता की भी मृत्यु हो गई तथा इनकी शिक्षा बीच में ही छूट गई, लेकिन उन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।

परिवार के भरण-पोषण के लिए इन्होंने महिषादल राज्य में नौकरी की थी। हिंदी साहित्य इन्हे अच्छा ज्ञान था, साथ ही भारतीय दर्शन में भी इनकी विशेष रूचि थी। इनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ, लेकिन वह भी एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई।

पत्नी के निधन के पश्चात निराला जी महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के संपर्क में आए तो उन्होंने निराला जी को साहित्य-साधना करने के लिए विशेष रूप से प्रेरणा प्रदान की।

आर्थिक स्थितियाँ विषम होने पर भी इनके हृदय में दीन-दुखियों के प्रति दया और करुणा भरी थी। कुछ समय बाद इनकी पुत्री सरोज का भी देहांत हो गया। पुत्री के देहांत के बाद उसकी स्मृति में इन्होंने सरोज-स्मृति नामक कविता की रचना की।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी स्वाभिमानी तथा स्पष्टवादी थे। ये स्वामी रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानंद के व्यक्तित्व से बहुत अधिक प्रभावित थे। निराला जी ने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ नामक पत्रों का संपादन भी किया, परंतु इसमें इनका मस्तमौला मन नहीं लगा।

इसके पश्चात वे प्रयाग में स्थाई रूप से रहने लगे और यहीं पर इस सरस्वती के वरद पुत्र ने पार्थिव शरीर को 15 अक्टूबर, 1961 ईस्वी को त्याग दिया।

साहित्यिक परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी के काव्य-सृजन का आरंभ छायावादी युग से हुआ। कोमल और मधुर भावों से ओत-प्रोत रचनाओं में इनकी छायावादी कवि के रूप में पहचान बनी। काल के क्रूर व्यवहार ने इन्हें विद्रोही कवि बना दिया।

इन्होंने अपने साहित्यिक जीवन का आरंभ ‘जन्मभूमि की वंदना’ नामक कविता की रचना से किया। ‘सरस्वती’ और ‘मर्यादा’ जैसी सशक्त पत्रिकाओं से इन्होंने हिंदी का ज्ञान प्राप्त किया। वर्ष 1929 में इनका प्रथम लेख ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुआ।

तत्पश्चात ‘जूही की कली’ नामक कविता की रचना कर इन्होंने संपूर्ण साहित्य जगत में हलचल मचा दी। निराला जी की गणना छायावाद के चार स्तंभों – प्रसाद, पंत, महादेवी वर्मा और निराला के रूप में होने लगी।

इनकी काव्य-धारा प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता के तटों का स्पर्श करती है। इन्होंने दीन-दुखियों और शोषित वर्ग की पीड़ा को अपनी रचनाओं में व्यक्त किया।

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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की रचनाएँ

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी ने पद्य और गद्य दोनों विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है। इनकी मुख्य काव्य कृतियां इस प्रकार हैं – तुलसीदास, अनामिका, कुकुरमुत्ता, परिमल, नए पत्ते, गीतिका, अर्चना, आराधना, गीत कुंज आदि।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की गद्य कृतियों में उपन्यास – अप्सरा, अलका, चोरी की पकड़, निरुपमा और चमेली:

कहानी -संग्रह – सखी, चतुरी-चमार आदि हैं। इसके अतिरिक्त सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी ने रेखाचित्र, जीवनियाँ और निबंध आदि भी लिखे हैं।

भाषा

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी ने अपनी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ी बोली का प्रयोग किया है। तत्सम शब्दों के अत्यधिक प्रयोग से छायावादी रचनाओं की भाषा कुछ क्लिष्ट हो गई है, परन्तु प्रगतिवादी रचनाओं में सहज , सरल एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग हुआ है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की भाषा में नीरसता नहीं है , वरन संगीत की सी मधुरता विधमान है।

शैली

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी ने अपने प्रतिभाशाली व्यक्तित्व से हिंदी-काव्य जगत के प्रत्येक पक्ष में नवीनतम को जन्म दिया। इनकी शैली पर बांग्ला का प्रभाव है। इनकी शैली में लाक्षणिकता के स्थान पर संगीतात्मकता और चित्रोपमता के दर्शन होते हैं।

साहित्य में स्थान

कवि श्रेष्ठ निराला विलक्षण प्रतिभा के कवि थे। इन्हें हिंदी का क्रांतिकारी कवि कहा जाता है, जिसकी झलक इनकी काव्य रचनाओं में देखी जा सकती है।

जीवन के हर मोड़ पर इन्हें बहुत अधिक संघर्षों और विरोधो का सामना करना पड़ा, फिर भी इन्होंने हिंदी काव्य जगत को अमूल्य काव्य रचनाएं प्रदान की।

अपने विलक्षण व्यक्तित्व एवं निराले कवित्व के कारण निराला जी हिंदी काव्य जगत के सम्राट माने जाते हैं।

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