नागार्जुन
प्रगितवादी कवि नागार्जुन का जन्म सन 1911 ईस्वी में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा ग्राम में हुआ था। इनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्रा था। पहले ये ‘यात्री’ उपनाम से लिखा करते थे ।
बाद में बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात इन्होंने अपना नाम महात्मा बुध के प्रसिद्ध शिष्य के नाम पर नागार्जुन रख लिया। नागार्जुन का आरंभिक जीवन अभावों और संघर्षों से जूझते हुए बीता। इसी अभाव ने इनमें शोषण के प्रति विद्रोह की भावना को भर दिया, लेकिन इसी अभाव और अपने जीवन में घटित दु:खद घटनाओं के कारण ही नागार्जुन जी मानव समुदाय के दु:ख को पहचान सके।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। तत्पश्चात उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में व्याकरण का अध्ययन किया। स्वाध्यय से ही इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। इसके बाद संस्कृत भाषा में शास्त्राचार्य तक का अध्ययन कोलकाता में जाकर किया। स्वभाव से यह भ्रमणशील प्रवृत्ति के थे।
इन्होंने विवाह के कुछ वर्ष पश्चात ही गृहस्थ जीवन को त्याग दिया और श्रीलंका चले गए और वहाँ पाली भाषा के आचार्य बन गए। सन 1941 ईस्वी में ये भारत लौट आए। कवि नागार्जुन को अपनी विद्रोही प्रवृत्ति के कारण स्वतंत्र भारत में भी कई बार जेल जाना पड़ा।
दलितों और शोषितों के पक्षधर नागार्जुन हिंदी साहित्य जगत में ‘बाबा’ के नाम से जाने जाते थे। नागार्जुन ने सन 1945 ईस्वी के आस-पास साहित्य – क्षेत्र में प्रवेश किया। इस संघर्षशील कवि का 5 नवंबर, 1998 ईस्वी को स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक परिचय
नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि थे। इनके हृदय में दलित वर्ग के प्रति सदैव संवेदना रही थी। अपनी कविताओं द्वारा वे अत्याचार-पीड़ित, दु:खी व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही संतुष्ट नहीं हो गए, वरन इन्हें अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते थे।
सम-सामयिकी राजनीति और सामाजिक समस्याओं पर उन्होंने पर्याप्त मात्रा में लेखन किया। व्यंग करने में इन्हें तनिक भी संकोच नहीं था। तीखी और सीधी चोट करने वाले ये वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकार थे।
नागार्जुन जी की रचनाएँ
नागार्जुन कवि होने के साथ-साथ श्रेष्ठ उपन्यासकार भी है। इनकी प्रमुख काव्यकृतियां हैं –
युगधारा , खून और शोले , प्यासी पथराई आंखें और सतरंगे पंखोंवाली। भस्मांकुर इनका प्रसिद्ध का खंडकाव्य है।
भाषा
नागार्जुन के साहित्य में सरल ,सहज और परिमार्जित खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है, इन्होंने अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार किया है।
शैली
नागार्जुन ने अपने काव्य में मुक्तक और व्याख्यात्मक दोनों प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है। लघु-से-लघु और दीर्घ -से-दीर्घ – एक हजार पंक्तियों तक की कविता इनके काव्य में मिलती है।
इनकी शैली शुद्ध , परिष्कृत और परिमार्जित है। इसके अतिरिक्त इनकी शैली में पात्रानुरूपता , सरलता , रसानुरूपता आदि गुण भी विद्यमान है। इनके काव्य में व्यंग्यात्मक , वर्णनात्मक , संवादात्मक ,उद्बोधनात्मक आदि शैलियों के भी दर्शन होते हैं। नागार्जुन का जैसा भाषा शैली पर अधिकार है, वैसा अन्य किसी कवि का नहीं।
साहित्य में स्थान
नागार्जुन जीवन के, धरती के, जनता के तथा श्रम के गीत गाने वाले ऐसे प्रगतिशील कवि थे , जिनकी रचनाओं को किसी काल की सीमा में नहीं बांधा जा सकता।
ये अपने निर्भीक विचार , स्पष्टवादिता और तीव्र गहन व्यंग्यात्मकता के कारण हिंदी साहित्य में विस्मरण में रहेंगे।
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