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शिवमंगल सिंह सुमन

शिवमंगल सिंह सुमन

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शिवमंगल सिंह सुमन

प्रेम-गीतों के मधुर गायक, राष्ट्रीय चेतना के कवि शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म सन 1916 ईस्वी में वसंतपंचमी के दिन उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के झगरपुर नामक गांव में हुआ था। बाल्यकाल में ही शिवमंगल सिंह सुमन जी ग्वालियर चले गए, जिसके कारण वही इनकी शिक्षा संपन्न हुई।

ग्वालियर में शिक्षा-अर्जन के दौरान इनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ। क्रांतिकारियों से प्रभावित होकर इनके ह्रदय में भी क्रांति की ज्वाला धधक उठी, जिसके कारण शिवमंगल सिंह सुमन जी की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हो गई।

सन 1940 ईस्वी में इन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एम ए किया, फिर इसी विश्वविद्यालय से डी लिट् की उपाधि भी प्राप्त की। शिवमंगल सिंह सुमन का अधिकांश जीवन शिक्षक के रूप में व्यतीत हुआ।

कुछ समय तक सुमन जी विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वे नेपाल में भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक सचिव भी रहे। ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ के उपाध्यक्ष के रूप में भी इन्होंने हिंदी की सेवा की।

प्रगतिवादी कविता के स्तंभ डॉ शिवमंगल सिंह सुमन लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचने के बाद 27 नवंबर, 2002 को चिरनिंद्रा में लीन हो गए।

साहित्यिक परिचय

शिवमंगल सिंह सुमन जी प्रिय अध्यापक, कुशल प्रशासक, प्रमुख चिंतक और विचारक भी थे। काव्य – क्षेत्र में सुमन जी का प्रवेश छायावाद पद के अंतिम चरण में हुआ।

वे प्रारंभ से प्रेम गीत ही लिखते रहे, किंतु धीरे-धीरे उन्हें यह अनुभव हुआ कि प्रेम से भी अधिक महत्वपूर्ण विचार कर्तव्य का है। प्रकृति में मानव की अकुलाहट को उन्होंने महसूस किया तथा राष्ट्रीय चेतना से प्रभावित होकर उन्होंने प्रगतिवादी वे राष्ट्रीय चेतना से संबंधित अनेक रचनाएं लिखी।

 सुमन जी की रचनाओं में राग, विराग, आशा, उत्साह, हर्ष, पुलक आदि का स्वर मुखरित होता है। सुमन जी की साहित्यिक सेवाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पदम भूषण, पदमश्री, देव पुरस्कार, नेहरू पुरस्कार, शिखर सम्मान और भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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शिवमंगल सिंह सुमन जी की रचनाएँ

हिल्लोल शिवमंगल सिंह सुमन जी के प्रेम गीतों का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें हृदय की कोमल भावनाओं का चित्रण किया गया है। जीवन के गान, युग का मोल, विश्वास बढ़ता ही गया, प्रलय सृजन, मिट्टी की बारात, विंध्य हिमालय, वाणी की व्यथा एवं कटे अंगूठो की वंदनवारे इनके आने काव्य-संग्रह है। इनकी संकलित कविता युगवाणी में जीवन की वास्तविकताओं का चित्रण किया गया है।

सुमन जी की क्रांतिकारी भावनाओं से ओत-प्रोत, प्रगतिवादी रचनाओं के संग्रह इस प्रकार हैं – जीवन के गान, प्रलय – सृजन और विश्वास बढ़ता ही गया। विंध्य हिमाचल में देशप्रेम और राष्ट्रीयता की भावनाओं से ओत-प्रोत कविताएं हैं।

महादेवी की काव्य-साधना एवं गीति काव्य : उद्गम और विकास इनकी गद्य रचनाएं हैं। इन्होंने प्रकृति पुरुष कालिदास नामक एक नाटक की रचना भी की।

भाषा - शैली

शिवमंगल सिंह सुमन जी की रचनाओं की भाषा कोमलता, प्रांजलता व लालित्य से ओत-प्रोत है। सुमन जी ने अपनी रचनाएं परंपरागत छंदों में ऐड करने के साथ-साथ मुक्त छंद में भी की है।

सुमन जी की शैली में ओज व प्रसाद गुण की प्रधानता है। इनके गीतों में मस्ती, उल्लास और संगीतात्मकता का पुट स्पष्ट रूप से मिलता है। यह भाषा को लेकर निरंतर निरीक्षण करते हुए दिखाई देते हैं।

इनकी भाषा विचारों से परिपूर्ण है तथा शैली मानव-मूल्यों के संचार के लिए सदैव प्रयासरत रही है।

हिंदी साहित्य में स्थान

शिवमंगल सिंह सुमन जी की आरंभिक कविताओं की मुख्य विषय प्रेम रहा है, किंतु देश के तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप स्वतंत्रता की भावना, मानवीय कर्तव्यों, देश-प्रेम एवं शोषण से कराहती मानवता ने इनके मन को झकझोर कर रख दिया और प्रेम की कविता के स्थान पर राष्ट्र प्रेम इनकी कविता का मुख्य विषय हो गया।

इसके परिणामस्वरूप इनकी रचनाओं में पूंजीवाद अर्थव्यवस्था और साम्राज्यवाद के विरोधी स्वर मुखर हुए। देश के युवाओं को भारतीय समाज के नव-निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। हिंदी साहित्य उनके इस योगदान के लिए सदैव ऋणी रहेगा।

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