मध्यपाषाण काल
मध्यपाषाण ( मिसोलिथिक ) काल – ऊपरी पाषाण युग का अंत 9000 ईसा पूर्व के आसपास हिम-युग के अंत के साथ ही हुआ और जलवायु गर्म व शुष्क हो गई। जलवायु के परिवर्तन के साथ ही पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं में भी परिवर्तन हुए और मानव के लिए नए क्षेत्रों की ओर अग्रसर होना संभव हुआ।
प्रस्तर-युगीन संस्कृति में 9000 ईसा पूर्व में एक मध्यवर्ती अवस्था आई जो मध्यपाषाण काल कहलाती है। यह पुरापाषाण युग और नवपाषाण युग के बीच का संक्रमणकाल है।
मध्यपाषाण काल के लोग शिकार करके, मछली पकड़कर और खाद्य वस्तुएं बटोर कर पेट भरते थे। आगे चलकर व पशुपालन भी करने लगे। इनमें शुरू के तीन पेशे तो पुरापाषाण युग से ही चले आ रहे थे, पर अंतिम पेशा नवपाषाण संस्कृति से जुड़ा है। मध्यपाषाण काल
मध्यपाषाण काल के विशिष्ट औजार हैं सूक्ष्म-पाषाण या पत्थर के बहुत छोटे औजार (माइक्रोलिथ्स )। मध्य पाषाण स्थल राजस्थान, दक्षिण उत्तर प्रदेश,मध्य और पूर्वी भारत में काफी मात्रा में पाए जाते हैं तथा दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के दक्षिण में पाए जाते हैं।
इनमें से राजस्थान में बागोर स्थल का उत्खनन भली-भांति हुआ है। यहां सुस्पष्ट सूक्ष्म-पाषाण फलकों का उद्योग था और यहां के निवासियों की जीविका शिकार और पशुपालन से चलती थी।
मध्य प्रदेश में आजमगढ़ और राजस्थान में बागोर पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। जिसका समय लगभग 5000 ईसा पूर्व हो सकता है।
राजस्थान के एक पुराने नमक-झील सांभर के जमाव के अध्ययन से प्रतीत होता है कि 7000 – 6000 ईसा पूर्व के आसपास पौधे लगाए जाते थे।
मध्य पाषाण संस्कृति का महत्व मोटे तौर पर 9000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व तक बना रहा। मध्यपाषाण काल
प्रागैतिहासिक कलाकृतियाँ – पुरापाषाण और मध्यपाषाण काल के लोग चित्र बनाते थे। प्रागैतिहासिक कलाकृतियाँ तो कई स्थानों पर पाई जाती है, परन्तु मध्य प्रदेश का भीमबेटका स्थल अद्भुत है।
यह भोपाल से 45 किलोमीटर दक्षिण विंध्यपर्वत पर अवस्थित है। इसमें 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बिखरे 500 से भी अधिक चित्रित गुफाएं हैं।
इन गुफाओं के चित्र पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल तक के बने हुए हैं और कुछ श्रंखलाओं में तो हाल के समय तक के हैं। परन्तु इनमें अनेकों गुफाएं मध्यपाषाण काल के लोगों से संबंध है।
बहुत सारे पशु, पक्षी और मानव चित्रित हैं। स्पष्टत: इन कलाकृतियों में चित्रित अधिकांश पक्षी और पशु वे हैं जिनका शिकार जीवन-निर्वाह के लिए किया जाता था।
पर्चिंग पक्षी ( अनाज पर जीने वाले ) आरंभिक चित्रों में नहीं पाए जाते है , क्योंकि वे चित्र अवश्य ही आखेट / खाद्य-संग्राह पर आश्रित अर्थव्यवस्था से संबंधित होंगे।
मिर्जापुर जिले में अवस्थित बेलन घाटी में विंध्य पर्वत के उत्तरी छोर पर पुरापाषाण काल की तीनों अवस्थाएं एक के बाद एक पाई जाती हैं – पहले पुरापाषाणकालिक तथा मध्य-पाषाणकालिक और तब – नवपाषाणकालिक।
नर्मदा घाटी के मध्य भाग से भी इसी तरह क्रमानुसार स्थल मिले हैं। किंतु कई क्षेत्रों में नव पाषाण संस्कृति मध्यपाषाण परंपरा के बाद आती है यद्यपि यह परंपरा लौह-युग के आरंभ तक अर्थात 1000 ईसा पूर्व तक चलती रही।
निष्कर्ष
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