ऊतक

ऊतक ( Tissues )

ऊतक :- वे कोशिकाएँ जो आकृति में एक समान होती है तथा किसी कार्य को एक साथ संपन्न करती हैं , समूह में एक ऊतक का निर्माण करती है।

ऊतक अधिकतम दक्षता के साथ कार्य कर सकने के लिए एक विशिष्ट क्रम में व्यवस्थित होते है। रक्त , फ्लोएम तथा पेशी ऊतक के उदाहरण है।

पादपों के अधिकांश ऊतक सहारा देने वाले होते हैं तथा पौधों ( पादपों ) को संरचनात्मक शक्ति प्रदान करते हैं। ऐसे अधिकांश ऊतक मृत होते हैं।

ये मृत ऊतक जीवित ऊतकों के समान ही यांत्रिक शक्ति प्रदान करते हैं तथा उन्हें कम अनुरक्षण की आवश्यकता होती है।

जंतुओं के अधिकांश ऊतक जीवित होते हैं।

पौधों ( पादपों ) के कुछ ऊतक जीवन भर विभाजित होते रहते हैं। ऐसे ऊतक कुछ क्षेत्रों में ही सीमित रहते हैं।

ऊतकों की विभाजन – क्षमता के आधार पर पौधों के ऊतकों ( पादप ऊतकों ) को दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है :- वृद्धि अथवा विभज्योतक तथा स्थायी ऊतक।

जंतुओं में कोशिका वृद्धि अधिक एकरूप होती है। अतः जंतुओं में विभाज्य तथा अविभाज्य क्षेत्र की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।

पादप ऊतक

विभज्योतक

पौधों में वृद्धि कुछ निश्चित क्षेत्र में ही होती है। ऐसा विभाजित ऊतकों के उन भागों में पाए जाने के कारण होता है। ऐसे ऊतकों को विभज्योतक ( Meristematic tissue ) भी कहा जाता है।

विभज्योतक की उपस्थिति वाले क्षेत्र के आधार पर इन्हें शीर्षस्थ , केंबियम ( पाशर्वीय ) तथा अंतर्विष्ट भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

विभज्योतक के द्वारा तैयार नई कोशिकाएँ प्रारंभ में विभज्योतक की तरह होती है लेकिन जैसे ही ये बढ़ती और परिपक्व होती हैं , इनके गुणों में धीरे – धीरे परिवर्तन होता है और ये दूसरे ऊतकों के घटकों के रूप में विभाजित हो जाती हैं।

प्ररोह के शीर्षस्थ विभज्योतक जड़ों एवं तनों की वृद्धि वाले भागों में विधमान रहता है तथा वह इनकी लंबाई में वृद्धि करता है।

तने की परिधि या मूल में वृद्धि पार्श्व विभज्योतक ( केंबियम ) के कारण होती है।

अंतर्विष्ट विभज्योतक पत्तियों के आधार में या टहनी के पर्व के दोनों ओर उपस्थित होते हैं।

अंतर्विष्ट विभज्योतक की कोशिकाएँ अत्यधिक क्रियाशील होती हैं , उनके पास बहुत अधिक कोशिकाद्रव्य , पतली कोशिका भित्ति , और स्पष्ट केन्द्रक होते हैं। इनके पास रसधानी नहीं होती है।

स्थायी ऊतक

स्थायी ऊतक विभज्योतक से बनते हैं , जो विभाजित होने की क्षमता को खो देते हैं।

ये ऊतक किसी विशिष्ट कार्य करने के लिए एक निश्चित व स्थायी आकार तथा संरचना ले लेते है।

इस प्रकार विभज्योतक द्वारा निर्मित कोशिका का विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी रूप और आकार लेने की क्रिया को विभेदीकरण कहते हैं।

विभज्योतक की कोशिकाएं विभाजित होकर विभिन्न प्रकार के स्थायी ऊतकों का निर्माण करती है जिन्हे सरल तथा जटिल ऊतकों में वर्गीकृत किया जाता है।

पैरेन्काइमा , कालेन्काइमा तथा स्क्लेरेन्काइमा सरल ऊतकों के तीन प्रकार है। जाइलम और फ्लोएम जटिल ऊतकों के प्रकार है।

सरल स्थायी ऊतक

कोशिकाओं की कुछ परतें ऊतक के आधारीय पैकिंग का निर्माण करती है। इन्हें पैरेन्काइमा ऊतक कहते हैं , जो स्थाई ऊतक का एक प्रकार है।

पैरेन्काइमा ऊतक पतली कोशिका भित्ति वाली सरल कोशिकाओं का बना होता है। ये कोशिकाएँ जीवित होती है।

ये कोशिकाएँ प्रायः बंधन मुक्त होती है तथा इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं के मध्य काफी रिक्त स्थान पाया जाता है।

यह ऊतक पौधों को सहायता प्रदान करता है और भोजन का भंडार करता है।

कुछ पैरेन्काइमा ऊतकों में क्लोरोफिल पाया जाता है , जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संपन्न होती है। इस प्रकार के पैरेन्काइमा ऊतकों को क्लोरेन्काइमा ( हरित ऊतक ) कहा जाता है।

जलीय पौधों में पैरेन्काइमा की कोशिकाओं के मध्य हवा की बड़ी गुहिकाएँ होती हैं , जो पौधों को तैरने के लिए उत्प्लावन बल प्रदान करती हैं। इस प्रकार के पैरेन्काइमा को ऐरेन्काइमा कहते हैं।

पौधों में लचीलेपन का गुण कालेन्काइमा के कारण होता है। यह पौधों के विभिन्न भागों ( पत्ती ,तना ) में बिना टूटे हुए लचीलापन लाता है।

कालेन्काइमा पौधों को यांत्रिक सहायता भी प्रदान करता है। हम इस ऊतक को एपिडर्मिस के नीचे पर्णवृत में पा सकते हैं।

कालेन्काइमा उत्तक की कोशिकाएँ जीवित , लंबी और अनियमित ढंग से कोनों पर मोटी होती हैं तथा कोशिकाओं के बीच बहुत कम स्थान होता है।

स्क्लेरेन्काइमा ऊतक पौधे को कठोर एवं मजबूत बनाता है। नारियल का रेशे युक्त छिलका स्क्लेरेन्काइमा उत्तक से बना होता है।

स्क्लेरेन्काइमा उत्तक की कोशिकाएँ मृत होती हैं। ये लंबी और पतली होती है क्योंकि इस उत्तक की भित्ति लिग्निन के कारण मोटी होती है।

ये भित्तियाँ प्राय: इतनी मोटी होती है कि कोशिका के भीतर कोई आंतरिक स्थान नहीं होता है।

स्क्लेरेन्काइमा ऊतक तने में , संवहन बंडल के समीप , पत्तों की शिराओं में तथा बीजों और फलों के कठोर छिलकों में उपस्थित होता है। यह पौधों के भागों को मजबूती प्रदान करता है।

लिग्निन कोशिकाओं को दृढ़ बनाने के लिए सीमेंट का कार्य करने वाला एक रासायनिक पदार्थ है।

शुष्क स्थानों पर मिलने वाले पादपो में एपिडर्मिस मोटी होती है। यह जल की हानि कम करके पादपो की रक्षा करती है।

एपिडर्मल कोशिका पौधों की बाह्य सतह पर प्रायः एक मोम जैसी जल प्रतिरोध परत बनती है।

यह परत जल हानि को कम करती है और यांत्रिक आघात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधे की रक्षा करती है।

अधिकांश एपिडर्मल कोशिकाएँ अपेक्षाकृत चपटी होती है। सामान्यतः उनकी बाह्य तथा पार्श्व भित्तियाँ उनकी आंतरिक भित्तियों से मोटी होती है।

पत्ती की एपिडर्मिस कोशिका की सतह पर छोटे – छोटे छिद्र पाए जाते है , जो स्टोमेटा ( रंध्र ) कहलाते है।

स्टोमेटा को दो वक्र के आकार की कोशिकाएँ घेरे रहती हैं , जिन्हे रक्षी कोशिकाएँ कहते हैं।

ये कोशिकाएँ वायुमंडल से गैसों का आदान – प्रदान करने के लिए आवश्यक है।

वाष्पोत्सर्जन ( वाष्प के रूप में पानी का निकलना ) की क्रिया भी स्टोमेटा के द्वारा होती है।

जड़ों की एपिडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोखने का कार्य करती है। साधारणत: उनमे बाल जैसे प्रवर्ध होते हैं , जिससे जड़ों की कुल अवशोषण सतह बढ़ जाती है तथा उनकी पानी सोखने की क्षमता में वृद्धि होती है।

मरुस्थलीय पौधे की बहरी सतह वाले एपिडर्मिस में क्यूटिन ( एक जल अवरोधक रासायनिक पदार्थ ) का लेप होता है।

जैसे – जैसे वृक्ष की आयु बढ़ती है , उसके बाह्य सुरक्षात्मक ऊतकों में कुछ परिवर्तन होता है। एक दूसरे विभाज्योतक की पट्टी तने के एपिडर्मिस का स्थान ले लेती है।

बाहरी सतह की कोशिकाएँ इस सतह से अलग हो जाती है। यह पौधों पर बहुत परतों वाली मोटी छाल का निर्माण करती है।

इन छालों की कोशिकाएँ मृत होती हैं ,ये बिना अंत: कोशिकीय स्थानों के व्यवस्थित होती हैं। इनकी भित्ति पर सुबेरिन नामक रसायन होता है जो इन छालों को हवा एवं पानी के लिए अभेद्य बनता है।

जटिल स्थायी ऊतक

जटिल ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं और ये सभी एक साथ मिलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं।

जाइलम और फ्लोएम इसी प्रकार के जटिल ऊतकों के उदाहरण है। इन दोनों को संवहन ऊतक भी कहते हैं और ये मिलकर संवहन बंडल का निर्माण करते हैं।

जाइलम ट्रेकीड ( वाहिनिका ) , वाहिका , जाइलम पैरेन्काइमा और जाइलम फाइबर ( रेशे ) से मिलकर बना होता है।

इन कोशिकाओं की कोशिका भित्ति मोटी होती है और इनमे से अधिकतर कोशिकाएँ मृत्यु होती है।

ट्रेकिड और वाहिकाओं की संरचना नलिकाकार होती है। इनके द्वारा पानी और खनिज लवण का ऊर्ध्वाधर संवहन होता है।

पैरेन्काइमा भोजन का संग्रह करता है और यह किनारो की ओर पानी के पार्श्वीय संवहन में मदद करता है। फाइबर मुख्यतः सहारा देने का कार्य करते हैं।

फ्लोएम चार प्रकार के अवयवों: चालनी नलिका , साथी कोशिकाएँ , फ्लोएम पैरेन्काइमा तथा फ्लोएम रेशों से मिलकर बना होता है।

चालनी नलिका छिद्रित भित्ति वाली तथा नलिकाकार कोशिका होती है।

फ्लोएम , जाइलम के असमान पदार्थों को कोशिकाओं में दोनों दिशाओं में गति करा सकते हैं।

फ्लोएम पत्तियों से भोजन को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचता है। फ्लोएम रेशों को छोड़कर , फ्लोएम कोशिकाएँ जीवित कोशिकाएँ हैं।

ऊतक image

जंतु ऊतक

एपिथीलियमी ऊतक

जंतु के शरीर को ढकने या बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक एपिथीलियमी ऊतक कहलाते हैं।

एपीथिलियम शरीर के अंदर स्थित बहुत से अंगों और गुहिकाओं को ढकते हैं।

एपिथीलियमी ऊतक भिन्न – भिन्न प्रकार के शारीरिक तंत्रों को एक – दूसरे से अलग करने के लिए अवरोध का निर्माण करते हैं।

त्वचा , मुहँ , आहारनली , रक्त वाहिनी नली का अस्तर , फेफड़ों की कूपिका , वृक्कीय नली आदि सभी एपिथीलियमी ऊतक से बने होते हैं।

एपिथीलियमी ऊतक की कोशिकाएँ एक – दूसरे से सटी होती हैं और ये एक अनवरत परत का निर्माण करती है।

इन परतों के बीच चिपकाने वाले पदार्थ काम होते हैं तथा कोशिकाओं के बीच बहुत कम स्थान होता है।

स्पष्टत: जो भी पदार्थ शरीर में प्रवेश करता है या बाहर निकलता है , वह एपीथिलियम की किसी परत से होकर अवश्य गुजरता है।

सामान्यतः सभी एपिथिलियमों को एक बाह्य रेशेदार आधार झिल्ली उसे नीचे रहने वाले उत्तकों से अलग करती है।

एपिथीलियम की संरचनाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं , जो उनके कार्यों पर निर्भर करती है।

आकृति और कार्य के आधार पर एपिथीलियम ऊतक को शल्की ,घनाकार , स्तंभाकार , रोमीय तथा ग्रंथिल श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

कोशिकाओं में रक्त नलिका अस्तर या कूपिका, जहाँ पदार्थों का संवहन वरणात्मक परागम्य झिल्ली द्वारा होता है , वहां पर चपटी एपिथीलियमी ऊतक कोशिकाएँ होती हैं। इनको सरल शल्की एपिथीलियम कहते हैं।

शल्की एपिथीलियम कोशिकाएँ अत्यधिक पतली और चपटी होती हैं तथा कोमल अस्तर का निर्माण करती है।

आहारनली तथा मुहँ का अस्तर शल्की एपीथिलियम से ढका होता है। शरीर का रक्षात्मक कवच अर्थात त्वचा इन्हीं शल्की एपीथिलियम से बनी होती है।

त्वचा की एपीथिलियमी कोशिकाएँ इनको कटने तथा फटने से बचाने के लिए कई परतों में व्यवस्थित होती हैं। चूँकि ये कई परतों के पैटर्न में व्यवस्थित होती हैं इसीलिए इन एपिथीलियम को स्तरीय शल्की एपीथिलियम कहते हैं।

जहाँ अवशोषण और स्त्राव होता है , जैसे आँत के भीतरी अस्तर में , वहाँ लंबी एपीथिलियमी कोशिकाएँ मौजूद होती हैं। यह स्तंभाकार एपिथिलीयम ,एपीथिलियमी अवरोध को पार करने में सहायता प्रदान करता है।

श्वास नली में , स्तंभाकार एपिथीलियमी ऊतक में पक्ष्माभ होते हैं , जो कि एपिथीलियमी ऊतक की कोशिकाओं की सतह पर बाल जैसी रचनाएं होती हैं।

ये पक्ष्माभ गति कर सकते हैं तथा इनकी गति श्लेष्मा को आगे स्थानांतरित करके साफ करने में सहायता करती है। इस प्रकार के एपिथीलियम को पक्ष्माभ स्तंभाकार एपिथीलियम कहते हैं।

घनाकार एपिथीलियम वृक्कीय नली तथा लार ग्रंथि की नली के स्तर का निर्माण करता है , जहाँ यह उसे यांत्रिक सहारा प्रदान करता है।

ये एपिथीलियम कोशिकाएँ प्राय: ग्रंथि कोशिका के रूप में अतिरिक्त विशेषता अर्जित करती हैं , जो एपिथीलियमी ऊतक की सतह पर पदार्थ का स्त्राव कर सकती हैं।

कभी-कभी एपिथीलियमी ऊतक का कुछ भाग अंदर की ओर मुड़ा होता है तथा एक बहुकोशिका ग्रंथि का निर्माण करता है। यह ग्रंथिल एपिथीलियम कहलाता है।

संयोजी ऊतक

हमारे शरीर में विद्यमान संयोजी ऊतक के विभिन्न प्रकार हैं : एरिओलर ऊतक , एडिपोज ( वसामय ) ऊतक , अस्थि , कंडरा , स्नायु , उपास्थि तथा रक्त।

संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ आपस में काम जुड़ी होती हैं और अंतरकोशिकीय आधात्री में धँसी होती हैं।

यह आधात्री जैली की तरह , तरल , संघन या कठोर हो सकती है। आधात्री की प्रकृति , विशिष्ट संयोजी ऊतक के कार्य के अनुसार बदलती रहती है।

रक्त एक प्रकार का संयोजी ऊतक है।

रक्त के तरल आधात्री भाग को प्लाज्मा कहते हैं , प्लाज्मा में लाल रक्त कोशिकाएँ , श्वेत रक्त कोशिकाएँ तथा प्लेटलेटस् निलंबित होते हैं।

प्लाज्मा में प्रोटीन , नमक तथा हॉर्मोन भी होते हैं। रक्त गैसों , शरीर के पचे हुए भजन , हॉर्मोन और उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में संवहन करता है।

अस्थि संयोजी ऊतक का एक अन्य उदाहरण है। यह पंजर का निर्माण कर शरीर को आकार प्रदान करती है।

अस्थि संयोजी ऊतक मांसपेशियों को सहारा देती है और शरीर के मुख्य अंगों को सहारा देती है।

यह ऊतक मजबूत और कठोर होता है। अस्थि कोशिकाएँ कठोर आधात्री में धँसी होती हैं , जो कैल्शियम तथा फास्फोरस से बनी होती है।

दो अस्थियाँ आपस में एक – दूसरे से , एक अन्य संयोजी ऊतक जिसे स्नायु कहते हैं , से जुड़ी होती हैं।

स्नायु ऊतक बहुत लचीला एवं मजबूत होता है। स्नायु में बहुत कम आधात्री होती हैं।

मांसपेशियों को अस्थियों से कंडरा ऊतक ( संयोजी ऊतक ) जोड़ता है। कंडरा मजबूत तथा सीमित लचीलेपन वाले रेशेदार ऊतक होते हैं।

उपास्थि एक अन्य प्रकार का संयोजी ऊतक होता है , जिसमें कोशिकाओं के बीच पर्याप्त स्थान होता है।

उपास्थि की ठोस आधात्री प्रोटीन और शर्करा की बनी होती है। यह अस्थियों के जोड़ों को चिकना बनती है।

उपास्थि नाक , कान , कंठ और श्वास नली में भी उपस्थित होती है।

एरिओलर संयोजी ऊतक त्वचा और मांसपेशियों के बीच , रक्त नलिका के चारों ओर तथा नसों और अस्थि मज्जा में पाया जाता है।

एरिओलर संयोजी ऊतक अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है , आंतरिक अंगों को सहारा प्रदान करता है और ऊतकों की मरम्मत में सहायता करता है।

वसा का संग्रह करने वाला वसामय ऊतक त्वचा के नीचे आंतरिक अंगों के बीच पाया जाता है।

वसामय ऊतक की कोशिकाएँ वसा की गोलिकाओं से भरी होती हैं।

वसा संग्रहीत होने के कारण यह उष्मीय कुचालक का कार्य भी करता है।

पेशीय ऊतक

पेशीय ऊतक लंबी कोशिकाओं का बना होता है जिसे पेशीय रेशा भी कहा जाता है।

पेशीय ऊतक के तीन प्रकार होते हैं – रेखित , अरेखित और कार्डियक

पेशीय ऊतक हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी होता है।

पेशीयों में एक विशेष प्रकार की प्रोटीन होती है , जिसे सिकुड़ने वाला प्रोटीन कहते हैं , जिसके संकुचन एवं प्रसार के कारण गति होती है।

जिन पेशियों को हम इच्छा अनुसार गति करा सकते है , उन्हें ऐच्छिक पेशी कहते है। इन पेशियों को कंकाल पेशी भी कहा जाता है क्योंकि ये अधिकतर हड्डियों से जुड़ी होती हैं तथा शारीरिक गति में सहायक होती हैं।

सूक्ष्मदर्शी से देखने पर ये पेशियाँ हलके तथा गहरे रंगों में एक के बाद एक रेखाओं या धारीयो की तरह प्रतीत होती हैं। इसी कारण इसे रेखित पेशी भी कहते हैं।

इस ऊतक की कोशिकाएँ लंबी , बेलनाकार शाखारहित और बहुनाभीय होती हैं।

जिन पेशियों को हम इच्छा अनुसार गति नहीं करा सकते है , उन्हें अनैच्छिक पेशियाँ ( चिकनी पेशियाँ ) कहते है।

अनैच्छिक पेशियों की कोशिकाएँ लंबी और इनका आखिरी सिरा नुकीला होता है। ये एक – केंद्रकीय होती हैं। इनको अरेखित पेशी भी कहा जाता है।

हृदय की पेशियाँ जीवन भर लयबद्ध होकर प्रसार एवं संकुचन करती रहती हैं। इन अनैच्छिक पेशियों को कार्डियक पेशी कहा जाता है।

हृदय की पेशी कोशिकाएँ बेलनाकार , शाखाओं वाली और एक – केंद्रकीय होती हैं।

तंत्रिका ऊतक

सभी कोशिकाओं में उत्तेजना के अनुकूल प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है।

यधपि ,तंत्रिका उत्तक की कोशिकाएं बहुत शीघ्र उत्तेजित होती हैं और इस उत्तेजना को बहुत ही शीघ्र पूरे शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचती हैं।

मस्तिक , मेरुरज्जु तथा तांत्रिकाएं सभी तांत्रिक ऊतकों की बनी होती हैं।

तंत्रिका उत्तक की कोशिकाओं को तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहा जाता है।

न्यूरॉन में कोशिकाएँ केंद्रक तथा कोशिकाद्रव्य होते हैं। इससे लंबे , पतले बालों जैसी शाखाएँ निकली होती हैं।

प्राय: प्रत्येक न्यूरॉन में इस तरह का एक लंबा प्रवर्ध होता है , जिसको एक्सान कहते हैं तथा बहुत सारे छोटी शाखा वाले प्रवर्ध होते हैं।

एक तंत्रिका कोशिका 1 मीटर तक लंबी हो सकती है। बहुत सारे तांत्रिका रेशे संयोजी ऊतक के द्वारा एक साथ मिलकर एक तांत्रिक का निर्माण करते हैं।

तांत्रिक का स्पंदन हमें इच्छा अनुसार अपनी पेशियों की गति करने में सहायता करता है।

तांत्रिक तथा पेशीय ऊतकों का कार्यात्मक संयोजन प्राय: सभी जीवो में मौलिक है। साथ ही , यह संयोजन उत्तेजना के अनुसार जंतुओं को तेज गति प्रदान करता है।

MCQ

प्रश्न 1. वे कोशिकाएँ जो आकृति में एक समान होती है तथा किसी कार्य को एक साथ संपन्न करती हैं , समूह में निर्माण करती है –

उत्तर- एक उत्तक का

प्रश्न 2. जंतुओं के अधिकांश ऊतक होते हैं –

उत्तर- जीवित

प्रश्न 3. ऊतकों की विभाजन – क्षमता के आधार पर पौधों के ऊतकों ( पादप ऊतकों ) को दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है :-

उत्तर- वृद्धि अथवा विभज्योतक तथा स्थायी ऊतक

प्रश्न 4. जंतुओं में विभाज्य तथा अविभाज्य क्षेत्र की नहीं होती –

उत्तर- कोई निश्चित सीमा

प्रश्न 5. पौधों में वृद्धि कुछ निश्चित क्षेत्र में ही होती है। ऐसा उन भागों में पाए जाने के कारण होता है –

उत्तर- विभज्योतक

प्रश्न 6. विभज्योतक की उपस्थिति वाले क्षेत्र के आधार पर इन्हें वर्गीकृत किया जाता है –

उत्तर- शीर्षस्थ , केंबियम ( पाशर्वीय ) तथा अंतर्विष्ट भागों में

प्रश्न 7. तने की परिधि या मूल में वृद्धि होती है –

उत्तर- पार्श्व विभज्योतक ( केंबियम ) के कारण

प्रश्न 8. पत्तियों के आधार में या टहनी के पर्व के दोनों ओर उपस्थित होते हैं –

उत्तर- अंतर्विष्ट विभज्योतक

प्रश्न 9. अंतर्विष्ट विभज्योतक की कोशिकाओं पास नहीं होती है –

उत्तर- रसधानी

प्रश्न 10. स्थायी ऊतक बनते हैं –

उत्तर- विभज्योतक से

प्रश्न 11. विभज्योतक द्वारा निर्मित कोशिका का विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी रूप और आकार लेने की क्रिया को कहते हैं –

उत्तर- विभेदीकरण

प्रश्न 12. विभज्योतक की कोशिकाएं विभाजित होकर विभिन्न प्रकार के स्थायी ऊतकों का निर्माण करती है , जिन्हे वर्गीकृत किया जाता है –

उत्तर- सरल तथा जटिल ऊतकों में

प्रश्न 13. पैरेन्काइमा , कालेन्काइमा तथा स्क्लेरेन्काइमा प्रकार है –

उत्तर- सरल ऊतकों के

प्रश्न 14. जाइलम और फ्लोएम प्रकार है –

उत्तर- जटिल ऊतकों के

प्रश्न 15. कोशिकाओं की कुछ परतें ऊतक के आधारीय पैकिंग का निर्माण करती है। इन्हें कहते हैं –

उत्तर- पैरेन्काइमा ऊतक

प्रश्न 16. कौन – सा ऊतक पौधों की सहायता और भोजन का भंडार करता है –

उत्तर- पैरेन्काइमा ऊतक

प्रश्न 17. कुछ पैरेन्काइमा ऊतकों में क्लोरोफिल पाया जाता है , जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संपन्न होती है। इस प्रकार के पैरेन्काइमा ऊतकों को कहा जाता है –

उत्तर- क्लोरेन्काइमा ( हरित ऊतक )

प्रश्न 18. जलीय पौधों में पैरेन्काइमा की कोशिकाओं के मध्य हवा की बड़ी गुहिकाएँ होती हैं , जो पौधों को तैरने के लिए उत्प्लावन बल प्रदान करती हैं। इस प्रकार के पैरेन्काइमा को कहते हैं –

उत्तर- ऐरेन्काइमा

प्रश्न 19. पौधों में लचीलेपन का गुण होता है –

उत्तर- कालेन्काइमा के कारण

प्रश्न 20. पौधे को कठोर एवं मजबूत बनाता है –

उत्तर- स्क्लेरेन्काइमा ऊतक

प्रश्न 21. नारियल का रेशे युक्त छिलका बना होता है –

उत्तर- स्क्लेरेन्काइमा उत्तक से

प्रश्न 22. स्क्लेरेन्काइमा उत्तक की कोशिकाएँ होती हैं –

उत्तर- मृत

प्रश्न 23. स्क्लेरेन्काइमा उत्तक की भित्ति मोटी होती है –

उत्तर- लिग्निन के कारण

प्रश्न 24. कोशिकाओं को दृढ़ बनाने के लिए सीमेंट का कार्य करने वाला एक रासायनिक पदार्थ है –

उत्तर- लिग्निन

प्रश्न 25. शुष्क स्थानों पर मिलने वाले पादपो में एपिडर्मिस होती है –

उत्तर- मोटी

प्रश्न 26. पत्ती की एपिडर्मिस कोशिका की सतह पर छोटे – छोटे छिद्र पाए जाते है , जो कहलाते है –

उत्तर- स्टोमेटा ( रंध्र )

प्रश्न 27. स्टोमेटा को दो वक्र के आकार की कोशिकाएँ घेरे रहती हैं , जिन्हे कहते हैं –

उत्तर- रक्षी कोशिकाएँ

प्रश्न 28. मरुस्थलीय पौधे की बहरी सतह वाले एपिडर्मिस में लेप होता है –

उत्तर- क्यूटिन का

प्रश्न 29. जटिल ऊतक कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं –

उत्तर- एक से अधिक प्रकार की

प्रश्न 30. जाइलम मिलकर बना होता है –

उत्तर- ट्रेकीड , वाहिका , जाइलम पैरेन्काइमा और जाइलम फाइबर से

प्रश्न 31. ट्रेकिड और वाहिकाओं की संरचना होती है –

उत्तर- नलिकाकार

प्रश्न 32. फ्लोएम चार प्रकार के अवयवों: से मिलकर बना होता है –

उत्तर- चालनी नलिका , साथी कोशिकाएँ , फ्लोएम पैरेन्काइमा तथा फ्लोएम रेशे

प्रश्न 33. पत्तियों से भोजन को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचता है –

उत्तर- फ्लोएम

प्रश्न 34. जाइलम के असमान पदार्थों को कोशिकाओं में दोनों दिशाओं में गति करा सकते हैं –

उत्तर- फ्लोएम

प्रश्न 35. फ्लोएम रेशों को छोड़कर , फ्लोएम कोशिकाएँ होती हैं –

उत्तर- जीवित कोशिकाएँ

प्रश्न 36. जंतु के शरीर को ढकने या बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक कहलाते हैं –

उत्तर- एपिथीलियमी ऊतक

प्रश्न 37. एपिथीलियम की संरचनाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं , जो निर्भर करती है –

उत्तर- उनके कार्यों पर

प्रश्न 38. जहाँ पदार्थों का संवहन वरणात्मक परागम्य झिल्ली द्वारा होता है , वहां पर चपटी एपिथीलियमी ऊतक कोशिकाएँ होती हैं। इनको कहते हैं –

उत्तर- सरल शल्की एपिथीलियम

प्रश्न 39. आहारनली तथा मुहँ का अस्तर ढका होता है –

उत्तर- शल्की एपीथिलियम से

प्रश्न 40. शरीर का रक्षात्मक कवच अर्थात त्वचा बनी होती है –

उत्तर- शल्की एपीथिलियम से

प्रश्न 41. श्वास नली में , स्तंभाकार एपिथीलियमी ऊतक में होते हैं –

उत्तर- पक्ष्माभ

प्रश्न 42. वृक्कीय नली तथा लार ग्रंथि की नली के स्तर का निर्माण करता है –

उत्तर- घनाकार एपिथीलियम

प्रश्न 43. कभी-कभी एपिथीलियमी ऊतक का कुछ भाग अंदर की ओर मुड़ा होता है तथा एक बहुकोशिका ग्रंथि का निर्माण करता है। यह कहलाता है –

उत्तर- ग्रंथिल एपिथीलियम

प्रश्न 44. रक्त एक प्रकार का है –

उत्तर- संयोजी ऊतक

प्रश्न 45. रक्त के तरल आधात्री भाग को कहते हैं –

उत्तर- प्लाज्मा

प्रश्न 46. पंजर का निर्माण कर शरीर को आकार प्रदान करती है –

उत्तर- अस्थि ऊतक

प्रश्न 47. अस्थि कोशिकाएँ कठोर आधात्री में धँसी होती हैं , जो बनी होती है –

उत्तर- कैल्शियम तथा फास्फोरस से

प्रश्न 48. दो अस्थियाँ आपस में एक – दूसरे से जुड़ी होती हैं –

उत्तर- स्नायु ऊतक द्वारा

प्रश्न 49. मांसपेशियों को अस्थियों से जोड़ता है –

उत्तर- कंडरा ऊतक

प्रश्न 50. उपास्थि की ठोस आधात्री बनी होती है –

उत्तर- प्रोटीन और शर्करा की

प्रश्न 51. नाक , कान , कंठ और श्वास नली में भी उपस्थित होती है –

उत्तर- उपास्थि ऊतक

प्रश्न 52. कौन – सा ऊतक अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है , आंतरिक अंगों को सहारा प्रदान करता है और ऊतकों की मरम्मत में सहायता करता है ?

उत्तर- एरिओलर संयोजी ऊतक

प्रश्न 53. वसा का संग्रह करने वाला वसामय ऊतक पाया जाता है –

उत्तर- त्वचा के नीचे आंतरिक अंगों के बीच

प्रश्न 54. वसामय ऊतक की कोशिकाएँ भरी होती हैं –

उत्तर- वसा की गोलिकाओं से

प्रश्न 55. पेशीय ऊतक लंबी कोशिकाओं का बना होता है जिसे कहा जाता है –

उत्तर- पेशीय रेशा

प्रश्न 56. पेशीय ऊतक के तीन प्रकार होते हैं –

उत्तर- रेखित , अरेखित और कार्डियक

प्रश्न 57. हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी होता है –

उत्तर- पेशीय ऊतक

प्रश्न 58. ऐच्छिक पेशियों को कहा जाता है –

उत्तर- कंकाल पेशी या रेखित पेशी

प्रश्न 59. अनैच्छिक पेशियों को कहा जाता है –

उत्तर- अरेखित पेशी

प्रश्न 60. हृदय की पेशियाँ जीवन भर लयबद्ध होकर प्रसार एवं संकुचन करती रहती हैं। इन अनैच्छिक पेशियों को कहा जाता है –

उत्तर- कार्डियक पेशी

प्रश्न 61. तंत्रिका ऊतक बना होता है, जो संवेदना को प्राप्त और संचालित करता है –

उत्तर- न्यूरॉन का

प्रश्न 62. मस्तिक , मेरुरज्जु तथा तांत्रिकाएं सभी बनी होती हैं –

उत्तर- तांत्रिक ऊतकों की

प्रश्न 63. तंत्रिका उत्तक की कोशिकाओं को कहा जाता है –

उत्तर- तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन

प्रश्न 64. बहुत सारे तांत्रिका रेशे संयोजी ऊतक के द्वारा एक साथ मिलकर निर्माण करते हैं –

उत्तर- एक तांत्रिक का