जीवों में विविधता

जीवों में विविधता

जीवों में विविधता :- जैव विविधता से तात्पर्य , विभिन्न जीव रूपों में पाई जाने वाली विविधता से है। यह सब किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले विभिन्न जीवरूपों की ओर इंगित करता है।

ये विभिन्न जीव न सिर्फ एकसमान पर्यावरण में रहते हैं बल्कि एक – दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।

किसी समुदाय की विविधता भूमि , जल , जलवायु जैसी कई चीजों से प्रभावित होती है।

एक मोटे अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर जीवों की करीब 1 करोड़ प्रजातियाँ पाई जाती हैं , जबकि हमें सिर्फ 10 लाख या 20 लाख प्रजातियों की ही जानकारी है।

पृथ्वी पर कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र में जो गर्मी और नमी वाला भाग है , वहां पौधों और जंतुओं में काफी विविधता पाई जाती है। अतः यह क्षेत्र मेगाडाइवर्सिटी क्षेत्र कहलाता है। जीवों में विविधता

पृथ्वी पर जैव विविधता का आधे से ज्यादा भाग कुछेक देशों ; जैसे – ब्राज़ील , कोलंबिया , इक्वाडोर , पेरू , मेक्सिको , जायरे , मेडागास्कर , आस्ट्रेलिया , चीन , भारत , इंडोनेशिया और मलेशिया में केंद्रित है।

जैव विविधता रंगहीन जीवधारियों , पारदर्शी कीटों और विभिन्न रंगों वाले पक्षियों और फूलों में भी पाई जाती है।

हमारे चारों ओर की इस असीमित विभिन्नता को विकसित होने में लाखों वर्ष का समय लगा है।

वर्गीकरण जीवों की विविधता को स्पष्ट करने में सहायक होता है।

यूनानी विचारक अरस्तू ने जीवों का वर्गीकरण उनके स्थल , जल एवं वायु में रहने के आधार पर किया था। जीवों में विविधता

किसी जीव के लक्षण से तात्पर्य उस जीव का कोई विशिष्ट रूप या विशिष्ट कार्य है।

आजकल हम जीवो के वर्गीकरण के लिए कोशिका की प्रकृति से प्रारंभ करके विभिन्न परस्पर – संबंधित अभिलक्षणों को दृष्टिगत रखते हैं।

जीवो को पांच जगत में वर्गीकृत करने के लिए निम्न विशेषताओं को ध्यान में रखा जाता है –

(a ) कोशिका संरचना – प्रोकैरियोटी और यूकैरियोटी

( b ) जीव का शरीर एककोशिक अथवा बहुकोशिक है। बहुकोशिक जीवों की संरचना जटिल होती है।

( c ) कोशिका भित्ति की उपस्थिति तथा स्वपोषण की क्षमता। जीवों में विविधता

सभी जीवो को पांच जगत में बांटा गया है – मोनेरा , प्रोटिस्टा , कवक ( फंजाई ) , प्लांटी और एनिमलिया।

जीवो का वर्गीकरण उनके विकास से संबंधित है।

एक यूकैरियोटिक कोशिका में केंद्रक समेत कुछ झिल्ली से घिरे कोशिकांग होते हैं जिसके कारण कोशिकीय क्रिया अलग-अलग कोशिकाओं में दक्षतापूर्वक होती रहती है।

केंद्रकयुक्त कोशिकाओं में बहुकोशीय जीव के निर्माण की क्षमता होती है , क्योंकि वे किसी खास कार्यों के लिए विशिष्टीकृत हो सकते हैं।

इसीलिए कोशिकीय संरचना और कार्य वर्गीकरण का आधारभूत लक्षण है। जीवों में विविधता

जो कोशिकाएँ एक साथ समूह बनाकर किसी जीव का निर्माण करती हैं , उनमें श्रम – विभाजन पाया जाता है।

शारीरिक संरचना में सभी कोशिकाएँ एकसमान नहीं होती हैं बल्कि कोशिकाओं के समूह कुछ खास कार्यों के लिए विशिष्टीकृत हो जाते हैं।

यही वजह है कि जीवों की शारीरिक संरचना में इतनी विभिन्नता होती है।

जो जीव प्रकाश – संश्लेषण करते हैं , उन्हें पौधे कहते हैं। जीवों में विविधता

पौधों का शरीर भोजन बनाने की क्षमता के अनुसार विकसित होता है , जबकि जंतुओं का शरीर बाहर से भोजन ग्रहण करने के अनुसार विकसित होता है।

सभी जीवधारियों को उनकी शारीरिक संरचना और कार्य के आधार पर पहचाना जाता है और उनका वर्गीकरण किया जाता है।

शरीर की बनावट के दौरान जो लक्षण पहले दिखाई पड़ते हैं , उन्हें मूल लक्षण के रूप में जाना जाता है।

हम जितने भी जीवो को देखते हैं वे सभी निरंतर होने वाले परिवर्तनों की उस प्रक्रिया के स्वाभाविक परिणाम है जो उनके बेहतर जीवन – यापन के लिए आवश्यक थे।

जैव विकास की इस अवधारणा को सबसे पहले चार्ल्स डार्विन ने 1859 में अपनी पुस्तक ” दी ओरिजिन ऑफ स्पीशीज “ में दिया। जीवों में विविधता

कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है , इन जीवों को आदम तथा निम्न जीव कहते है।

कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक पर्याप्त परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं , इन जीवों को उन्नत अथवा उच्च जीव कहते हैं।

अर्न्सट हेकल , राबर्ट व्हिटेकर और कार्ल वोस नमक जैव वैज्ञानिकों ने सारे सजीवों को जगत नमक बड़े वर्गों में विभाजित करने का प्रयास किया है।

व्हिटेकर द्वारा प्रस्तावित वर्गीकरण में पांच जगत हैं – मोनेरा , प्रोटिस्टा , फंजाई , प्लांटी और एनिमेलिया।

ये समूह कोशिकीय संरचना पोषण के स्रोत और तरीके तथा शारीरिक संगठन के आधार पर बनाए गए हैं। जीवों में विविधता

वोस ने अपने वर्गीकरण में मोनेरा जगत को आर्कीबैक्टीरिया और यूबैक्टीरिया में बांट दिया ,जो प्रयोग में लाया जाता है।

पुनः विभिन्न स्तरों पर जीवो को उप समूहों में वर्गीकृत किया गया है। जैसे –

जगत ( किंगडम ) – फ़ाइलम( जंतु ) / डिवीजन ( पादप ) -> वर्ग ( क्लास ) , गण ( ऑर्डर ) कुल ( फैमिली ) , वंश ( जीनस ) , जाति ( स्पीशीज )

इस प्रकार , वर्गीकरण के पद अनुक्रम में जीवों को विभिन्न लक्षणों के आधार पर छोटे से छोटे समूह में बाँटते हुए हम वर्गीकरण की आधारभूत इकाई तक पहुंचाते हैं।

वर्गीकरण की आधारभूत इकाई जाति ( स्पीशीज ) है।

एक ही जाति के जीवों में बाह्य रूप से काफी समानता होती है तथा वे जनन कर सकते हैं।

व्हिटेकर द्वारा प्रस्तुत जगत वर्गीकरण की पांच प्रमुख विशेषताएं निम्नवत है –

मोनेरा

इन जीवों में ना तो संगठित केंद्रक और कोशिकांग होते हैं और न ही उनके शरीर बहुकोशिक होते हैं।

इनमें पाए जाने वाली विविधता अन्य लक्षणों पर निर्भर करती है। इनमें कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं।

कोशिका भित्ति के होने या ना होने के कारण मोनेरा वर्ग के जीवों की शारीरिक संरचना में आए परिवर्तन तुलनात्मक रूप से बहुकोशिक जीवो में कोशिका भित्ति के होने या ना होने के कारण आए परिवर्तनों से भिन्न होते हैं।

पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी अथवा विषमपोषी दोनों हो सकते हैं।

उदाहरणार्थ – जीवाणु , नील – हरित शैवाल तथा साइनोबैक्टीरिया , माइकोप्लाज्मा। जीवों में विविधता

प्रोटिस्टा

इसमें एककोशिका , यूकैरियोटी जीव आते हैं।

इस वर्ग के कुछ जीवों में गमन के लिए सिलिया , फ़्लैजेला नमक संरचनाएँ पाई जाती हैं।

ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं।

उदाहरणार्थ एककोशिका शैवाल , डाइएटम , प्रोटोजोआ आदि। जीवों में विविधता

फंजाई

ये विषमपोषी यूकैरियोटी जीव है।

ये पोषण के लिए सड़े गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करते हैं , इसलिए इन्हें मृतजीवी कहा जाता है।

इनमें से कई अपने जीवन की विशेष अवस्था में बहुकोशिक क्षमता प्राप्त कर लेते हैं।

फंजाई अथवा कवक में काइटिन नमक जटिल शर्करा की बनी हुई कोशिका भित्ति पाई जाती है। उदाहरणार्थ – यीस्ट, मशरूम।

कवक की कुछ प्रजातियां नील – हरित शैवाल ( साइनोबैक्टीरिया ) के साथ स्थायी अंर्तसंबंध बनाती हैं , जिसे सहजीविता कहते हैं।

ऐसी सहजीवी जीवो को लाइकेन कहा जाता है।

ये लाइकेन अक्सर पेड़ों की छालों पर रंगीन धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। जीवों में विविधता

प्लांटी

इस वर्ग में कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिक यूकैरियोटी जीव आते हैं।

ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश – संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल का प्रयोग करते हैं।

इस वर्ग में सभी पौधों को रखा गया है। जीवों में विविधता

एनिमेलिया

इस वर्ग में ऐसी सभी बहुकोशिक यूकैरियोटिक जीव आते हैं , जिनमें कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है।

इस वर्ग के जीव विषमपोषी होते हैं।

प्लांटी और एनिमेलिया को उनकी क्रमिक शारीरिक जटिलता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। जीवों में विविधता

जीवों में विविधता image

प्लांटी

पौधों में प्रथम स्तर का वर्गीकरण इन तथ्यों पर आधारित है कि पादप शरीर के प्रमुख घटक पूर्णरूपेण विकसित एवं विभेदित है , अथवा नहीं।

वर्गीकरण का स्तर पादप शरीर में जल और अन्य पदार्थों को संवहन करने वाले विशिष्ट उत्तकों की उपस्थिति के आधार पर होता है।

तत्पश्चात वर्गीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत यह देखा जाता है कि पौधों में बीजधरण की क्षमता है अथवा नहीं।

यदि बीजधरण की क्षमता है तो बीज फल के अंदर विकसित होता है ,अथवा नहीं।

पौधों को पांच वर्गों में बाँटा गया है – शैवाल , ब्रायोफाइटा , टेरिडोफाइटा , जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म। जीवों में विविधता

थैलोफाइटा

इन पौधों की शारीरिक संरचना में विभेदीकरण नहीं पाया जाता है।

इस वर्ग के पौधों को समान्यतया शैवाल कहा जाता है।

ये मुख्य रूप से जल में पाए जाते हैं। उदाहरण – यूलोथ्रिक्स , स्पाइरोगाइरा , कारा इत्यादि | जीवों में विविधता

ब्रायोफाइटा

इस वर्ग के पौधों को पादप वर्ग का उभयचर कहा जाता है।

यह पादप , तना और पत्तों जैसी संरचना में विभाजित होता है।

इसमें पादप शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक जल तथा दूसरी चीजों के संवहन के लिए विशिष्ट ऊतक नहीं पाए जाते।

उदाहरणार्थ – मॉस ( फ्यूनरिया ) , मार्केन्शिया। जीवों में विविधता

टेरिडोफाइटा

इस वर्ग के पौधों का शरीर जड़ , तना तथा पत्ती में विभाजित होता है।

इनमें शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक जल तथा अन्य पदार्थों के संवहन के लिए संवहन उत्तक भी पाए जाते हैं।

उदाहरणार्थ – मार्सीलिया , फर्न , हॉर्स – टेल इत्यादि।

थैलोफाइटा , ब्रायोफाइटा और टेरिडोफाइटा में नग्न भ्रूण पाए जाते हैं , जिन्हें बीजाणु कहते हैं।

इन तीन समूह के पौधों में जनन अंग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है। अतः ये क्रिप्टोगैम कहलाते हैं।

वे पौधे जिनमें जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रक्रिया के पश्चात बीज उत्पन्न करते हैं , फैनरोगैम कहलाते हैं।

बीज के अंदर भ्रूण के साथ संचित खाद्य पदार्थ होते हैं , जिसका उपयोग भ्रूण के प्रारंभिक विकास एवं अंकुरण के समय होता है।

बीज की अवस्था के आधार पर इस वर्ग के पौधों को पुनः दो वर्गों में विभक्त किया जाता है।

जिम्नोस्पर्म :- नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे।

एंजियोस्पर्म :- फल के अंदर बीज उत्पन्न करने वाले पौधे। जीवों में विविधता

जिम्नोस्पर्म

यह सब दो ग्रीक शब्दों जिम्नो तथा स्पर्म से मिलकर बना है , जिसमें जिम्नो का अर्थ है नग्न तथा स्पर्म का अर्थ है बीज अर्थात इन्हें नग्नबीजी पौधे भी कहा जाता है।

ये पौधे बहुवर्षीय सदाबहार तथा काष्ठीय होते हैं।

उदाहरणार्थ – पाइनस तथा साइकस। जीवों में विविधता

एंजियोस्पर्म

यह दो ग्रीक शब्दों ‘ एंजियो और स्पर्मा ‘ से मिलकर बना है।

एंजियो का अर्थ है ढका हुआ और स्पर्मा का अर्थ है बीज, अर्थात इन पौधों के बीज फलों के अंदर ढके होते हैं।

इनके बीजों का विकास अंडाशय के अंदर होता है , जो बाद में फल बन जाता है।

इन्हें पुष्पी पादप भी कहा जाता है। इनमें भोजन का संचय या तो बीजपत्रों में होता है या फिर भ्रूणपोष में।

बीजपत्रों की संख्या के आधार पर एंजियोस्पर्म वर्ग को दो भागों में बांटा गया है –

एक बीजपत्र वाले पौधों को एकबीजपत्री और दो बीजपत्र वाले पौधों को द्विबीजपत्री कहा जाता है। जीवों में विविधता

एनिमेलिया

इस वर्ग में यूकैरियोटी , बहुकोशिक और विषमपोषी जीवों को रखा गया है।

इनकी कोशिकाओं में कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती। अधिकतर जंतु चलायमान होते हैं।

शारीरिक संरचना एवं विभेदीकरण के आधार पर इनका आगे वर्गीकरण किया गया है।

जंतुओं को दस फ़ाइलम में बांटा गया है – पोरिफेरा , सिलेंटरेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनिलिडा , आर्थोपोडा , मोलस्का , इकाइनोडर्मेटा , प्रोटोकॉर्डेटा और कॉर्डेटा। जीवों में विविधता

पोरिफेरा

पोरिफेरा का अर्थ – छिद्र युक्त जीवधारी है।

ये अचल जीव है , जो किसी आधार से चिपके रहते हैं।

इनके पूरे शरीर में अनेक छिद्र पाए जाते है।

ये छिद्र शरीर में उपस्थित नाल प्राणी से जुड़े होते हैं , जिसके माध्यम से शरीर में जल , ऑक्सीजन और भोज्य पदार्थों का संचरण होता है।

इनका शरीर कठोर आवरण अथवा बाह्य कंकाल से ढका होता है।

इनकी शारीरिक संरचना अत्यंत सरल होती है , जिनमे ऊतकों का विभेदन नहीं होता है।

इन्हें सामानत: स्पंज के नाम से जाना जाता है , जो बहुधा समुद्री आवास में पाए जाते हैं।

उदाहरणार्थ – साइकान , यूप्लेक्टेला , स्पांजिला इत्यादि। जीवों में विविधता

सिलेंटरेटा

ये जलीय जंतु है। इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है।

इनमें एक देहगुहा पाई जाती है। इनका शरीर कोशिकाओं की दो परतों ( आंतरिक एवं बाह्य परत ) का बना होता है।

इनकी की कुछ जातियां समूह में रहती हैं , ( जैसे कोरल ) और कुछ एकाकी होती हैं ( जैसे हाइड्रा )।

उदाहरणार्थ – हाइड्रा , समुद्री एनिमोन , जेलीफिश इत्यादि। जीवों में विविधता

प्लेटीहेल्मिन्थीज

पोरीफेरा तथा सिलेंटरेटा वर्गों की अपेक्षा इस वर्ग के जंतुओं की शारीरिक संरचना अधिक जटिल होती है।

इनका शरीर द्विपार्श्वसममित होता है अर्थात शरीर के दाएं और बाएं भाग की संरचना समान होती है।

इनका शरीर त्रिकोरक होता है अर्थात इनका ऊतक विभेदन तीन कोशिकीय स्तरों से हुआ है।

इससे शरीर में बाह्य तथा आंतरिक दोनों प्रकार के अस्तर बनते हैं तथा इनमें कुछ अंग भी बनते हैं।

इनमें वास्तविक देहगुहा का अभाव होता है जिसमें सुविकसित अंग व्यवस्थित हो सके।

इनका शरीर पृष्ठधारीय एवं चपटा होता है। इसलिए इन्हें चपटे कृमि भी कहा जाता है।

इनमे प्लेनेरिया जैसे कुछ स्वछंद जंतु तथा लिवरफ्लूक , जैसे परजीवी है। जीवों में विविधता

निमेटोडा

ये त्रिकोरक जंतु होते है तथा इनमें भी द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है , लेकिन इनका शरीर चपटा ना होकर बेलनाकार होता है।

इनके देहगुहा को कूटसीलोम कहते हैं। इनमें ऊतक पाए जाते हैं परंतु अंगतंत्र पूर्ण विकसित नहीं होते हैं।

इनकी शारीरिक संरचना भी त्रिकोरकी होती है। ये अधिकांशत: परजीवी होते हैं।

परजीवी की तौर पर ये दूसरे जंतुओं में रोग उत्पन्न करते हैं। उदाहरणार्थ – गोल कृमि , फाइलेरिया कृमि , पिन कृमि इत्यादि। जीवों में विविधता

एनिलिडा

एनिलिडा जंतु द्विपार्श्व सममिति एवं त्रिकोरिक होते हैं। इनमे वास्तविक देहगुहा भी पाई जाती है।

इससे वास्तविक अंग शारीरिक संरचना में निहित रहते हैं। अतः अंगों में व्यापक भिन्नता होती है।

यह भिन्नता इनके शरीर के सिर से पूँछ तक एक के बाद एक खंडितरूप में उपस्थित होती है।

जलीय एनिलिडा अलवण एवं लवणीय जल दोनों में पाए जाते हैं।

इनमें संवहन , पाचन , उत्सर्जन और तंत्रिका तंत्र पाए जाते हैं।

ये जलीय तथा स्थलीय दोनों होते हैं। उदाहरणार्थ – केंचुआ , नेरीस , जोंक इत्यादि। जीवों में विविधता

आर्थोपोडा

यह जंतु जगत का सबसे बड़ा संघ है इनमें द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है और शरीर खंडयुक्त होता है।

इनमें खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। अतः रुधिर वाहिकाओं में नहीं बहता।

देहगुहा रक्त से भरी होती है। इनमें जुड़े हुए पैर पाए जाते हैं।

उदाहरणार्थ – झींगा , तितली , मक्खी , मकड़ी , बिच्छू, केकड़े इत्यादि। जीवों में विविधता

मोलस्का

इनमे भी द्विपार्श्वसममिति पाई जाती है। इनकी देहगुहा बहुत कम होती है तथा शरीर में थोड़ा विखंडन होता है।

अधिकांश मोलस्क जंतुओं में कवच पाया जाता है।

इनमें खुला संवहनी तंत्र तथा उत्सर्जन के लिए गुर्दे जैसी संरचना पाई जाती है।

उदाहरणार्थ – घोंघा , सीप इत्यादि। जीवों में विविधता

इकाइनोडर्मेटा

ग्रीक में इकाइनास का अर्थ है , जाहक ( हेजहॉग ) तथा डर्मा का अर्थ है , त्वचा।

अतः इन जंतुओं की त्वचा कांटों से आच्छादित होती है। यह मुक्तजीवी समुद्री जंतु है।

ये देहगुहायुक्त त्रिकोरकी जंतु है। इनमें विशिष्ट जल संवहन नाल तंत्र पाया जाता है , जो उनके चालान में सहायक है।

इनमें कैल्शियम कार्बोनेट का कंकाल एवं कांटे पाए जाते हैं।

उदाहरणार्थ – स्टारफिश , समुद्री अर्चिन , इत्यादि। जीवों में विविधता

प्रोटोकॉर्डेटा

ये द्विपार्श्व सममित , त्रिकोरकी एवं देहगुहा युक्त जंतु है।

इसके अतिरिक्त ये शारीरिक संरचनाओं के कुछ नए लक्षण दर्शाते हैं , जैसे कि नोटोकॉर्ड।

ये नए लक्षण इनके जीवन की कुछ अवस्थाओं में निश्चित रूप से उपस्थित होती हैं।

नोटोकॉर्ड छड़ की तरह की एक लंबी संरचना है जो जंतुओं के पृष्ठ भाग में पाई जाती है।

नोटोकॉर्ड तंत्रिका ऊतक को आहार नाल से अलग करती है।

यह पेशियां के जुड़ने का स्थान भी प्रदान करती है जिससे चलन में आसानी हो।

प्रोटोकॉर्डेट जंतुओं में जीवन की सभी अवस्थाओं में नोटोकॉर्ड नहीं उपस्थित रह सकता है।

ये समुद्री जंतु हैं उदाहरणार्थ – बेलेनाग्लोसस , हर्डमेनिया , एम्फियोक्सस इत्यादि। जीवों में विविधता

वर्टिब्रेटा ( कशेरुकी )

इन जंतुओं में वास्तविक मेरुदंड एवं अंत: कंकाल पाया जाता है।

इस कारण जंतुओं में पेशियों का वितरण अलग होता है एवं पेशियाँ कंकाल से जुड़ी होती हैं , जो इन्हें चलने में सहायता करती हैं।

वर्टिब्रेट द्विपार्श्वसममित , त्रिकोरकी , देहगुहा वाले जंतु है। इनमें ऊतकों एवं अंगों का जटिल विभेदन पाया जाता है।

सभी वर्टिब्रेटा जीवो में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं –

( 1 ) नोटोकॉर्ड ( 2 ) त्रिकोरकी शरीर ( 3 ) पृष्ठनलीय कशेरुक दंड एवं मेरुरज्जु ( 4 ) युग्मित क्लोम थैली ( 5 ) देहगुहा

वर्टिब्रेटा को पांच वर्गों में विभाजित किया जाता है – 

( 1 ) मत्स्य

ये मछलियाँ है , जो समुद्र और मीठे जल दोनों जगह में पाई जाती हैं।

इनकी त्वचा शुल्क अथवा प्लेटो से ढकी होती है तथा यह अपनी मांसल पूँछ का प्रयोग तैरने के लिए करती हैं।

इनका शरीर धारारेखीय होता है। इनमें श्वसन क्रिया के लिए क्लोम पाए जाते है , जो जल में विलीन ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

ये असमतापी होते हैं तथा इनका हृदय द्विकक्षीय होता है। ये अंडे देती हैं।

कुछ मछलियों में कंकाल केवल उपास्थि का बना होता है; जैसे – शार्क।

अन्य प्रकार की मछलियों में कंकाल अस्थि का बना होता है; जैसे – ट्यूना , रोहू। जीवों में विविधता

( 2 ) जल – स्थलचर

ये मत्स्यों से भिन्न होते हैं क्योंकि इनमें शल्क नहीं पाए जाते।

इनकी त्वचा में श्लेष्मा ग्रंथियां पाई जाती हैं तथा हृदय त्रिकक्षीय होता है।

इनमें बाह्य कंकाल नहीं होता है। वृक्क पाए जाते हैं।

श्वसन क्लोम अथवा अथवा फेफड़े द्वारा होता है। ये अंडे देने वाले जंतु हैं।

ये जल तथा स्थल दोनों पर रह सकते हैं। उदाहरण – मेंढक , सैलामेंडर , टोड आदि। जीवों में विविधता

( 3 ) सरीसृप

ये असमतापी जंतु है। इनका शरीर शल्कों द्वारा ढाका होता है।

इनमें श्वसन फेफड़े द्वारा होता है। हृदय सामान्यत: त्रिकक्षीय होता है , लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कक्षीय होता है।

वृक्क पाया जाता है। ये भी अंडे देने वाले प्राणी है।

इनके अंडे कठोर कवच से ढके होते हैं तथा जल – स्थलचर की तरह इन्हें जल में अंडे देने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

उदाहरणार्थ – कछुआ , साँप , छिपकली , मगरमच्छ। जीवों में विविधता

( 4 ) पक्षी

ये समतापी प्राणी है। इनका हृदय चार कक्षीय होता है। इनके दो जोड़ी पैर होते हैं।

इनमें आगे वाले दो पैर उड़ने के लिए पंखों में परिवर्तित हो जाते हैं।

शरीर परों से ढका होता है। श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। इस वर्ग में सभी पक्षियों को रखा गया है। जीवों में विविधता

( 5 ) स्तनपायी

ये समतापी प्राणी है। हृदय चार कक्षीय होता है।

इस वर्ग के सभी जंतुओं में नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथियां पाई जाती हैं।

इनकी त्वचा पर बाल , स्वेद और तेल ग्रंथियां पाई जाती हैं।

इस वर्ग के जंतु शिशुओं को जन्म देने वाले होते हैं। हालाँकि , कुछ जंतु अपवाद स्वरूप अंडे भी देते हैं जैसे प्लेटिपस।

कंगारू जैसे कुछ स्तनपायी में अविकसित बच्चे मार्सूपियम नमक थैली में तब तक लटके रहते हैं जब तक कि उनका पूर्ण विकास नहीं हो जाता है। जीवों में विविधता

नामपद्धति

नामपद्धति के लिए हम जिस वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करते हैं , वह सबसे पहले केरोलस लिनियस द्वारा 18वीं शताब्दी में शुरू की गई।

वैज्ञानिक नामपद्धति प्रणाली जीवो की एक-दूसरे में पायी जाने वाली समानता और असमानता पर निर्भर करती है।

हालाँकि नामपद्धति में हम जीव के वर्गीकरण के सभी पदानुक्रम को ध्यान में नहीं रखते हैं , बल्कि केवल जीनस एवं स्पीशीज का ही ध्यान रखा जाता है।

नामपद्धति में पहला नाम जीनस और दूसरा नाम स्पीशीज का होता है।

नामपद्धति के लिए कुछ विशेष बातों पर विचार किया जाता है , जैसे –

1. जीनस का नाम अंग्रेजी के बड़े अक्षर से शुरू होना चाहिए।

2. प्रजाति का नाम छोटे अक्षर से शुरू होना चाहिए।

3. छपे हुए रूप में वैज्ञानिक के नाम इटैलिक से लिखे जाते हैं।

4. जब इन्हें हाथ से लिखा जाता है तो जीनस और स्पीशीज दोनों को अलग-अलग रेखांकित कर दिया जाता। जीवों में विविधता

MCQ

प्रश्न 1. जीवों की विविधता को स्पष्ट करने में सहायक होता है –

उत्तर- वर्गीकरण

प्रश्न 2. किसी जीव के लक्षण से तात्पर्य है –

उत्तर- उस जीव का कोई विशिष्ट रूप या विशिष्ट कार्य

प्रश्न 3. सभी जीवो को कितने जगत में बांटा गया है ?

उत्तर- पांच

प्रश्न 4. जीवो का वर्गीकरण संबंधित है –

उत्तर- उनके विकास से

प्रश्न 5. कोशिकीय संरचना और कार्य वर्गीकरण का है –

उत्तर- आधारभूत लक्षण

प्रश्न 6. केंद्रकयुक्त कोशिकाओं में निर्माण की क्षमता होती है –

उत्तर- बहुकोशीय जीव के

प्रश्न 7. जो कोशिकाएँ एक साथ समूह बनाकर किसी जीव का निर्माण करती हैं , उनमें पाया जाता है –

उत्तर- श्रम – विभाजन

प्रश्न 8. पौधों का शरीर किस के अनुसार विकसित होता है –

उत्तर- भोजन बनाने की क्षमता

प्रश्न 9. जीवों में शरीर की बनावट के दौरान जो लक्षण पहले दिखाई पड़ते हैं , उन्हें जाना जाता है –

उत्तर- मूल लक्षण के रूप में

प्रश्न 10. जैव विकास की अवधारणा को सबसे पहले चार्ल्स डार्विन ने 1859 में अपनी पुस्तक में दिया –

उत्तर- दी ओरिजिन ऑफ स्पीशीज

प्रश्न 11. कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है , इन जीवों को कहते है –

उत्तर- आदम तथा निम्न जीव

प्रश्न 12. कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक पर्याप्त परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं , इन जीवों को कहते हैं –

उत्तर- उन्नत अथवा उच्च जीव

प्रश्न 13. व्हिटेकर द्वारा प्रस्तावित वर्गीकरण में पांच जगत हैं –

उत्तर- मोनेरा , प्रोटिस्टा , फंजाई , प्लांटी और एनिमेलिया

प्रश्न 14. वोस ने अपने वर्गीकरण में मोनेरा जगत को बांट दिया –

उत्तर- आर्कीबैक्टीरिया और यूबैक्टीरिया में

प्रश्न 15. वर्गीकरण की आधारभूत इकाई है –

उत्तर- जाति ( स्पीशीज )

प्रश्न 16. जीवों में ना तो संगठित केंद्रक और कोशिकांग होते हैं और न ही उनके शरीर बहुकोशिक होते हैं –

उत्तर- मोनेरा

प्रश्न 17. मोनेरा पोषण के स्तर पर हो सकते हैं –

उत्तर- स्वपोषी अथवा विषमपोषी दोनों

प्रश्न 18. जीवाणु , नील – हरित शैवाल तथा साइनोबैक्टीरिया , माइकोप्लाज्मा उदाहरण है –

उत्तर- मोनेरा के

प्रश्न 19. प्रोटिस्टा वर्ग के कुछ जीवों में गमन के लिए पाई जाती हैं –

उत्तर- सिलिया , फ़्लैजेला नमक संरचनाएँ

प्रश्न 20. डाइएटम , प्रोटोजोआ किस वर्ग के उदाहरण है –

उत्तर- प्रोटिस्टा

प्रश्न 21. फंजाई वर्ग के जीव पोषण के लिए सड़े गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करते हैं , इसलिए इन्हें कहा जाता है –

उत्तर- मृतजीवी

प्रश्न 22. काइटिन नमक जटिल शर्करा की बनी हुई कोशिका भित्ति पाई जाती है –

उत्तर- फंजाई अथवा कवक में

प्रश्न 23. कवक की कुछ प्रजातियां नील – हरित शैवाल ( साइनोबैक्टीरिया ) के साथ स्थायी अंर्तसंबंध बनाती हैं , जिसे कहते हैं –

उत्तर- सहजीविता

प्रश्न 24. सभी पौधों को किस वर्ग में रखा गया है –

उत्तर- प्लांटी

प्रश्न 25. किस वर्ग में कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिक यूकैरियोटी जीव आते हैं ?

उत्तर- प्लांटी

प्रश्न 26. किस वर्ग में ऐसी सभी बहुकोशिक यूकैरियोटिक जीव आते हैं , जिनमें कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है –

उत्तर- एनिमेलिया

प्रश्न 27. एनिमेलिया वर्ग के जीव होते हैं –

उत्तर- विषमपोषी

प्रश्न 28. थैलोफाइटा वर्ग के पौधों को समान्यतया कहा जाता है –

उत्तर- शैवाल

प्रश्न 29. थैलोफाइटा वर्ग के पौधे मुख्य रूप से पाए जाते हैं –

उत्तर- जल में

प्रश्न 30. यूलोथ्रिक्स , स्पाइरोगाइरा उदाहरण है –

उत्तर- थैलोफाइटा वर्ग के

प्रश्न 31. किस वर्ग के पौधों को पादप वर्ग का उभयचर कहा जाता है ?

उत्तर- ब्रायोफाइटा

प्रश्न 32. ब्रायोफाइटा वर्ग के पौधों में संवहन के लिए नहीं पाए जाते –

उत्तर- विशिष्ट ऊतक

प्रश्न 33. मॉस ( फ्यूनरिया ) , मार्केन्शिया उदाहरण है –

उत्तर- ब्रायोफाइटा वर्ग के

प्रश्न 34. थैलोफाइटा , ब्रायोफाइटा और टेरिडोफाइटा में नग्न भ्रूण पाए जाते हैं , जिन्हें कहते हैं –

उत्तर- बीजाणु

प्रश्न 35. वे पौधे जिनमें जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रक्रिया के पश्चात बीज उत्पन्न करते हैं , कहलाते हैं –

उत्तर- फैनरोगैम

प्रश्न 36. वे पौधे जिनमें जनन अंग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है , कहलाते हैं –

उत्तर- क्रिप्टोगैम

प्रश्न 37. नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे –

उत्तर- जिम्नोस्पर्म

प्रश्न 38. फल के अंदर बीज उत्पन्न करने वाले पौधे –

उत्तर- एंजियोस्पर्म

प्रश्न 39. एक बीजपत्र वाले पौधों को कहा जाता है –

उत्तर- एकबीजपत्री

प्रश्न 40. दो बीजपत्र वाले पौधों को कहा जाता है –

उत्तर- द्विबीजपत्री

प्रश्न 41. एनिमेलिया वर्ग के जीवों की कोशिकाओं में नहीं पाई जाती –

उत्तर- कोशिका भित्ति

प्रश्न 42. जंतुओं को बांटा गया है –

उत्तर- दस फ़ाइलम में

प्रश्न 43. पोरिफेरा का अर्थ –

उत्तर- छिद्र युक्त जीवधारी

प्रश्न 44. पोरिफेरा जीवों को सामानत: नाम से जाना जाता है –

उत्तर- स्पंज के

प्रश्न 45. पोरिफेरा वर्ग के जीवों विभेदन नहीं होता –

उत्तर- ऊतकों का

प्रश्न 46. साइकान , यूप्लेक्टेला , स्पांजिला उदाहरण है –

उत्तर- पोरिफेरा वर्ग के

प्रश्न 47. सिलेंटरेटा जीवो का शारीरिक संगठन होता है –

उत्तर- ऊतकीय स्तर का

प्रश्न 48. हाइड्रा , समुद्री एनिमोन , जेलीफिश उदाहरण है –

उत्तर- सिलेंटरेटा वर्ग के

प्रश्न 49. प्लेटीहेल्मिन्थीज जीवों का शरीर पृष्ठधारीय एवं चपटा होता है। इसलिए इन्हें कहा जाता है –

उत्तर- चपटे कृमि भी

प्रश्न 50. निमेटोडा जीवों का शरीर होता है –

उत्तर- बेलनाकार

प्रश्न 51. निमेटोडा जीवों की देहगुहा को कहते हैं –

उत्तर- कूटसीलोम

प्रश्न 52. गोल कृमि , फाइलेरिया कृमि , पिन कृमि उदाहरण है –

उत्तर- निमेटोडा

प्रश्न 53. केंचुआ , नेरीस , जोंक उदाहरण है –

उत्तर- एनिलिडा वर्ग के

प्रश्न 54. जंतु जगत का सबसे बड़ा संघ है –

उत्तर- आर्थोपोडा

प्रश्न 55. आर्थोपोडा वर्ग के जीवों में परिसंचरण तंत्र पाया जाता है –

उत्तर- खुला

प्रश्न 56. आर्थोपोडा वर्ग के जीवों की देहगुहा भरी होती है –

उत्तर- रक्त से

प्रश्न 57. झींगा , तितली , मक्खी , मकड़ी , बिच्छू उदाहरण है –

उत्तर- आर्थोपोडा वर्ग के

प्रश्न 58. अधिकांश मोलस्क जंतुओं में पाया जाता है –

उत्तर- कवच

प्रश्न 59. खुला संवहनी तंत्र तथा उत्सर्जन के लिए गुर्दे जैसी संरचना पाई जाती है –

उत्तर- मोलस्क जंतुओं में

प्रश्न 60. घोंघा , सीप उदाहरण है –

उत्तर- मोलस्क जंतुओं में

प्रश्न 61. इकाइनोडर्मेटा जंतुओं की त्वचा आच्छादित होती है –

उत्तर- कांटों से

प्रश्न 62. स्टारफिश , समुद्री अर्चिन किस वर्ग के उदाहरण है ?

उत्तर- इकाइनोडर्मेटा

प्रश्न 63. नोटोकॉर्ड तंत्रिका ऊतक को अलग करती है –

उत्तर- आहार नाल से

प्रश्न 64. प्रोटोकॉर्डेट जंतुओं में जीवन की सभी अवस्थाओं में उपस्थित नहीं रह सकता है –

उत्तर- नोटोकॉर्ड

प्रश्न 65. बेलेनाग्लोसस , हर्डमेनिया , एम्फियोक्सस उदाहरण है –

उत्तर- प्रोटोकॉर्डेटा वर्ग के

प्रश्न 66. जंतुओं में वास्तविक मेरुदंड एवं अंत: कंकाल पाया जाता है –

उत्तर- वर्टिब्रेटा ( कशेरुकी )

प्रश्न 67. वर्टिब्रेटा को कितने वर्गों में विभाजित किया जाता है ?

उत्तर- पांच

प्रश्न 68. मछलियों का हृदय होता है –

उत्तर- द्विकक्षीय

प्रश्न 69. जल – स्थलचर जंतुओं की त्वचा में पाई जाती हैं –

उत्तर- श्लेष्मा ग्रंथियां

प्रश्न 70. जल – स्थलचर जंतुओं में हृदय होता है –

उत्तर- त्रिकक्षीय

प्रश्न 71. जल – स्थलचर जंतुओं देते है –

उत्तर- अंडे

प्रश्न 72. मेंढक , सैलामेंडर , टोड उदाहरण है –

उत्तर- जल – स्थलचर जंतुओं के

प्रश्न 73. सरीसृप जंतु होते है –

उत्तर- असमतापी

प्रश्न 74. सरीसृप जंतुओं में श्वसन होता है –

उत्तर- फेफड़े द्वारा

प्रश्न 75. सरीसृप जंतुओं का हृदय सामान्यत: होता है –

उत्तर- त्रिकक्षीय

प्रश्न 76. मगरमच्छ का हृदय होता है –

उत्तर- चार कक्षीय

प्रश्न 77. कछुआ , साँप , छिपकली , मगरमच्छ उदाहरण है –

उत्तर- सरीसृप जंतुओं के

प्रश्न 78. पक्षी होते है –

उत्तर- समतापी प्राणी

प्रश्न 79. पक्षियों का हृदय होता है –

उत्तर- चार कक्षीय

प्रश्न 80. स्तनपायी जंतुओं का हृदय होता है –

उत्तर- चार कक्षीय

प्रश्न 81. स्तनपायी वर्ग के सभी जंतुओं में नवजात के पोषण के लिए पाई जाती हैं –

उत्तर- दुग्ध ग्रंथियां

प्रश्न 82. स्तनपायी वर्ग के जंतु जन्म देने वाले होते हैं –

उत्तर- शिशुओं को

प्रश्न 83. स्तनपायी जंतु जो अंडे देता है –

उत्तर- प्लेटिपस

प्रश्न 84. कंगारू जैसे कुछ स्तनपायी में अविकसित बच्चे तब तक लटके रहते हैं जब तक कि उनका पूर्ण विकास नहीं हो जाता है –

उत्तर- मार्सूपियम नमक थैली में

प्रश्न 85. नामपद्धति के लिए हम जिस वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करते हैं , वह सबसे पहले 18वीं शताब्दी में शुरू की गई –

उत्तर- केरोलस लिनियस द्वारा

प्रश्न 86. नामपद्धति में पहला नाम — और दूसरा नाम — का होता है।

उत्तर- जीनस , स्पीशीज

प्रश्न 87. जीनस का नाम शुरू होना चाहिए –

उत्तर- अंग्रेजी के बड़े अक्षर से

प्रश्न 88. प्रजाति का नाम शुरू होना चाहिए –

उत्तर- अंग्रेजी के छोटे अक्षर से