खाद्य संसाधनों में सुधार
खाद्य संसाधनों में सुधार – सभी जीवधारियों को भोजन की आवश्यकता होती है।
भोजन से हमें प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , वसा , विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते है।
इन सभी तत्वों की आवश्यकता हमारे विकास , वृद्धि तथा स्वास्थ्य के लिए होती है।
पौधें तथा जंतु दोनों ही हमारे भोजन के मुख्य स्रोत है।
अधिकांश भोज्य पदार्थ हमें कृषि तथा पशुपालन से प्राप्त होते है। खाद्य संसाधनों में सुधार
पर्यावरण तथा पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने वाले कारकों को सुरक्षित रखने के लिए कृषि तथा पशुपालन के लिए संपूषणीय प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता है।
खाद्य सुरक्षा उसके उत्पादन तथा उपलब्धता दोनों पर निर्भर है।
ऊर्जा की आवश्यकता के लिए अनाज ; जैसे – गेहूँ , चावल , मक्का , बाजरा तथा ज्वार से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है।
दालें जैसे चना , मटर , उड़द , मूँग , अरहर , मसूर से प्रोटीन प्राप्त होती है।
तेल वाले बीजों ; जैसे – सोयाबीन , मूँगफली , तिल , अरंड , सरसों , अलसी तथा सूरजमुखी से हमे आवश्यक वसा प्राप्त होती है।
सब्जियॉं , मसाले तथा फलों से हमें विटामिन तथा खनिज लवण , कुछ मात्रा में प्रोटीन , वसा तथा कार्बोहाइड्रेट भी प्राप्त होता है।
पौधों में पुष्पन तथा वृद्धि सूर्य – प्रकाश पर निर्भर करती है। खाद्य संसाधनों में सुधार
वे फसलें जिन्हें वर्षा ऋतु में उगाया जाता है , खरीफ फसल कहलाती है , जो जून से आरंभ होकर अक्तूबर मास तक होती है।
कुछ फसलें शीत ऋतु में उगायी जाती है , जो नवंबर से अप्रैल मास तक होती है। इन फसलों को रबी फसल कहते है।
धान , सोयाबीन , अरहर , मक्का , मूँग तथा उड़द खरीफ की फसलें है।
गेहूँ , चना , मटर , सरसों तथा अलसी रबी की फसलें है।
फसल उत्पादन में सुधार की प्रक्रिया में प्रयुक्त में प्रयुक्त गतिविधियों को निम्न प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है :-
1. फसल की किस्मों में सुधार
2. फसल – उत्पादन प्रबंधन
3. फसल सुरक्षा प्रबंधन खाद्य संसाधनों में सुधार
फसल की किस्मों में ऐच्छिक गुणों को संकरण द्वारा डाला जा सकता है।
संकरण विधि में विभिन्न आनुवंशिक गुणों वाले पौधों में संकरण करवाते हैं।
यह संकरण अंतराकिस्मीय ( विभिन्न किस्मों में ) , अंतरास्पीशीज़ ( एक ही जीन्स की दो विभिन्न स्पीशीजों में ) अथवा अंतरावंशीय ( विभिन्न जेनरा में ) हो सकता है।
फसल सुधार की दूसरी विधि है ऐच्छिक गुणों वाले जीन का डालना। इसके परिणामस्वरूप आनुवंशिकीय रूपांतरित फसल प्राप्त होती है।
फसल की किस्मों में सुधार के लिए कुछ कारक है :- उच्च उत्पादन , उन्नत किस्में , जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधकता , परिपक्वन काल में परिवर्तन , व्यापक अनुकूलता , ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण। खाद्य संसाधनों में सुधार
फसल के लिए 16 पोषक आवश्यक है। हवा से कार्बन तथा ऑक्सीजन , पानी से हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन एवं मिट्टी से शेष 13 पोषक प्राप्त होते हैं। इन 13 पोषकों में से 6 पोषकों की मात्रा अधिक चाहिए इसलिए इन्हें वृहत – पोषक कहते हैं। शेष 7 पोषक कम मात्रा में चाहिए , जिन्हें सूक्ष्म – पोषक कहते हैं।
फसल के लिए पोषकों के मुख्य स्रोत खाद तथा उर्वरक है।
खाद में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है तथा यह मिट्टी को अल्प मात्रा में पोषक प्रदान करते है।
खाद को जंतुओं के अपशिष्ट तथा पौधों के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है।
खाद मिट्टी को पोषकों तथा कार्बनिक पदार्थों से परिपूर्ण करती है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है।
खाद में कार्बनिक पदार्थों की अधिक मात्रा मिट्टी की संरचना में सुधार करती है। खाद्य संसाधनों में सुधार
खाद बनाने की प्रक्रिया में विभिन्न जैव पदार्थ के उपयोगों के आधार पर खाद को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है :- कंपोस्ट तथा वर्मी – कंपोस्ट , हरी खाद।
कार्बनिक कृषि प्रणालियों में उर्वरकों, पीड़कनाशकों तथा शाकनाशकों का निम्नतम या बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है।
इन प्रणालियों में स्वस्थ्य फसल तंत्र के साथ कार्बनिक खादो , पुनर्चक्रित अपशिष्टों तथा जैव – कारकों का अधिकतम उपयोग होता है।
एक विशेष फार्म में फसल उत्पादन तथा पशुपालन आदि में बढ़ावा देने वाली खेती को मिश्रित खेती तंत्र कहते हैं।
मिश्रित फसल में दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक ही खेत में एक साथ उगते हैं। खाद्य संसाधनों में सुधार
दो अथवा दो से अधिक फसलों को निश्चित कतार पैटर्न में उगने को अंतराफसलीकरण कहते हैं।
एक ही खेत में विभिन्न फसलों को पूर्व नियोजित अनुक्रम में उगाएँ तो उसे फसल चक्र कहते हैं।
पौधों में रोग बैक्टीरिया , कवक तथा वाइरस जैसे रोग कारकों द्वारा होता है।
पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते है। इसके अंतर्गत बहुत – से कार्य ; जैसे – भोजन देना , प्रजनन तथा रोगों पर नियंत्रण करना आता है।
पशुपालन के दो उद्देश्य है : दूध देने वाले तथा कृषि कार्य ( हल चलाना, सिंचाई तथा बोझा ढोने ) के लिए पशुओं को पालना।
भारतीय पालतू पशुओं की दो मुख्य स्पीशीज है : गाय ( बॉस इंडिकस ) , भैंस ( बॉस बुवेलिस )।
दूध देने वाली मादाओं को दुधारू पशु कहते है। खाद्य संसाधनों में सुधार
उच्च उत्पादन , अच्छी गुणवत्ता जैविक अजैविक कारकों के प्रति प्रतिरोधकता , अल्प परिपक्वन काल तथा बदलती परिस्थितियों के लिए अनुकूल तथा ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण के लिए नस्ल सुधार की आवश्यकता है।
फार्म पशुओं के लिए उचित देखभाल तथा प्रबंधन जैसे की आवास , आहार , जनन तथा रोगों पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इसे पशुपालन कहते हैं।
कुक्कुट पालन घरेलू मुर्गियों की संख्या को बढ़ाने के लिए करते हैं।
कुक्कुट पालन के अंतर्गत अंडों का उत्पादन तथा मुर्गों के मांस के लिए ब्रौलर उत्पादन है।
कुक्कुट पालन में उत्पादन को बढ़ाने तथा उन्नत किस्म की नस्लों के लिए भारतीय ( देशी ) तथा बाह्य नस्लों में संकरण कराते हैं।
ब्रौलर की आवास , पोषण तथा पर्यावरणीय आवश्यकताएँ अंडे देने वाले कुक्कुटों से कुछ भिन्न होती है।
ब्रौलर के आहार में प्रोटीन तथा वसा प्रचुर मात्रा में होता है। खाद्य संसाधनों में सुधार
कुक्कुट आहार में विटामिन A तथा विटामिन K की मात्रा भी अधिक रखी जाती है।
हमारे भोजन में मछली प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है।
मछली प्राप्त करने की दो विधियाँ है : एक प्राकृतिक स्रोत ( जिसे मछली पकड़ना कहते है ) तथा दूसरा स्रोत मछली पालन ( या मछली संवर्धन )।
मछलियों के जल स्रोत समुद्री जल तथा ताजा जल ( अलवणीय जल ) है।
समुद्र तथा अंत: स्थली स्रोतों से मछलियां प्राप्त कर सकते हैं।
मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए उनका संवर्धन समुद्र तथा अंत: स्थली पारिस्थितिक प्रणालियों में कर सकते हैं।
समुद्री मछलियों को पकड़ने के लिए प्रतिध्वनि ध्वनित्र तथा उपग्रह द्वारा निर्देशित मछली पकड़ने के जाल का प्रयोग करते हैं।
मिश्रित मछली संवर्धन तंत्र प्रायः मत्स्य पालन के लिए अपनाते हैं। खाद्य संसाधनों में सुधार
मधुमक्खी पालन मधु तथा मोम को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
व्यावसायिक स्तर पर मधु उत्पादन के लिए देशी किस्म की मक्खी ऐपिस सेरना इंडिका , ( सामान्य भारतीय मधुमक्खी ) , ऐपिस डोरसेट ( एक शैल मधुमक्खी ) तथा ऐपिस फ्लोरी ( लिटिल मधुमक्खी ) का प्रयोग करते है।
इटली की मधुमक्खी में मधु एकत्र करने की क्षमता बहुत अधिक होती है। वे डंक भी कम मारती हैं।
वे निर्धारित छत्ते में काफी समय तक रहती है और प्रजनन तीव्रता से करती है।
मधु की कीमत अथवा गुणवत्ता मधुमक्खियों के चरागाह अर्थात उनके मधु एकत्र करने के लिए उपलब्ध फूलों पर निर्भर करती है।
चरागाह की पर्याप्त उपलब्धता के अतिरिक्त फूलों की किस्में मधु के स्वाद को निर्धारित करती है। खाद्य संसाधनों में सुधार
MCQ
प्रश्न 1. पौधों में पुष्पन तथा वृद्धि निर्भर करती है –
उत्तर- सूर्य – प्रकाश पर
प्रश्न 2. वे फसलें जिन्हें वर्षा ऋतु में उगाया जाता है , कहलाती है –
उत्तर- खरीफ फसल
प्रश्न 3. कुछ फसलें शीत ऋतु में उगायी जाती है , जो नवंबर से अप्रैल मास तक होती है। इन फसलों को कहते है –
उत्तर- रबी फसल
प्रश्न 4. धान , सोयाबीन , अरहर , मक्का , मूँग तथा उड़द फसलें है –
उत्तर- खरीफ की
प्रश्न 5. गेहूँ , चना , मटर , सरसों तथा अलसी फसलें है –
उत्तर- रबी की
प्रश्न 6. फसल की किस्मों में ऐच्छिक गुणों को डाला जा सकता है –
उत्तर- संकरण द्वारा
प्रश्न 7. फसल के लिए पोषकों के मुख्य स्रोत है –
उत्तर- खाद तथा उर्वरक
प्रश्न 8. कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है –
उत्तर- खाद में
प्रश्न 9. खाद में कार्बनिक पदार्थों की अधिक मात्रा सुधार करती है –
उत्तर- मिट्टी की संरचना में
प्रश्न 10. कृषि प्रणालियों में उर्वरकों, पीड़कनाशकों तथा शाकनाशकों का निम्नतम या बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है –
उत्तर- कार्बनिक
प्रश्न 11. एक विशेष फार्म में फसल उत्पादन तथा पशुपालन आदि में बढ़ावा देने वाली खेती को कहते हैं –
उत्तर- मिश्रित खेती तंत्र
प्रश्न 12. दो अथवा दो से अधिक फसलों को निश्चित कतार पैटर्न में उगने को कहते हैं –
उत्तर- अंतराफसलीकरण
प्रश्न 13. दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक ही खेत में एक साथ उगते हैं –
उत्तर- मिश्रित फसल में
प्रश्न 14. एक ही खेत में विभिन्न फसलों को पूर्व नियोजित अनुक्रम में उगाएँ तो उसे कहते हैं –
उत्तर- फसल चक्र
प्रश्न 15. पशुधन के प्रबंधन को कहते है –
उत्तर- पशुपालन
प्रश्न 16. कुक्कुट पालन में उत्पादन को बढ़ाने तथा उन्नत किस्म की नस्लों के लिए भारतीय ( देशी ) तथा बाह्य नस्लों में कराते हैं –
उत्तर- संकरण
प्रश्न 17. मिश्रित मछली संवर्धन तंत्र प्रायः अपनाते हैं –
उत्तर- मत्स्य पालन के लिए
प्रश्न 18. मधुमक्खी पालन प्राप्त करने के लिए किया जाता है –
उत्तर- मधु तथा मोम को
प्रश्न 19. चरागाह की पर्याप्त उपलब्धता के अतिरिक्त फूलों की किस्में निर्धारित करती है –
उत्तर- मधु के स्वाद को