प्रस्तर – युग : आदिम मानव

प्रस्तर - युग : आदिम मानव

प्रस्तर – युग आदिम मानव – पृथ्वी लगभग 400 करोड़ वर्ष पुरानी है इसकी परत के विकास में चार अवस्थाएं प्रकट होती हैं।

पृथ्वी के विकास की चौथी अवस्था चातुर्थिकी ( क्वाटर्नरी ) कहलाती हैं , जिसके दो भाग हैं , अतिनूतन ( प्लाइस्टोसीन ) और अद्यतन ( होलोसीन )।

अतिनूतन का काल अद्यतन से पूर्व 20 लाख और 10,000 वर्ष के बीच था। अद्यतन आज से लगभग 10,000 वर्ष पहले शुरू हुआ।

मानव धरती पर प्लाइस्टोसीन के आरंभ में पैदा हुआ। इसी समय असली गाय , असली हाथी और असली घोड़ा भी उत्पन्न हुए। परंतु , यह घटना संभवत: अफ्रीका में लगभग 30 लाख वर्ष पूर्व घाटी होगी।

आदि मानव के जीवाश्म ( फॉसिल ) भारत में नहीं मिले हैं। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

मानव के प्राचीनतम अस्तित्व का संकेत द्वितीय हिमावर्तन ( ग्लेसिएशन ) काल के मिले पत्थर के औजारों से मिलता है। जिसका काल लगभग ढाई लाख ईसा पूर्व रखा जा सकता है।

हाल में महाराष्ट्र के बोरी नमक स्थान से जिन तथ्यों की रिपोर्ट मिली है उनके अनुसार मानव की उपस्थिति और भी पहले लगभग 14 लाख वर्ष पूर्व रखी जाती है।

ऐसा प्रतीत होता है कि अफ्रीका की अपेक्षा भारत में मानव बाद में बसे , हालांकि इस उपमहाद्वीप का पाषाण कौशल मोटे तौर पर उसी तरह विकसित हुआ है जिस तरह अफ्रीका में।

भारत में आदिम मानव पत्थर के अनगढ़ और अपरिष्कृत औजारों का इस्तेमाल करते थे। ऐसे औजार सिंधु , गंगा और यमुना के कछारी मैदानों को छोड़ सारे देश में पाए गए हैं। वे तराशे हुए पत्थर के औजारों और फोड़ी हई गिट्टियों से शिकार करते , पेड़ काटते और अन्य कार्य भी करते थे।

पुरापाषाण काल में आदिम – मानव अपना खाद्य मुश्किल से ही बटोर पाता था और शिकार से जीता था। वह खेती करना और घर बनाना नहीं जानता था। यह अवस्था सामान्यतः 9000 ईसा पूर्व तक बनी रही।

पुरापाषाण काल के औजार छोटानागपुर के पठार में मिले हैं जो 100000 ईसा पूर्व के हो सकते हैं। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

ऐसे औजार , जिनका समय 20 ,000 ईसा पूर्व और 10,000 ईसा पूर्व के बीच है , आंध्र प्रदेश के कुर्नूल शहर से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर मिले हैं। इनके साथ हड्डी के उपकरण और पशुओं के अवशेष भी मिले हैं।

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की बेलन घाटी में जो पशुओं के अवशेष मिले हैं उनसे ज्ञात होता है की बकरी – भेड़ , गाय – भैंस आदि मवेशी पाले जाते थे।

फिर भी पुरापाषाण काल की आदिम अवस्था का मानव शिकार और खाद्य – संग्रह पर जीता था।

पुराणों में केवल फल और कंद-मूल खाकर जीने वाले लोगों की चर्चा है।

भारत की पुरापाषाण युगीन सभ्यता का विकास प्लाइस्टोसीन समय ( हिम – युग ) में हुआ।

यद्यपि पत्थर के औजारों के साथ मानव अवशेष जो अफ्रीका में मिले हैं वे 26 लाख वर्ष पुराने माने जाते हैं , तथापि भारत में पत्थर के औजारों से स्पष्टत: लक्षित मानव की प्रथम उपस्थित मध्य – प्लाइस्टोसीन या पाँच लाख वर्ष से पूर्व की नहीं ठहरती है। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

पुरापाषाण युग की अवस्थाएं

मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के औजारों के स्वरूप और जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर भारतीय पुरापाषाण युग को तीन अवस्थाओं में बांटा जाता है –

1. आरंभिक या निम्न पुरापाषाण युग – 5 लाख ईसा पूर्व से 50,000 ईसा पूर्व के बीच

2. मध्य – पुरापाषाण युग – 50,000 ईसा पूर्व से 40,000 ईसा पूर्व के बीच

3. उच्च – पुरापाषाण युग – 40,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व के बीच

40,000 ईसा पूर्व और 1,500 ईसा पूर्व के औजार जो मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के हैं भारत के दक्कन पठार से प्राप्त होते हैं।

अधिकांश आरंभिक पुरापाषाण युग हिम – युग से गुजरा है। जिसका लक्षण है हस्त-कुठार ( कुल्हाड़ी या हैंड – एक्स ), विदारणी ( क्लीवर ) और खंडक का उपयोग।

भारत में पाई गई कुल्हाड़ी काफी हद तक वैसी ही है जैसी पश्चिम एशिया , यूरोप और अफ्रीका में मिली है। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

निम्न पुरापाषाण युग के स्थल पाकिस्तान के पंजाब की सोअन या सोहन नदी – घाटी में पाए जाते हैं। इसके अलावा ,बहुत के स्थल कश्मीर और थार मरुभूमि में मिले हैं।

निम्न पुरापाषाण कालीन औजार उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के बेलन – घाटी में भी पाए गए हैं। जो औजार राजस्थान की मरुभूमि के डीडवाना क्षेत्र में , नर्मदा की घाटियों में तथा मध्य प्रदेश में भोपाल के पास भीमबेटका की गुफाओं और शैलाश्रयों ( चट्टानों से बने आश्रयों ) में भी ऐसे औजार मिले हैं। उपर्युक्त सभी 100000 ईसा पूर्व के हैं।

हस्त – कुठार द्वितीय हिमालयीय अन्तर्हिमावर्तन ( इंरग्लेसिएशन ) के समय के जमाव में मिले है। इस अवधि में जलवायु में नमी कम हो गयी थी।

मध्य – पुरापाषाण युग में उद्योग मुख्यतः पत्थर की पपड़ी से बनी वस्तुओं का था। मुख्य औजार हैं पपड़ियों के बने विविध प्रकार के फलक , वेधनी , छेदनी और खुरचनी।

मध्य – पुरापाषाण स्थल जिस क्षेत्र में मिलते हैं मोटे तौर पर उसी क्षेत्र में आरंभिक पुरापाषाण स्थल भी पाए जाते है। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

मध्य – पुरापाषाण युग का शिल्प – कौशल नर्मदा नदी के किनारे – किनारे कई स्थानों पर और तुंगभद्र नदी के दक्षिणावर्ती कई स्थानों पर भी पाया जाता है।

ऊपरी पुरपाषणीय अवस्था में आर्द्रता कम थी। इस अवस्था में विस्तार हिम – युग की उस अंतिम अवस्था के साथ रहा जब जलवायु अपेक्षाकृत गर्म हो गई थी।

उच्च पुरापाषाण युग की विश्वव्यापी संदर्भ में दो विशेषताएं हैं – नए चमक उद्योग की स्थापना और आधुनिक मानव – होमोसेपिएंस का उदय।

भारत में फलकों और तक्षणियों का इस्तेमाल आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , महाराष्ट्र , केंद्रीय मध्य प्रदेश , दक्षिणी उत्तर प्रदेश , बिहार के पठार और उसके इर्द-गिर्द पाया गया है।

देश के अनेक पहाड़ी ढलनों और नदी घाटियों में पुरापाषाणीय स्थल पाए जाते हैं किंतु सिंधु और गंगा के कछारी मैदानों में इनका पता नहीं है। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

मध्यपाषाण ( मिसोलिथिक ) युग : आखेटक और पशुपालक

प्रस्तर – युगीन संस्कृति में 9,000 ईसा पूर्व में एक मध्यवर्ती अवस्था आई जो मध्य पाषाण युग कहलाती है। यह पुरापाषाण युग और नवपाषाण युग के बीच का संक्रमणकाल है।

मध्यपाषाण काल के लोग शिकार करके , मछली पकड़कर और खाद्य वस्तुएं बटोर कर पेट भरते थे। आगे चलकर वे पशुपालन भी करने लगे। इनमें शुरू के तीन पेशे तो पुरापाषाण युग से ही चले आ रहे थे , जबकि अंतिम पेशा नवपाषाण संस्कृति से जुड़ा है।

मध्यपाषाण युग के विशिष्ट औजार हैं सूक्ष्म – पाषाण तथा पत्थर के बहुत छोटे औजार ( माइक्रोलिथ्स )।

मध्य पाषाण स्थल पाए गए हैं – राजस्थान , दक्षिणी उत्तर प्रदेश , केंद्रीय और पूर्वी भारत , कृष्णा नदी का दक्षिणी भाग आदि। इनमें राजस्थान के ‘ बागोर ‘ स्थल का उत्खनन भली-भांति हुआ है। यहां सुस्पष्ट सूक्ष्म – पाषाण उद्योग था और यहां के निवासियों की जीविका शिकार और पशुपालन थी।

मध्य प्रदेश में ‘ आदमगढ़ ‘ और राजस्थान में ‘ बागोर ‘ पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं , जिसका समय लगभग 5,000 ईसा पूर्व हो सकता है।

राजस्थान के सांभर क्षेत्र के जमावों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि 7,000 – 6,000 ईसा पूर्व के आसपास पौधे लगाए जाते थे।

मध्यपाषाण संस्कृति का महत्व मोटे तौर पर 9,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक बना रहा। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

प्रागैतिहासिक कलाकृतियां

पुरापाषाण और मध्य पाषाण युग के लोग चित्र बनाते थे।

मध्य प्रदेश के भोपाल से 45 किलोमीटर दक्षिण में विंध्य पर्वत पर 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले ‘ भीमबेटका ‘ में 500 से अधिक चित्रित गुफाएँ है। इन गुफाओं के चित्र पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल तक के बने हुए हैं और कुछ श्रृंखलाओं में तो हाल के समय तक के हैं। इनमें बहुत सारे पशु , पक्षी और मानव चित्रित हैं।

मिर्जापुर जिले में स्थित बेलन घाटी में विंध्य पर्वत के उत्तरी छोर पर पुरापाषाण काल की तीनों अवस्थाएं एक के बाद एक पाई जाती हैं। इसके बाद लगातार मध्य पाषाणकालिक और तब नवपाषाणकालिक अवस्थाएं पाई जाती है। नर्मदा घाटी में मध्य भाग से इसी तरह क्रमानुसार स्थल मिले हैं। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

नवपाषाण ( नियोलिथिक) युग : खाद्य – उत्पादक

विश्व के संदर्भ में नवपाषाण युग का आरंभ 9000 ईसा पूर्व है।

भारतीय उपमहाद्वीप में नवपाषाण युग की बस्ती पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अवस्थित मेहरगढ़ में मिली है जिसका समय 7000 ईसा पूर्व बताया जाता है।

आरंभ में , 5,000 ईसा पूर्व से पहले , मेहरगढ़ के लोग मृदभांड का प्रयोग नहीं करते थे।

विंध्य पर्वत के उत्तरी पृष्ठों पर पाए गए कुछ नवपाषाण स्थलों को 5,000 ईसा पूर्व तक पुराना बताया जाता है।

दक्षिण भारत में पाई गई नवपाषाण बस्तियां 2,500 ईसा पूर्व से अधिक पुरानी नहीं है , भारत के कुछ दक्षिणी और पूर्वी भागों में ऐसे स्थल महज 1,000 ईसा पूर्व के हैं।

इस युग के लोग पॉलिशदार पत्थर के औजारों और हथियारों का प्रयोग करते थे। वे ज्यादातर पत्थर की कुल्हाड़ियों का इस्तेमाल किया करते थे। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

नवपाषाण युग के निवासियों द्वारा व्यवहृत कुल्हाड़ियों के आधार पर हम उनकी बस्तियों के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र देखते हैं – उत्तर – पश्चिमी , उत्तर – पूर्वी और दक्षिणी।

उत्तर – पश्चिमी समूह के नवपाषाण औजारों में वक्र धार की आयताकार कुल्हाड़ियाँ हैं।

उत्तर – पूर्वी समूह की कुल्हाड़ियाँ पॉलिशदार पत्थर की होती थी जिनमें आयताकार दस्त लगा रहता था और कभी-कभी स्कंधीय हो भी लगे होते थे।

दक्षिण समूह की कुल्हाड़ियों का आकार अंडाकार तथा हत्या नुकीला रहता था।

उत्तर – पश्चिम में , कश्मीरी नवपाषाण संस्कृति की कई विशेषताएं हैं जैसे गड्ढा घर ( गर्तावास ), मृदभांड की विविधता , पत्थर और हड्डी के औजारों का प्रकार और सूक्ष्म – पाषाण का पूरा अभाव। इसका एक महत्वपूर्ण स्थल है बुर्जहोम , जिसका अर्थ है भूर्ज वृक्ष का स्थान। यहां नवपाषाण लोग एक झील के किनारे ‘ गर्तावासों ‘ में रहते थे और शिकार तथा मछली पर जीते थे। लगता है वे लोग खेती से परिचित थे। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

कश्मीर का एक अन्य नवपाषाण स्थल है गुफकराल , जिसका शाब्दिक अर्थ है कुलाल अर्थात कुम्हार की गुफा। यहां के लोग कृषि और पशुपालन दोनों धंधे करते थे।

कश्मीर में नवपाषाण युगीन लोग न केवल पत्थर के पालिशदार औजारों का प्रयोग करते थे , अपितु वे हड्डी के बहुत सारे औजारों और हथियारों का भी प्रयोग करते थे।

भारत में दूसरा ऐसा स्थल जहां प्रचुर मात्रा में हड्डी के उपकरण मिले हैं – चिरांद है जो बिहार के छपरा जिले में है। ये उपकरण हिरण के सींगों के हैं।

बुर्जाहोम के लोग रुखड़े , धूसर मृदभांडों का प्रयोग करते थे। यहां कब्रों में पालतू कुत्ते भी अपने मालिकों के शवों के साथ दफनाए जाते थे। यह प्रथम भारत के अन्य किसी भी भाग में नवपाषाण युगीन लोगों में शायद नहीं थी।

बुर्जाहोम के बारे में प्राचीनतम तिथि 2,700 ईसा पूर्व है किंतु चिरांद में मिली हड्डियों की तिथि 2,000 ईसा पूर्व से पहले नहीं रखी जा सकती। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

प्रस्तर - युग आदिम मानव image

नवपाषाण युग के लोगों का दूसरा समूह दक्षिण – भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में रहता था। वे लोग पत्थर की कुल्हाड़ियों और कई तरह के प्रस्तर – फलकों का प्रयोग करते थे।

ये से मिली पकी मिट्टी की मूर्तिकाओं से प्रकट होता है कि वे बहुत से जानवर पालते थे। उनके पास गाय – बैल , भेड़ और बकरी होती थी। वे सिलबट्टे का प्रयोग करते थे जिससे प्रकट होता है कि वे अनाज पैदा करना जानते थे।

तीसरा क्षेत्र जहां से नवपाषाण युग के औजार मिले हैं वह है असम की पहाड़ियां। ऐसे औजार मेघालय की गारो पहाड़ियों में भी पाए गए हैं।

विंध्य के उत्तरी प्रदेशों , मिर्जापुर और इलाहाबाद जिलों मे भी कई नवपाषाण स्थल प्राप्त हुए है।

इलाहाबाद जिले के नवपाषाण स्थलों की विशेषता है कि यहां ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भी चावल का उत्पादन होता था।

कई नवपाषाण स्थलों या नवपाषाण परतों वाले स्थलों का उत्खनन हुआ है उनमे प्रमुख है , कर्नाटक में मास्की , ब्रह्मगिरी , हल्लुर , कोडक्कल , पिकलीहल , संगेनकुल्लु , टी नरसीपुर और तैक्कलककोट, तमिलनाडु मे पैयमपल्ली और आंध्र प्रदेश में उतनूर। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

दक्षिण भारत में नवपाषाण अवस्था संभवत: 2000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक जारी रही।

कर्नाटक के पिकलीहल के नवपाषाण युगीन निवासी पशुपालक थे और गाय , बैल , बकरी , भेड़ आदि पालते थे। वे खंभे और खूँटे गाड़कर मवेशी के बाड़े बनाते और उनके बीच में मौसमी शिविरों में रहते थे।

पिकलीहल में राख के ढेर और निवास – स्थल दोनों मिले हैं।

नवपाषाण युग के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय थे। वे पत्थर की कुदालों और खोदने के डंडों से जमीन की खुदाई करते थे।

नवपाषाणी पत्थर के पॉलिशदार औजारों के अलावा सूक्ष्म पाषाण – फलकों का भी प्रयोग करते थे।

नवपाषाणी लोग मिट्टी और सरकंडे के बने गोलाकार या आयताकार घरों में रहते थे। गोलाकार घरों में रहने वालों की संपत्ति पर सामूहिक अधिकार होता था। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

नवपाषाण युगीन लोग ने निश्चित रूप से स्थाई घर बनाकर रहना शुरू कर दिए थे। ये लोग रागी और कुल्थी पैदा करते थे।

मेहरगढ़ में बसने वाले नवपाषाण युग के लोग अधिक उन्नत थे। वे गेहूँ , जौ और रुई उपजाते थे तथा कच्ची ईंटों के घरों में रहते थे।

कुंभकारी सबसे पहले नवपाषाण अवस्था में दिखाई देती है। आरंभ में हाथ से बनाए गए बर्तन मिलते है। बाद मे बर्तन चाक पर बनने लगे। इन बर्तनों में शामिल है – पॉलिशदार काला मृदभांड , धूसर मृदभांड और चटाई की छाप वाले मृदभांड।

नवपाषाण युग के सेल्ट , कुल्हाड़ियाँ , बसूले , छेनी आदि औजार उड़ीसा और छोटा नागपुर के पहाड़ी इलाकों में भी पाए गए हैं।

9000 ईसा पूर्व और 3000 ईसा पूर्व के बीच की अवधि में पश्चिम एशिया में भारी तकनीकी प्रगति हुई , क्योंकि इसी अवधि में लोगों ने खेती, बुनाई , कुंभकारी , भवन – निर्माण , पशुपालन और लेखन कौशल को विकसित किया।

भारतीय उपमहाद्वीप में नवपाषाण युग ईसा – पूर्व छठी सहस्त्राब्दी के आस – पास शुरू हुआ। चावल , गेहूँ , जौ आदि सहित कई महत्वपूर्ण फसलें इस उपमहाद्वीप में इसी अवधि में उपजाई जाने लगी और संसार के इस भाग में कई गांव भी बसे।

प्रस्तर युग के लोगों पूर्णत: पत्थर के ही औजारों और हथियारों पर आश्रित थे , इसलिए वे पहाड़ी इलाकों से दूर जाकर बस्तियां नहीं बना सके। ये लोग उतना ही अनाज पैदा करते थे जितने से किसी तरह अपना जीवन बसर कर सके। प्रस्तर – युग  आदिम मानव

MCQ

प्रश्न 1 – पृथ्वी लगभग कितने वर्ष पुरानी मानी जाती है?

उत्तर – लगभग 400 करोड़

प्रश्न 2 – पृथ्वी के विकास की चौथी अवस्था कहलाती हैं –

उत्तर – चातुर्थिकी ( क्वाटर्नरी )

प्रश्न 3 – पृथ्वी के विकास की चौथी अवस्था चातुर्थिकी ( क्वाटर्नरी ) के दो भाग हैं –

उत्तर – अतिनूतन ( प्लाइस्टोसीन ) और अद्यतन ( होलोसीन )

प्रश्न 4 – मानव धरती पर किस काल में पैदा हुआ ?

उत्तर – प्लाइस्टोसीन

प्रश्न 5 – भारत की पुरापाषाण युगीन सभ्यता का विकास हुआ –

उत्तर – प्लाइस्टोसीन समय ( हिम – युग ) में

प्रश्न 6 – निम्न पुरापाषाणकाल की अवधि मोटे तौर पर मानी जाती है –

उत्तर – 5 लाख ईसा पूर्व से 50,000 ईसा पूर्व के बीच

प्रश्न 7 – मध्य – पुरापाषाण काल की अवधि मानी जाती है –

उत्तर – 50,000 ईसा पूर्व से 40,000 ईसा पूर्व के बीच

प्रश्न 8 – उच्च – पुरापाषाण युग की अवधि मानी जाती है –

उत्तर – 40,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व के बीच

प्रश्न 9 – किस युग में उद्योग मुख्यतः पत्थर की पपड़ी से बनी वस्तुओं का था ?

उत्तर – मध्य – पुरापाषाण

प्रश्न 10 – उच्च पुरापाषाण युग की विश्वव्यापी संदर्भ में दो विशेषताएं हैं –

उत्तर – नए चमक उद्योग की स्थापना और आधुनिक मानव – होमोसेपिएंस का उदय

प्रश्न 11 – प्रस्तर – युगीन संस्कृति में 9,000 ईसा पूर्व में एक मध्यवर्ती अवस्था आई जो कहलाती है –

उत्तर – मध्य पाषाण युग

प्रश्न 12 – किस युग के विशिष्ट औजार सूक्ष्म – पाषाण तथा पत्थर के बहुत छोटे औजार ( माइक्रोलिथ्स ) हैं ?

उत्तर – मध्यपाषाण

प्रश्न 13 – मध्यपाषाण संस्कृति का महत्व मोटे तौर पर बना रहा –

उत्तर – 9,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक

प्रश्न 14 – ‘ भीमबेटका ‘ किस राज्य मे स्थित है ?

उत्तर – मध्य प्रदेश

प्रश्न 15 – विश्व के संदर्भ में नवपाषाण युग का आरंभ है –

उत्तर – 9000 ईसा पूर्व

प्रश्न 16 – पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अवस्थित मेहरगढ़ नामक स्थल का संबंध है –

उत्तर – नवपाषाण युग

प्रश्न 17 – नवपाषाण युग के निवासियों द्वारा व्यवहृत कुल्हाड़ियों के आधार पर हम उनकी बस्तियों के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र देखते हैं –

उत्तर -> उत्तर – पश्चिमी , उत्तर – पूर्वी और दक्षिणी

प्रश्न 18 – नवपाषाण के किस समहू के औजारों में वक्र धार की आयताकार कुल्हाड़ियाँ होती थी ?
उत्तर – > उत्तर – पश्चिमी समूह के

प्रश्न 19 – नवपाषाण काल में किस समूह की कुल्हाड़ियाँ पॉलिशदार पत्थर की बनी होती थी जिनमें आयतकार दस्ता लगा होता था ?

उत्तर – > उत्तर – पूर्वी समूह

प्रश्न 20 – नवपाषाण काल में किस समूह की कुल्हाड़ियों का आकार अंडाकार तथा हत्या नुकीला रहता था ?

उत्तर – >दक्षिणी समूह

प्रश्न 21 – ‘ गुफकराल ‘ ( कश्मीर का एक नवपाषाण स्थल ) का शाब्दिक अर्थ है –

उत्तर – कुलाल अर्थात कुम्हार की गुफा

प्रश्न 22 – कश्मीर के किस नवपाषाण स्थल की कब्रों में पालतू कुत्ते अपने मालिकों के शवों के साथ दफनाए जाते थे ?

उत्तर – बुर्जाहोम

प्रश्न 23 – बुर्जाहोम का शाब्दिक अर्थ है –

उत्तर – भूर्ज वृक्ष का स्थान

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