हड़प्पा संस्कृति : कांस्ययुगीन सभ्यता
हड़प्पा संस्कृति :- हड़प्पा संस्कृति का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ।
इसका नाम हड़प्पा संस्कृति पड़ा क्योंकि इसका पता सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में अवस्थित हड़प्पा नामक आधुनिक स्थल में चला।
सिंधु की बहुत – से स्थल प्राक – हड़प्पीय संस्कृति के केंद्र बने। यही संस्कृति परिपक्व होकर सिंध और पंजाब में नगर – सभ्यता के रूप में परिणत हुई।
हड़प्पा संस्कृति का केंद्र – स्थल पंजाब और सिंध में , मुख्यतः सिंधु घाटी में पड़ता है। यही से इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की ओर हुआ।
हड़प्पा संस्कृति के अंतर्गत पंजाब , सिंध , बलूचिस्तान , गुजरात , राजस्थान , हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के भाग आते थे।
हड़प्पा संस्कृति का फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर – पूर्व में मेरठ तक था।
समूचा क्षेत्र एक त्रिभुज के आकार का है और इसका क्षेत्रफल लगभग 1299600 वर्ग किलोमीटर है। हड़प्पा संस्कृति
ईसा – पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्त्राब्दी में पूरे विश्व में किसी भी संस्कृति का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति के क्षेत्र से बड़ा नहीं था।
अब तक इस उपमहाद्वीप में हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1500 स्थलों का पता लग चुका है।
हड़प्पा संस्कृति की परिपक्व अवस्था वाले स्थलों की संख्या सीमित है , और इनमें केवल 7 को ही नगर की संख्या दी जा सकती है।
इनमे दो सर्वाधिक महत्व के नगर थे – पंजाब में हड़प्पा और सिंधु में मोहनजोदड़ो ( अर्थात मृतकों का टीला )। दोनों पाकिस्तान में पड़ते हैं , और उनके बीच की दूरी 483 किलोमीटर थी। ये दोनों नगर सिंधु नदी द्वारा जुड़े हुए थे।
तीसरा नगर मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर के करीब दक्षिण में ‘ चन्हुदड़ों ‘ था।
चौथी नगर गुजरात में खंभात की खाड़ी के ऊपर ‘ लोथल ‘ था।
पांचवा नगर उत्तरी राजस्थान में ‘ कालीबंगा ‘ ( अर्थात काले रंग की चूड़ियां ) व छठा नगर ‘ बनावली ‘ , हरियाणा के हिसार जिले में है।
कालीबंगा और बनावली ने दो सांस्कृतिक अवस्थाएँ देखी – हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा – कालीन।
उपर्युक्त छहों स्थलों पर परिपक्व और उन्नत हड़प्पा संस्कृति के दर्शन होते हैं। हड़प्पा संस्कृति
‘ सुतकागेंडोर ‘ और ‘ सुरकोटदा ‘ के समुद्रतटीय नगरों में भी इस संस्कृति के परिपक्व अवस्था दिखाई देती है। इन दोनों में नगर – दुर्ग था।
गुजरात के कच्छ क्षेत्र में अवस्थित ‘ धोलावीरा ‘ हड़प्पा – सभ्यता की तीनों अवस्थाओं और किलेबंदी का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
हरियाणा की घग्गर नदी पर स्थित ‘ राखीगढ़ी ‘ जो की धोलावीरा से काफी बड़ा है , हड़प्पा सभ्यता की तीनों अवस्थाओं को प्रकट करता है।
उत्तर हड़प्पा अवस्था गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में ‘ रंगपुर ‘ और ‘ रोजदी ‘ स्थलों पर पाई गई है। हड़प्पा संस्कृति
नगर – योजना और संरचनाएँ
हड़प्पा संस्कृति की विशेषता थी इसकी नगर – योजना प्रणाली।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के अपने-अपने दुर्गा थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था।
प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकान में सामान्य लोग रहते थे।
सड़के एक दूसरे को समकोण बनाते हुए कटती थी और नगर अनेक खंडों में विभक्त था। यह बात सभी सिंधु बस्तियों पर लागू थी , चाहे वे छोटी हो या बड़ी।
बड़े-बड़े भवन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों की विशेषता थी।
उनके स्मारक इस पर बात के प्रमाण है कि वहां के शासक मजदूर जुटाने और कर संग्रह में कुशल थे। हड़प्पा संस्कृति
मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल ‘ विशाल स्नानागार ‘ था। यह दुर्ग के टीले में अवस्थित था। यह 11.88 मीटर लंबा , 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था। दोनों सिरों पर तल तक सीढ़ियां बनी हुई थी। बगल में कपड़े बदलने के कमरे थे। स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों का बना था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह विशाल स्नानागार धर्मनुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना था।
मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है अनाज रखने के कोठार , जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है।
हड़प्पा के दुर्ग में 6 कोठार मिले हैं जो ईंटों के बने चबूतरे पर दो पांतो में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मीटर लंबा और 6.09 चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछेक मीटर दूरी पर है। इन 12 इकाइयों का समूचा तल – क्षेत्र लगभग 838 वर्ग मीटर है जो मोहनजोदड़ो के कोठार के क्षेत्र के बराबर है।
हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है जिस पर वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं जिसका उपयोग फसल दावने के काम में होता था। यहां की फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं।
हड़प्पा में दो कमरे वाले बैरक भी हैं , जो शायद मजदूरों के रहने के लिए बने थे।
कालीबंगा में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबूतरे मिले हैं जो शायद कोठारों के लिए बने होंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग थे। हड़प्पा संस्कृति
हड़प्पा संस्कृति के नगरों में पकी ईंटों का इस्तेमाल एक उल्लेखनीय बात है , क्योंकि मिश्रा के समकालीन भवनों में धूप में सुखी ईंटों का ही प्रयोग हुआ था।
समकालीन मेसोपोटामिया में पकी ईटों का प्रयोग मिला तो है , परंतु हड़प्पा के नगरों में ईंटों का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर हुआ है।
मोहनजोदड़ो की जल – निकास प्रणाली आदित्य थी। लगभग सभी नगरों के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था।
कालीबंगा के अनेक घरों में अपने-अपने हुए थे। सड़कों और मोरियों के अवशेष बनावली से मिले हैं।
मोरियाँ ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकी रहती थी। सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे ( मैनहोल ) बने थे।
हड़प्पा की निकास – प्रणाली तो और भी विलक्षण है। हड़प्पा संस्कृति
कृषि
सिंधु प्रदेश में आज पहले की अपेक्षा बहुत ही कम वर्षा होती है। प्राचीन काल में यह प्रदेश बहुत उपजाऊ था।
ईसा – पूर्व चौथी सदी में सिकंदर का एक इतिहासकार बताता है कि सिंध इस देश का एक उपजाऊ भाग था।
पूर्व काल में सिंध प्रदेश में प्राकृतिक वनस्पति संपदा अधिक थी , जिसके कारण यहां अधिक वर्षा होती थी।
खेती का विस्तार , बड़े पैमाने पर चराई , ईट पकाने और ईंधन के लिए लकड़ी की खपत होते रहने से यहां की प्राकृतिक वन – सम्पदा क्षीण होती गई।
सिंध प्रदेश की उर्वरता का एक विशेष कारण सिंधु नदी में हर साल आने वाली बाढ़ थी।
सिंधु सभ्यता के लोग नवंबर के महीने में बीज बोते थे ( बाढ़ उतर जाने पर ) और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल महीने में गेहूँ और जौ की फसल काट लेते थे।
कालीबंगा में प्राक – हड़प्पा अवस्था से हल की रेखा के निशान मिले हैं। हड़प्पा संस्कृति
हड़प्पाई लोग शायद लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। इस हल को आदमी खींचते थे या बैल , इस बात का पता नहीं है।
फसल काटने के लिए पत्थर के हँसियों का प्रयोग होता था।
‘ गबरबंदों ‘ या नालों को बांधों से घेरकर जलाशय बनाने की प्रथम बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों की विशेषता रही है।
सिंधु सभ्यता में नहरों या नालों से सिचाई की परिपाटी नहीं थी।
हड़प्पावासी अपनी आवश्यकता से अधिक अन्न का उत्पादन करते थे। हड़प्पा संस्कृति
सिंधु सभ्यता के लोग दो किस्म के गेहूँ और जौ , राई , मटर , तिल , सरसों , चावल आदि उपजते थे। बनावली से बढ़िया किस्म की जौ मिला है।
लोथल के लोग 1800 ईसा पूर्व में ही चावल उपजाते थे , जिसका अवशेष वहां से मिला है।
संभवत: किसानों से राजस्व अनाज के रूप में लिया जाता था। पारिश्रमिक चुकाने और संकट की घड़ियों में काम के लिए अनाज कोठारों में जमा किया जाता था।
मेसोपोटामिया में मजदूरी का भुगतान जौ के रूप में किया जाता था।
सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है। चूंकि कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में ही हुआ , इसलिए यूनान के लोग इसे ‘ सिन्डन ‘ कहने लगे जो सिंधु शब्द से निकला है। हड़प्पा संस्कृति
पशुपालन
हड़प्पावासी बहुत – सारे पशु पालते थे। वे गाय , भैंस , बैल , बकरी , भेड़ , सूअर , कुत्ता , बिल्ली , गधा , ऊंट आदि पालते थे।
उन्हें कूबड़ वाला सांड विशेष प्रिय था।
घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो से तथा लोथल से मिली एक संदिग्ध मूर्तिका ( टेराकोटा ) से मिलता है।
गुजरात के पश्चिम में अवस्थित सुरकोटड़ा में घोड़े के अवशेषों के साक्ष्य मिलते हैं और वे 2000 ईसा पूर्व के आसपास के बताए गए हैं , परंतु यह पहचान संदिग्ध है। इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता अश्वकेंद्रित नहीं थी।
हड़प्पाई लोगों को हाथी का ज्ञान था। वे गैंडे से भी परिचित थे। गुजरात में बसे हड़प्पाई लोग चावल उपजाते थे और हाथी पालते थे। हड़प्पा संस्कृति
शिल्प और तकनीकी ज्ञान
हड़प्पा संस्कृति कांस्ययुगीन थी। हड़प्पावासी पत्थर के बहुत सारे औजारों और उपकरणों का प्रयोग करते थे।
हड़प्पा सभ्यता में कांसे के औजार बहुतायात में नहीं मिलते क्योंकि यहां तांबा और टिन जो कि कांसे के निर्माण के लिए आवश्यक है आसानी से उपलब्ध नहीं थे।
तांबा राजस्थान के खेत्री ताम्र – खानों से मंगाया जाता था।
टिन शायद अफगानिस्तान से कठिनाई के साथ मनाया जाता था , यद्यपि उसकी कुछ पुरानी खदानें हजारीबाग और बस्तर में पाई गई हैं।
हड़प्पा स्थलों से जो कांसे के औजार और हथियार मिले हैं उनमें टिन की मात्रा कम है।
हड़प्पा समाज के शिल्पियों में कांस्य – शिल्पियों के समुदाय का महत्वपूर्ण स्थान था। वे प्रतिमाओं और बर्तनों के साथ-साथ कई तरह के औजार और हथियार भी बनाते थे , जैसे कुल्हाड़ी , आरी , छुरा और बरछा। हड़प्पा संस्कृति
मोहनजोदड़ो से बने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है , और कई वस्तुओं पर कपड़ें की छाप मिली है।
वे लोग कताई के लिए तकलियों का इस्तेमाल करते थे। बुनकर ऊनी और सूती कपड़ा बुनते थे।
हड़प्पाई लोग नाव बनाने का काम भी करते थे।
मुद्रा – निर्माण और मूर्तिका निर्माण भी महत्वपूर्ण शिल्प थे।
स्वर्णकार सोना , चांदी और रत्नों के आभूषण बनते थे। सोना और चांदी संभवत: अफगानिस्तान से और रत्न दक्षिण भारत से आते थे।
हड़प्पाई कारीगर मणियों के निर्माण में भी निपुण थे।
कुम्हार के चाक का खूब प्रचलन था और वे चिकने और चमकीले मृदभांड बनाते थे। हड़प्पा संस्कृति
व्यापार
सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का बड़ा महत्व था।
हड़प्पाई लोग सिंधु -सभ्यता क्षेत्र के भीतर पत्थर , धातु , हड्डी आदि का व्यापार करते थे।
हड़प्पाई लोग जो वस्तुएं बनाते थे उनके लिए अपेक्षित कच्चा माल उनके नगरों में उपलब्ध नहीं था।
हड़प्पावासी धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। संभवत: हड़प्पावासी सारे आदान-प्रदान विनिमय द्वारा करते थे।
हड़प्पावासी अपनी तैयार माल और संभवत: अनाज भी नावों और बैलगाड़ियों पर लादकर पड़ोस के इलाके में ले जाते थे।
वे लोग अरब सागर के तट पर जहाजरानी करते थे। हड़प्पा संस्कृति
वे लोग पहिये के उपयोग से परिचित थे , और हड़प्पा में ठोस पहियों वाली गाड़ियां प्रचलित थी।
उन लोगों का व्यापारिक संबंध था – राजस्थान , अफगानिस्तान , ईरान आदि से।
हड़प्पावासियों ने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक वाणिज्य उपनिवेश स्थापित किया था जिसके सहारे उनका व्यापार मध्य एशिया के साथ चलता था। उनके नगरों का व्यापार दजला – फरात प्रदेश के नगरों के साथ चलता था।
बहुत – सी हड़प्पाई मुहरें मेसोपोटामिया की खुदाई से में निकली है।
हड़प्पाई लोगों ने लाजवर्द मणि ( लापिस लाजूली ) का व्यापार सुदूर देशों तक किया था।
2350 ईसा पूर्व के आसपास और उसके आगे के मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापारिक संबंध की चर्चा है , मेलुहा सिंध क्षेत्र का प्राचीन नाम है।
मेसोपोटामिया के पुरालेखों में दो मध्यवर्ती व्यापार – केंद्रों का उल्लेख मिलता है – दिलमुन और मकन। ये दोनों मेसोपोटामिया और मेलुहा के बीच में है।
दिलमुन की पहचान शायद पारस की खाड़ी के ‘ बहेरेन ‘ से की जा सकती है। हड़प्पा संस्कृति
राजनीतिक संगठन
हड़प्पाईयों के राजनीतिक संगठन के बारे में कोई स्पष्ट आभास नहीं है।
यदि हड़प्पाई सांस्कृतिक अंचल को राजनैतिक अंचल का अभिन्न माने तो इस उपमहाद्वीप ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना से पूर्व इतनी बड़ी राजनैतिक इकाई कभी नहीं देखी। इस इकाई की दृढ़ता 600 वर्षों तक निरंतर कायम रही।
हडप्पाईं स्थल पर न तो कोई मंदिर और न ही कोई धार्मिक भवन पाया गया है। इसका अपवाद विशाल स्नानागार हो सकता है।
हड़प्पा अंचल में धार्मिक विश्वाशों और आचारों में एकरूपता नहीं है। इसलिए यह सोचना गलत होगा कि हड़प्पा में पुरोहितों का वैसा ही शासन था जैसे कि निचले मेसोपोटामिया के नगरों में था।
हड़प्पा का शासन संभवत: वणिक वर्गों के हाथों में था। सिंधु सभ्यता में अस्त्र – शस्त्र का अभाव था। हड़प्पा संस्कृति
धार्मिक प्रथाएँ
किसी भी हड़प्पा स्थल पर मंदिर नहीं पाया गया है।
ऐसा संकेत मिलता है कि उत्तर अवस्था में गुजरात के लोथल में अग्नि – पूजा प्रचलित थी , परंतु इसके लिए मंदिरों का उपयोग नहीं होता था।
हड़प्पा में पक्की मिट्टी की स्त्री – मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली है।
हड़प्पावासी धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिश्र के लोग ‘ नील नदी की देवी आइसिस ‘ की पूजा करते थे।
मिस्र में राज्य या संपत्ति का उत्तराधिकार कन्या को मिलता था , किंतु हड़प्पा समाज में उत्तराधिकार का स्वरूप क्या था , यह हमें ज्ञात नहीं।
कुछ वैदिक सूक्तों में पृथ्वी माता की स्तुति है , किंतु उसे कोई प्रमुखता नहीं दी गई है।
ईसा की छठी सदी और उसके बाद से ही दुर्गा , अंबा , काली , चंडी आदि विविध मातृदेवियों को पुराणों और तंत्रों में आराध्या देवियों का स्थान मिला। हड़प्पा संस्कृति
सिंधु घाटी में पुरुष देवता
पुरुष देवता एक मुहर पर चित्रित किया गया है। जिसके सिर पर तीन सींग है। वह एक योगी की मुद्रा में ध्यान लगाए पद्मासन में बैठा दिखाया गया है। वह एक हाथी , एक बाघ और एक गेंडा से घिरा है। आसान के नीचे एक भैंसा है और पांवों पर दो हिरण है। इस देवता की पहचान पशुपति महादेव से की गई है।
हड़प्पा सभ्यता में लिंग पूजा का प्रचलन पाते हैं , जो कालांतर में शिव की पूजा से गहन रूप से जुड़ गई थी।
हड़प्पा में पत्थर पर बने लिंग और योनि के अनेक प्रतीक मिले हैं। संभवत: ये पूजा के लिए बने थे।
ऋग्वेद में लिंग – पूजक अनार्य जातियों की चर्चा है। हड़प्पा संस्कृति
वृक्षों और पशुओं की पूजा
सिंधु क्षेत्र के लोग वृक्ष – पूजा भी करते थे। एक सील ( मुहर ) पर पीपल के डालों के बीच में विराजमान देवता चित्रित है।
हड़प्पा – काल में पशु – पूजा का भी प्रचलन था। कई पशु मुद्राओं पर अंकित है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण था – एक सींग वाला जानवर ( यूनिकॉर्न ) जो गेंडा हो सकता है। उसके बाद महत्व का है कूबड़ वाला सांड।
पशुपति महादेव ( सींग वाले देवता ) के चतुर्दिक पशुओं की उपस्थिति से प्रकट होता है कि उनकी भी पूजा होती थी।
सिंधु प्रदेश के निवासी वृक्ष , पशु और मानव के स्वरूप में देवताओं की पूजा करते थे।
जब तक सिंधु लिपि पढ़ी नहीं जाती तब तक हड़प्पाई लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
ताबीज बड़ी तादाद में मिले हैं जो भूत प्रेत ओर अनिष्टकर शक्तियों में अनेक उनके विश्वास के द्योतक हैं।
आर्येतर परंपरा से संबंध माने जाने वाले अथर्ववेद में अनेक मंत्र – तंत्र में जादू – टोने दिए गए हैं। और रोगों का तथा भूत – प्रेतों को भगाने के लिए ताबीज बताए गए हैं। हड़प्पा संस्कृति
हड़प्पाई लिपि
प्राचीन मेसोपोटामियाइयों की तरह हड़प्पाई लोगों ने भी लेखन – कला का आविष्कार किया था।
यद्यपि हड़प्पा लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 ई तक पूरी लिपि प्रकाश में आ गई , किंतु वह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकती है।
हड़प्पाईयों के अभिलेख इतने लंबे-लंबे नहीं है जितने मिस्रियों और मेसोपोटामियाइयों के हैं। अधिकांश अभिलेख मुहरों पर हैं और हर एक में दो-चार शब्द है।
हड़प्पा अभिलेख के लगभग 4000 नमूने पत्थर की मुद्राओं एवं अन्य वस्तुओं से प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पा लिपि में कुल मिलाकर 250 से 400 तक चित्राक्षर ( पिक्टोग्राफ ) है और चित्र के रूप में लिखा हर अक्षर किसी ध्वनि , भाव या वस्तु का सूचक है।
हड़प्पा लिपि वर्णात्मक नहीं , बल्कि मुख्यतः चित्रलेखात्मक है। हड़प्पा संस्कृति
माप – तौल
सिंधु – क्षेत्र में बाट के रूप में व्यवहृत बहुत – सी वस्तुएं पाई गई हैं। उनसे प्रकट होता है कि तौल में 16 या उसके आवर्त्तकों का व्यवहार होता था , जैसे 16 , 64 , 160 , 320 और 640।
हड़प्पाई लोग मापन मापन भी जानते थे। ऐसे डंडे पाए गए हैं जिन पर माप के निशान बने हुए हैं। इनमें एक डंडा कांसे का भी है।
मृदभांड
हड़प्पाई लोग चाक का प्रयोग जानते थे।
हड़प्पा – भांडों पर आम तौर से वृत्त या वृक्ष की आकृतियाँ मिलती है।
कुछ ठीकरों पर मनुष्य की आकृतियाँ भी दिखाई देती है। हड़प्पा संस्कृति
मुहरें ( सिलें )
हड़प्पा संस्कृति की सर्वोत्तम कलाकृतियां हैं उसकी सीले। अब तक लगभग 2000 सीलें प्राप्त हुई है।
अधिकांश सिलों पर लघु लिखो के साथ-साथ एकसिंगी जानवर , भैंस , बाघ , बकरी और हाथी की आकृतियां उकेरी हुई हैं।
प्रतिमाएँ
हड़प्पाई शिल्पी धातु की खूबसूरत मूर्तियां बनाते थे। काँसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है। गले में पड़े हार के अलावा पूरी मूर्ति एकदम नग्न है।
कुछ हड़प्पाई प्रस्तर प्रतिमाएं भी मिली है।
सेलखड़ी की एक मूर्ति के बायें कंधे तथा दायें हाथ के नीचे एक अलंकृत वस्त्र है , और सर के पीछे उसके बालों की छोटी लेटें बनी हुई है।
मृण्मूर्तिकाएँ ( टेराकोटा फिगरिन )
सिंध प्रदेश से भारी संख्या में आग में पकी मिट्टी की बनी मूर्तिकाएं प्राप्त हुई है। इनका प्रयोग या तो खिलौने के रूप में या पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था।
इनमें पक्षी , कुत्ते , भेड़ , गाय – बैल और बंदर की प्रतिकृतियां मिलती हैं। पुरुषों और स्त्रियों की प्रतिकृतियां भी मिली है , इनमें पुरुषों से स्त्रियों की संख्या अधिक है।
प्रथम कोटि की कलाकृतियों का उपयोग उच्च वर्ग के लोग करते थे , और द्वितीय कोटि का उपयोग साधारण लोग करते थे।
प्रस्तर – शिल्प में हड़प्पा संस्कृति पिछड़ी हुई थी। हड़प्पा संस्कृति
उद्भव , उत्थान और अवसान
विकसित हड़प्पा संस्कृति का अस्तित्व मोटे तौर पर 2500 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के बीच रहा।
अपनी अस्तित्व की पूरी अवधि में यह संस्कृति एक ही प्रकार के औजारों , हथियारों तथा घरों का प्रयोग करती रही। संपूर्ण जीवन – पद्धति में भी एकरूपता बनी रही।
परंतु मोहनजोदड़ो की मृदभांड कला में समय-समय पर परिवर्तन भी दिखाई देता है।
ईसा – पूर्व 19वीं सदी में आकर इस संस्कृति के दो महत्वपूर्ण नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो लुप्त हो गए , लेकिन अन्य स्थानों में यह संस्कृति धीरे – धीरे क्षीण हुई।
हड़प्पा – पूर्व बस्तियों के अवशेष पाकिस्तान के निचले सिंध और बलूचिस्तान प्रांत में तथा राजस्थान के कालीबंगा में मिले हैं। किंतु ,इन बस्तियों और परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के बीच संबंध स्पष्ट नहीं हो सका है।
इस बात का भी कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है कि इस उपमहाद्वीप के हड़प्पाई नगरों के पनपनें में किसी बाहरी प्रभाव का हाथ था। हड़प्पा संस्कृति
हड़प्पा संस्कृति में कई तत्व है जो इसे पश्चिम एशिया की समकालीन संस्कृतियों से पृथक करते हैं। सिंधु सभ्यता के नगरों की योजना जल – पद्धति की है और इसमें सड़के , नालियों और मलकुंडों की अच्छी व्यवस्था हैं। सभी नगरों में सभी मकान आयताकार हैं जिनमें पक्का स्नान घर और सीढ़ीदार कुआ है। पश्चिम एशिया के नगरों में इस तरह की नगर – योजना नहीं पाई गई है।
संभवत: कीट द्वीप के नोसस नगर को छोड़ प्राचीन युग के किसी भी अन्य नगर में जल – निकास का ऐसा उत्तम प्रबंध देखने को नहीं मिलता।
हड़प्पाई लोगों ने पक्की ईंटों के इस्तेमाल में जी कौशल का परिचय दिया है, वैसा पश्चिम एशिया वाले नहीं दे पाए।
हड़प्पाईयों के मृदभांड और उनकी सीलें खास ढंग की है और , इन पर अंकित पशु – समूह स्थानीय है। हड़प्पा संस्कृति
उन्होंने अपनी एक खास लिपि बनाई जिसका मिस्र और मेसोपोटामिया की लिपि से कोई साम्य नहीं है।
यद्यपि हड़प्पा संस्कृति कांस्य युगीन थी , फिर भी इसमें कांसे के उपयोग सीमित हुआ और ज्यादातर पत्थर के औजार ही चलते रहे।
हड़प्पा संस्कृति का क्षेत्र जितना बड़ा था उतना बड़ा और किसी भी समकालीन संस्कृति का नहीं था। हड़प्पा नगर की संरचना 5 किलोमीटर के घेरे में फैली हुई थी।
मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताएँ 1900 ईसा पूर्व के बाद भी टिकी रही , जबकि हड़प्पा की नगर संस्कृति लगभग उसी समय तक समाप्त हो गई। हड़प्पा संस्कृति
सिंधु सभ्यता के पतन के बहुत से कारण बताए गए हैं
सिंधु – क्षेत्र में वर्षा की मात्रा 3000 ईसा – पूर्व के आसपास थोड़ी सी बढ़ी और फिर ईसा पूर्व दूसरी सहस्त्राब्दी के आरंभिक भाग में काम हो गई। इससे खेती और पशुपालन पर बुरा प्रभाव पड़ा।
कुछ विद्वानों का मत है कि पड़ोस के रेगिस्तान के फैलाव के फलस्वरुप मिट्टी में लवणता बढ़ गई और उर्वरता घटती गई। फलतः इस सभ्यता का पतन हो गया।
यह मत भी है कि यहां जमीन धंस गई या ऊपर उठ गई जिससे इसमें बाढ़ का पानी जमा हो गया। भूकंप के कारण सिंधु नदी की धारा बदल गई जिसके फलस्वरुप मोहनजोदड़ो की पृष्ठभूमि वीरान हो गई।
यह भी मत है कि हड़प्पा – संस्कृति की आर्यों ने नष्ट किया। परंतु , इसके साक्ष्य बहुत – ही कम है।
कांस्य युग की इस विशालतम सांस्कृतिक सत्ता के विघटन के क्या-क्या परिणाम हुए यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। हड़प्पा संस्कृति
हड़प्पा संस्कृति की नागरिकोत्तर अवस्था
हड़प्पा संस्कृति शायद 1900 ईसा पूर्व तक बनी रही। बाद में इसकी नागरिक अवस्था लुप्त – सी हो गई।
नागरिकोत्तर हड़प्पा सभ्यता की कुछ विशेषताएं पाकिस्तान , मध्य एवं पश्चिमी भारत , पंजाब , राजस्थान , हरियाणा , जम्मू और कश्मीर तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी दिखाई देती है। इसका काल मोटे तौर पर 1900 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व तक हो सकता है।
हड़प्पा संस्कृति की नागरिकोत्तर अवस्था को उपसिंधु संस्कृति भी कह सकते हैं।
उत्तर – हड़प्पा संस्कृतियाँ मूलतः ताम्रपाषाणिक है , जिनमें पत्थर और तांबे की औजार प्रयुक्त होते थे।
ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों के लोग हड़प्पा संस्कृति की उत्तर अवस्था में गांवों में बस गए और खेती , पशुपालन , शिकार तथा मछली पकड़ने का धंधा करने लगे।
गुजरात के प्रभासपटन ( सोमनाथ ) और रंगपुर जैसे कुछ स्थान तो हड़प्पा संस्कृति के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी हैं। हड़प्पा संस्कृति
जोरवे बस्तियों में सबसे बड़ी है – दैमाबाद की। यह 22 हेक्टेयर में बसी है। इसे आद्य – नगरीय कह सकते हैं। अधिकांश जोरवे बस्तियां गांव ही है।
नागरिकोत्तर हड़प्पाई बस्तियां स्वात घाटी में मिली है। यहां के लोग पशुचारण के साथ-साथ अच्छी खेती और पशुपालन भी करते थे। वे मंद चाल वाले चाक पर बने ‘ काला – धूसर ओपदार मृदभांडों ‘ का प्रयोग करते थे।
स्वात घाटी के निवासी भी चाक पर लाल – पर काले रंग वाले मृदभांड तैयार करते थे जो आरंभिक नागरिकोत्तर काल के मृदभांडों से निकट संबंध जताते हैं। इससे प्रकट होता है कि हड़प्पा से संबंध नागरिकोत्तर संस्कृति से इसका संबंध था। इसलिए स्वात घाटी को उत्तर हड़प्पा संस्कृति का उत्तरी छोर मान सकते हैं।
भारत में कई उत्तर हड़प्पा स्थलों की खुदाई हुई है जिनमें प्रमुख है – जम्मू का मांडा , पंजाब में चंडीगढ़ और संघोल , हरियाणा में दौलतपुर और उत्तर प्रदेश में आलमगीरपुर और हुलास आदि।
ऐसा जान पड़ता है कि हड़प्पाई लोगों ने चावल की खेती तब शुरू की जब भी हरियाणा में दौलतपुर और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित हुलास पहुंचे। हड़प्पा संस्कृति
‘ रागी ‘ उत्तर भारत के किसी भी हड़प्पा स्थल में अभी तक नहीं देखा गया है।
आलमगीर में उत्तर हड़प्पाई लोग कपास भी उपजाते थे।
उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र के उत्तर – हड़प्पा स्थलों से जो चित्रित हड़प्पाई मृदभांड पाए गए हैं उनमें आकृतियां अपेक्षाकृत सरल हो गई है , हालाँकि कुछ नए प्रकार के पात्र भी मिलते हैं।
उत्तर हड़प्पाई प्रकार के कुछ पात्र भगवानपुर में चित्रित धूसर मृदभांड अवशेषों से समिश्रित पाए गए हैं।
उत्तर – हड़प्पा अवस्था में लंबाई मापने की कोई वस्तु नहीं पाई गयी है।
आमतौर पर सभी उत्तर – हड़प्पा स्थलों में मानव मूर्तिकाओं और वैशिष्ट्य सूचक चित्राकृतियों का अभाव है।
यद्यपि गुजरात में वाग्दत्र ( फायंस ) अप्रचलित हो चुका था, परंतु उत्तर भारत में यह खूब चलता था। हड़प्पा संस्कृति
हड़प्पा के उत्तर नगरीय अवस्था में एशियाई केंद्रों से सिंधु क्षेत्र का व्यापार समाप्त हो गया।
हड़प्पा संस्कृति की उत्तरकालीन अवस्थाओं में कुछ भारी औजार और मृदभांड पाए गए हैं , जिनसे संकेत मिलता है कि सिंधु घाटी में बाहर के लोग धीरे-धीरे प्रवेश करने लगे थे।
मोहनजोदड़ो का अंतिम अवस्था में असुरक्षा और अशांति के कुछ लक्षण दिखाई देते हैं।
मोहनजोदड़ो के ऊपरी सतहों पर नई किस्म की कुल्हाड़ियाँ , छुरे ,और पसलीदार और सपाट चूलवाली छुरियां मिली है। ये कुछ बाहरी आक्रमण की संकेत देते हैं।
हड़प्पा की उत्तर अवस्था में एक कब्रिस्तान से नए लोगों के अवशेष मिले हैं , जहां नवीनतम स्तरों पर नए प्रकार के मृदभांड है। हड़प्पा संस्कृति
पंजाब और हरियाणा के कई स्थानों पर लगभग 1200 ईसा पूर्व के उत्तरकालीन हड़प्पा मृदभांडों के साथ-साथ धूसर मृदभांड ( ग्रे वेअर ) और चित्रित धूसर मृदभांड ( पी जी डब्ल्यू ) पाए गए हैं जो आमतौर से वैदिक जनों से जुड़े हैं।
वैदिक आर्यजन अधिकांशत: उसी सप्तसिंधु प्रदेश में बसे जहां एक समय हड़प्पा संस्कृति विराजमान थी। फिर भी हमें ऐसा कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिलता है कि परिपक्व हड़प्पा – जनों और आर्यजनों के बीच कोई भारी संग्राम हुआ था।
सम्भवतः वैदिक जनों का 1500 ईसा पूर्व और 1200 ईसा पूर्व के बीच हड़प्पा संस्कृति की उत्तरकालीन अवस्था के लोगों के साथ कही – कही सामना हुआ होगा। हड़प्पा संस्कृति
MCQ
प्रश्न 1 – हड़प्पा संस्कृति का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के किस भाग में हुआ ?
उत्तर – पश्चिमोत्तर
प्रश्न 2 – सिंधु सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है , क्योंकि –
उत्तर – सर्वप्रथम हड़प्पा की खोज हुई
प्रश्न 3 – हड़प्पा संस्कृति का क्षेत्र किस आकर का है ?
उत्तर – त्रिभुजाकार
प्रश्न 4 – अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में हड़प्पा संस्कृति के लगभग कितने स्थलों का पता लग चुका है ?
उत्तर – 1500
प्रश्न 5 – हड़प्पा संस्कृति की परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में से कितने स्थलों को नगर की संज्ञा दी जा सकती है ?
उत्तर – 7
प्रश्न 6 – हड़प्पा संस्कृति की विशेषता थी –
उत्तर – इसकी नगर – योजना प्रणाली
प्रश्न 7 – हड़प्पा संस्कृति में सड़के एक दूसरे को कटती थी –
उत्तर – समकोण बनाते हुए
प्रश्न 8 – मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल था –
उत्तर – विशाल स्नानागार
प्रश्न 9 – मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है –
उत्तर – अनाज रखने के कोठार
प्रश्न 10 – हल की रेखा के निशान मिले हैं –
उत्तर – कालीबंगा से
प्रश्न 11 – सिंधु सभ्यता में किसानों से राजस्व लिया जाता था –
उत्तर – अनाज के रूप में
प्रश्न 12 – सबसे पहले कपास पैदा किसने किया ?
उत्तर – सिंधु सभ्यता के लोगो ने
प्रश्न 13 – बढ़िया किस्म की जौ मिला है –
उत्तर – बनावली से
प्रश्न 14 – सिंधु सभ्यता को या सिंधु क्षेत्र को सिन्डन नाम दिया –
उत्तर – यूनानियों ने
प्रश्न 15 – हड़प्पा संस्कृति थी –
उत्तर – कांस्ययुगीन
प्रश्न 16 – हड़प्पाई लोग व्यापार के क्षेत्र में वस्तओं का आदान – प्रदान किस तरीके से करते थे ?
उत्तर – वस्तु विनियम प्रणाली द्वारा
प्रश्न 17 – मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापारिक संबंध की चर्चा है , मेलुहा प्राचीन नाम है –
उत्तर – सिंध क्षेत्र का
प्रश्न 18 – दिलमुन की पहचान किससे की जाती है ?
उत्तर – बहरीन से
प्रश्न 19 – हड़प्पा का शासन संभवत: किस वर्ग के हाथ में था ?
उत्तर – वणिक वर्ग
प्रश्न 20 – सिंधु सभ्यता में अभाव था –
उत्तर – अस्त्र – शस्त्र का
प्रश्न 21 – किसी भी हड़प्पा स्थल पर नहीं पाया गया है –
उत्तर – मंदिर
प्रश्न 22 – लिंग – पूजक अनार्य जातियों की चर्चा है –
उत्तर – ऋग्वेद में
प्रश्न 23 – पुरुष देवता एक मुहर पर चित्रित किया गया है। जिसके सिर पर तीन सींग है। इस देवता की पहचान की गई है –
उत्तर – पशुपति महादेव से
प्रश्न 24 – पत्थर की मुद्राओं एवं अन्य वस्तुओं पर हड़प्पाई लेखन के लगभग कितने नमूने प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर – 4000
प्रश्न 25 – हड़प्पा लिपि वर्णात्मक नहीं , बल्कि मुख्यतः है –
उत्तर – चित्रलेखात्मक
प्रश्न 26 – हड़प्पा काल में तौल में प्रयोग किया जाता था –
उत्तर – 16 या उसके आवर्त्तकों का
प्रश्न 27 – हड़प्पा सभ्यता की मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है –
उत्तर – काँसे की नर्तकी
प्रश्न 28 – किस शिल्प में हड़प्पा संस्कृति पिछड़ी हुई थी ?
उत्तर – प्रस्तर – शिल्प
प्रश्न 29 – विकसित हड़प्पा संस्कृति का अस्तित्व मोटे तौर पर रहा –
उत्तर – 2500 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के बीच
प्रश्न 30 – हड़प्पाईयों के मृदभांड और उनकी सीलें खास ढंग की है और , इन पर अंकित पशु – समूह है –
उत्तर – स्थानीय
प्रश्न 31 – हड़प्पा संस्कृति की नागरिकोत्तर अवस्था को कह सकते हैं –
उत्तर – उपसिंधु संस्कृति