मौर्य शासन का महत्त्व

मौर्य शासन का महत्त्व

मौर्य शासन का महत्त्व :- कौटिल्य ने राजा को सलाह दी है कि जब वर्णाश्रम – धर्म ( वर्णों और आश्रमों पर आधारित समाज – व्यवस्था ) लुप्त होने लगे तो राजा को धर्म की स्थापना करनी चाहिए। उसने राजा को ‘ धर्मप्रवर्तक ‘ अर्थात सामाजिक व्यवस्था का संचालक कहा है।

राजा के निरंकुश अधिकार का दावा मगध के राजाओं द्वारा अपनाई गई सैनिक विजय की नीति के कारण आगे आया।

अंग , वैशाली , काशी , कौशल , अवंती , कलिंग आदि को एक-एक करके मगध साम्राज्य में मिला लिया गया।

मगध साम्राज्य के पास तलवार का इतना जोर था कि वह सभी क्षेत्रों पर अपना पूरा नियंत्रण लाद सका।

प्राचीन इतिहास के किसी भी अन्य काल में हम इतने सारे अधिकारियों को नहीं पाते जितने मौर्य काल में। मौर्य शासन का महत्त्व

प्रशासन – तंत्र के साथ-साथ गुप्तचरों का भी विस्तृत जाल बिछा था। विभिन्न प्रकार के जासूस विदेशी शत्रुओं की गतिविधियों और संदिग्ध अधिकारियों पर नजर रखते थे। वे भोले – भाले लोगों से अंधविश्वास का सहारा लेकर कोष – संचय करने में भी सहायक सिद्ध होते थे।

शीर्षस्थ अधिकारी ‘ तीर्थ ‘ कहलाते थे। उच्च कोटि के अधिकारी थे मंत्री , पुरोहित , सेनापति और युवराज।

अधिकतर अधिकारियों को नगद वेतन दिया जाता था।

उच्चतम कोटि के अधिकारियों को 48000 पण ( पण 3/4 तोले के बराबर चांदी का सिक्का होता था ) की पारिश्रमिक मिलती थी। इसके ठीक विपरीत , सबसे निचले दर्जे के अधिकारियों को कुल मिलाकर 60 पण मिलते थे , हालांकि कुछ कर्मचारियों को महज 10 या 20 पण ही दिए जाते थे। मौर्य शासन का महत्त्व

आर्थिक नियंत्रण

अर्थशास्त्र के अनुसार 27 अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे जो राज्य की आर्थिक गतिविधियों का नियमन करते थे।

राज्य कृषकों की भलाई के लिए सिंचाई और जलवितरण की व्यवस्था करता था।

मेगस्थनीज हमें बताता है कि मिस्र की भांति ही मौर्य साम्राज्य में अधिकारी जमीन को मापता और उन नहरों का निरीक्षण करता था जिनसे होकर पानी छोटी नहरों में पहुंचता था।

अर्थशास्त्र में कृषि कार्यों में दासों को लगाए जाने की व्यवस्था है जो एक महत्वपूर्ण सामाजिक विकास था।

मेगास्थनीज का कहना है कि उसने भारत में दास नहीं देखे। परन्तु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत में गृहदास वैदिक काल से ही पाए जाते थे।

लगता है कि मौर्य काल में ही दसों को कृषिकार्यों में बड़े पैमाने पर लगाया गया। मौर्य शासन का महत्त्व

उत्पादन की दृष्टि से प्राचीन भारतीय समाज दास – समाज नहीं था।

यूनान और रोम में जो कार्य दास करते थे वह भारत में शूद्रों से लिया जाता था।

राजकीय नियंत्रण साम्राज्य के विशाल भाग में था , कम से कम केंद्रीय भाग में तो अवश्य था।

पाटलिपुत्र से एक राजमार्ग वैशाली और चंपारण होते हुए नेपाल जाता था। हिमालय की तराई की एक सड़क वैशाली , चंपारण , कपिलवस्तु , कलसी , ( देहरादून जिले में ) और हाजार होते हुए अंत में पेशावर पहुंचती थी।

मेगास्थनीज ने एक सड़क की चर्चा की है जो पश्चिमोत्तर भारत को पटना से जोड़ती थी।

एक सड़क पटना और सासाराम के बीच भी थी जो मिर्जापुर होते हुए मध्य भारत चली गई थी। मौर्य शासन का महत्त्व

राजधानी से एक सड़क पूर्वी मध्य प्रदेश होते हुए कलिंग जाती थी , और फिर कलिंग भी आंध्र और कर्नाटक से जुड़ा हुआ था।

अशोक के अभिलेखों के मिलने के स्थान महत्त्वपूर्ण राजमार्गों पर पड़ते है।

अशोक के अभिलेखों के लिए पत्थर के स्तंभ वाराणसी के पास चुनार में तैयार किए जाते थे और वहां से उत्तरी और दक्षिणी भारत में पहुँचाए जाते थे।

मौर्य शासकों को बहुत बड़ी जनसंख्या का सामना नहीं करना पड़ा होगा।

अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसका राज्यादेश सुदूर पूर्वी और दक्षिणी छोर के सिवा सारे देश की प्रचारित किया गया था। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के 9 स्थानों से उसके अभिलेख मिलते हैं।

प्राचीन भारत में कर – प्रणाली की दृष्टि से मौर्य काल महत्वपूर्ण है। मौर्य शासन का महत्त्व

कौटिल्य ने कृषकों , शिल्पियों और व्यापारियों से उगाहे जाने वाले बहुत – सारे करों का नामोल्लेख किया है।

मौर्यों ने ‘ कर वसूली ‘ और ‘ संग्रहण ‘ से कहीं ज्यादा महत्व ‘ कर – निर्धारण ‘ को दिया।

‘ समाहर्ता ‘ कर – निर्धारण का सर्वोच्च अधिकारी होता था , और ‘ सन्निधाता ‘ राजकीय कोषागार और भड़ागार का संरक्षक होता था।

राज्य को समाहर्ता के चलते जो नुकसान होता था उसे अधिक महत्त्व दिया जाता था।

कर – निर्धारण का विशद संगठन पहली बार मौर्य काल में ही देखा जाता है।

अर्थशास्त्र में उल्लिखित करों की लंबी सूची मिलती है।

अभिलेखों के आधार पर हम जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी राजकीय भंडार – घर होते थे , जिससे प्रकट होता है कि अनाज के रूप में भी कर वसूला जाता था।

प्रतीत होता है कि मयूर , पर्वत और अर्धचंद्र की छापवाली आहत रजत – मुद्राएं मौर्य – साम्राज्य की मान्य मुद्राएं थी। इन मुद्राओं की समरूपता के कारण कर – वसूली , वेतन भुगतान और व्यापार – वाणिज्य में काफी सहायता मिली होगी। मौर्य शासन का महत्त्व

ललितकला और वास्तुकला

भारी पैमाने पर पत्थर की इमारत बनाने का काम मौर्यों ने ही प्रारंभ किया।

मेगास्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र स्थित मौर्य राजप्रसाद उतना ही भव्य था जितना ईरान की राजधानी में बना राजप्रसाद।

पत्थर के स्तंभों के टुकड़े और उनके ठूँठ आधुनिक पटना नगर के किनारे ‘ कुम्हरार ‘ में पाए गए हैं जो 80 स्तंभों वाले विशाल भवन के अस्तित्व का संकेत देते हैं।

मौर्य शिल्पी पत्थर पर पॉलिस करने में बड़े दक्ष थे। ये स्तंभावशेष उतने ही चमकीले हैं जितने ‘ उत्तरी पालिशदार काले मृदभांड।

हर स्तंभ पाण्डु रंगवाले बलुआ पत्थर के एक ही टुकड़े का बना है जिनका केवल शीर्ष भाग स्तंभों के ऊपर जोड़ा गया है और जिनमें तराशे गए सिंह और सांड विलक्षण वास्तुशिल्प के प्रमाण है।

मौर्य शिल्पियों ने बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए चट्टानों को काटकर गुफाएं बनाने की परंपरा भी शुरू की। इसका सबसे पुराना उदाहरण बराबर की गुफाएं हैं जो गया से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। बाद में इस प्रकार का गुहा – निर्माण पश्चिमी और दक्षिणी भारत में भी प्रचलित हुआ। मौर्य शासन का महत्त्व

भौतिक संस्कृति का विस्तार और राज्यपद्धति

एक ओर मौर्यों ने पहली बार राज्य के सुसंगठित प्रशासन तंत्र का निर्माण किया तो दूसरी ओर उनके साम्राज्य – विस्तार ने व्यापार और धर्म – प्रचार के द्वार खोल दिए।

गंगा के मैदान में नए भौतिक संस्कृति का उदय हुआ जिसके कारण थे – लोहे का प्रचुर प्रयोग , आहत मुद्राओं की बहुतायत , लेखन – कला का प्रयोग , उत्तरी काली पॉलिशदार मृदभांड , पक्की ईंटों तथा छल्लेदार कुओं का प्रचलन और सबसे बढ़कर पूर्वोत्तर भारत में नगरों का उदय।

यूनानी लेखक ‘ एरियन ‘ के अनुसार नगरों की संख्या इतनी थी कि उन्हें गिन कर ठीक-ठीक बताया नहीं जा सकता था।

दक्षिण बिहार में लौह अयस्क आसानी से उपलब्ध था , अतः लोहे के उपकरणों का प्रयोग खूब बढ़ा।

इसी काल में मूठ वाली कुल्हाड़ियों , हँसिए और फालों का भी प्रचलन हुआ। आरावाला पहिया भी प्रयोग में आया। मौर्य शासन का महत्त्व

मौर्य काल में ही पूर्वोत्तर भारत में सर्वप्रथम पकाई हुई ईंट का प्रयोग हुआ। मकान ईंट के भी बनते थे और लकड़ी के भी।

मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र में बने लकड़ी के भवनों का उल्लेख किया है।

छल्लेदार कुँए सबसे पहले मौर्य काल में गंगा घाटी में प्रकट हुए।

मध्य गंगा के मैदान की भौतिक संस्कृति के तत्व कुछ परिवर्तनों के साथ उत्तरी बंगाल , कलिंग , आंध्र और कर्नाटक में भी पहुंचे।

बांग्लादेश के बोगरा जिले में मौर्य ब्राह्मी लिपि में ‘ महास्थान ‘ का अभिलेख पाया गया है। दिनाजपुर जिले के बनगढ़ में ‘ उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड ‘ मिले हैं। ऐसे मृदभांडों के टुकड़े पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के चंद्रकेतुगढ़ जैसे स्थानों से भी मिले हैं।

उड़ीसा के शिशुपालगढ़ में भी गंगा क्षेत्र से संपर्क के लक्षण दिखाई देते हैं। यहां की बस्ती मौर्य काल की ईसा – पूर्व तीसरी सदी की मानी जाती है और इससे ‘ उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड ‘ के साथ-साथ लोहे के उपकरण और आहत मुद्राएं भी मिली हैं। मौर्य शासन का महत्त्व

शिशुपालगढ़ , धौली और जौगड़ के पास है जहां से अशोक के अभिलेख पाए गए हैं।

मौर्य काल में आंध्र और कर्नाटक में कई स्थानों पर लोहे के औजार और हथियार पाए गए हैं , तथापि लोहे की उन्नत कारीगरी उन कारीगरों की देन है , जो अनेक प्रकार के बड़े-बड़े पत्थरों को गोलाकार शवाधान बनाने के लिए मशहूर थे।

आंध्र के अमरावती तथा कर्नाटक के कई स्थानों में अशोक के अभिलेख पाए गए है।

इस्पात के प्रचार से कालिंग में जंगल की सफाई और खेती के सुधरे तरीकों का इस्तेमाल होने लगा होगा , और अंतत: ‘ चेदि राज्य ‘ के उदय के लिए उपयुक्त स्थिति उत्पन्न हुई होगी।

दक्कन के सातवाहनों का उदय ईसा – पूर्व पहली सदी में हुआ। कुछ अर्थों में सातवाहनों का राज्य मौर्य साम्राज्य का ही प्रक्षेपण था। सातवाहनों ने मौर्य की कुछ प्रशासनिक इकाइयों को अपनाया तथा कई विषयों में मौर्य प्रणाली का अनुकरण किया गया।

प्रायद्वीपीय भारत में राज्य स्थापित करने की प्रेरणा न केवल चेदियों और सातवाहनों को बल्कि चेरों ( केरलपुत्रों ) , चोलों और पांड्यों को भी मौर्य से ही मिली हुई लगती है। मौर्य शासन का महत्त्व

अशोक के अभिलेखों के अनुसार , चेर , चोल , पाण्ड्य , सतियपुत तथा ताम्रपर्णी या श्रीलंका के लोग मौर्य साम्राज्य की सीमा से लगे क्षेत्रों में बसते थे।

मेगास्थनीज पांड्यों के राज्य को जानता था।

अशोक अपने को ‘ देवों का प्यार ‘ कहता था , यही उपाधि तमिल के अनूदित करके संगम में उल्लिखित राजाओं ने धरण की है।

मौर्य काल में मध्य गंगा के मैदान की संस्कृति के तत्वों को दूर – दूर तक फैलाने की चेष्टा की गई।

कौटिल्य ने परामर्श दिया कि कृषकों और शूद्र श्रमिकों की सहायता से नई-नई बस्तियां बसाई जानी चाहिए।

मौर्य काल में परती जमीन को जोतने के लिए नए किसानो को कर से छुटकारा दिया जाता था और मवेशी , बीज , व धन भी दिया जाता था। मौर्य शासन का महत्त्व

अशोक ने जनजातीय लोगों से निकट संपर्क बनाए और उन्हें धर्म का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया। अशोक द्वारा नियुक्त ‘ धम्ममहामात्रों ‘ के साथ उनके संपर्क से उन्हें गंगा के मैदान की उच्च संस्कृति के मूल तत्वों को आत्मसात करने की प्रेरणा अवश्य मिली होगी।

अशोक ने संस्कृति – प्रसार की सुविचारित और सुव्यवस्थित नीति चलाई। उसने कहा कि धर्म का प्रचार होने से मानव देवताओं से मिल जाएंगे।

अशोक के अनुसार शिकारी और मछुआरों ने हिंसा का त्याग करके धम्म को अपनाया। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने स्थानबद्ध कृषकों का पेशा अपना लिया। मौर्य शासन का महत्त्व

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

232 ईसा – पूर्व में अशोक के राज्यकाल के समाप्त होते ही मौर्य साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया।

मौर्य साम्राज्य के हास और पतन के कई कारण प्रतीत होते है :-

ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया

अशोक की नीति के चलते ब्राह्मणों में प्रतिक्रिया हुई। उसने पशु – पक्षियों के वध को निषिद्ध कर दिया और स्त्रियों में प्रचलित कर्मकांडीय अनुष्ठानों की खिल्ली उड़ाई। स्वभावतः इससे ब्राह्मणों की आय घटी।

बौद्ध धर्म के प्रचार और अशोक के यज्ञविरोधी रूप से ब्राह्मणों की आय घटी।

मौर्य साम्राज्य के खंडहर पर ब्राह्मण – राज्यों का उदय हुआ जैसे – शुंग , कण्व और सातवाहन। मौर्य शासन का महत्त्व

वित्तीय संकट

सेना और प्रशासनिक अधिकारियों पर होने वाले भारी खर्च के बोझ से मौर्य साम्राज्य के सामने वित्तीय संकट खड़ा हो गया।

प्राचीन काल में सबसे विशाल सेना और प्रशासनिक तंत्र मौर्यों का ही था।

लगता है कि अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं को इतना दान दिया कि राजकोष खाली हो गया।

अंतिम अवस्था में अपने खर्च को पूरा करने के लिए मौर्यों को सोने की देवप्रतिमाएं तक गलानी पड़ी। मौर्य शासन का महत्त्व

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दमनकारी शासन

साम्राज्य के विघटन का एक महत्वपूर्ण कारण था प्रांतों में दमनकारी शासन।

बिंदुसार के शासन-काल में तक्षशिला के नागरिकों ने दुष्टामात्यों के कुशासन की कड़ी शिकायतें की थी। फलतः अशोक को यहां का गवर्नर नियुक्त किया गया।

अशोक जब सम्राट बना तब फिर तक्षशिला में वैसी ही शिकायत आई।

अशोक के कालिंग अभिलेख से प्रकट होता है कि प्रांतों में हो रहे अत्याचारों से वह बड़ा चिंतित था। और इसलिए महामात्रों को आदेश दिया गया था कि समुचित कारण के बिना वे नागरिकों को सताएं नहीं।

उपरोक्त के कारण ही अशोक ने तोसली ( कलिंग में ) , उज्जैन और तक्षशिला के अधिकारियों के स्थानांतरण की परिपाटी चलाई।

अशोक ने स्वयं 256 रातें धम्मयात्रा में बिताई ताकि इस क्रम से प्रशासन की देखभाल की जा सके।

अशोक के राज्य – काल के समाप्त होते ही सर्वप्रथम तक्षशिला ही मौर्य साम्राज्य से अलग हो गया। मौर्य शासन का महत्त्व

दूरवर्ती क्षेत्र में नए ज्ञान की पहुँच

मगध साम्राज्य के विस्तार के फलस्वरूप ज्यों ही भौतिक संस्कृति के तत्व मध्य भारत , दक्कन और कलिंग पहुंचे त्यों ही गंगा के मैदान का वर्चस्व घटने लगा।

मध्य गंगा क्षेत्र से बाहर वाले प्रांतों में लोहे के औजारों का प्रयोग ज्यों – ज्यों बढ़ता गया त्यों – त्यों मौर्य साम्राज्य का हास और पतन होता गया।

मगध से प्राप्त भौतिक संस्कृति की बदौलत नए-नए राज्य स्थापित और विकसित होते गए। मौर्य शासन का महत्त्व

पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत की उपेक्षा और चीन की महादीवार

अशोक देश और विदेशों में मुख्यत: धर्म – प्रचार के काम में व्यस्त रहा अतः पश्चिमोत्तर सीमावर्ती दर्रे की रक्षा की ओर ध्यान नहीं दे सका।

चीन के राजा ‘ शीह हुऑंग ती ‘ ने सीथियन और शकों के हमले से अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए लगभग 220 ईसा पूर्व में चीनी महादीवार बनवाई।

अशोक ने ऐसा कोई उपाय नहीं किया। स्वभावतः जब सीथियन शक भारत की ओर बढ़े तो उन्होंने पार्थिअनों , शकों और यूनानियों को भारत की ओर ढकेल दिया।

यूनानियों ने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में बैक्ट्रिया नामक राज्य स्थापित किया था। सर्वप्रथम उन्होंने ही 206 ईसा – पूर्व में भारत पर आक्रमण किया।

मौर्य साम्राज्य को पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में अंतिम रूप से नष्ट कर दिया।

कहा जाता है कि पुष्यमित्र शुंग ( ब्राह्मण था ) अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ का सेनापति था जिसने लोगों के सामने ही बृहद्रथ को मारकर राज्य हड़प लिया।

शुंग ने बौद्धों को भी सताया। उनकी जगह कण्ववंशी आए और वे भी ब्राह्मण थे। मौर्य शासन का महत्त्व

MCQ

प्रश्न 1 – राजा को ‘ धर्मप्रवर्तक ‘ अर्थात सामाजिक व्यवस्था का संचालक कहा है –

उत्तर – कौटिल्य ने

प्रश्न 2 – मौर्य प्रशासन – तंत्र में शीर्षस्थ अधिकारी को कहा जाता था –

उत्तर – तीर्थ

प्रश्न 3 – पण कितने तोले के बराबर चांदी का सिक्का होता था ?

उत्तर – 3/4 तोले

प्रश्न 4 – कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे ?

उत्तर – 27

प्रश्न 5 – मौर्यों ने ‘ कर वसूली ‘ और ‘ संग्रहण ‘ से कहीं ज्यादा महत्व दिया –

उत्तर – ‘ कर – निर्धारण ‘ को

प्रश्न 6 – कर – निर्धारण का सर्वोच्च अधिकारी होता था –

उत्तर – समाहर्ता

प्रश्न 7 – राजकीय कोषागार और भड़ागार का संरक्षक होता था –

उत्तर – सन्निधाता

प्रश्न 8 – बड़े पैमाने पर पत्थर की इमारत बनाने का काम किस काल में आरंभ हुआ ?

उत्तर – मौर्यकाल

प्रश्न 9 – बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए चट्टानों को काटकर गुफाएं बनाने की परंपरा शुरू की –

उत्तर – मौर्य शिल्पियों ने

प्रश्न 10 – पूर्वोत्तर भारत में सर्वप्रथम पकाई हुई ईंट का प्रयोग हुआ –

उत्तर – मौर्य काल में

प्रश्न 11 – छल्लेदार कुँए सबसे पहले गंगा घाटी में प्रकट हुए –

उत्तर – मौर्य काल में

प्रश्न 12 – किस जिले में मौर्य ब्राह्मी लिपि में ‘ महास्थान ‘ का अभिलेख पाया गया है ?

उत्तर – बोगरा

प्रश्न 13 – दक्कन के सातवाहनों का उदय हुआ –

उत्तर – ईसा – पूर्व पहली सदी में

प्रश्न 14 – तोसली ( कलिंग में ), उज्जैन और तक्षशिला के अधिकारियों के स्थानांतरण की परिपाटी चलाई –

उत्तर – अशोक ने

प्रश्न 15 – चीन के किस राजा ने सीथियन और शकों के हमले से अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए लगभग 220 ईसा पूर्व में चीनी महादीवार बनवाई ?

उत्तर – शीह हुऑंग ती

प्रश्न 16 – अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ का सेनापति , जिसने लोगों के सामने ही बृहद्रथ को मारकर राज्य हड़प लिया –

उत्तर – पुष्यमित्र शुंग

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