सातवाहन युग
सातवाहन युग :- उत्तर भारत में मौर्यों के उत्तराधिकारी हुए शुंग और बाद कण्व।
दक्कन और मध्य भारत में मौर्य के उत्तराधिकारी सातवाहन हुए , हालांकि इनके बीच में करीब 100 वर्षों का अंतराल था।
सातवाहन और पुराणों में उल्लेखित आंध्र एक ही माने जाते हैं। पुराणों में केवल आंध्र – शासन का उल्लेख है , सातवाहन – शासन का नहीं। दूसरी ओर सातवाहन अभिलेखों में आंध्र नाम नहीं मिलता है।
सातवाहन – पूर्व बस्तियों का अस्तित्व दक्कन के अनेक स्थलों पर लाल मृदभांड , काला व लाल मृदभांड और गेरुआ लेपित चित्रित मृदभांड के पाए जाने से प्रमाणित होता है।
लोहे के फल का प्रयोग , धान की रोपनी , नगरीकरण , लेखन – कला आदि के आगमन से सातवाहनों के द्वारा राज्य के गठन के लिए उपयुक्त स्थिति बन गई थी।
कुछ पुराणों के अनुसार आन्ध्रों ने कुल मिलाकर 300 वर्षों तक शासन किया और यही समय सातवाहनों का शासन – काल माना जाता है। सातवाहन युग
सातवाहनों के सबसे पुराने अभिलेख ईसा – पूर्व पहली सदी के हैं। उसी समय उन्होंने कण्वों को पराजित कर मध्य भारत के कुछ भागों में अपनी सत्ता स्थापित की।
आरंभिक सातवाहन राजा आंध्र में नहीं , बल्कि उत्तरी महाराष्ट्र में थे जहां उनके प्राचीनतम सिक्के और अधिकांश आरंभिक अभिलेख मिले हैं। उन्होंने अपनी सत्ता ऊपरी गोदावरी घाटी में स्थापित की।
सातवाहनों के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी शक थे जिन्होंने अपनी सत्ता दक्कन और पश्चिमी भारत में स्थापित की थी।
एक समय ऐसा भी आया जब शकों ने सातवाहनों को महाराष्ट्र और पश्चिमी भारत से बेदखल कर दिया।
सातवाहन वंश के ऐश्वर्या को गौतमीपुत्र शातकर्णि ( 106 – 103 ई ) फिर से वापस लाया। उसने अपने को एकमात्र ब्राह्मण कहा , शकों को हराया और अनेक क्षत्रिय शासको का नाश किया।
गौतमीपुत्र सातकर्णि का दावा है कि उसने क्षहरात वंश का नाश किया क्योंकि उसका शत्रु नहपान इसी वंश का था। यह दावा सही है , क्योंकि नहपान के जो 8000 से अधिक चांदी के सिक्के नासिक के पास मिले हैं उन पर सातवाहन राजा द्वारा फिर से ढलाए जाने के चिन्ह है। सातवाहन युग
उसने मालवा और काठियावाड़ पर भी अधिकार जमा लिया जो शकों के अधीन थे। उसका साम्राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला हुआ था। संभवत: आंध्र पर भी उसका अधिकार था।
गौतमीपुत्र के उत्तराधिकारियों ने 220 ई तक शासन किया।
गौतमीपुत्र के उत्तराधिकारी ‘ वाशिष्ठीपुत्र पुलुमायी ‘ ( 130 – 154 ईस्वी ) के सिक्के और अभिलेख आंध्र में पाए गए हैं , जो बताते हैं कि यह क्षेत्र दूसरी सदी के मध्य तक सातवाहन राज्य का अंग बन चुका था।
वाशिष्ठीपुत्र ने अपनी राजधानी आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में गोदावरी नदी के किनारे ‘ पैठन ‘ या प्रतिष्ठान में बनाई।
सौराष्ट्र ( काठियावाड़ ) के शक शासक रुद्रदामन प्रथम ( 130 – 150 ई ) ने सातवाहनों को दो बार हराया , मगर वैवाहिक संबंध के कारण उनका नाश नहीं किया।
सातवाहन राजा ‘ यज्ञश्री शातकर्णि ‘ ( 165 – 194 ई ) ने उत्तरी कोंकण और मालवा को शक शासको से वापस ले लिया।
यज्ञश्री व्यापार और जलयात्रा का प्रेमी था। उसके सिक्के न केवल आंध्र प्रदेश बल्कि महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश और गुजरात में भी पाए जाते हैं। इन सिक्कों पर जहाज का चित्र है जो जलयात्रा और समुद्री व्यापार के प्रति उसके प्रेम का परिचायक है। सातवाहन युग
भौतिक संस्कृति के पहलू
सातवाहन काल में दक्कन की भौतिक संस्कृति स्थानीय तत्वों और उत्तर के वैशिष्ट्य का मिश्रण था।
दक्कन के महापाषाण निर्माता लोहे का इस्तेमाल और खेती दोनों से परिचित थे।
मूठ वाले फावड़े , हँसिये , कुदालें , हल के फाल , बसूले , कुल्हाड़ियाँ , उस्तरे आदि उत्खनित स्थानों के सातवाहन स्तरों में पाए गए हैं। चूलदार और मूठ वाले बाणाग्र और कटारें भी मिली है।
करीमनगर जिले में एक उत्खनित स्थान पर लोहार की एक दुकान मिली है। सातवाहनों ने करीमनगर और वारंगल के लौह अयस्कों का प्रयोग किया होगा क्योंकि इन दिनों में महापाषाण काल में लोहे की खदानें थी।
ईसा से पूर्व की और बाद की सदियों में कोलार क्षेत्र में प्राचीन स्वर्ण के कारीगरों के साक्ष्य मिले हैं।
सातवाहनों ने स्वर्ण का प्रयोग बहुमूल्य धातु के रूप में किया होगा क्योंकि उन्होंने कुषाणों की तरह सोने के सिक्के नहीं चलाए।
सातवाहनों के सिक्के अधिकांश सीसे के हैं जो दकन में पाए जाते हैं। उन्होंने पोटीन , तांबे और कांसे की मुद्राएं भी चलाई। सातवाहन युग
पूर्वी दक्कन में ईसा की आरंभिक सदियों में सातवाहन की जगह इक्ष्वाकु आए।
दक्कन के लोग धान की रोपनी जानते थे और कपास भी उपजाते थे। विदेशियों के विवरणों में आंध्र कपास के उत्पादन में मशहूर बताया गया है।
प्लिनी के अनुसार आंध्र राज्य की सेना में 1 लाख पैदल से सिपाही , 2000 घुड़सवार और 1000 हाथी थे।
उत्तर के संपर्क से दक्कन के लोगों ने पकाई ईंट , छल्लेदार कुआं , सिक्कों का प्रयोग , लेखन कला आदि को अपनाया।
करीमनगर जिले के पेड्डबंकुर ( 200 ईसा पूर्व – 200 ईस्वी ) में पकी ईंट और छत में लगने वाले चिपटे छेददार खपड़े का प्रयोग पाते हैं। सातवाहन युग
द्वितीय शताब्दी ईस्वी के ईंटों के बने 22 कुँए भी इस स्थल पर पाए गए है।
महाराष्ट्र में ईसा – पूर्व प्रथम सदी में नगरों का उदय हुआ।
प्लिनी ने लिखा है कि पूर्वी दक्कन में आंध्र प्रदेश में बहुत सारे गांवों के अलावा दीवार से गिरे 30 नगर थे।
पूर्वी दकन के गोदावरी – कृष्णा क्षेत्र से भारी संख्या में मिले रोमन और सातवाहन सिक्कों से बढ़ते हुए व्यापार का संकेत मिलता है। सातवाहन युग
सामाजिक संगठन
लगता है कि सातवाहन दकन की किसी जनजाति के लोग थे। लेकिन वे ब्राह्मण बना लिए गए थे।
सातवानों के सबसे प्रसिद्ध राजा गौतमीपुत्र शातकर्णि का दावा है कि उसने विच्छिन्न होते चातुर्वणर्य को फिर से स्थापित किया और वर्णसंकर को रोका।
शकों और सातवानों के बीच वैवाहिक संबंध होने से शकों का क्षत्रिय के रूप में ब्राह्मणीय समाज में प्रवेश आसान हो गया।
बौद्ध भिक्षुओं ने देशी जनजाति लोगों का बौद्धीकरण किया। इस कार्य के लिए बौद्ध भिक्षुओं को भूमिदान देकर प्रोत्साहित किया गया कि वे पश्चिमी दकन में जनजातीय लोगों के बीच बच जाए।
इस बात के संकेत मिलते हैं कि व्यापारी वर्ग बौद्ध – भिक्षुओं की सहायता करता था क्योंकि आरंभिक बौद्ध गुफाएं व्यापार – मार्गों पर ही मिली है।
ब्राह्मणों को भूमिअनुदान देने वाले प्रथम शासक सातवाहन ही हुए , भिक्षुओं के लिए इस प्रकार के अनुदान के उदाहरण अधिक मिलते हैं। सातवाहन युग
धर्मशास्त्र के अनुसार शासन करना क्षत्रियों का कर्तव्य है , परंतु सातवाहन शासकों ने अपने को ब्राह्मण कहा। गौतमीपुत्र तो गर्व से कहता है कि सच्चा ब्राह्मण वही है।
उत्तर के कट्टर ब्राह्मण आन्ध्रों को वर्णशंकर मानकर हीन समझते थे। इससे यह प्रतीत होता है कि आंध्र लोग जनजाति मूल के थे और ब्राह्मणीय समाज में वर्णसंकर के रूप में समाहित हुए थे।
शिल्पी और वणिक दोनों ने बौद्ध धर्म को उदारतापूर्वक दान दिए। उन्होंने स्मारक व शिलापट्टिकाएँ स्थापित की। शिल्पियों में ‘ गंधिकों ‘ का नाम दाता के रूप में बारंबार उल्लेखित है।
गंधिक वे शिल्पी कहलाते थे जो इत्र आदि बनाते थे। बाद में हर प्रकार के दुकानदारों के लिए यह शब्द प्रयुक्त होने लगा। आज का उपनाम गाँधी इसी प्राचीन शब्द से निकला है।
सातवाहनों में हमे मातृतंत्रात्मक ढांचे का आभास मिलता है। उनके राजाओं के नाम उनकी माताओं के नाम पर रखने की प्रथा थी , जैसे – गौतमीपुत्र , वाशिष्ठिपुत्र आदि।
रानियों ने स्वाधिकारपूर्वक बड़े-बड़े धार्मिक दान किए और कई रानियों ने तो प्रतिशासक के रूप में भी काम किया।
किंतु , मूल्यत: सातवाहन राज्यकुल पितृतंत्रात्मक था क्योंकि राजसिंहासन का उत्तराधिकारी पुत्र ही होता था। सातवाहन युग
प्रशासनिक ढांचा
सातवाहन शासको ने धर्मशास्त्रों में बताए गए राजा के आदर्श पर चलने का प्रयास किए। राजा धर्म का संरक्षक होता था।
सातवाहन राजा का वर्णन राम , भीम , केशव , अर्जुन आदि पौराणिक महापुरुषों के गुणों से विभूषित रूप में किया गया है।
सातवाहनों की कुछ प्रशासनिक इकाइयां वही थी जो अशोक के काल में पाई गई थी। अशोक के काल की तरह ही जिला को ‘ आहार ‘ कहा जाता था। उनके अधिकारी , मौर्य काल की तरह ही , ‘ अमात्य ‘ और ‘ महामात्य ‘ कहलाते थे।
सातवाहनों के प्रशासन में हम कुछ खास सैनिक और सामन्तिक लक्षण पाते हैं।
सेनापति को प्रांत का शासनाध्यक्ष या गवर्नर बनाया जाता था क्योंकि दक्कन की जनजातिय लोगों का न तो पूरा-पूरा ब्राह्मणीकरण हुआ था और न वे अपने को नए शासन के अनुकूल बना पाए थे। अतः उन्हें प्रबल सैनिक नियंत्रण में रखना आवश्यक था।
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन का काम ‘ गौल्मिक ‘ को सौंपा जाता था जो एक सैन्य टुकड़ी का प्रधान होता था जिसमें नौ रथ , नौ हाथी , 25 घोड़े और 45 पैदल सैनिक होते थे। सातवाहन युग
सातवाहन अभिलेखों में ‘ कटक ‘ और ‘ स्कन्धावार ‘ शब्दों का खूब उल्लेख है। वे सैनिक शिविर और बस्तियां होते थे। ये तब तक प्रशासनिक केंद्र के रूप में काम करते थे जब तक वहां पर राजा स्वयं रहते थे।
सातवाहन शासन में दमन – नीति का प्रमुख स्थान था।
सातवाहनों ने ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं को कर – मुक्त ग्रामदान देने की प्रथा प्रारंभ की। ऐसे ग्राम राजपुरुषों , सैनिकों , राजकीय अधिकारियों आदि के हस्तक्षेप से मुक्त होता था।
सातवाहन राज्य में सामंतों की तीन श्रेणियां थी। पहली श्रेणी का सामंत राजा कहलाता था और उसे सिक्का ढालने का अधिकार था। द्वितीय श्रेणी का सामंत ‘ महाभोज ‘ और तृतीय श्रेणी का ‘ सेनापति ‘ कहलाता था। सातवाहन युग
धर्म
सातवाहन शासक ब्राह्मण थे और आरंभ से ही राजाओं और रानियों ने अश्वमेध , वाजपेय आदि वैदिक यज्ञ किए। वे कृष्ण , वासुदेव आदि बहुत से वैष्णव देवताओं के भी उपासक थे।
सातवाहनों ने यज्ञानुष्ठानों में ब्राह्मणों को प्रचुर दक्षिणा दी। सातवाहन शासको ने भिक्षुओं को ग्राम दान देकर बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया। उनके राज्य में महायान संप्रदाय का बोलबाला था।
आंध्र प्रदेश में ‘ नागार्जुनकोंडा ‘ और ‘ अमरावती ‘ नगर सातवाहनों के शासन में और विशेषकर उनके उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के शासन में बौद्ध संस्कृति के महत्वपूर्ण केंद्र बन गए।
महाराष्ट्र के पश्चिमी दक्कन के नासिक को जुनार क्षेत्रों में भी शायद व्यापारियों का संरक्षण पाकर बौद्ध धर्म फुला – फला। सातवाहन युग
वास्तुकला
सातवाहन काल में पश्चिमोत्तर दकन या महाराष्ट्र में ठोस चट्टानों को काटकर अनेक चैत्य और विहार बनाए गए। वस्तुत: यह प्रक्रिया 200 ईसा – पूर्व के आसपास लगभग एक शताब्दी पहले ही आरंभ हो चुकी थी।
बौद्धों के मंदिर को ‘ चैत्य ‘ तथा भिक्षुओं के निवास स्थान को ‘ विहार ‘ कहा जाता था। चैत्य अनेक पायों पर खड़ा-बड़ा हॉल जैसा होता था और ‘ विहार ‘ में एक केंद्रीय शाला होती थी जिसमें सामने के बरामदे की ओर एक द्वारा रहता था।
सबसे मशहूर चैत्य पश्चिमी दक्कन में कार्ले का है जो लगभग 40 मीटर लंबा , 15 मीटर चौड़ा और 15 मीटर ऊंचा है।
‘ विहार ‘ चैत्यों के पास बनाए गए तथा उनका उपयोग वर्षा काल में भिक्षुओं के निवास के लिए होता था।
नासिक में तीन विहार है। चूंकि उनमें नहपान और गौतमीपुत्र के अभिलेख हैं , इसलिए प्रतीत होता है कि वे ईसा की पहली – दूसरी शताब्दियों के हैं।
आंध्र प्रदेश का कृष्णा – गोदावरी क्षेत्र बौद्ध स्तूपों के लिए मशहूर है। इनमें अमरावती और नागार्जुनकोंड़ा के स्तूप प्रसिद्ध है। सातवाहन युग
स्तूप गोल स्तंभकार ढांचा है जो बुद्ध के किसी अवशेष के ऊपर खड़ा किया जाता था।
अमरावती स्तूप का निर्माण लगभग 200 ईसा – पूर्व के आरंभ में हुआ , किंतु ईसा की दूसरी सदी के उत्तरार्ध में आकर यह पूर्णरूपेण निर्मित हुआ। यह भित्ति – प्रतिमाओं से भरा हुआ है। इसमें बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृश्य उकेरे हुए हैं।
नागार्जुनकोंडा सातवाहनों के उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के काल में अपने उत्कर्ष की चोटी पर था। यहां केवल बौद्ध स्मारक ही नहीं बल्कि सबसे पुराने ईंट के बने हिन्दू मंदिर भी हैं।
नागार्जुनकोंडा में लगभग दो दर्जन विहार दिखाई देते हैं। अपने स्तूपों और महाचैत्यों से अलंकृत यह स्थान ईसा की आरंभिक सदियों में मूर्तिकला में सबसे समृद्ध प्रतीत होता है। सातवाहन युग
भाषा
सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी। सभी अभिलेख इसी भाषा में और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।
प्राकृत ग्रंथ ‘ गाथाहासत्तसई ‘ ( या गाथासप्तशती ) हाल नमक सातवाहन राजा की रचना बताई जाती है। इसमें 700 श्लोक प्राकृत में है। इसका अंतिम परिमार्जन बहुत दिनों के बाद संभवत: ईसा की छठी सदी के बाद किया गया। सातवाहन युग
MCQ
प्रश्न 1 – दक्कन और मध्य भारत में मौर्य के उत्तराधिकारी हुए –
उत्तर – सातवाहन
प्रश्न 2 – सातवाहनों के सबसे पुराने अभिलेख हैं –
उत्तर – ईसा – पूर्व पहली सदी के
प्रश्न 3 – किस सातवाहन शासक ने अपने वंश के ऐश्वर्य को वापस लाया तथा अपने आप को एक मात्र ब्राह्मण कहा ?
उत्तर – गौतमीपुत्र शातकर्णि
प्रश्न 4 – किस सातवाहन शासक ने क्षहरात वंश का नाश करने का दावा किया था ?
उत्तर – गौतमीपुत्र शातकर्णि
प्रश्न 5 – नासिक से 8000 से अधिक चांदी के सिक्के मिले है यह किस शासक के है ?
उत्तर – नहपान
प्रश्न 6 – किस सातवाहन शासक ने अपनी राजधानी आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में गोदावरी नदी के किनारे ‘ पैठन ‘ या प्रतिष्ठान में बनाई ?
उत्तर – वाशिष्ठीपुत्र पुलुमायी ने
प्रश्न 7 – किस शक शासक ने सातवाहनों को दो बार हराया , मगर वैवाहिक संबंध के कारण उनका नाश नहीं किया ?
उत्तर – रुद्रदामन प्रथम
प्रश्न 8 – कौन सातवाहन शासक व्यापार और जलयात्रा का प्रेमी था ?
उत्तर – यज्ञश्री शातकर्णि
प्रश्न 9 – सातवाहनों के सिक्के अधिकांश हैं –
उत्तर – सीसे के
प्रश्न 10 – महाराष्ट्र में नगरों का उदय हुआ –
उत्तर – ईसा – पूर्व प्रथम सदी में
प्रश्न 11 – किस सातवाहन शासक का दावा है कि उसने विच्छिन्न होते चातुर्वणर्य को फिर से स्थापित किया और वर्णसंकर को रोका ?
उत्तर – गौतमीपुत्र शातकर्णि
प्रश्न 12 – ब्राह्मणों को भूमिअनुदान देने वाले प्रथम शासक कौन थे ?
उत्तर – सातवाहन शासक
प्रश्न 13 – आज का उपनाम गाँधी किस प्राचीन शब्द से निकला है ?
उत्तर – गंधिक
प्रश्न 14 – सातवाहन के अधिकारी भी मौर्य काल की तरह ही , ‘ अमात्य ‘ और ‘ महामात्य ‘ कहलाते थे। इस काल में ‘ आहार ‘ किसे कहा जाता था ?
उत्तर – जिले को
प्रश्न 15 – सातवाहन प्रशासन में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन का काम सौंपा जाता था –
उत्तर – गौल्मिक को
प्रश्न 16 – सातवाहन अभिलेखों में ‘ कटक ‘ और ‘ स्कन्धावार ‘ शब्दों का खूब उल्लेख है। जिसका तात्पर्य था –
उत्तर – सैनिक शिविर और बस्तियां
प्रश्न 17 – सातवाहन राज्य में सामंतों की कितनी श्रेणियां थी ?
उत्तर – तीन
प्रश्न 18 – सातवाहन शासकों के राज्य में बौद्ध धर्म के किस संप्रदाय का बोलबाला था ?
उत्तर – महायान
प्रश्न 19 – बौद्धों के मंदिर को क्या कहा जाता था ?
उत्तर – चैत्य
प्रश्न 20 – भिक्षुओं के निवास स्थान को क्या कहा जाता था ?
उत्तर – विहार
प्रश्न 21 – सातवाहनों की राजकीय भाषा थी –
उत्तर – प्राकृत
प्रश्न 22 – प्राकृत ग्रंथ ‘ गाथाहासत्तसई ‘ ( या गाथासप्तशती ) किस सातवाहन राजा की रचना बताई जाती है ?
उत्तर – हाल