पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार :- कोई क्षेत्र तभी सभ्य माना जाता है जब वहां लिखने की कला ज्ञात हो ,कर – संग्रह की व्यवस्था हो ,सुव्यवस्था बनाए रखने की प्रणाली हो , तथा धार्मिक , प्रशासनिक और उत्पादनात्मक कार्यों के संपादन के लिए सामाजिक वर्ग और विशेषज्ञ उपलब्ध हो।
सब से बढ़कर , सभ्य समाज में इतना उत्पादन हो जिनसे न केवल वास्तविक उत्पादकों की बल्कि उत्पादन – कार्य से दूर रहने वाले उपभोक्ताओं की भी आवश्यकताएं पूरी की जा सकें।
उपरोक्त सभी तत्व पूर्वी भारत में काफी बड़े हिस्से में यथेष्ठ मात्रा में बहुत विलंब से दिखाई पड़ता है।
पूर्वी मध्य प्रदेश के अधिकतर भागों , उड़ीसा , पश्चिम बंगाल , बंगलादेश और असम के संलग्न क्षेत्रों में ईशा की चौथी सदी के मध्य तक कोई लिखित दस्तावेज व्यावहारिक रूप से नहीं मिलता है।
चौथी से सातवीं सदी तक के कल की विशेषता है मध्य प्रदेश , उड़ीसा , पूर्वी वह दक्षिण – पूर्वी बंगाल तथा असम में उन्नत – कृषि अर्थव्यवस्था का प्रसार , राजतंत्रों का गठन और सामाजिक वर्गों की स्थापना। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
उड़ीसा और पूर्वी एवं दक्षिणी मध्य प्रदेश
महानदी के दक्षिण में उड़ीसा का समुद्रतटवर्ती प्रदेश कालिंग कहलाता था जहां सुदृढ़ राज्य की स्थापना ईसा – पूर्व पहली सदी में आकर हुई। इसका शासक खारवेल मगध तक बाढ़ आया था।
ईशा की पहली और दूसरी सदियों में उड़ीसा के बंदरगाहों में मोती , हाथी दांत और मलमल का अच्छा व्यापार होता था।
भुवनेश्वर से 60 किलोमीटर की दूरी पर खारवेल की राजधानी ‘ कलिंगनगरी ‘ के स्थल पर ‘ शिशुपालगढ़ ‘ में जो खुदाई हुई है उसमें रोम की कई वस्तुएं मिली है। इससे रोमन साम्राज्य से व्यापारिक संपर्क का पता चलता है।
चौथी सदी में , समुद्रगुप्त द्वारा विजित प्रदेशों की सूची में कोसल और महाकान्तार का नाम आता है। इन दोनों के अंतर्गत उत्तरी और पश्चिमी उड़ीसा के भाग आते हैं।
चौथी सदी के मध्य से छठी सदी तक उड़ीसा में स्थापित लगभग पांच राज्यों में से सबसे महत्वपूर्ण ‘ माठर वंश ‘ या ‘ पितृभक्त वंश ‘ का राज्य है।
वशिष्ठ , नल और मान वंशों के राज्य माठर राज्य के पड़ोसी और समकालीन थे। वशिष्ठ वंश का राजा दक्षिण कलिंग में आंध्र की सीमाओं पर था , नल वंश का राजा महाकान्तार के वन्य प्रदेशों में था , और मान वंश का राज्य महानदी के पार उत्तर के समुद्रतटवर्ती क्षेत्र में था। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
छत्तीसगढ़ में बस्तर के जनजातीय इलाकों में नलवंश की स्वर्णमुद्राएं मिली है।
मान वंश ने शायद तांबे के सिक्के जारी किए ,जिसका मतलब होता है कि शिल्पियों और किसानों के बीच भी सिक्कों का प्रचलन था।
माठरों ने महेंद्र पर्वत के क्षेत्र में महेन्द्रभोग नाम का नया जिला बनाया। उसके पास दन्तयवागुभोग नाम का एक जिला था जहां से इसके प्रशासकों को हाथी दाँत और चावल का माड़ प्राप्त होता था।
माठरों ने एक प्रकार के न्यास स्थापित किए जो ‘ अग्रहार ‘ कहलाते थे। इस न्यास में कुछ भूमि होती थी और गाँवों से होने वाली आय।
इन अग्रहारों का उद्देश्य पठन-पाठन और धार्मिक अनुष्ठानों में लगे ब्राह्मणों का भरण – पोषण करना था। यहां कुछ अग्रहारों से कर लिया जाता था , जबकि देश के अन्यत्र ऐसे अग्रहार कर – मुक्त होते थे। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
जनजातीय , जंगली और लाल मिट्टी वाले क्षेत्रों में ब्राह्मणों को भूमि दान देकर बसाने से नई परती जमीन में खेती शुरू हुई और मौसम की अच्छी जानकारी के सहारे खेती के सुधरे तरीके शुरू हुए।
पांचवी सदी के मध्य में माठरों के शासनकाल में वर्ष को 12 चंद्र मासों में विभाजित करने की परंपरा चली।
उड़ीसा के समुद्र तटवर्ती भाग में लेखन – कला ईसा – पूर्व तीसरी सदी से ही ज्ञात थी , और ईसा की चौथी सदी तक के अभिलेख प्राकृत में मिलते हैं। परंतु 350 ई के आसपास से संस्कृत का प्रयोग शुरू हुआ।
संस्कृत के शासनपत्रों में पुराणों और धर्मशास्त्रों के वचन उद्धृत किए गए हैं। इनमें राजा अपने को वर्णव्यवस्था का रक्षक कहता है। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
बंगाल
उत्तरी बंगाल के कई भागों में , जहां अब बोगरा जिला है ,इस बात का प्रमाण मिलता है कि बंगाल में अशोक के समय लेखन प्रचलित था।
एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि कई बस्तियों में बहुत बौद्ध भिक्षुओं के भरण – पोषण के लिए अनाज और सिक्कों से भरे भंडार – घर थे।
दक्षिण – पूर्वी बंगाल के समुद्रतटवर्ती नोआखली जिले में मिले एक अभिलेख से प्रकट होता है कि उस इलाके के लोग ईसा – पूर्व दूसरी सदी में प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि जानते थे। लगता है कि दक्षिण – पूर्वी बंगाल में खरोष्टी लिपि भी प्रचलित थी।
लगभग चौथी सदी के मध्य में ‘ महाराज ‘ की उपाधि से एक राजा बांकुरा जिले के दामोदर नदी के तटवर्ती पोखरना पर राज करता था। वह संस्कृत जानता था और विष्णु का उपासक था।
गंगा और ब्रह्मपुत्र के बीच का प्रदेश , जहां सम्प्रति बंगलादेश है , पांचवी और छठी सदियों में संस्कृत शिक्षा से परिपूर्ण था।
लगता है 550 ई के बाद गुप्त राजाओं के गवर्नर स्वतंत्र हो गए , और उन्होंने उत्तर बंगाल पर कब्जा कर लिया। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
600 ईस्वी में आकर यह प्रदेश ‘ गौड़ ‘ कहलाने लगा और यहां हर्ष के शत्रु शशांक ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
432 – 33 ई से लेकर लगभग 100 वर्षों तक ‘ पुण्ड्रवर्धनभुक्ति ‘ जिसमें लगभग संपूर्ण उत्तरी बंगाल और अब के बंगलादेश शामिल है , में ताम्रपत्र मिले हैं जिन पर भूमि के विक्रय और अनुदान अभिलिखित हैं।
अधिकतर अनुदानपत्रों से ज्ञात होता है की भूमि का मूल्य ‘ दीनार ‘ नमक स्वर्ण – मुद्राओं में चुकाया जाता था।
बंगाल का ब्रह्मपुत्र द्वारा गठित त्रिभुजाकार भाग ‘ समतट ‘ कहलाता था जिसे , चौथी सदी में समुद्रगुप्त ने जीता था। दक्षिण – पूर्वी बंगाल इसी में पड़ता है।
शायद ‘ समतट ‘ के शासक ब्राह्मण धर्मावलंबी नहीं थे , इसलिए यहां न संस्कृत भाषा का प्रयोग पाते हैं और न वर्ण – व्यवस्था का प्रचलन , जैसे कि उत्तरी बंगाल में पाते हैं। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
लगभग 525 ई से इस प्रदेश में सुसंगठित राज्य रहा है जिसमें ‘ वंग ‘ का भाग भी शामिल है। यह ‘ समतट राज्य ‘ या ‘ वंग राज्य ‘ कहलाता था। ‘ सम हरदेव ‘ सहित इसके अनेक शासकों ने छठी सदी के उत्तरार्ध में स्वर्णमुद्राएं जारी की।
सातवीं सदी में ढाका क्षेत्र में हम ‘ खड्ग वंश ‘ का राज्य पाते हैं। यहां दो और राज्य थे – लोकनाथ नामक ब्राह्मण सामंत का राज्य और ‘ राटवंश का राज्य। दोनों कुमिल्ला क्षेत्र में पड़ते हैं।
बंगाल और उड़ीसा के बीच वाले सीमांत क्षेत्र में ‘ दण्डभुक्ति ‘ नाम की राजस्व और प्रशासन संबंधी इकाई थी। दण्ड का अर्थ है सजा , और भुक्ति का अर्थ है भोग। लगता है कि इस इकाई की स्थापना उस क्षेत्र के जनजातीय बाशिंदों को सुधारने और सजा देने के उद्देश्य से की गई होगी।
गांव की जमीन की बिक्री के मामले में गांव के किसानों से सलाह ली जाती थी। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
असम
ब्रह्मपुत्र मैदान में पूर्व से पश्चिम तक फैला ‘ कामरूप ‘ सातवीं सदी में प्रमुख हो गया।
गुवाहाटी के निकट उत्खननों से पता चलता है की ईस्वी सन की चौथी सदी में यहां बस्तियां बस चुकी थी।
चौथी सदी में समुद्रगुप्त ने डवाक और कामरूप से कर वसूला था। डवाक शायद नवगांव जिले का भाग था और कामरूप तो निश्चय ही ब्रह्मपुत्र के मैदान का नाम था।
छठी सदी के आरंभ तक लेखन – कला और संस्कृत भाषा प्रचलित हो चुकी थी।
कामरूप के राजाओं ने ‘ वर्मन ‘ उपाधि धारण की। इस उपाधि का अर्थ है कवच या जिरह – बख्तर जो योद्धा होने का प्रतीक है।
यह उपाधि मनु द्वारा क्षत्रियों का प्रदान की गई थी।
सातवीं सदी के भास्करवर्मन ऐसे राज्य के प्रधान के रूप में खड़ा हुआ , जिसका नियंत्रण ब्रह्मपुत्र मैदान के बड़े भाग पर और उसके आगे के कुछ क्षेत्रों पर भी था। यहां बौद्ध धर्म का भी प्रचार था और चीनी यात्री हुआन सांग इस राज्य में आया था। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
रचनात्मक कला
पूर्वी भारत के लिए चौथी सदी से सातवीं सदी तक के कल को रचनात्मक काल कह सकते हैं। इस काल में संस्कृत विद्या , वैदिक कर्मकांड , वर्णव्यवस्था , राजतंत्र आदि फैला और विकसित हुआ।
गुप्त साम्राज्य से होने वाले सांस्कृतिक संपर्कों से पूर्वांचल में सभ्यता के प्रसार को बल मिला।
यहां के अभिलेखों में गुप्त संवत का प्रयोग किया गया है।
पहली बार हम इस अंचल में पांचवी और छठी सदियों में स्पष्ट रूप से बड़े पैमाने पर लेखन , संस्कृत भाषा का प्रयोग , वर्णभेदमूलक समाज का गठन , तथाबौद्ध धर्म का प्रचलन पाते हैं , साथ ही शैव और वैष्णव संप्रदाय के रूप में ब्राह्मण धर्म की प्रगति देखते है। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
जमीन के रूप में व्यक्तिगत संपत्ति का प्रमाण मिलता है जिसे स्वर्ण मुद्राओं द्वारा खरीदा जा सकता था।
खाद्य – उत्पादक अर्थव्यवस्था उन्नत अवस्था में थी।
कालिदास ने वंग में होने वाली धान के बिचड़ों की रोपाई का वर्णन किया है।
पूर्वांचल के दूरवर्ती प्रांतों में संस्कृति का विकास और सभ्यता का प्रकाश हुआ। पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
MCQ
प्रश्न 1 – महानदी के दक्षिण में उड़ीसा का समुद्रतटवर्ती प्रदेश क्या कहलाता था ?
उत्तर – कालिंग
प्रश्न 2 – कालिंग में एक सुदृढ़ राज्य की स्थापना कब हुई ?
उत्तर – ईसा – पूर्व पहली सदी में
प्रश्न 3 – खारवेल कहाँ का शासक था ?
उत्तर – कालिंग
प्रश्न 4 – माठर वंश का राज्य जिसे पितृभक्त वंश भी कहा जाता है कहाँ पर अवस्थित था ?
उत्तर – उड़ीसा में
प्रश्न 5 – महेंद्र पर्वत के क्षेत्र में महेन्द्रभोग नाम का नया जिला किसने बनाया था ?
उत्तर – माठरों ने
प्रश्न 6 – माठर राज्य के पड़ोसी और समकालीन थे –
उत्तर – वशिष्ठ , नल और मान वंशों के राज्य
प्रश्न 7 – किस वंश में अग्रहार से कर उगाहा जाता था जबकि देश के अन्यत्र ऐसे अग्रहार कर मुक्त थे ?
उत्तर – माठर वंश
प्रश्न 8 – किसके शासनकाल में पांचवी सदी के मध्य में वर्ष को 12 चंद्र मासों में विभाजित करने की परंपरा चली ?
उत्तर – माठरों के
प्रश्न 9 – उड़ीसा के समुद्र तटवर्ती भाग में , ईसा की चौथी सदी तक के अभिलेख किस भाषा में मिलते हैं ?
उत्तर – प्राकृत में
प्रश्न 10 – हर्ष के शत्रु शशांक ने अपना स्वतंत्र राज्य कहाँ स्थापित किया था ?
उत्तर – गौड़
प्रश्न 11 – बंगाल का ब्रह्मपुत्र द्वारा गठित त्रिभुजाकार भाग क्या कहलाता था ?
उत्तर – समतट
प्रश्न 12 – खड्ग वंश का राज्य , लोकनाथ ब्राह्मण का राज्य और राटवंश का राज्य किस क्षेत्र में स्थित थे ?
उत्तर – ढाका क्षेत्र
प्रश्न 13 – चौथी सदी में किस गुप्त शसक ने डवाक और कामरूप से कर वसूला था ?
उत्तर – समुद्रगुप्त
प्रश्न 14 – कामरूप के राजाओं ने कौन – सी उपाधि धारण की ?
उत्तर – वर्मन
प्रश्न 15 – किस कवि ने वंग में होने वाली धान के बिचड़ों की रोपाई का वर्णन किया है ?
उत्तर – कालिदास