प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम - विस्तार
प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार :- लगभग 300 ई से 750 ई तक का काल विंध्य से दक्षिण के प्रदेशों में ‘ द्वितीय ऐतिहासिक चरण ‘ कहा जा सकता है। प्रथम ऐतिहासिक चरण लगभग ईसा – पूर्व 200 से 300 ई तक का कल था।
प्रथम चरण में हम दकन पर सातवाहनों के तथा तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों पर तमिल राज्यों के बढ़ते हुए प्रभुत्व पाते है।
द्वितीय चरण में दक्कन और विदर्भ में 300 ई से 600 ई के बीच लगभग आधा दर्जन राज्य उदित हुए जिनका पता हमें अनुदानपत्रों से चलता है।
सातवीं सदी के आरंभ तक कांची के पल्लव , बादामी के चालुक्य और मदुरै के पाण्ड्य प्रमुख राज्यों के रूप में उभरे।
प्रथम ऐतिहासिक चरण में विविध शिल्पो का उद्भव हुआ , आंतरिक और विदेशी व्यापार बढ़ा , सिक्कों का व्यापक प्रचलन हुआ और नगरों का बड़ी संख्या में उदय हुआ।
द्वितीय चरण में आकर व्यापार , नगर और सिक्के तीनों का हास प्रतीत होता है। ब्राह्मणों के लिए भारी संख्या में कर – मुक्त भूमि का अनुदान इस चरण का प्रमुख लक्षण है। भूमि अनुदानों के चलते इस काल में कृषि अर्थव्यवस्था का कहीं अधिक विस्तार हुआ। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
द्वितीय ऐतिहासिक चरण में हम ब्राह्मण धर्म की जययात्रा भी देखते हैं।
इस अवस्था में तमिलनाडु में पल्लवों और कर्नाटक में बादामी के चालुक्यों के शासन में शिव और विष्णु के परस्तर – मंदिरों का निर्माण आरंभ हुआ।
द्वितीय चरण में प्रवेश करते ही दक्षिण भारत महापाषाणों का क्षेत्र नहीं रहा और इस चरण का अंत होते-होते ऐसी प्रक्रिया का शुरुआत हुई जिसने इसे मंदिरों का क्षेत्र बना दिया।
शासकवर्ग और साक्षर वर्ग की भाषा में परिवर्तन आया। लगभग 400 ई से प्रायद्वीप में संस्कृत राजभाषा हो गई और अधिकांश शासनपत्र संस्कृत में ही मिलते हैं। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
दकन और दक्षिण भारत के राज्य
उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्र में सातवाहनों के उत्तराधिकारी वाकाटक हुए।
वाकाटक स्वयं ब्राह्मण थे और उन्होंने ब्राह्मणों को खूब भूमिअनुदान दिए। इन अनुदानों के प्रमाण उनके द्वारा जारी किए गए अनेक ताम्रपत्रों से मिलते हैं।
वकाटकों का राजनीतिक इतिहास दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में के लिए कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी बेटी प्रभावती का विवाह वाकाटक राजपरिवार में किया और उनकी सहायता से ईसा की चौथी सदी के अंतिम चरण में शक क्षत्रपों से गुजरात और उसके संलग्न पश्चिमी भारत के हिस्से जीत लिए।
सांस्कृतिक दृष्टि से वाकाटक राज्य ने ब्राह्मण धर्म के आदर्शों और सामाजिक संस्थाओं को दक्षिण की ओर बढ़ाने में सेतु का काम किया। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
वकाटकों के बाद चालुक्यों ने लगभग 200 वर्षों तक ( 757 ई तक ) दक्कन और दक्षिण भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चालुक्यों को उन्हीं के सामंत राष्ट्रकूटों ने अपदस्थ कर दिया।
चालुक्य लोग अपने को ब्रह्म , मनु या चंद्र का वंशज मानते थे। उन्हें इस बात का गर्व था कि उन्ही के पूर्वजों ने अयोध्या में राज किया था।
प्रतीत होता है कि चालुक्य लोग किसी स्थानीय कन्नड़ जाति के थे , जो ब्राह्मणों के आशीर्वाद से क्षत्रियों की पंक्ति में बैठा दिए गए थे।
चालुक्यों ने छठी सदी के आरंभ में पश्चिमी दकन में अपना राज्य कायम किया और कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित ‘ वातापी ‘ ( आधुनिक बदामी ) को अपनी राजधानी बनाई।
प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में सातवाहनों के अवशेष पर कृष्ण – गुंटूर क्षेत्र में इक्ष्वाकुओं का उदय हुआ। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
इक्ष्वाकुओं ने ‘ नागार्जुनकोंडा ‘ और ‘ धरणीकोटा ‘ में अनेक स्मारकों को छोड़ा है।
इक्ष्वाकुओं ने कृष्णा – गुंटूर क्षेत्र में भूमि अनुदान की प्रथा चलाई। इस क्षेत्र से उनकी अनेक ताम्रपत्र – सनदें पाई गई है।
इक्ष्वाकुओं को अपदस्थ कर उनकी जगह पल्लव आए। ‘ पल्लव ‘ शब्द का अर्थ है ‘ लता ‘ और यह शब्द ‘ टोन्डाई ‘ का रूपांतरण है जो लता का ही वाचक है।
तमिल भाषा में पल्लव शब्द का अर्थ डाकू भी होता है।
पल्लवों का अधिकार दक्षिणी आंध्र और उत्तरी तमिलनाडु पर था। उन्होंने अपनी राजधानी ‘ कांची ‘ ( आधुनिक कांचीपुरम ) में बनाई जो उनके समय में मंदिरों और वैदिक – विद्या का केंद्र बन गया।
पल्लव वंशियों का आरंभ में कदंबों से संघर्ष हुआ। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
कदंबों ने चौथी सदी में उत्तरी कर्नाटक और कोंकण में अपनी सत्ता कायम की। वे ब्राह्मण होने का दावा करते थे।
कदंब राज्य की स्थापना ‘ मयूरशर्मन ‘ ने की। कहा जाता है कि वह पढ़ने के लिए कांची आया , परंतु अपमान के साथ उसे वहां से निकाल दिया गया।
अपने अपमान का बदला मयूरशर्मन ने पल्लवों को परास्त कर लिया। अंत में , पल्लवों ने भी हार का बदला लिया। फिर भी मयूरशर्मन को औपचारिक रूप से राजचिन्ह देकर कदम्बों की राजसत्ता को मान्यता दे दी।
कहा जाता है कि मयूरशर्मन ने 18 अश्वमेघ यज्ञ किए और ब्राह्मणों को असंख्य ग्राम दान में दिए।
कदंबों ने अपनी राजधानी कर्नाटक के उत्तरी केनरा जिले में ‘ वैजयंती ‘ या ‘ बनवासी ‘ में बनाई। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
पल्लवों के दूसरे महत्वपूर्ण समसामयिक गंग थे जिन्होंने चौथी सदी के आसपास दक्षिणी कर्नाटक में अपना शासन कायम किया। इनका राज्य पूर्व में पल्लवों के राज्य और पश्चिम में पश्चिम में कदम्बों के राज्य के बीच में था।
ये ‘ पश्चिमी गंग ‘ या ‘ मैसूर के गंग ‘ कहलाते हैं क्योंकि ‘ पूर्वी गंग ‘ इनसे भिन्न थे और वे पांचवी सदी से कालिंग में शासन करते थे।
पश्चिमी गंग अधिकांश काल तक पल्लवों के सामंत रहे। उनकी सबसे पहले की राजधानी ‘ कोलार ‘ में थी जहां सोने की खान होने के कारण इस राजवंश का उत्थान आसान हुआ होगा।
पश्चिमी गंग राजाओं ने अधिकतर भूमिअनुदान जैनों को दिया। कदम्ब राजाओं ने भी जैनों को भूमिदान दिया , पर वे ब्राह्मणों की अधिक सहायता करते थे।
पल्लवों ने बहुत – सारे कर – मुक्त ग्राम ब्राह्मणों को दान में दिए। हमें आरंभिक पल्लवों के 16 भूमि अनुदान पत्र मिलते हैं। उनमें से कुछ तो अधिक पुराने है पत्थर पर प्राकृत भाषा में खुदे हैं , लेकिन अधिकांश संस्कृत भाषा में ताम्रपत्रों पर खुदे हैं। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
चौथी सदी के एक पल्लव अनुदान पत्र में ब्राह्मणों को दी जाने वाली 18 उन्मुक्तियों की चर्चा है। वे भूमि कर चुकाए बिना , बेगार दिए बिना , नगर के अधिकारियों को रसद पहुंचाए बिना और राजकीय सिपाहियों और एजेंटों द्वारा किसी हस्तक्षेप के बिना अनुदान की संपत्ति का उपभोग कर सकते थे।
पल्लव , कदम्ब , बादामी के चालुक्य और उनके अन्य समसामयिक शासक वैदिक यज्ञ के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अश्वमेघ और वाजपेय यज्ञ किए।
यद्यपि 300 ई से 750 ई के बीच की अवधि राज्य के गठन और कृषि – विस्तार की दृष्टि से प्रायद्वीप में अत्यंत ही महत्वपूर्ण रही , फिर भी इस विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है कि चोल , चेर और पाण्ड्य राज्यों के पतन के बाद प्रायद्वीप के सिरे वाले क्षेत्र में क्या हाल हुआ ?
छठी सदी के कलभ्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह का असर पल्लव और उसके समकालीन पड़ोसियों पर पड़ा।
कलभ्रों को दुष्ट राजा कहा गया है। उन्होंने अनेक राजाओं को उखाड़ फेंका और तमिल क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया। उन्होंने बहुत सारे गांवों में ब्राह्मणों को मिले ‘ ब्रह्मदेय ‘ अधिकारों को समाप्त कर दिया। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
लगता है कलभ्र बौद्ध धर्म के अनुयायी थे , क्योंकि उन्होंने बौद्ध विहारों का संपोषण किया।
कलभ्रों का विद्रोह इतना व्यापक था कि उसको पांड्यों , पल्लवों और बादामी के चालुक्यों के संयुक्त प्रयास से ही दबाया जा सका।
ऐसा कहा जाता है कि कलभ्रों ने चोल , पाण्ड्य और चेर राजाओं को बंदी बना लिया था।
कलभ्र विद्रोह से पता चलता है कि 300 ई से 500 ई के बीच ब्राह्मणों को कुछ भूमिदान सुदूर दक्षिण के राजाओं ने दिए थे।
भूमिदानों के फलस्वरुप पल्लवों के अधीन तीसरी सदी के अंत में दक्षिणी आंध्र और उत्तरी तमिलनाडु में कृषि – विस्तार को बढ़ावा मिला होगा। संभवत: सुदूर दक्षिण के कुछ राज्यों में यह भी है प्रक्रिया चली होगी। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
पल्लव – चालुक्य संघर्ष
छठी सदी से आठवीं सदी तक प्रायद्वीपीय भारत के राजनीतिक इतिहास की मुख्य घटना है कांची के पल्लवों और बादामी के चालुक्यों के बीच संघर्ष। इस संघर्ष में तीसरे दल के रूप में पाण्ड्य भी उलझ गए पर वे कमजोर थे।
यद्यपि पल्लव और चालुक्य दोनों ब्राह्मण धर्म के समर्थक थे और दोनों ने वैदिक यज्ञ किए और ब्राह्मणों को अनुदान दिया तथापि दोनों के बीच लूटपाट , प्रतिष्ठा और क्षेत्रीय संसाधनों को लेकर झगड़े हुए। दोनों ने कृष्ण और तुंगभद्रा के दोआब पर प्रभुत्व जमाने की चेष्टा की।
उत्तर मध्य काल में ‘ कृष्णा – तुंगभद्र दोआब ‘ विजयनगर और बहमनी राज्य के बीच झगड़े का कारण बना।
पल्लव – चालुक्य संघर्ष में पहली महत्वपूर्ण घटना चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ( 609 – 642 ई ) के शासनकाल में घटी जिसकी जानकारी उसके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित ‘ ऐहोल अभिलेख ‘ से होती है। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
अभिलेख के अनुसार पुलकेशिन द्वितीय ने कदम्बों की राजधानी बनवासी को अपने अधीन कर लिया और कर्नाटक के गंगवंशियों को अपनी प्रभुसत्ता स्वीकार करने पर मजबूर किया।
पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के किनारे हर्ष की सेना को हराकर उसे दकन की ओर बढ़ने से रोक दिया।
पल्लवों के साथ लड़ते-लड़ते वह पल्लव राजधानी के पास तक पहुंच गया , परंतु पल्लवों ने पुलकेशिन द्वितीय को अपना उत्तरी प्रांत देकर उसके साथ संधि कर ली।
पुलकेशिन द्वितीय ने 610 ई के आसपास कृष्ण और गोदावरी का दोआब पल्लवों से छीन लिया। यह दोआब ‘ वेंगी प्रांत ‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
वेंगी प्रांत में मुख्य राजवंश की एक शाखा स्थापित हुई जो ‘ वेंगी का पूर्वी चालुक्य राजवंश ‘ कहलाया। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
पल्लवों के राज्य पर पुलकेशिन द्वितीय का दूसरा हमला विफल रहा और पल्लव राजा नरसिंह वर्मन ( 630 – 668 ई ) ने चालुक्य राजधानी वातापी पर लगभग 642 ईस्वी में कब्जा कर लिया। पल्लवों से युद्ध करते हुए पुलकेशिन – द्वितीय शायद मारा गया।
नरसिंह वर्मन ने ‘ वातापीकोंडा ‘ अर्थात ‘ वातापी – विजेता ‘ की उपाधि धारण की। कहा जाता है कि उसने चोलों , चेरों , पांड्यों और कलभ्रों को भी पराजित किया।
कहा जाता है कि चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय ( 733 – 745 ई ) ने कांची को तीन बार रौंदा। उसने 740 ईस्वी में पल्लवों को पूरी तरह से पराजित कर दिया।
757 ईस्वी में राष्ट्रकूटों ने चालुक्यों के प्रभुत्व का अंत कर दिया। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
मंदिर
सातवीं सदी से वैष्णवप्रवर अल्वार संतों ने वैष्णव संप्रदाय को फैलाया तो नयन्नार संतों ने शैव संप्रदाय को।
सातवीं सदी से दक्षिण भारत के लोगों के धार्मिक जीवन में भक्ति – मार्ग प्रमुख हो गया।
पल्लव राजाओं ने सातवीं और आठवीं सदियों में अपने आराध्य देवताओं की प्रतिमा स्थापित करने के लिए बहुत – सारे प्रस्तर – मंदिर बनवाए।
सातवीं सदी में नरसिंहवर्मन ने महाबलिपुरम ( चेन्नई से 65 किलोमीटर दूर ) में रथ के रूप में प्रसिद्ध सात मंदिर बनवाए। उसने प्रसिद्ध बंदरगाह शहर ‘ महाबलिपुरम ‘ या ‘ मामल्लपुरम ‘ की स्थापना भी की।
महाबलिपुरम अपने ‘ तट – मंदिर ‘ के लिए भी प्रसिद्ध है जो किसी चट्टान को काटकर नहीं ,बल्कि स्वतंत्र संरचना के रूप में खड़ा किया गया है। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
पल्लव राजाओं ने अपनी राजधानी कांची में भी कई मंदिरों का निर्माण किया। आठवीं सदी में बना कैलाशनाथ मंदिर इसका अच्छा उदाहरण है।
बादामी के चालुक्य राजाओं ने भी 610 ई और उसके बाद ऐहोल में अनेक मंदिर बनवाए। ऐहोल में मंदिरों की संख्या 70 तक थी।
बादामी और ‘ पट्टडकल ‘ में भी मंदिर निर्माण हुआ। सातवीं – आठवीं सदी में ‘ पट्टडकल ‘ में 10 मंदिर बने जिनमें सबसे प्रसिद्ध है ‘ पापनाथ मंदिर ‘ ( लगभग 680 ई ) और ‘ वीरूपाक्ष मंदिर ‘ ( लगभग 740 ई )।
पापनाथ मंदिर का बुर्ज उत्तर भारतीय शैली में बना है तथा बौना व नीचा है जबकि विरुपाक्ष मंदिर पूर्णत: दक्षिणी शैली में बना है , शिखर बहुत ही ऊंचा , आयताकार और मंजिलों वाला है। इसकी दीवारें रामायण के दृश्यों वाली सुंदर-सुंदर मूर्तियां से सजी है।
आठवीं सदी के बाद से मंदिरों को भूमिअनुदान देने की प्रथा दक्षिण भारत में खूब चल पड़ी , और प्राय: भूमि अनुदान मंदिरों की दीवारों पर अभिलिखित कर दिए जाते थे।
कर्नाटक में कुछ मंदिर जैन व्यापारियों ने चालुक्य ने चालुक्यों के शासनकाल में बनवाए।
आम लोग अपने ग्राम देवताओं की पूजा धान और ताड़ी चढ़कर किया करते थे। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
किसानों पर कर – भार
वाकाटक राज्य विदर्भ और महाराष्ट्र में था जबकि पल्लव राज्य दक्षिण आंध्र और उत्तर तमिलनाडु में।
उपज के एक हिस्से के रूप में लिए जाने वाले भूमि – कर के अतिरिक्त राजा अन्न और स्वर्ण के रूप में नजराना ले सकता था तथा , गुड़ , मदिरा जैसी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए ताड़ आदि पेड़ों से रस निकलवा सकता था।
गांव की सारी खानें और छिपे खजाने राजा के होते थे। राजा को फूल , दूध , लकड़ी और घास बिना मूल्य देने के लिए गांव वाले बाध्य होते थे। राजा उन्हें बोझा ढोने के लिए भी बाध्य कर सकता था। राजा को ‘ विष्टि ‘ अर्थात बेगार का भी अधिकार था।
जब कभी राजा के अधिकारी गांव पहुंचते थे या सैनिक अभियान के क्रम में गांव से होकर जाते थे तो गांव वालों को उनके गाड़ियों के लिए बैल , सोने के लिए खाट , रसोई बनाने के लिए ईंधन , चूल्हा और बरतन तथा सेवा के लिए चाकर देने पड़ते थे।
लगानो की सूची से प्रकट होता है कि राजा किसानों से उनके श्रम और उपज का एक बड़ा भाग लगन के तौर पर वसूल लेता था। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
ग्रामीण विस्तर
गांव के लोगों पर राजा द्वारा लगाए गए इतने सारे लगन इस बात का द्योतक है कि किसानों में उन्हें चुकाने की क्षमता थी।
नए-नए राज्यों का उदय और विस्तार कृषि – उत्पादन में वृद्धि और ग्रामीण आबादी के विस्तार से ही संभव हुआ।
जनजातीय क्षेत्रों में ब्राह्मणों को भूमि अनुदान में दी गई और यहां के जनजातीय किसानों ने पशुपालन की उपयोगिता और खेती के उन्नत तरीके ब्राह्मणों से सीखे।
दक्षिण भारत में तीन प्रकार के गांव दिखाई देते हैं – उर , सभा और नगरम। उर गांव सब से अधिक प्रचलित था। जिसमें किसान जातियों के लोग बसते थे और भूमि पर उन लोगों का शायद सामुदायिक अधिकार था। ऐसे गांव अधिकतर दक्षिणी तमिलनाडु में पाए जाते थे। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
सभा कोटि के गांव में ब्रह्मदेय अर्थात ब्राह्मणों को दिए गए गांव और अग्रहार गांव आते थे। इस प्रकार के गांव की भूमि पर दान भोगी ब्राह्मणों का व्यक्तिगत स्वामित्व होता था , पर उनके काम – काज सामूहिक होते थे।
नगरम कोटि का गांव वह होता था जहां व्यापारियों और वणिकों का मिला-जुला वास होता था और उन्हीं का दबदबा रहता था।
चालुक्य क्षेत्रों में गांव की कार्य – व्यवस्था गांव के श्रेष्ठजन करते थे जो महाजन कहलाते थे।
कुल मिलाकर 300 से 750 ई की अवधि में हम ग्रामीण विस्तर , ग्रामीण संघटन और भूमि के अच्छे उपयोग की झलक पाते है। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
सामाजिक ढाँचा
समाज पर राजाओं और पुरोहितों का दबदबा था।
राजा लोग ब्राह्मण या क्षत्रियों होने का दावा करते थे , जबकि उनमें कई स्थानीय जातियों के सरदार थे जिन्हें ब्राह्मणों ने दान प्रकार द्वितीय वर्ण का दर्जा दे दिया था।
300 – 750 ई की अवधि में पुरोहितों ने भूमिदान के बल पर अपना प्रभाव और प्रभुत्व जमाया।
यदि किसान या शिल्पी लोग उत्पादन – कर्म में , सेवा – कर्म में , या दायित्व चुकाने से चूकते थे तो इसे धर्म अर्थात परंपरागत सामान्य नियम से विचलन माना जाता था। ऐसी स्थिति को कलयुग कहा गया है।
राजा का कर्तव्य होता था कि वह धर्म की रक्षा करें अर्थात उपरोक्त विचलन ना होने दे।
वाकाटक , पल्लव , कदम्ब और पश्चिमी गंग राजाओं ने ‘ धर्ममहाराज ‘ की उपाधि धारण की।
पल्लव राज्य के वास्तविक संस्थापक सिंहवर्मन के विषय में कहा गया है कि कलियुग के दुर्गुणों से ग्रस्त धर्म का उन्होंने उद्धार किया। स्पष्टत: इसका इशारा कलभ्र के विद्रोह की ओर है जिसने पारंपरिक समाज – व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था। प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम – विस्तार
MCQ
प्रश्न 1 – लगभग कितने ई से प्रायद्वीप भारत में संस्कृत राजभाषा हो गई ?
उत्तर – 400 ई से
प्रश्न 2 – उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्र में सातवाहनों के उत्तराधिकारी कौन हुए ?
उत्तर – वाकाटक
प्रश्न 3 – किस वंश के लोग अपने को ब्रह्म , मनु या चंद्र का वंशज मानते थे तथा उन्हें इस बात का गर्व था कि उन्ही के पूर्वजों ने अयोध्या में राज किया था ?
उत्तर – चालुक्य
प्रश्न 4 – किन शासकों ने ‘ नागार्जुनकोंडा ‘ और ‘ धरणीकोटा ‘ में अनेक स्मारकों का निर्माण कराया तथा कृष्णा – गुंटूर क्षेत्र में भूमि अनुदान की प्रथा चलाई ?
उत्तर – इक्ष्वाकु
प्रश्न 5 – तमिल भाषा में पल्लव शब्द का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर – डाकू
प्रश्न 6 – पल्लवों ने अपनी राजधानी कहाँ बनायी थी ?
उत्तर – कांची
प्रश्न 7 – कदंब राज्य की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर – मयूरशर्मन
प्रश्न 8 – कदंब राज्य की राजधानी कहाँ थी ?
उत्तर – वैजयंती ( बनवासी )
प्रश्न 9 – पश्चिमी गंग की सबसे पहले की राजधानी कहाँ थी ?
उत्तर – कोलार में
प्रश्न 10 – कीन्हे दुष्ट राजा कहा गया है ?
उत्तर – कलभ्रों को
प्रश्न 11 – सम्भवतया कलभ्र किस धर्म के अनुयायी थे ?
उत्तर – बौद्ध
प्रश्न 12 – पल्लव और चालुक्य दोनों किस क्षेत्र पर प्रभुत्व जमाने के लिए संघर्षरत रहे ?
उत्तर – कृष्ण और तुंगभद्रा के दोआब
प्रश्न 13 – ऐहोल प्रशस्ति के रचियता रविकीर्ति किसके दरबारी कवि थे ?
उत्तर – पुलकेशिन द्वितीय
प्रश्न 14 – किसने नर्मदा के किनारे हर्ष की सेना को हराकर उसे दकन की ओर बढ़ने से रोक दिया ?
उत्तर – पुलकेशिन द्वितीय
प्रश्न 15 – किस पल्लव शासक ने ‘ वातापीकोंडा ‘ अर्थात ‘ वातापी – विजेता ‘ की उपाधि धारण की ?
उत्तर – नरसिंह वर्मन
प्रश्न 16 – किस शासक वंश ने 757 ईस्वी में चालुक्यों के प्रभुत्व का अंत कर दिया ?
उत्तर – राष्ट्रकूटों ने
प्रश्न 17 – सातवीं सदी में अल्वार संतों ने दक्षिण भारत में किस संप्रदाय को फैलाया ?
उत्तर – वैष्णव संप्रदाय
प्रश्न 18 – सातवीं सदी में नयन्नार संतों ने दक्षिण भारत में किस संप्रदाय को फैलाया ?
उत्तर – शैव संप्रदाय
प्रश्न 19 – किस पल्लव शासक ने महाबलिपुरम में रथ के रूप में प्रसिद्ध सात मंदिर बनवाए ?
उत्तर – नरसिंहवर्मन
प्रश्न 20 – अपने ‘ तट – मंदिर ‘ के लिए भी प्रसिद्ध है –
उत्तर – महाबलिपुरम
प्रश्न 21 – विरुपाक्ष मंदिर पूर्णत: किस शैली में बना है ?
उत्तर – दक्षिणी शैली
प्रश्न 22 – पापनाथ मंदिर का बुर्ज किस शैली में बना है ?
उत्तर – उत्तर भारतीय शैली
प्रश्न 23 – दक्षिण भारत में तीन प्रकार के गांव दिखाई देते हैं –
उत्तर – उर , सभा और नगरम
प्रश्न 24 – किस कोटि के गांव में ब्रह्मदेय अर्थात ब्राह्मणों को दिए गए गांव और अग्रहार गांव आते थे ?
उत्तर – सभा
प्रश्न 25 – वाकाटक , पल्लव , कदम्ब और पश्चिमी गंग राजाओं ने उपाधि धारण की –
उत्तर – धर्ममहाराज की
प्रश्न 26 – पल्लव राज्य के वास्तविक संस्थापक कौन था ?
उत्तर – सिंहवर्मन