दर्शन का विकास

दर्शन का विकास

दर्शन का विकास :- मानव के चार पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए। ये पुरुषार्थ हैं अर्थ या आर्थिक संसाधन , धर्म या सामाजिक नियम – व्यवस्था , काम या शारीरिक सुखभोग , और मोक्ष या आत्मा का उद्धार।

अर्थ संबंधी विषयों का प्रतिपादन कौटिल्य की पुस्तक ‘ अर्थशास्त्र ‘ में किया गया है।

राज्य और समाज को सुव्यवस्थित बनाने वाली विधि के लिए ‘ धर्मशास्त्र ‘ की रचना हुई।

शारीरिक सुखभोग का विवेचन ‘ कामसूत्र ‘ में किया गया।

मोक्ष मुख्यत: दर्शन संबंधी ग्रंथों का विषय रहा है , जिसका अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति , इसका सबसे पहला उपदेश गौतम बुद्ध ने दिया था लेकिन बाद में कई ब्राह्मणपंथी दार्शनिकों ने इसे आगे बढ़ाया।

ई. सन के आरंभ तक दर्शन के 6 संप्रदाय विकसित हो चुके थे। ये थे – संख्या , योग , न्याय , वैशेषिक , मीमांस और वेदांत। दर्शन का विकास

संख्या

सांख्य की व्युत्पत्ति संख्या शब्द से हुई है। लगता है कि यह सबसे पुराना दर्शन है।

प्राचीन सांख्य दर्शन के अनुसार जगत की सृष्टि के लिए देवी शक्ति का अस्तित्व मानना आवश्यक नहीं है। जगत की उत्पत्ति ईश्वर से नहीं , अपितु प्रकृति से हुई है।

चौथी सदी के आसपास सांख्य दर्शन में ‘ प्रकृति ‘ के अतिरिक्त ‘ पुरुष ‘ भी जुड़ गया और दोनों को सृष्टि का कारण माना गया।

सांख्य दर्शन अपनी आरंभकाल में भौतिकवादी था , फिर आध्यात्मिकता की ओर मुड़ गया।

इस दर्शन के अनुसार मोक्ष यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति से हो सकता है , और मोक्ष प्राप्त होने पर मानव को दुख से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। यह यथार्थ ज्ञान प्रत्यक्ष , अनुमान और शब्द से हो सकता है। दर्शन का विकास

योग

योग दर्शन के अनुसार , मोक्ष ध्यान और शारीरिक साधना से मिलता है।

ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रियों का निग्रह योग मार्ग का मूलाधार है।

मोक्ष की प्राप्ति के लिए कई प्रकार के आसन अर्थात विभिन्न स्थिति में दैहिक व्यायाम , तथा प्राणायाम अर्थात श्वास के व्यायाम सुझाए गए हैं।

ऐसा समझ समझ गया है कि इन साधनाओं से चित्त का सांसारिक लगाव दूर हो जाता है और उसमें एकाग्रता आती है।

साधनाओं से प्राचीन काल में शरीर – क्रिया और शरीर – रचना संबंधी ज्ञान के विकास का पता चलता है। दर्शन का विकास

न्याय

न्याय या विश्लेषण पद्धति का विकास तर्कशास्त्र के रूप में हुआ है।

इस दर्शन के अनुसार मोक्ष ज्ञान की प्राप्ति से हो सकता है।

किसी प्रतिज्ञा या कथन की सत्यता की जांच अनुमान , शब्द और उपमान द्वारा किया जाना चाहिए।

न्याय दर्शन से तर्क के प्रयोग का जो महत्व प्रतिपादित हुआ उससे भारतीय विद्वान प्रभावित होकर तार्किक रीति से सोचने और बहस करने की ओर झुके। दर्शन का विकास

वैशेषिक

वैशेषिक दर्शन द्रव्य अर्थात भौतिक तत्वों के विवेचन को महत्व देता है।

वैशेषिक दर्शन के अनुसार पृथ्वी , जल , आग , वायु और आकाश के मेल से नई वस्तुएं बनती हैं।

वैशेषिक दर्शन ने परमाणुवाद की स्थापना की। इसके अनुसार भौतिक वस्तुएं परमाणुओं के संयोजन से बनी है।

वैशेषिक दर्शन ने भारत में भौतिक शास्त्र का आरंभ किया।

यह दर्शन स्वर्ग और मोक्ष में विश्वास करता है दर्शन का विकास

मीमांसा

मीमांसा का मूल अर्थ है तर्क करने और अर्थ लगाने की कला। लेकिन इसमें तर्क का प्रयोग विविध वैदिक कर्मों के अनुष्ठानों का औचित्य सिद्ध करने में किया गया है , और इसके अनुसार मोक्ष इन्हीं वेद – विहित कर्मों के अनुष्ठान से प्राप्त होता है।

इसके अनुसार वेद में कहीं गई बातें सदा सत्य हैं।

इस दर्शन का मुख्य लक्ष्य स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति है।

मनुष्य तब तक स्वर्ग – सुख पाता रहता है जब तक उसका संचित पुण्य शेष रहता है। जब वह पुण्य समाप्त हो जाता है तब वह फिर धरती पर आ गिरता है।

मीमांसा दृढ़तापूर्वक बताती है कि मोक्ष पाने के लिए यज्ञ करना चाहिए। दर्शन का विकास

वेदांत

‘ वेदांत ‘ का अर्थ है वेद का अंत।

ईसा – पूर्व दूसरी सदी में संकलित बादरायण का ‘ ब्रह्मसूत्र ‘ इस दर्शन का मूल ग्रंथ है। इस पर दो प्रख्यात भाष्य लिखे गए – पहला नौवीं सदी में शंकराचार्य ने और दूसरा 12वीं सदी में रामानुज ने।

शंकर ब्रह्मा को निर्गुण बताते हैं , किंतु रामानुज के अनुसार ब्रह्म सगुण है।

शंकर ज्ञान को मोक्ष का मुख्य कारण मानते हैं , किंतु रामानुज भक्ति को मोक्ष – प्राप्ति का मार्ग बताते हैं।

इस दर्शन के अनुसार ब्रह्म ही सत्य है , अन्य हर वस्तु माया अर्थात अवास्तविक है।

आत्मा और ब्रह्म में अभेद है। अतः जो कोई आत्मा या अपने आपको पहचान लेता है उसे ब्रह्म का ज्ञान हो जाता है और मोक्ष मिल जाता है।

ब्रह्मा और आत्मा दोनों शाश्वत अविनाशी हैं।

आगे चलकर कर्मवाद भी वेदांत के साथ जुड़ गया। इसका अर्थ है कि मनुष्य को पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ता है।

पुनर्जन्म में विश्वास वेदांत में ही नहीं , बल्कि अन्य हिंदू दर्शनों का भी महत्वपूर्ण अपादान बन गया। दर्शन का विकास

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जीवन के प्रति भौतिकवादी दृष्टि

छह प्रकार के दर्शनों के उपदेश से जीवन के प्रति प्रत्ययवादी दृष्टि उभरी।

सांख्य और वैशेषिक दर्शनों ने जीवन के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

सांख्य दर्शन के मूल प्रवर्तक कपिल ने बताया है कि मानव का जीवन प्रकृति की शक्ति द्वारा रूपायित होता है , न कि किसी देवी शक्ति के द्वारा।

भौतिकवादी विचार आजीवकों के सिद्धांतों में भी पाए जाते हैं।

भौतिकवादी दर्शन का प्रमुख प्रवर्तक ‘ चार्वाक ‘ हुआ। इस दर्शन को ‘ लोकायत ‘ भी कहते हैं। इस दर्शन में दुनिया के साथ गहरे लगाव को महत्व दिया जाता है और परलोक में अविश्वास व्यक्त किया गया है। दर्शन का विकास

चार्वाक के बारे में कहा जाता है कि वह मोक्ष की कामना का विरोधी था तथा देवी शक्ति का अस्तित्व नहीं मानता था। वह उन्हीं वस्तुओं को सत्ता यथार्थता स्वीकार करता था जिन्हें मानव की बुद्धि और इंद्रियों द्वारा अनुभव किया जा सके।

चार्वाक के अनुसार यज्ञ की कल्पना ब्राह्मणों ने दक्षिणा अर्जित करने के उद्देश्य से की है।

चार्वाक को बदनाम करने के लिए उसके विरोधियों ने उसके केवल इस मत को खूब उछाला की जब तक जिओ , सुख से जिओ , कर्ज लेकर घी पीओ।

चार्वाक का वास्तविक योगदान है उसकी भौतिकवादी दृष्टि। वह मानव को सभी क्रियाओं का मूल मानता है।

भौतिकवादी आग्रह वाले दार्शनिक धाराओं का विकास ईसा – पूर्व 500 और 300 ई के बीच हुआ जब आर्थिक और सामाजिक स्थिति विकास व विस्तार की ओर था।

पांचवी सदी के आते-आते भौतिकवादी दर्शन को प्रत्ययवादी प्रतिवादी दार्शिनिकों ने दबा दिया। वे भौतिकवादी दर्शन की निरंतर निंदा करते रहे और धार्मिक अनुष्ठानों एवं आध्यात्मिक साधनाओं को मोक्ष का मार्ग बताते रहे। उन्होंने सांसारिक कार्य का कारण अलौकिक शक्ति को बताया। दर्शन का विकास

MCQ

प्रश्न 1 – राज्य और समाज को सुव्यवस्थित बनाने वाली विधि के लिए रचना हुई –

उत्तर – धर्मशास्त्र की

प्रश्न 2 – शारीरिक सुखभोग का विवेचन किया गया –

उत्तर – कामसूत्र में

प्रश्न 3 – मोक्ष मुख्यत: दर्शन संबंधी ग्रंथों का विषय रहा है , जिसका अर्थ है –

उत्तर – जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति

प्रश्न 4 – मोक्ष का सबसे पहला उपदेश किसने दिया था ?

उत्तर – गौतम बुद्ध ने

प्रश्न 5 – सबसे पुराना दर्शन है –

उत्तर – सांख्य

प्रश्न 6 – किस दर्शन के अनुसार प्रकृति और पुरुष के मेल से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है ?

उत्तर – सांख्य

प्रश्न 7 – सांख्य दर्शन अपनी आरंभकाल में था –

उत्तर – भौतिकवादी

प्रश्न 8 – किस दर्शन के अनुसार मोक्ष यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति से हो सकता है ?

उत्तर – सांख्य

प्रश्न 9 – किस दर्शन के अनुसार , मोक्ष ध्यान और शारीरिक साधना से मिलता है ?

उत्तर – योग

प्रश्न 10 – किस दर्शन के विश्लेषण पद्धति का विकास तर्कशास्त्र के रूप में हुआ है ?

उत्तर – न्यास

प्रश्न 11 – किस दर्शन के अनुसार मोक्ष ज्ञान की प्राप्ति से हो सकता है ?

उत्तर – न्याय

प्रश्न 12 – किस दर्शन ने परमाणुवाद की स्थापना की तथा भारत में भौतिक शास्त्र का आरंभ किया ?

उत्तर – वैशेषिक

प्रश्न 13 – किस दर्शन के अनुसार वेद में कहीं गई बातें सदा सत्य हैं तथा इसक मुख्य लक्ष्य स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति है ?

उत्तर – मीमांसा

प्रश्न 14 – सांख्य और वैशेषिक दर्शनों ने जीवन के प्रति दृष्टिकोण प्रस्तुत किया –

उत्तर – भौतिकवादी

प्रश्न 15 – सांख्य दर्शन का मूल प्रवर्तक माना जाता है –

उत्तर – कपिल को

प्रश्न 16 – भौतिकवादी दर्शन का प्रमुख प्रवर्तक कौन हुआ ?

उत्तर – चार्वाक

प्रश्न 17 – योग दर्शन का प्रवर्तक किसे माना जाता है ?

उत्तर – पतंजलि

प्रश्न 18 – वैशेषिक दर्शन का प्रवर्तक किसे माना जाता है ?

उत्तर – महर्षि कणाद

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