संघर्ष का युग

संघर्ष का युग

संघर्ष का युग :- सन 1000 से 1200 ईस्वी तक के काल के दौरान पश्चिम और मध्य एशिया तथा उत्तर भारत में तेजी से परिवर्तन हुए।

इस काल के अंतिम चरण में तुर्कों ने अपनी सैनिक शक्ति के सहारे उत्तर भारत में प्रवेश किया।

तुर्कों ने राजमहल के रक्षकों और भाड़े के सैनिकों के रूप में नवीं सदी में अब्बासी साम्राज्य में प्रवेश किया था। शीघ्र ही उन्होंने ऐसी स्थिति प्राप्त कर ली कि उनकी मर्जी से राजा बनने और बिगड़ने लगे।

तुर्क जन – जातियाँ अपने साथ बेरहमी , भारी लूटपाट की आदत लेकर इस भूभाग पर उतरी थी। उनकी लड़ाई का मुख्य तरीका यह था कि वे जितनी तेजी से आगे बढ़ते थे उतनी ही तेजी से पीछे हट जाते थे। संघर्ष का युग

गजनवी

सामानी सूबेदारों में अलप्तगीन नामक एक तुर्क गुलाम था। कालांतर में उसने गजनी को अपनी राजधानी बनाकर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।

महमूद ने गजनी पर 998 ई से 1030 ई तक शासन किया।

महमूद ने यह दावा किया कि वह ईरान के पौराणिक राजा अफ्रासियाब का वंशज था।

महमूद ने भारत पर 17 हमले किये , ऐसे ऐसा कहा जाता है कि शुरुआती हमलों का लक्ष्य पेशावर और पंजाब पर राज करने वाले हिंदूशाही शासक थे। वह मुल्तान के मुसलमान राजाओं के खिलाफ भी लड़ा।

हिंदूशाही राजा जयपाल ने सामानियों के अधीन गजनी के सूबेदार के बेटे के साथ मिलकर गजनी पर आक्रमण भी किया था। लेकिन उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा था। अगले साल उसने फिर हमला किया , लेकिन उसे फिर शिकस्त खानी पड़ी।

एक शहजादे के रूप में महमूद ने इन लड़ाईयों में सक्रिय हिस्सा लिया था। गद्दीनशीं होने पर महमूद ने हिन्दूशाहियों के खिलाफ आक्रामक संघर्ष आरंभ कर दिया। संघर्ष का युग

मुल्तान के मुसलमान शासक ने हिंदूशाही राजा का साथ दिया। 1001 ई में जयपाल को हराकर महमूद ने उसे बंदी बना लिया , लेकिन बाद में छोड़ दिया। जयपाल के दिल में पराजय का अपमान इतना चुभ गया कि उसने अपने आपको जलती चिता में जलाने का निर्णय लिया।

जयपाल के बाद उसका पुत्र आनंदपाल राजा बना। हिंदूशाही राजधानी वेहिंद ( पेशावर के निकट ) में 1008 – 9 ईस्वी में मोहम्मद और आनंदपाल के बीच निर्णायक युद्ध हुआ। जिसमे आंनदपाल की पराजय हुई।

हिंदूशाही राजा को अपने साम्राज्य के कुछ हिस्सों पर मातहत राजा की हैसियत से शासन करने दिया गया। वेहिंद की लड़ाई के बाद मुल्तान को भी गजनवियों की अधीनता माननी पड़ी।

महमूद ने आगे भारत पर जो हमले किये उनका उद्देश्य उत्तर भारत के धन-धान्य पूर्ण मंदिरों और नगरों को लूटना था ताकि लूट के धन से वह अपने मध्य एशियाई शत्रुओं के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रख सके।

साथ ही महमूद भारतीय राजाओं को आपस में संगठित होकर अपने खिलाफ कोई गुट खड़ा करने का मौका नहीं देना चाहता था। संघर्ष का युग

महमूद ने अपने को इस्लाम का यश बढ़ाने वाले ‘ बुत शिकन ‘ अर्थात ‘ मूर्तिभंजक’ के तौर पर भी पेश किया।

पंजाब से महमूद ने दिल्ली के निकट थानेश्वर पर आक्रमण किए। 1018 ईस्वी में कन्नौज पर तथा 1025 ईस्वी में सोमनाथ पर साहसिक आक्रमण किए।

कन्नौज पर किए गए हमले में उसने मथुरा और कन्नौज दोनों की ईंट से ईंट बजा दी और दोनों नगरों को भी जी भरकर लूट। वह बुंदेलखंड क्षेत्र में कालिंजर के रास्ते लौटा।

वह इस तरह बेखटके , बेखौफ यह सब इसलिए कर पाया कि उन दिनों उत्तर भारत में कोई शक्तिशाली राज्य ही नहीं था। 1030 ईस्वी में गजनी में महमूद की मृत्यु हो गई।

मोहम्मद की मृत्यु के बाद सेलजुकों के शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना हुई। इस नए साम्राज्य ने खुरासान पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए गजनवी राज्य से लोहा लिया।

एक प्रसिद्ध लड़ाई में महमूद के बेटे मसूद की गहरी शिकस्त हुई और उसे लाहौर में शरण लेनी पड़ी। अब गजनवी साम्राज्य गजनी और पंजाब तक सीमित रह गया। संघर्ष का युग

राजपूत राज्य

प्रतिहार साम्राज्य के विघटन के बाद उत्तर भारत में कई राजपूत राज्यों का उदय हुआ। इनमें सबसे महत्वपूर्ण थे कन्नौज के गाहड़वाल , मालवा के परमार और अजमेर के चौहान।

आधुनिक जबलपुर के आसपास के प्रदेशों में कलचूरी थे। बुंदेलखंड में चंदेल ,गुजरात में चालुक्य , दिल्ली में तोमर , बंगाल पालों के अधीन और बाद में सेनों के प्रभुत्व में रहा।

कन्नौज के गाहड़वालों ने धीरे-धीरे पालों को बिहार से निकाल दिया और बनारस को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।

राजपूत समाज का आधार कुल था। हर कुल अपने को एक सामान्य पूर्वज का वंशज बताता था , चाहे वह पूर्वज वास्तविक रहा हो या काल्पनिक।

आदर्श राजा वह माना जाता था जो दशहरे का त्यौहार मनाने के बाद अपनी सेना लेकर पड़ोसी राज्यों पर हमले कर देता था। संघर्ष का युग

आठवीं सदी से बाद के काल को और खास तौर से दसवीं और बारहवीं सदियों के बीच के दौर को उत्तर भारत में मंदिर – निर्माण का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। इस युग में मंदिर निर्माण को जिस शैली ने प्रधानता प्राप्त की वह नागर शैली कहलाती थी।

यद्यपि नागर शैली के नमूने लगभग पूरे भारत में देखे जा सकते हैं , तथापि इस शैली के मंदिरों के निर्माण के मुख्य केंद्र उत्तर भारत और दकन थे। इसकी विशिष्टता का निर्देश करने वाली मुख्य बात यह थी कि गर्भगृह के ऊपर गुंबदनुमा छत बनी होती थी।

नागर शैली के मंदिरों के सबसे अच्छे नमूने मध्य प्रदेश में खजुराहो के मंदिर और उड़ीसा में भुवनेश्वर के मंदिर है।

खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर , विश्वनाथ मंदिर और कंदरिया महादेव मंदिर नागर शैली की संपूर्ण विशेषताओं को रूपायित करते हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर किए गए तक्षण इस बात के प्रमाण है कि इस काल में मूर्तिकला अपनी पूरी ऊंचाई पर पहुंच गई थी।

इनमें से अधिकांश मंदिरों का निर्माण चंदेलों ने करवाया था जिन्होंने इस क्षेत्र पर नवीं से लेकर तेरहवीं सदी तक शासन किया था। संघर्ष का युग

उड़ीसा में इस कल के मंदिर – स्थापत्य के सबसे भव्य उदाहरण लिंगराज मंदिर ( 11वीं सदी ) और कोणार्क के सूर्यमंदिर हैं। पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर भी इसी काल में बनवाया गया।

गुजरात में चालुक्य राज्य भीम का प्रसिद्ध मंत्री वस्तुपाल एक श्रेष्ठ लेखक था और उसने विद्वानों को बहुत प्रश्रय दिया। माउंट आबू के प्रसिद्ध जैन मंदिर का निर्माण उसी ने करवाया था।

परमार राजाओं की राजधानी उज्जैन और धार भी संस्कृत विद्या के प्रसिद्ध केंद्र थे।

इस काल में जनभाषा अपभ्रंश और प्राकृत में भी कई कृतियों की रचना हुई। इस क्षेत्र में जैन विद्वानों ने उत्कृष्ट योगदान किया। इनमें से सबसे प्रसिद्ध हेमचंद्र हुआ जो अपभ्रंश के साथ ही संस्कृत में भी लिखता था।

हिंदी , बंगला और मराठी जैसी आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास का सिलसिला इसी काल में आरंभ हुआ। संघर्ष का युग

उत्तर भारत पर तुर्कों की विजय

मुसलमान व्यापारियों को इस देश में व्यापार स्वागत भी किया गया क्योंकि वे मध्य तथा पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत का व्यापार बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे थे।

उत्तर भारत के कुछ शहरों में मुसलमान व्यापारियों की बस्तियां स्थापित हो गई। इन बस्तियों के बस जाने के फलस्वरुप यहां बहुत – से मुसलमान धर्मोपदेशकों का आगमन हुआ। ये धर्मोपदेशक सूफी कहलाते थे।

सूफियों ने प्रेम , आस्था और कल्पना के प्रति समर्पण की शिक्षा दी। उनकी शिक्षा के लक्ष्य मुख्य रूप से मुसलमान व्यापारी थे , लेकिन उससे कुछ हिंदू भी प्रभावित हुए।

लाहौर अरबी और फारसी भाषाओं और इन दोनों भाषाओं के साहित्य का केंद्र बन गया। तिलक जैसे हिंदू सेनापतियों ने गजनवी सेना का नेतृत्व किया जिसमें हिंदू सैनिक भी शामिल थे।

बारहवीं सदी के मध्य के आसपास तुर्क कबायिलियों के अन्य समूह ने , जो अंशतः बौद्ध लेकिन अंशतः पेगन ( पुराने धार्मिक विश्वास वाले जिसमें बहुत देवताओं की पूजा होती थी ) थे , सेलजुक तुर्कों की सत्ता मिटा दी।

इससे जिस राजनीतिक शून्यता ने जन्म लिया उसे भरने के लिए दो नई शक्तियों का उदय हुआ जिनमें से एक था ईरान का ख्वारिज्म साम्राज्य और दूसरा था उत्तर – पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान में गौर नामक प्रदेश में उदित गौरी साम्राज्य। संघर्ष का युग

गौरियों ने अपनें राजनीतिक जीवन का आरंभ गजनी के मातहत शासको के रूप में किया था , किंतु शीघ्र ही वे गजनवियों से पूरे तौर पर आजाद हो गए थे। सुल्तान अलाउद्दीन के अधीन गौरियों की शक्ति की खूब अभिवृद्धि हुई।

अलाउद्दीन ने गजनी में अपने भाइयों के साथ किए गए दुर्व्यवहार का बदला लेने के लिए बारहवीं सदी के मध्य में गजनी की ईंट से ईंट बजा दी और वहां भयंकर आगजनी तथा खूँरेजी मचाई। इसी कारण से उसे लोग जहाँसोज , अर्थात दुनिया को जलाने वाला कहने लगे।

1173 ईस्वी में शहाबुद्दीन मुहम्मद ( जो मुइज्जुद्दीन मुहम्मद बिन साम के नाम से भी जाना जाता था ) गजनी के सिंहासन पर बैठा। गोमल दर्रे को पार करके आगे बढ़ते हुए मुइज्जुद्दीन ने मुल्तान और कच्छ को जीत लिया।

1178 ईस्वी में राजपूताना रेगिस्तान से होकर उसने गुजरात में प्रवेश करने की कोशिश की। लेकिन माउंटआबू के निकट एक लड़ाई में गुजरात के राजा ने उसे बुरी तरह हरा दिया और वह किसी तरह जान बचा कर भागा। संघर्ष का युग

बारहवीं सदी के मध्य के आसपास तोमरो से चौहानों ने दिल्ली , ( जिसे तब ढिल्लिका कहा जाता था ) भी जीत ली थी।

जिन दिनों मुइज्जुद्दीन मुहम्मद मुल्तान और उच्छ को पदमर्दित कर रहा था उन्हीं दिनों मात्र 14 साल का एक किशोर अजमेर सिंहासन पर बैठा। उसका नाम था पृथ्वीराज।

पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड क्षेत्र पर आक्रमण करके महोबा की लड़ाई में चंदेल शासकों को परास्त किया। इसी लड़ाई में महोबा की रक्षा करते हुए आल्हा और ऊदल नामक दो भाई वीरगति प्राप्त करके आल्हा लोकगीत के नायक बने। लेकिन पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड को अपने राज्य में मिलाने का प्रयत्न नहीं किया।

पृथ्वीराज ने गुजरात पर भी आक्रमण किया लेकिन वहां के राजा भीम द्वितीय ने , जिसने मुइज्जुद्दीन मुहम्मद को भी पराजित किया था। पृथ्वीराज ने हरा दिया। संघर्ष का युग

तराइन की लड़ाई

मुइज्जुद्दीन मुहम्मद और पृथ्वीराज के बीच संघर्ष की शुरुआत तबरहिंद पर दोनों के दावों को लेकर हुई। 1191 ईस्वी में तराइन की लड़ाई में गौरी फौज बुरी तरह पराजित हुई और मुइज्जुद्दीन मुहम्मद की जान एक खिलजी घुड़सवार ने बचाई।

मुइज्जुद्दीन मुहम्मद अपनी सैन्य शक्ति को नए सिरे से संगठित करके अगले ही साल उसने फिर धावा बोल दिया। कहते हैं कि तब पृथ्वीराज ने उससे यह पेशकश की थी कि वह पंजाब में चैन से शासन करता रहे , लेकिन गोरी ने उसकी यह पेशकश ठुकरा दी।

सन 1192 की तराइन की दूसरी लड़ाई को भारतीय इतिहास को एक नया मोड़ देने वाली लड़ाई माना जाता है।

तराइन की पिछली लड़ाई का विजयी सेनापति स्कंध अन्यत्र मोर्चा संभाले हुए था।

गौरी की ओर से उपस्थित इस नए खतरे का अहसास होते ही पृथ्वीराज ने उत्तर भारत के सभी राजाओं से सहायता की गुहार की। कहते हैं की बहुत – से राजाओं ने उसकी सहायता के लिए अपनी – अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भेजी , परन्तु कन्नौज का शासक जयचंद अलग खड़ा रहा। संघर्ष का युग

जयचंद के इस अलगाव का कारण यह था कि पृथ्वीराज ने उसकी पुत्री का , जिसे चौहान राजा से प्रेम था , अपहरण किया था। यह कथा बहुत बाद में चंदबरदाई ने लिखी और इसमें बहुत – सी असंभाव्य घटनाओं का समावेश है।

इस युद्ध में पृथ्वीराज को हार का मुँह देखना पड़ा। वह बचकर भागा , लेकिन सरस्वती ( आधुनिक सिरसा ) के निकट बंदी बना लिया गया।

पृथ्वीराज को कुछ काल तक अजमेर पर शासन करने दिया गया। क्योंकि इस लड़ाई के बाद के ऐसे सिक्के मिले हैं जिनके एक ओर तिथि और ” पृथ्वीराज ” मुद्रालेख अंकित है और दूसरी ओर ” श्री मुहम्मद साम ” लिखा हुआ है।

इसके कुछ ही दिन बाद पृथ्वीराज को षड्यंत्र करने के आरोप में मौत के घाट उतार दिया गया। उसके उपरांत उसका बेटा गद्दी पर बैठा।

एक विद्रोह के बाद मुस्लिम सेना ने अजमेर पर फिर से कब्जा कर लिया , और वहां का शासन एक तुर्क सेनापति को सौंप दिया। पृथ्वीराज के पुत्र ने वहां से रणथंभौर जाकर एक नए शक्तिशाली चौहान राज्य की स्थापना की। संघर्ष का युग

गंगाघाटी , बिहार और बंगाल पर तुर्कों की विजय

दोआब पर कब्जा करने के लिए तुर्कों को सबसे पहले कन्नौज के गहड़वाल राज्य को जितना पड़ा। गहड़वाल शासक जयचंद को उन दिनों भारत का सबसे शक्तिशाली राजा माना जाता था। वह दो दशकों से कन्नौज पर चैन से राज करता रहा था।

तराइन की लड़ाई के बाद मुइज्जुद्दीन गजनी लौट गया और भारत का राजकाज अपने विश्वस्त गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक को सौंप गया।

1194 ईस्वी में मुइज्जुद्दीन भारत लौटा। 50000 घुड़सवारों के साथ उसने यमुना पार की और कन्नौज की ओर बढ़ा।

कन्नौज के निकट चंदावार नामक स्थान पर मुइज्जुद्दीन जयचंद के बीच जमकर युद्ध हुआ। कहते हैं जयचंद जीत लगभग हासिल कर चुका था, लेकिन तभी उसे एक तीर लगा , जो उसके लिए घातक साबित हुआ। उसके रणभूमि में गिरते ही उसकी सेना बिखर गई और पूरी तरह पराजित हुई।

मुइज्जुद्दीन बनारस की ओर बढ़ा। उसने वहां खूब तबाही मचाई और कई मंदिर तोड़ दिए। संघर्ष का युग

मुइज्जुद्दीन 1206 ई तक जीवित रहा। इस दौरान उसने दिल्ली के दक्षिण बाजू की रक्षा करने के लिए बयाना और ग्वालियर के किले फतह किए।

ऐबक ने चंदेल शासको से कालिंजर , महोबा और खजुराहो छीन लिया। ऐबक ने गुजरात और अनछिलवाड़ के राजा भीम द्वितीय को पराजित किया।

बख्तियार नामक एक खिलजी अफसर को , जिसका चाचा तराइन के युद्ध में लड़ा था , बनारस के पूर्व की ओर के कुछ इलाकों को संभालने की जिम्मेदारी सौंप गई थी। इस स्थिति का लाभ उठाकर उसने बिहार पर कई हमले किए थे।

इन हमलों के दौरान बख्तियार खलजी ने बिहार के कुछ प्रसिद्ध बौद्ध विहारों को अपना लक्ष्य बनाया था और उन्हें बर्बाद कर दिया था। नालंदा और विक्रमशिला ऐसे ही विहार थे।

बख्तियार खिलजी ने काफी संपत्ति इकट्ठी कर ली थी और अपने अनुगामियों का एक दल भी खड़ा कर लिया था।

बहुत सावधानी के साथ तैयारी करके बख्तियार नदिया , एक तीर्थ – स्थान , जहां पर सेन शासक , लक्ष्मण सेन यात्रा के लिए गया हुआ था ,की ओर बढ़ा। उसने घोड़े के सौदागर का वेश धारण कर रखा था। संघर्ष का युग

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इसी छद्म वेश में 18 लोगों की एक टुकड़ी ने सेनों की राजधानी में प्रवेश किया। राजमहल में पहुंचकर बख्तियार ने एकाएक हमला बोल दिया और चारों ओर भारी अस्त – व्यस्तता की स्थिति पैदा कर दी।

सेन राजा लक्ष्मण सेन अचानक किए गए इस हमले से स्तंभित हो गए सोचा कि तुर्कों की मुख्य सेना पहुंच गई है सो वह चोर दरवाजे से निकल भागा और सोनार गांव में शरण ली। ये घटनाएं 1204 ई की मानी जाती है।

बख्तियार फिर सेन शासको की राजधानी लखनौती की ओर बढ़ा और बिना किसी विरोध के उस पर कब्जा कर लिया क्योंकि सेन शासक उस समय दक्षिण बंगाल में सोनार गांव गया हुआ था।

लक्ष्मण सेन और उसके उत्तराधिकारियों ने सोनर गांव से दक्षिण बंगाल पर शासन करते रहे।

बख्तियार ने असम में ब्रह्मपुत्र घाटी को जीतने की मूर्खतापूर्ण मुहिम शुरू कर दी। असम के माघ शासक पीछे हटते रहे और तुर्क सेना जितना आगे बढ़ सकती थी उतना आगे उसे बढ़ाने दिया। अंत में थके – मांदे तुर्कों को लगा कि अब और आगे नहीं बढ़ सकते , सो उन्होंने पीछे लौटने का निश्चय किया। संघर्ष का युग

नतीजतन तुर्क सेना की गहरी शिकस्त हुई। कुछ पहाड़ी कबीलों की मदद से बख्तियार अपने थोड़े – से साथियों के साथ जान बचाकर लौट पाया। लेकिन उसका स्वास्थ्य जर्जर हो चुका था। बीमार हालत में खुद उसी के एक अमीर ने छुरा घोंप कर उसकी हत्या कर दी।

1203 ईस्वी में मुइज्जुद्दीन ख़्वारिज़्मी शासक ने बुरी तरह पराजित हुआ। यह पराजय तुर्कों के लिए छिपा हुआ वरदान साबित हुई क्योंकि इसके फलस्वरुप उन्हें अपनी मध्य एशियाई महत्वाकांक्षाओं को तिलांजलि देकर अपना पूरा ध्यान भारत पर लगाने को विवश होना पड़ा।

मुइज्जुद्दीन की पराजय का तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि उसके कई भारत – स्थित विरोधियों ने विद्रोह कर दिया।

पश्चिम पंजाब की युद्धप्रिय खोखर जाति ने विद्रोह करके लाहौर और गजनी के बीच का संचार मार्ग काट दिया। खोखरों को सबक सिखाने के लिए मुइज्जुद्दीन ने 1206 ईस्वी में भारत पर अंतिम बार आक्रमण किया।

उसने खोकरों की एक भारी तादाद को मौत के घाट उतार कर उनका जोश ठंडा कर दिया लेकिन जब वह गजनी लौट रहा था तो एक कट्टरपंथी मुसलमान ने उसकी हत्या कर दी।

महमूद गजनवी मुइज्जुद्दीन से अधिक सफल था। उसे भारत में या मध्य एशिया में कहीं भी कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।

महमूद और मुइज्जुद्दीन दोनों ने हिंदू अफसरों और सिपाहियों का उपयोग किया।

लोहे की रकाब का प्रयोग भारत में आठवीं सदी से ही फैलने लगा था। संघर्ष का युग

MCQ

प्रश्न 1 – गजनी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर – अलप्तगीन

प्रश्न 2 – किसने यह दावा किया कि वह ईरान के पौराणिक राजा अफ्रासियाब का वंशज था ?

उत्तर – महमूद

प्रश्न 3 – महमूद ने भारत पर कितने हमले किये ?

उत्तर – 17

प्रश्न 4 – वेहिंद की लड़ाई ( 1008 – 9 ईस्वी ) किन – किन शासकों के बीच लड़ी गयी ?

उत्तर – महमूद और आनंदपाल

प्रश्न 5 – किस वंश के शासको ने बिहार से पालों को निकालकर बनारस को अपनी दूसरी राजधानी बनाया ?

उत्तर – कन्नौज के गाहड़वालों ने

प्रश्न 6 – नागर शैली के मंदिरों के निर्माण के मुख्य केंद्र थे –

उत्तर – उत्तर भारत और दकन

प्रश्न 7 – माउंट आबू के प्रसिद्ध जैन मंदिर का निर्माण किसने करवाया था ?

उत्तर – वस्तुपाल

प्रश्न 8 – खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर , विश्वनाथ मंदिर और कंदरिया महादेव मंदिर किस शैली की संपूर्ण विशेषताओं को रूपायित करते हैं ?

उत्तर – नागर

प्रश्न 9 – किस शासक को लोग जहाँसोज अर्थात दुनिया को जलाने वाला कहने लगे ?

उत्तर – अलाउद्दीन

प्रश्न 10 – 1178 ईस्वी में मुइज्जुद्दीन मुहम्मद को माउंटआबू के निकट कहाँ के शासक ने पराजित किया ?

उत्तर – गुजरात के ( भीम द्वितीय )

प्रश्न 11 – आल्हा लोकगीत के नायक है –

उत्तर – आल्हा और ऊदल

प्रश्न 12 – मुइज्जुद्दीन मुहम्मद और पृथ्वीराज के बीच संघर्ष की शुरुआत किस क्षेत्र पर दावों को लेकर हुई ?

उत्तर – तबरहिंद

प्रश्न 13 – तराइन की प्रथम लड़ाई कब और किसके बीच हुई ?

उत्तर – 1191 ईस्वी , पृथ्वीराज और गोरी के बीच

प्रश्न 14 – तराइन की प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई। इस लड़ाई में पृथ्वीराज का सेनापति कौन था ?

उत्तर – स्कंध

प्रश्न 15 – तराइन की कौन सी लड़ाई को भारतीय इतिहास को एक नया मोड़ देने वाली लड़ाई माना जाता है ?

उत्तर – दूसरी (1192 ईस्वी )

प्रश्न 16 – मुहम्मद गोरी ने जयचंद को किस युद्ध में पराजित किया ?

उत्तर – चंदावार के

प्रश्न 17 – किसने नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्रसिद्ध बौद्ध विहारों को तहस – नहस कर दिया ?

उत्तर – बख्तियार खिलजी

प्रश्न 18 – मुइज्जुद्दीन ने भारत पर अंतिम बार आक्रमण किया –

उत्तर – 1206 ईस्वी में

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