विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन :- भारत के विंध्याचल से दक्षिण के प्रदेशों में 200 वर्षों से अधिक काल तक विजयनगर और बहमनी राज्यों का बोलबाला रहा।

इन राज्यों की समाप्ति पंद्रहवी सदी के अंतिम चरणों में बहमनी राज्य के विघटन और 50 साल से अधिक समय बाद 1565 ईस्वी में बन्नीहट्टी की लड़ाई में विजयनगर की पराजय के साथ हुई

विजयनगर राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने की , जिनके तीन और भाई थे। कथा के अनुसार ये दोनों वारंगल के काकतीय राजा के सामंत थे और बाद में कांपिली ( आधुनिक कर्नाटक में ) नमक राज्य में मंत्री बन गए।

एक मुसलमान विद्रोही को शरण देने के कारण कांपिली पर मुहम्मद तुगलक ने आक्रमण करके उसे जीत लिया तो इन दोनों भाइयों को बंदी बनाकर इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया तथा वहां विद्रोहियों से निपटने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई।

कुछ समय बाद इन दोनों भाइयों ने अपने नए स्वामी और नए धर्म – दोनों का त्याग कर दिया। अपने गुरु विद्यारण्य के निर्देश पर वे फिर से हिंदू धर्म में दीक्षित किए गए और उन्होंने विजयनगर में अपनी राजधानी स्थापित की। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

हरिहर के सिंहासनारोहण का वर्ष 1336 ईस्वी बताया गया है।

नवोदित राज्य को पहले मैसूर के होयसल राजा और मुदरै के सुल्तान से दो-दो हाथ करने पड़े। 1340 ई तक पूरा – का – पूरा होयसल राज्य विजयनगर के शासको के हाथों में आ चुका था।

आरंभ में विजयनगर राज्य एक सहकारी राज्य – व्यवस्था ( कोऑपरेटिव कॉमनवेल्थ ) था। अपने भाई की मृत्यु होने पर 1356 ईस्वी में बुक्का सिंहासन पर बैठा और उसने 1377 ई तक राज्य किया।

दक्षिण में विजयनगर के मुख्य प्रतिदवंद्वी मुदरै के सुल्तान थे। विजयनगर और मुदरै के सुल्तानों के बीच संघर्ष लगभग 4 दशकों तक चला।

बहमनी राज्य की स्थापना 1347 ईस्वी में हुई थी। इस के संस्थापक का नाम था अलाउद्दीन हसन। उसका उत्थान गंगू नामक एक ब्राह्मण की सेवा में रहते हुए हुआ। इसलिए वह ‘ हसन गंगू ‘ के नाम से जाना जाता है। गद्दीनशीन होने के बाद उसने अलाउद्दीन हसन बहमनशाह का ख़िताब अपनाया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

वह अपने को अर्धमिथकीय ईरानी वीर पुरुष बहमन शाह का वंशज बताता था।

फरिश्ता द्वारा उल्लेखित एक लोक कथा के अनुसार उसने अपने ब्राह्मण संरक्षक के प्रति अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति के लिए अपना नाम बहमन शाह रखा था। इसी खिताब के आधार पर उसका राज्य बहमनी राज्य कहलाया।

विजयनगर के शासकों तथा बहमनी सुल्तानों के हितों का टकराव तीन अलग-अलग क्षेत्र में था – तुंगभद्रा के दोआब में , कृष्णा – गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र में और मराठवाडा प्रदेश में।

तुंगभद्रा दोआब कृष्ण और तुंगभद्रा नदियों के बीच पड़ता था। इसकी समृद्धि तथा आर्थिक संपदाओं के कारण इससे पहले इसके लिए पश्चिमी चालुक्यों और चोलों के बीच और फिर यादवों तथा होयसलों के बीच संघर्ष चला था।

कृष्णा – गोदावरी घाटी बहुत उपजाऊ थी और अपने अनेक बंदरगाहों के कारण इस क्षेत्र के विदेश व्यापार पर इस घाटी का नियंत्रण था। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

मराठा देश में मुख्य संघर्ष कोंकण और वहां तक पहुंचाने का रास्ता देने वाले प्रदेशों के लिए था। कोकण पश्चिमी घाट और अरबसागर के बीच भूमि की एक पतली पट्टी है। यह पट्टी बहुत उपजाऊ थी और इसी में गोआ का बंदरगाह आता था जो इस क्षेत्र के उत्पादों के निर्यात और साथ ही ईरान और इराक से घोड़ों के आयात का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

भारत में अच्छी नस्लों के घोड़े नहीं होते थे , इसलिए गोआ के रास्ते घोड़ों का आयात दक्षिणी राज्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।

प्रथम बक्का ने 1367 ईस्वी में विवादास्पद तुंगभद्रा दोआब में मुड़कल किले पर आक्रमण किया तो उसने वहां की रक्षावाहिनी के एक व्यक्ति को छोड़कर बाकी सब को मौत के घाट उतार दिया।

विजयनगर और बहमनियों के बीच की लड़ाइयों का मध्यकालीन लेखकों ने विस्तार से वर्णन किया है।

हरिहर द्वितीय ( 1377 ईस्वी – 1404 ईस्वी ) बहमनी – वारंगल गठजोड़ के मुकाबले अपनी स्थिति सुदृढ़ रखने में कामयाब रहा। लेकिन उसकी सबसे बड़ी कामयाबी थी कि उसने बहमनी राज्य से बेलगाम और गोवा छीन लिए। उसने उत्तर श्रीलंका पर भी आक्रमण किया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

हरिहर द्वितीय की मृत्यु के बाद कुछ समय की अनिश्चिता के उपरांत प्रथम देवराय ( 1406 ई – 1422 ई ) सिंहासनारूड हुआ। उसके शासनकाल के आरंभ में ही तुंगभद्र दोआब के लिए फिर भिड़ंत हुई। वह बहमनी सुल्तान से हार गया।

इस युद्ध के हर्जाने के तौर पर उसे सुल्तान को भरी रकम के साथ अपनी बेटी का विवाह करने पर भी राजी होना पड़ा और भविष्य में किसी प्रकार के विवाद की कोई गुंजाइश नहीं रहने देने के लिए उसे दहेज के रूप में दोआब क्षेत्र में बांकापुर का इलाका बहमनियों को देना पड़ा।

इस बीच रेड्डियों के राज्य में गड़बड़ी फैल गई थी। इसका लाभ उठाकर देवराय ने इस राज्य को आपस में बांट लेने के लिए वारंगल के साथ एक संधि की। वारंगल के बहमनियों को छोड़कर विजयनगर के साथ हो जाने से दकन की शक्ति संतुलन बदल गया।

देवराय ने फिरोजशाह बहमनी को गहरी शिकस्त दी और कृष्णा नदी के मुहाने तक का उसका पूरा रेड्डी प्रदेश अपने साम्राज्य में मिला लिया।

देवराय प्रथम ने तुंगभद्रा पर एक बांध बनवाया ताकि उसमें से नहरें निकालकर उन्हें राजधानी तक लाकर पानी की कमी दूर की जा सके। सिंचाई के प्रयोजनों से उसने हरिद्रा नदी पर भी एक बांध बनवाया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

देवराय द्वितीय ( 1422 ई – 1446 ई ) सिंहासन पर बैठा। उसे इस राजवंश का सबसे बड़ा शासक माना जाता है।

देवराय द्वितीय ने सेना को मजबूत बनाने के लिए ज्यादा मुसलमानों को भरती किया। उसने 2007 मुसलमानों को भरती किया , उन्हें जागीरें दी और सभी हिंदू सिपहियों तथा अफसरों से उनसे धनुर्विद्या सीखने को कहा।

विजयनगर की सेना में मुसलमानों की भरती कोई नई बात नहीं थी। कहते हैं , देवराय प्रथम की सेना में 10000 मुसलमान थे।

16वीं सदी के पुर्तगाली लेखक नूनिज से मालूम होता है कि क्विलोन , श्रीलंका , पुलीकट , पेगू तथा तेनासरीम ( बर्मा और मलाया में ) देवराय द्वितीय को कर दिया करते थे।

इतावली यात्री निकोलों कोंती 1420 ईस्वी में विजयनगर आ गया था। वह अपने पीछे विजयनगर का बहुत सजीव वर्णन छोड़ गया है।

फारसी यात्री अब्दुर्रज्जाक ने भारत और दूसरे देशों की दूर-दूर की यात्रा की थी। देवराज द्वितीय के शासनकाल में वह विजयनगर पहुंचा था। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर का जो वर्णन किया है उससे इसके वैभव का पता चलता है।

अब्दुर्रज्जाक का कहना है – ” इस परवर्ती राजा के राज्य में तीन सौ बंदरगाह है जिनमें से प्रत्येक कालीकट के बराबर है और उसका प्रादेशिक विस्तार इतना अधिक है कि थलमार्ग से उसकी यात्रा पूरी करने में 3 महीने लग जाते हैं “।

अब्दुर्रज्जाक आगे बताता है – ” देश के अधिकतर हिस्सों में अच्छी खेती – बड़ी होती है और जमीन उपजाऊ है। सैनिकों की संख्या 11 लाख है ” ।

अब्दुर्रज्जाक नगर का वर्णन करते हुए कहता है कि यह इस ढंग से बना हुआ है कि सात दुर्ग और इतनी ही दीवारें एक दूसरे को आवेष्ठित करते हैं।

विजयनगर के राजाओं की बहुत धनवान होने की ख्याति थी। अब्दुर्रज्जाक ने इस अनुश्रुति का भी उल्लेख किया है कि ” राजा के महल में सोने – चांदी से भरे अनेक कोठारीनुमा हौज है। ” विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

बहमनी सल्तनत : प्रादेशिक विस्तार और विघटन

बहमनी सल्तनत की सबसे उल्लेखनीय हस्ती फिरोजशाह बहमनी ( 1397 ई – 1422 ई ) था। उसे कुरान की टिकाओं और इस्लामी कानून का बहुत अच्छा ज्ञान था।

वनस्पतिशास्त्र जैसे प्राकृतिक विज्ञानों , ज्यामिति , तर्कशास्त्र आदि में फिरोजशाह बहमनी की विशेष रूचि थी। वह श्रेष्ठ खुशनवीस ( सुलेखकार ) और कवि था। वह अक्सर आशु कविता किया करता था।

फरिश्ता के अनुसार फिरोजशाह बहमनी का न केवल फारसी , अरबी और तुर्की भाषाओं पर अधिकार था , बल्कि उसे तेलुगु , कन्नड़ और मराठी में भी उतना ही महारत हासिल था |

फिरोजशाह बहमनी के हरम में उसकी बहुत सारी पत्नी थी जो अलग-अलग देश और अलग-अलग क्षेत्र की थी वह अपनी हर पत्नी से उसी की भाषा में बात करता था।

फिरोजशाह बहमनी आमतौर पर आधी – आधी रात तक धर्मतत्वज्ञों , कवियों , ऐतिहासिक विवरणों के वाचकों और मेधावी तथा वाक्पटु दरबारियों की संगति में रहता था। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

फिरोजशाह बहमनी ने पूर्वविधान ( ओल्ड टेस्टामेंट ) और नवविधान ( न्यू टेस्टामेंट ) दोनों को पढ़ा था। वह सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों का आदर करता था।

फरिश्ता के अनुसार फिरोजशाह बहमनी एक सच्चा मुसलमान था जिसकी कमजोरी सिर्फ यह थी कि वह शराब पीता था और संगीत सुनता था।

फिरोजशाह बहमनी ने प्रशासन में हिंदुओं को बड़े पैमाने पर स्थान दिया। कहा जाता है कि उसके काल से दकनी ब्राह्मणों ने प्रशासन में , खास तौर से राजस्व प्रशासन में , प्रधानता की स्थिति प्राप्त कर ली। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

फिरोजशाह बहमनी ने खगोलविज्ञान को बढ़ावा दिया और दौलताबाद के निकट एक वेधशाला बनवाई।

1419 ईस्वी में बहमनी राज्य को एक आघात लगा। देवराय प्रथम ने फिरोजशाह को हरा दिया था। इस हार से फिरोज की स्थिति कमजोर हो गई। उस अपने भाई अहमद शाह प्रथम के हक में गद्दी छोड़नी पड़ी।

प्रसिद्ध सूफी संत गैसू दराज से अपनी संगति के कारण अहमद शाह प्रथम को वली या संत भी कहा जाता है।

अहमद ने वारंगल पर आक्रमण कर वहां के राजा को लड़ाई में हराकर मार डाला और उसके अधिकृत प्रदेशों को अपनी सल्तनत में मिला लिया। नवविजित प्रदेशों पर उसने शासन को सुदृढ़ करने के लिए वह राजधानी गुलबर्गा से बीदर ले गया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

महमूद गवान

महमूद जन्म से ईरानी था और आरंभ में वाणिज्य – व्यापार में लगा हुआ था। सुल्तान ने उसे मलिक – उन – तुज्जार ( व्यापारियों का प्रधान ) का ख़िताब बख्शा। इसके कुछ दिन बाद ही वह सुल्तान का पेशवा या प्रधानमंत्री बन गया।

महमूद गवान का प्रमुख सैनिक योगदान पश्चिमी तट के प्रदेशों पर , जिनमे हामोल और गोवा भी शामिल थे , हासिल की गई जीत थी। इन बंदरगाहों का हाथ से निकल जाना विजयनगर के लिए गहरा आघात था।

महमूद गवान को मालवा के शासक महमूद खिलजी के खिलाफ बरार को लेकर कई कठिन लड़ाइयां लड़नी पड़ी। गुजरात के शासक से प्राप्त सक्रिय सहायता के बदौलत उसमें अंत में सफलता प्राप्त की।

महमूद गवान ने कई आंतरिक सुधार भी किए। उसने राज्य को आठ प्रांतों या तरफों में विभाजित कर दिया। हर तरफ का शासन एक तरफ – दार चलता था।

महमूद गवान कला का बहुत बड़ा संरक्षक था। उसने राजधानी बीदर में एक शानदार मदरसा या कॉलेज भी बनवाया। उस समय के कुछ प्रसिद्ध ईरानी और इराकी विद्यवान भी मदरसे में अध्यापन के लिए आए। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

बहमनी सल्तनत की एक बड़ी समस्या अमीरों के बीच चलने वाले झगड़े थे। अमीर लोग पूर्वागंतुकों और दकनियों और अफाकियों या नवागंतुकों ( जो गरीब भी कहलाते थे ) में बंटे हुए थे।

महमूद गवान नवागंतुक था तो उसे पूर्वागंतुकों का विश्वास जीतने में कठिनाई का सामना करना पड़ा था।

उसके विरोधियों ने युवा सुल्तान के कान भर दिए और 1482 ईस्वी में उसने गवान को मृत्युदंड दे दिया उस समय महमूद गवान 70 साल से अधिक उम्र का था।

शीघ्र ही बहमनी सल्तनत पांच छोटे-छोटे राज्यों में बंट गई – गोलकुंडा , बीजापुर , अहमदनगर , बरार और बीदर।

इनमें से अहमदनगर , बीजापुर और गोलकुंडा ने दक्कन की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आखिर 17वीं सदी में इन्हें मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।

बहमनी सुल्तान ने उत्तर और दक्षिण के बीच सांस्कृतिक सेतु का काम किया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

विजयनगर साम्राज्य का चरम उत्कर्ष और विघटन

विजयनगर में ज्येष्ठाधिकार का नियम प्रतिष्ठित नहीं हो पाया था , इसलिए द्वितीय देवराय ( 1446 ईस्वी ) की मृत्यु के बाद अनिश्चितता की स्थिति उत्पन हो गई।

कुछ समय बाद राजा के मंत्री सालुवा ने गद्दी पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार पूर्व राजवंश का अंत हो गया।

सालुवा ने एक नए राजवंश की स्थापना की। लेकिन यह राजवंश भी शीघ्र ही मिट गया। अंत में कृष्णदेव ने तुलुवा नामक एक नए राजवंश की स्थापना की।

कृष्णदेव राय ( 1509 ई – 30 ई ) को कुछ इतिहासकार विजयनगर के सभी राजाओं में सबसे महान मानते हैं।

उस समय पुर्तगालियों की शक्ति बढ़ती जा रही थी। पुर्तगालियों ने राय के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि अगर वह तटीय प्रदेशों के मामलों में तटस्थ रहे तो बीजापुर राज्य से गोआ छीनने में वे उसकी मदद करेंगे और घोड़े के आयात के मामले में उसे एकाधिकार प्रदान कर देंगे।

कृष्णदेव देव राय ने उड़ीसा के राजा को कृष्णा नदी तक के प्रदेश विजयनगर को वापस कर देने पर मजबूर कर दिया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

राय ने अपनी स्थिति सुदृढ़ बनाकर तुंगभद्रा दोआब पर अधिकार स्थापित करने का पुराना संघर्ष एकबार फिर छेड़ दिया। इसके जवाब में उसके दो मुख्य शत्रुओं – बीजापुर और उड़ीसा ने आपस में गठजोड़ कर लिया। लेकिन कृष्णदेव ने बीजापुर को बुरी तरह से हरा दिया।

कृष्ण देव की अधीन विजयनगर एक बार फिर दक्षिण की प्रबल सैनिक शक्ति के रूप में उभरा। लेकिन कृष्ण देव ने नौसेना के विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

पेस नामक एक इतालवी ने कृष्णदेव के दरबार में कई साल बिताए थे। उसने राय के व्यक्तित्व की बहुत शानदार तस्वीर पेश की है। उसने उसे ” एक महान शासक और अत्यंत न्याय प्रिय ” बताया है लेकिन साथ ही वह कहता है , ” उसे सहसा बहुत क्रोध आ जाता है ।

कृष्णदेव राय एक महान निर्माता भी था। उसने विजयनगर के निकट एक नया शहर बसाया और एक विशाल तालाब भी खुदवाया जिसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था।

कृष्णदेव राय स्वयं तेलुगु और संस्कृत का मेधावी विद्वान था। उसकी अनेक कृतियों में से सिर्फ दो ही उपलब्ध हैं – एक है राज्य व्यवस्था पर तेलुगु की एक रचना और दूसरी है संस्कृत में लिखा एक नाटक। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

कृष्णदेव राय के शासनकाल में तेलुगु साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। उसने तेलुगु , कन्नड़ और तमिल कवियों को प्रश्रय दिया।

बारबोसा , पेस और नूनिज जैसे विदेशी यात्रियों ने उसके कुशल प्रशासन तथा उसके अधीन विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि के बारे में काफी लिखा है।

बारबोसा ने कृष्णदेव राय के साम्राज्य में बरते जाने वाले न्याय और समानता के व्यवहार की प्रशंसा की है।

कृष्ण देव की मृत्यु ( 1530 ईस्वी ) के समय उसके सभी पुत्र नाबालिग थे इसलिए उसके संबंधियों में गद्दी के लिए झगड़ा शुरू हो गया।

अंत में 1543 ईस्वी में सदाशिव राय गद्दी पर बैठा और 1567 ई तक उसने राज किया। लेकिन वास्तविक सत्ता एक तिगड्डे के हाथों में थी जिसमें प्रमुख था रामराजा।

रामराजा ने पुर्तगालियों के साथ एक व्यापारिक संधि की जिसके अनुसार बीजापुर के शासक को घोड़े की आपूर्ति बंद कर दी गई। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

एक के बाद एक कई लड़ाइयों में रामराजा ने बीजापुर के शासक को करारी हार दी और गोलकुंडा तथा अहमदनगर शासको को भी गहरी शिक्षक दी।

इन तीनों राज्यों के शासक आपस में मिल गए और 1565 ईस्वी में तालिकोट के निकट बन्नीहट्टी की लड़ाई में उन्होंने विजयनगर को गहरी शिकस्त दी। इसे तालिकोट की लड़ाई या राक्षस तंगड़ि , की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है। रामराजा को घेर लिया गया और उसे पकड़कर तुरंत उसकी हत्या कर दी गई।

बन्नीहट्टी की लड़ाई को आमतौर पर विजयनगर के महान युग का अंत माना जाता है।

विजयनगर राज्य में राजा को सलाह देने के लिए मंत्रियों की एक परिषद होती थी जिसमें राज्य के प्रमुख सरदार हुआ करते थे।

राज्य मंडलम में विभाजित होता था। वैसे , मंडलम को राज्य भी कहा जाता था। मंडलम के नीचे क्रमशः नाडु ( जिला ), स्थल ( उप-जिला ) और ग्राम होता था।

विजयनगर के शासको के अधीन ग्राम – स्वशासन की परंपरा काफी कमजोर पड़ गई थी। वंशानुगत नायकत्व का विकास होने से गांवों की आजादी और पहलकदमी की प्रवृत्ति पर काफी अंकुश लग गया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

प्रांतों के शासक आरंभ में राजपरिवार के लोग होते थे। बाद में अधीनस्थ राज – परिवारों के लोग और सरदार लोग भी मंडलेश्वर या प्रांतीय शासक नियुक्त किए जाने लगे।

प्रांतीय शासन को काफी स्वायत्ता प्राप्त होती थी। वह अपना दरबार लगता था , अपने अफसर नियुक्त करता था और अपनी सेना रखता था। उसे अपने सिक्के जारी करने की भी छूट थी, हालंकि ये सिक्के कम मूल्य के होते थे।

प्रांतीय शासक का कोई नियमित कार्यकाल नहीं होता था। उसका कार्यकाल उसकी योग्यता और शक्ति पर निर्भर करता था।

प्रांतीय शासक को नए कर लगाने या पुराने कर माफ करने का अधिकार था। वह केंद्र को एक निश्चित रकम और एक निश्चित संख्या में सैनिक देता था।

कुछ इतिहासकारों का विचार है कि विजयनगर केंद्रीकृत साम्राज्य की बजाय राज्यों का एक महासंघ था। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

राजा सैनिक सरदारों को ‘ अमरम ‘ या निश्चित राजस्व वाला क्षेत्र भी दिया करता था। पलफुगार ( पालिगार ) या नायक कहें जाने वाले इन सरदारों को राज्य की सेवा के लिए एक निश्चित संख्या में पैदल सैनिक , घोड़े और हाथी रखने पड़ते थे।

किसानों से अपनी उपज का कितना हिस्सा राज्य को देना अपेक्षित था इस संबंध में हमें बहुत कम जानकारी है। फसल और मिट्टी की किस्म , सिंचाई की विधि आदि के अनुसार राजस्व की दरों में अंतर होता था।

भूराजस्व के अलावा और भी कर थे जैसे संपत्ति कर , पैदावार की बिक्री पर लगने वाला कर , पेशागत कर , सैनिक कर , विवाह – कर आदि। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

पुर्तगालियों का आगमन

1498 ई वास्को द गामा दो जहाजों के साथ कालीकट बंदरगाह पर आकर रुक। उसके साथ एक गुजराती चालक भी था। उस चालक को गलती से अब्दुल मजीद के रूप में पहचाना गया है जो कि एक प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता और यात्री था जिसने अनेक पुस्तकें भी लिखी है।

अफ्रीकी तट से कालिकट तक वास्को द गामा के जहाज का मार्गदर्शन अब्दुल मजीद ने ही किया था।

इस घटना को अक्सर एक नई दौर की शुरुआत माना गया है। इस दौर में समुद्रों का नियंत्रण यूरोपीय के हाथों में चला गया। इससे भारतीय व्यापार और व्यापारियों को जबरदस्त धक्का लगा और अंत में यूरोपीय लोग भारत पर और उसके अधिकांश पड़ोसी देशों पर भी अपना औपनिवेशिक शासन तथा प्रभुत्व स्थापित करने में कामयाब हो गए।

रोम साम्राज्य के युग से ही यूरोप में प्राच्य वस्तुओं की मांग बढ़ती जा रही थी। इन वस्तुओं में चीन का रेशम तथा भारत तथा दक्षिण पूर्व एशिया के मसाले और औषधीय शामिल थी।

तमाम देशों ने भारत को जाने वाले सीधे समुद्री मार्ग की तलाश आरंभ कर दी और इस तरह समुद्री अनुसंधानों का युग आरंभ हुआ। इसी अनुसंधान के क्रम में जिनेवावासी क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

1487 ईस्वी में बार्थलक्यू डिआज नए उत्तमाशा अंतरीप का चक्कर लगाकर यूरोप तथा भारत के बीच प्रत्यक्ष व्यापारिक संबंध स्थापित कर दिया।

वास्को द गामा 1498 ईस्वी , में गुजराती पायलट के साथ कालिकट में उतरा। वहां बसी अरबों की बस्ती उसके खिलाफ थी , लेकिन वहां के जमोरिन ने पुर्तगालियों का स्वागत किया और उन्हें काली मिर्च , औषधियों आदि जहाजों में लादने दिया।

पुर्तगालियों की बढ़ती शक्ति से चिंतित होकर मिस्र के सुल्तान ने एक बेड़े को युद्ध के लिए सज्जित करके भारत की ओर भेजो। रास्ते में गुजरात के शासक के जहाजों का एक छोटा सा बेड़ा भी उसके साथ हो गया। अंत में 1409 ईस्वी में पुर्तगालियों ने इस संयुक्त बेड़े को हरा दिया। इस जीत से पुर्तगाली सेना हिंद महासागर में कुछ काल के लिए सर्वशक्तिमान बन गई।

अल्बुकर्क पुर्तगाल के पूर्वी दुनिया के प्रदेशों का शासक ( गवर्नर ) नियुक्त हुआ। अल्बुकर्क ने 1510 ईस्वी में बीजापुर से गोवा छीन लिया। उन्होंने बीजापुर में बंदरगाह डांडा – रजोड़ी और दामोल की नाकेबंदी करके उन्हें भी भरकर लूट। इस प्रकार उन्होंने बीजापुर का समुद्री व्यापार ठप्प कर दिया। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

पुर्तगालियो को लाल सागर से निकल बाहर करने के बाद 1529 ईस्वी में उस्मानिया सुल्तान ने गुजरात के शासक बहादुर शाह की मदद के लिए सुलेमान रईस के नेतृत्व में एक शक्तिशाली बेड़ा भेजा। 

बहादुर शाह ने उसकी खूब आवभगत की और दो अधिकारियों को भारतीय नाम देकर सूरत और दीव का सूबेदार नियुक्त किया। उनमें से रूमी खां आगे चलकर एक तोपची के रूप में खूब नाम कमाने वाला हो गया।

दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं ने गुजरात पर हमला कर दिया इस खतरे का सामना करने के लिए बहादुर शाह ने बेसीन का दीव पुर्तगालियो को दे दिया। 

मुगलों के खिलाफ एक रक्षात्मक और आक्रामक संधि भी की गई एवं पुर्तगालियो को दीव में एक किला बनवाने की इजाजत दे दी गई। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

जब बहादुर शाह और पुर्तगालियों के बीच समझौते के लिए वार्ता चल रही थी उस समय बहादुर शाह दीव के किले के गवर्नर के एक जहाज पर था। उसे लगा कि उसके साथ धोखा किया जा रहा है। 

गवर्नर के साथ उसके दो-दो हाथ हुए , जिसमें गवर्नर – मारा गया। बहादुर शाह ने जहाज से कूद कर , तैर कर किनारे जाने की कोशिश की लेकिन डूब कर मर गया। यह बात 1536 ई की है।

1566 ईस्वी में उस्मानियों और पुर्तगालियों के बीच इस शर्त पर समझौता हो गया कि भारत के साथ मसालों के व्यापार में दोनों का हिस्सा होगा और अरब सागर में एक दूसरे के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

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भारतीय व्यापार समाज और राजनीति पर पुर्तगाली प्रभाव

पुर्तगाली न तो हिंद महासागर के विस्तृत क्षेत्र की निगहबानी के लिए कोई इंतजाम कर पाए और न वहां व्यापार और व्यापारियों पर नियंत्रण रख पाए।

पुर्तगालियों ने इस बात की कोशिश की कि पूर्व की ओर या अफ्रीका को जाने वाले सभी जहाज गोवा से होकर गुजरें और वहां पर सीमाशुल्क अदा करें।

पुर्तगालियों को एशियाई व्यापार तंत्र के प्रतिष्ठित रूप को बदलने में कोई खास कामयाबी नहीं मिली।

सबसे अधिक लाभदायक एशियाई व्यापार पर अरबों और गुजरातियों का वर्चस्व कायम रहा।

आरंभ के एक – दो दशकों को छोड़कर पुर्तगाली यूरोप में काली मिर्च के व्यापार पर भी अपना एकाधिकार स्थापित नहीं कर पाए।

गुजरातियों ने काली मिर्च की आपूर्ति का एक नया मार्ग निकाल लिया जो सुमात्रा में अचिन से लक्षद्वीप तथा लाल सागर होते हुए मिस्र तक पहुंचता था और यह ऐसा मार्ग था जिस पर पुर्तगाली नौसेना का कुछ बस नहीं चलता था। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

जापान के साथ भारत का व्यापार आरंभ करने का श्रेय पुर्तगालियो को ही है। भारत वहां से तांबा और चांदी का आयात करता था।

पुर्तगालियों ने आलू , तंबाकू आदि कई मध्य अमेरिकी कृषि उत्पादो को भारत तक पहुंचाकर यहां इनकी खेती की शुरुआत करने में सहायक रहे। लेकिन इनका व्यापक चलन मुगलों की शक्ति के उदय के बाद ही हुआ।

जब तक बीजापुर को दक्षिण में विजयनगर से खतरा था , पुर्तगालियों से शांति बनाए रखना उसके लिए जरूरी था क्योंकि घोड़े के व्यापार पर पुर्तगालियों का नियंत्रण था और यदि बीजापुर उनसे शत्रुता करता तो वे इस व्यापार का रुख विजयनगर के पक्ष में मोड़ सकते थे।

1570 ईस्वी में बीजापुर के सुल्तान अली आदिलशाह ने अहमदनगर के सुल्तान के साथ एक समझौता किया। इस गठजोड़ में कालीकट के जमोरिन को भी शामिल कर लिया गया।

मित्र शक्तियों ने पुर्तगालियों के प्रभुत्व क्षेत्र में घुसकर उनके ठिकानों पर हमला करने का निश्चय किया। परंतु पुर्तगालियों की नौसेना समर्थित रक्षाव्यवस्था एक बार फिर भारतीय ताकतों के लिए बहुत मजबूत साबित हुई। विजयनगर और बहमनियों का काल तथा पुर्तगालियों का आगमन

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प्रश्न – 1 विजयनगर राज्य की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर – हरिहर और बुक्का

प्रश्न – 2 हरिहर और बुक्का किस राजा के सामंत थे ?

उत्तर – वारंगल के काकतीय राजा

प्रश्न – 3 दिल्ली के किस सुल्तान के कांपिली पर आक्रमण के समय हरिहर और बुक्का को बंदी बनाकर इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया ?

उत्तर – मुहम्मद तुगलक

प्रश्न – 4 किसके निर्देश पर हरिहर और बुक्का को फिर से हिंदू धर्म में दीक्षित किया गया ?

उत्तर – गुरु विद्यारण्य

प्रश्न – 5 हरिहर के सिंहासनारोहण का वर्ष क्या बताया गया है ?

उत्तर – 1336 ईस्वी

प्रश्न – 6 आरंभ में विजयनगर राज्य की राज्य – व्यवस्था थी ?

उत्तर – सहकारी ( कोऑपरेटिव कॉमनवेल्थ )

प्रश्न – 7 बहमनी राज्य की स्थापना कब हुई थी ?

उत्तर – 1347 ईस्वी में

प्रश्न – 9 बहमनी राज्य का संस्थापक कौन था ?

उत्तर – अलाउद्दीन हसन

प्रश्न – 10 अलाउद्दीन हसन किस नाम से जाना जाता है ?

उत्तर – हसन गंगू

प्रश्न – 11 गद्दीनशीन होने के बाद अलाउद्दीन हसन कौन – सा ख़िताब अपनाया ?

उत्तर – बहमनशाह का

प्रश्न – 12 अलाउद्दीन हसन अपने को किस अर्धमिथकीय ईरानी वीर पुरुष वंशज बताता था ?

उत्तर – बहमन शाह

प्रश्न – 13 विजयनगर के किस शासक ने 1367 ईस्वी में विवादास्पद तुंगभद्रा दोआब में मुड़कल किले पर आक्रमण किया तो उसने वहां की रक्षावाहिनी के एक व्यक्ति को छोड़कर बाकी सब को मौत के घाट उतार दिया ?

उत्तर – प्रथम बक्का

प्रश्न – 14 विजयनगर के किस शासक ने बहमनी राज्य से बेलगाम और गोवा छीन के साथ – साथ उत्तर श्रीलंका पर भी आक्रमण किया ?

उत्तर – हरिहर द्वितीय

प्रश्न – 15 विजयनगर के किस शासक को बहमनी सुल्तान द्वारा हारने पर सुल्तान को भरी रकम देने के साथ अपनी बेटी का विवाह उससे करने पर भी राजी होना पड़ा ?

उत्तर – देवराय प्रथम

प्रश्न – 16 विजयनगर राज्य का वह कौन – सा शासक था जिसने राजधानी की पानी की कमी दूर करने के लिए तुंगभद्रा पर एक बांध बनवाना तथा सिंचाई के प्रयोजनों से उसने हरिद्रा नदी पर भी एक बांध बनवाया ?

उत्तर – देवराय प्रथम

प्रश्न – 17 विजयनगर राज्य का सबसे बड़ा शासक किसे माना जाता है ?

उत्तर – देवराय द्वितीय

प्रश्न – 18 16वीं सदी के किस पुर्तगाली लेखक से मालूम होता है कि क्विलोन , श्रीलंका , पुलीकट , पेगू तथा तेनासरीम ( बर्मा और मलाया में ) देवराय द्वितीय को कर दिया करते थे ?

उत्तर – नूनिज

प्रश्न – 19 वह इतावली यात्री कौन था , जो अपने पीछे विजयनगर का बहुत सजीव वर्णन छोड़ गया है ?

उत्तर – निकोलों कोंती

प्रश्न – 20 फारसी यात्री अब्दुर्रज्जाक किस के शासनकाल में विजयनगर पहुंचा था ?

उत्तर – देवराज द्वितीय

प्रश्न – 21 यह किस यात्री का कहना है कि – इस परवर्ती राजा ( देवराज द्वितीय ) के राज्य ( विजयनगर ) में तीन सौ बंदरगाह है जिनमें से प्रत्येक कालीकट के बराबर है और उसका प्रादेशिक विस्तार इतना अधिक है कि थलमार्ग से उसकी यात्रा पूरी करने में 3 महीने लग जाते हैं ?

उत्तर – अब्दुर्रज्जाक

प्रश्न – 22 विजयनगर के राजाओं की बहुत धनवान होने की ख्याति थी। किस यात्री ने यह उल्लेख किया है कि ” राजा के महल में सोने – चांदी से भरे अनेक कोठारीनुमा हौज है। “

उत्तर – अब्दुर्रज्जाक ने

प्रश्न – 23 बहमनी सल्तनत की सबसे उल्लेखनीय हस्ती कौन था ?

उत्तर – फिरोजशाह बहमनी ( 1397 ई – 1422 ई )

प्रश्न – 24 बहमनी सल्तनत का वह सुल्तान जो अक्सर आशु कविता किया करता था ?

उत्तर – फिरोजशाह बहमनी

प्रश्न – 25 वह बहमनी सुल्तान जिसने पूर्वविधान ( ओल्ड टेस्टामेंट ) और नवविधान ( न्यू टेस्टामेंट ) दोनों को पढ़ा था तथा वह सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों का आदर करता था ?

उत्तर – फिरोजशाह बहमनी

प्रश्न – 26 किस बहमनी सुल्तान के काल में दकनी ब्राह्मणों ने प्रशासन में , खास तौर से राजस्व प्रशासन में , प्रधानता की स्थिति प्राप्त कर ली ?

उत्तर – फिरोजशाह बहमनी

प्रश्न – 27 किस बहमनी सुल्तान ने खगोलविज्ञान को बढ़ावा दिया और दौलताबाद के निकट एक वेधशाला बनवाई ?

उत्तर – फिरोजशाह बहमनी

प्रश्न – 28 किस बहमनी सुल्तान को अपने भाई अहमद शाह प्रथम के हक में गद्दी छोड़नी पड़ी ?

उत्तर – फिरोजशाह बहमनी

प्रश्न – 29 प्रसिद्ध सूफी संत गैसू दराज से अपनी संगति के कारण किस बहमनी सुल्तान को ‘ वली ‘ या ‘ संत ‘ कहा जाता है ?

उत्तर – अहमद शाह प्रथम

प्रश्न – 30 महमूद गवान ने कई आंतरिक सुधार भी किए , उसने राज्य को कितने प्रांतों या तरफों में विभाजित कर दिया ?

उत्तर – आठ

प्रश्न – 31 किसके द्वारा राजधानी बीदर में एक शानदार मदरसा या कॉलेज बनवाया गया ?

उत्तर – महमूद गवान

प्रश्न – 32 बहमनी सल्तनत के अमीर विभिन्न वर्गों में बाटे थे। महमूद गवान का संबंध किस वर्ग से था ?

उत्तर – अफाकी या नवागंतुक

प्रश्न – 33 बहमनी सल्तनत के अमीरों को कौन – सा वर्ग गरीब भी कहलाता था ?

उत्तर – अफाकी या नवागंतुक

प्रश्न – 34 वह मंत्री जिसने विजयनगर की गद्दी पर अधिकार कर संगम वंश का अंत कर दिया ?

उत्तर – सालुवा

प्रश्न – 35 विजयनगर में तुलुवा नामक एक नए राजवंश की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर – कृष्णदेव राय

प्रश्न – 36 किस इतालवी यात्री ने कृष्णदेव के दरबार में कई साल बिताए ,उसने उसे ” एक महान शासक और अत्यंत न्याय प्रिय ” बताया है लेकिन साथ ही वह कहता है , ” उसे सहसा बहुत क्रोध आ जाता है ।

उत्तर – पेस

प्रश्न – 37 किसके शासनकाल में तेलुगु साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात हुआ ?

उत्तर – कृष्णदेव राय

प्रश्न – 38 किस विदेशी यात्री ने कृष्णदेव राय के साम्राज्य में बरते जाने वाले न्याय और समानता के व्यवहार की प्रशंसा की है ?

उत्तर – बारबोसा

प्रश्न – 39 किस लड़ाई को आमतौर पर विजयनगर के महान युग का अंत माना जाता है ?

उत्तर – बन्नीहट्टी ( 1565 ईस्वी )

प्रश्न – 40 किस लड़ाई को तालिकोट की लड़ाई या राक्षस तंगड़ि , की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है ?

उत्तर – बन्नीहट्टी की लड़ाई

प्रश्न – 41 विजयनगर राज्य का प्रशासनिक विभाजन था :-

उत्तर – मंडलम , नाडु , स्थल और ग्राम

प्रश्न – 42 वास्को द गामा दो जहाजों के साथ कालीकट बंदरगाह कब पहुंचा ?

उत्तर – 1498 ई

प्रश्न – 43 अफ्रीकी तट से कालिकट तक वास्को द गामा के जहाज का मार्गदर्शन किसने ही किया था ?

उत्तर – अब्दुल मजीद

प्रश्न – 44 1487 ईस्वी में किसके द्वारा उत्तमाशा अंतरीप का चक्कर लगाकर यूरोप तथा भारत के बीच प्रत्यक्ष व्यापारिक संबंध स्थापित कर दिया ?

उत्तर – बार्थलक्यू डिआज

प्रश्न – 45 किसको पुर्तगाल के पूर्वी दुनिया के प्रदेशों का शासक ( गवर्नर ) नियुक्त किया गया जिसने 1510 ईस्वी में बीजापुर से गोवा छीन लिया ?

उत्तर – अल्बुकर्क

प्रश्न – 46 1529 ईस्वी में उस्मानिया सुल्तान ने गुजरात के शासक बहादुर शाह की मदद के लिए किस के नेतृत्व में एक शक्तिशाली बेड़ा भेजा ?

उत्तर – सुलेमान रईस

प्रश्न – 47 जब दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं ने गुजरात पर हमला किया तो बहादुर शाह ने कौन – सा दीव पुर्तगालियो को दे दिया ?

उत्तर – बेसीन का द्वीप

प्रश्न – 48 जापान के साथ भारत का व्यापार आरंभ करने का श्रेय किसको दिया जाता है ?

उत्तर – पुर्तगालियो को

प्रश्न – 49 आलू , तंबाकू आदि कई मध्य अमेरिकी कृषि उत्पादो को भारत तक पहुंचाकर यहां इनकी खेती की शुरुआत करने का काम किसने किया ?

उत्तर – पुर्तगालियो ने

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