author

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में कायस्थ परिवार में सन 1880 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री अजायबराय और माता का नाम आनंदी देवी था। बचपन में प्रेमचंद को पिता धनपतराय के नाम से और चाचा नवाबराय के नाम से पुकारते थे। जब […]

जायांग

जायांग जायांग फूलों के मादा जनन अंग होते हैं। ये एक अथवा अधिक अंडप से मिलकर बनते हैं। अंडप के तीन भाग होते है – वर्तिका , वर्तिकाग्र तथा अंडाशय। अंडाशय का आधारी भाग फूला हुआ होता है जिस पर एक लंबी नली होती है जिसे वर्तिका कहते हैं। वर्तिका अंडाशय को वर्तिकाग्र से जोड़ती […]

ब्रायोफाइटा

ब्रायोफाइटा ब्रायोफाइटा ( bryophyta) में मॉस तथा लीवरवर्ट आते हैं जो प्राय: पहाड़ियों में नम तथा छायादार क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ब्रायोफाइटा ( bryophyta) को पादप जगत में जलस्थलचर भी कहते हैं ; क्योंकि ये भूमि पर भी जीवित रह सकते हैं , किंतु लैंगिक जनन के लिए जल पर निर्भर करते हैं। ये […]

एंजियोस्पर्म

एंजियोस्पर्म पुष्पी पादपों अथवा एंजियोस्पर्म ( angiosperms) में परागकण तथा बीजाण्ड विशिष्ट रचना के रूप में विकसित होते हैं। जिसे पुष्प कहते हैं। जबकि जिम्नोस्पर्म में बीजाण्ड अनावृत होते हैं। एंजियोस्पर्म ( angiosperms) पुष्पी पादप है , जिसमे बीज फलों के भीतर होते हैं। यह पादपों में सबसे बड़ा वर्ग है। उनके वासस्थान भी बहुत […]

जिम्नोस्पर्म

जिम्नोस्पर्म जिम्नोस्पर्म ( जिम्नोस – अनावृत , स्पर्म – बीज ) ऐसा पौधा है; जिनमे बीजाण्ड अंडाशय भित्ति से ढके हुए नहीं होते और ये निषेचन से पूर्व तथा बाद में भी अनावृत ही रहते हैं। जिम्नोस्पर्म (gymnosperms) में मध्यम अथवा लंबे वृक्ष तथा झाड़ियां होती हैं। जिम्नोस्पर्म का सिकुआ वृक्ष सबसे लंबा है। इनकी […]

चोल साम्राज्य में सांस्कृतिक जीवन

चोल साम्राज्य में सांस्कृतिक जीवन चोल साम्राज्य में सांस्कृतिक जीवन – चोल साम्राज्य के विस्तार और उसके विशाल संसाधनों के फलस्वरूप चोल शासको को तंजावूर , गंगई , कोंडचोलपुरम , कांची आदि महानगरों का निर्माण करने की सामर्थ प्राप्त हुई। शासको की गृहस्थियाँ बड़ी – बड़ी होती थी और उनके प्रसाद विशाल तथा भव्य , […]

पूरापाषाण काल

पूरापाषाण काल पूरापाषाण ( पेलिअलिथिक ) काल  :-  पृथ्वी 400 करोड़ वर्षों से अधिक पुरानी है। इसकी परत के विकास में चार अवस्थाएं प्रकट होती हैं। चौथी अवस्था चतुर्थीकी ( क्वाटर्नरी ) कहलाती है , जिसके दो भाग हैं , अतिनूतन ( प्लाइस्टोसीन ) और अदयतन ( होलोसीन )। पहला दूसरे से पूर्व बीस लाख […]

चोल प्रशासन

चोल प्रशासन चोल प्रशासन में राजा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति था। सारी सत्ता उसके हाथों में केंद्रित रहती थी , लेकिन उसे सलाह देने के लिए मंत्रियों की परिषद थी। प्रशासन से संपर्क रखने के लिए राजा दौरे पर निकलता रहता था। चोलो के पास एक विशाल सेना थी , जिसमे हस्ती – सेना , अश्वारोही […]

चोल राजवंश

चोल राजवंश चोल साम्राज्य ( चोल राजवंश ) की स्थापना विजयालय ने की जो आरंभ में पल्लवों का सामंत था। सबसे समृद्ध चोल राजा राजराज ( 985 ईस्वी – 1014 ईस्वी ) और उसका पुत्र राजेंद्र प्रथम ( 1014 ईस्वी – 1044 ईस्वी ) थे। राजराज को अपने पिता के जीवन काल में ही युवराज […]

राष्ट्रकूट वंश

राष्ट्रकूट वंश इस राजवंश ( राष्ट्रकूट वंश ) ने दकन को एक के बाद एक अनेक योद्धा तथा कुशल प्रशासक दिए। इस राज्य की स्थापना दन्तिदुर्ग ने की थी जिसने आधुनिक शोलापुर के निकट मान्यखेट या मालखेड़ को अपनी राजधानी बनाया। राष्ट्रकूटों ने शीघ्र ही उत्तर महाराष्ट्र के पूरे प्रदेश पर अपना वर्चस्व स्थापित कर […]