भारत और बाहरी दुनिया
भारत और बाहरी दुनिया :- 18 वीं सदी के बाद एशिया और यूरोप में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों का परोक्ष प्रभाव भारत पर भी पड़ा , क्योंकि पुराने रोम साम्राज्य के साथ भारत का बड़े पैमाने पर व्यापार चलता था। भारत और बाहरी दुनिया
यूरोप
यूरोप में छठी सदी के तीसरे चरण के अंत तक दुर्धर्ष रोम साम्राज्य दो हिस्सों में बंट चुका था। रोम साम्राज्य के पश्चिमी हिस्से की राजधानी रोम थी।
जबकि पुराने रोम साम्राज्य के पूर्वी हिस्से की राजधानी कुस्तुनतुनिया ( इस्तंबोल ) थी। साम्राज्य के इस हिस्से में अधिकांश पूर्वी यूरोप और साथ ही तुर्की , सीरिया और उत्तर अफ्रीका शामिल थे। इसे बैजंतिया साम्राज्य कहा जाता था।
धार्मिक विश्वास तथा नियम – अनुष्ठानों के मामले में यह पश्चिम के कैथोलिक गिरजा संगठन ( चर्च ) से यह ( जिसका मुख्यालय रोम में था ) कई मायनों में भिन्न था।
पूर्वी हिस्से में गिरजा संगठन को यूनानी रूढ़िवादी गिरजा संगठन ( ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च ) कहा जाता था।
बैजंतिया साम्राज्य एक विशाल और समृद्ध साम्राज्य था जो पश्चिम में रोम साम्राज्य के पतन के बाद भी एशिया के साथ व्यापार करता रहा।
15वीं सदी के मध्य में जब तुर्की ने कुस्तुनतुनिया को जीत लिया तो इस साम्राज्य का अवसान हो गया। भारत और बाहरी दुनिया
पश्चिम में रोम साम्राज्य के पतन के बाद कई सदियों के लिए पश्चिमी यूरोप में नगरों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया और विदेश व्यापार तथा आंतरिक वाणिज्य को गहरा धक्का लगा। इतिहासकार पश्चिमी यूरोप के इस कल को ” अंधयुग ” ( डार्क एज ) कहते हैं।
बारहवीं और चौदहवीं सदी के बीच पश्चिमी यूरोप एक बार फिर समृद्धि के ऊंचे शिखर पर जा पहुंचा।
इस काल की एक उल्लेखनीय विशेषता विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का उत्कर्ष थी। साथ ही शहरों का तेजी से विकास हुआ और विश्वविद्यालय स्थापित किए गए।
नए ज्ञान और नए विचारों के विकास में इन विश्वविद्यालयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी ज्ञान और इन्हीं विचारों ने नव-जागरण ( रिनेसाँ ) तथा नए यूरोप के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। भारत और बाहरी दुनिया
सामंतवाद का उदय
रोम साम्राज्य के विघटन के बाद पश्चिमी यूरोप में एक नए प्रकार के समाज और नई शासन – व्यवस्था का उदय हुआ। इस नवोदित व्यवस्था को ” फ्यूडलिज्म ” या ” सामंतवाद ” कहते हैं।
” फ्यूडलिज्म ” शब्द लैटिन शब्द ” फ्यूडम ” से उत्पन्न है। ” फ्यूडम ” का अर्थ है ” फीफ ” या ” जागीर “।
सामंती व्यवस्था में सरकार में ‘ भूस्वामी अभिजात वर्ग ‘ का बोलवाला रहता था। इस वर्ग की स्थिति वंशानुगत थी।
यूरोप में सामंती व्यवस्था की दो और विशेषताएं बताई जाती हैं एक तो है कृषि – दासत्व ( सर्फडम ) की प्रथा।
कृषि – दास भूमि को कोडने – कमाने का काम करता था और उसे न तो अपना पेशा बदलने की छूट रहती थी और न कहीं अन्यत्र जा कर बसने की सुविधा थी। वह अपने लॉर्ड की इजाजत के बिना शादी भी नहीं कर सकता था।
इसी से जुड़ी हुई थी ” मेनर ” की व्यवस्था। ‘ मेनर ‘ वह इमारत या दुर्ग होता था जहां लार्ड रहता था। लार्ड बड़े-बड़े क्षेत्रों के स्वामी होते थे। इस भूमि के एक हिस्से पर कृषि – दासों की सहायता से लार्ड खुद खेती करता था। भारत और बाहरी दुनिया
कृषि – दासों को कुछ समय लार्ड की जमीन पर काम करना पड़ता था और बाकी समय वे खुद अपने खेतों में काम करते थे।
कृषि – दास को लार्ड को नकद और जिंस के दूसरी किस्मों के भी कर – नजराने देने पड़ते थे। मेनर का लॉर्ड शांति – सुव्यवस्था कायम रखने और न्याय करने आदि के लिए भी जिम्मेदार होता था।
भारत में सच्चे अर्थों में न तो कृषिदासत्व था और न मेनर प्रणाली । लेकिन स्थानीय भूस्वामियों और सामंतों को वैसे बहुत – से अधिकार प्राप्त थे जैसे कि फ्यूडल लार्डों को हासिल हुआ करते थे , और किसान इन्हीं लोगों पर आश्रित रहा करते थे।
यूरोप की सामंती व्यवस्था की दूसरी विशेषता का संबंध सैनिक संगठन की प्रणाली से है सामंती व्यवस्था का सबसे ज्वलंत प्रतीक घोड़े पर सवार वीर योद्धा ( नाइट ) था।
अरबों के आगमन के साथ युद्ध के तरीकों में बदलाव आ गया। अरबों के पास घोड़ों की कोई कमी नहीं थी। इन घोड़ों को तीव्र गति तथा उन पर सवार धनुर्धारियों के कारण पैदल सेना बेकार हो गई। भारत और बाहरी दुनिया
दो आविष्कारों के कारण अश्वारोही युद्ध लड़ाई का प्रमुख तरीका बन गया। यद्धपि ये दोनों आविष्कार काफी पुरानी थी तथापि इनका व्यापक प्रयोग इसी काल में आरंभ हुआ।
पहले तो था लोहे की रकाब का आविष्कार। इस रकाब के कारण हथियारों और कवच से भली भांति सज्जित सैनिक को घोड़े की पीठ से गिरने का भय नहीं रहता था।
दूसरा था एक नई किस्म के साज का आविष्कार। इस साज के सहारे घोड़ा दुहरा वजन ढो सकता था। दोनों आविष्कार का प्रयोग भारत में दसवीं सदी से शुरू हुआ।
मध्यकाल में यूरोप में लोगों की जीवन पद्धति को रंग – रूप देने में सामंतवाद के अलावा जिस दूसरी चीज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह थी ईसाई गिरजा संगठन।
पश्चिम एशिया और भारत की तरह यूरोप में भी मध्यकाल धर्म के वर्चस्व का काल था। भारत और बाहरी दुनिया
अरब संसार
प्रारंभिक खलीफों द्वारा स्थापित अरब साम्राज्य में अरब देश ( अरेबिया ) के अलावा सीरिया , ईराक , ईरान , मिस्र , उत्तर अफ्रीका और स्पेन भी शामिल थे।
अरब कबीलों के बीच आंतरिक कलह और गृह युद्ध के बाद आठवीं सदी के मध्य में अब्बासियों ने बग़दाद में खलीफा का पद प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की।
अब्बासियों का दावा था कि वे उसी कबीले के थे जिसमे हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ था और इसलिए वे पाक है।
डेढ़ सौ वर्षो तक अब्बासी साम्राज्य अपने समय के एक सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में फलता – फूलता रहा।
इस काल में अरब नगरों के जीवन – स्तर तथा सांस्कृतिक परिवेश का दुनिया में कोई सानी नहीं था। इस कल के सबसे विख्यात खलीफा अल – मैमून और हारुन – उल – रशीद थे।
गैर – मुसलमान की सेवाओं का लाभ लेने में उन्होंने कोई संकोच नहीं किया। उदाहरण के लिए उन्होंने प्रशासन के संचालन के लिए ईसाइयों और यहूदियों तथा गैर – अरबों , खासकर ईरानियों की सेवा का उपयोग किया। उनके ईरानी अधिकारियों में कई जरथुस्त्री और बौद्ध धर्म के अनुयाई थे। भारत और बाहरी दुनिया
अब्बासी खलीफा कट्टर मुसलमान थे , फिर भी उन्होंने हर तरह के ज्ञान – विज्ञान के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे , बशर्ते कि उस ज्ञान – विज्ञान का इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों से कोई विरोध न हो।
खलीफा अल – मैमून ने यूनानी , बैजंतिआई , मिस्र , ईरानी और भारतीय – इन विभिन्न सभ्यताओं के ज्ञान – विज्ञान का अरबी भाषा में अनुवाद करने के लिए बगदाद में बैत – उल – हिकमत ( ज्ञान गृह ) की स्थापना की।
चीन द्वारा अविष्कृत कंपास ( दिशा – सूचक यंत्र ) , कागज , छपाई , बारूद और यहां तक कि अदना – सी ठेला गाड़ी भी इस काल में अरब संसार से होकर ही यूरोप पहुंची।
प्रसिद्ध वेंनिशियाई यात्री मार्को पोलो ने चीन की यात्रा ही इस उद्देश्य से की थी कि इन चीजों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें और चीन के साथ यूरोप के व्यापार पर अरबों के एकाधिकार को समाप्त कर सके।
आठवीं सदी में अरब की सिंध विजय के फलस्वरुप अरब संसार और बाकी के भारत के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध स्थापित नहीं हो पाए। भारत और बाहरी दुनिया
आधुनिक गणित का आधार दशमलव प्रणाली का ज्ञान , जिसका विकास भारत में पांचवी सदी में हुआ था , इसी काल में अरब तक पहुंची। नवी सदी में अरब गणितज्ञ अलख्वारिज्मि ने इसे अरब संसार में लोकप्रिय बनाया।
12वीं सदी में अबेलार्ड नामक एक ईसाई मठवासी के माध्यम से यह ज्ञान यूरोप में पहुंचा जहां वह अरब अंक – पद्धति के रूप में विख्यात हुआ।
खगोल – विज्ञान तथा गणित से संबंधित कई भारतीय कृतियां भी अरबी में अनूदित की गई। इन्हीं में से एक थी ‘ सूर्य सिद्धांत ‘ नामक प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक कृति, जिसे आर्यभट्ट ने संशोधित किया था। चिकित्सा शास्त्र से संबंधित चरक और सुश्रुत की रचनाओं का भी अनुवाद किया गया।
भारतीय चिकित्सकों तथा सिद्धहस्त शिल्पियों का बगदाद के दरबार में खुले दिल से स्वागत किया गया और उन्हें अपने यहां जगह दी। ‘ पंचतंत्र ‘ जैसे संस्कृत की कई साहित्यिक कृतियों का अरबी में अनुवाद किया गया। पश्चिमी दुनिया में पहुंचकर ‘ पंचतंत्र ‘ ने ही ईसप की कथाओं के आधार का काम किया। भारत और बाहरी दुनिया
दसवीं सदी का आरंभ होते-होते अरब संसार में ज्यामिति , बीजगणित , भूगोलशास्त्र , खगोल विज्ञान , प्रकाश – विज्ञान , चिकित्साशास्त्र , रसायनशास्त्र आदि क्षेत्रों में जो प्रगति हुई उसके फल स्वरुप वह विज्ञान के मामले में दुनिया का अगुआ बन गया।
वैज्ञानिकों तथा विद्वानों को प्राप्त उल्लेखनीय बौद्धिक एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उन्हें प्रदान किया गया संरक्षण अरब विज्ञान तथा सभ्यता के अद्भुत विकास में मुख्य कारण था।
उन दिनों यूरोप में वैज्ञानिकों तथा विद्वानों को ऐसी स्वतंत्रता सुलभ नहीं थी। वहां ईसाई गिरजा संगठन ने तरह-तरह की पाबंदियां लगा रखी थी।
चौदहवी सदी के बाद अरब विज्ञान का ह्रास आरंभ हो गया। इसका कुछ कारण तो इस क्षेत्र को प्रभावित करने वाले राजनीतिक तथा आर्थिक घटनाक्रम थे। इससे भी ज्यादा बड़ा कारण बढ़ती हुई रूढ़वादिता थी जिसने स्वतंत्र विचार का प्रवाह रोक दिया। भारत और बाहरी दुनिया
अफ्रीका
अरब के कारण अफ्रीका हिंद महासागर और मध्य पूर्व के व्यापार में सक्रिय रूप से भाग लेने लगा।
अफ्रीका में एक पुराना शक्तिशाली राज्य इथियोपिया था जिसमें अनेक नगर थे।
इथियोपियावासी अदन के पार भारत के साथ हिंद महासागर में व्यापार में व्यस्त थे।
अनेक इथियोपिया वासी , जिन्हें हब्शी कहा जाता था , ईसाई थे। वे हिंद महासागर में बैजंतिया साम्राज्य से नजदीकी से जुड़े हुए थे।
इथियोपिया की व्यापारिक आर्थिक स्थिति बैजंतिया साम्राज्य के पतन और चौदहवीं शताब्दी में उस्मानियो के उदय के पश्चात कमजोर हो गई। भारत और बाहरी दुनिया
पूर्व तथा दक्षिण – पूर्व एशिया
तांग शासन के अधीन आठवीं और नवीं सदी में चीन का समाज और वहां की संस्कृति प्रगति के चरमोत्कर्ष पर थी।
नवीं सदी के मध्य में तांग साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया और दसवीं सदी में उसका स्थान सुंग राजवंश ने ले लिया।
चीनी शासन – तंत्र की बढ़ती हुई कमजोरी से फायदा उठाकर 13वीं सदी में मंगोलों ने इस देश को जीत लिया।
चीन के मंगोल शासको में सबसे अधिक विख्यात नाम कुबलाइखां का है। वेनीशियाई यात्री मार्को पोलो ने उनके दरबार में कुछ समय बिताया था। उसने इस दरबार का बहुत सजीव वर्णन किया है।
दक्षिण – पूर्व एशियाई राज्य में इस काल में जिन दो सर्वाधिक शक्तिशाली राज्यों का बोलबाला रहा उनमें से एक था शैलेंद्र राज्य और दूसरा था कंबुज साम्राज्य। भारत और बाहरी दुनिया
शैलेंद्र राज्य का उदय सातवीं सदी में मुख्य रूप से श्री विजय साम्राज्य के भग्नावशेषों पर हुआ था। यह साम्राज्य 10वीं सदी तक कायम रहा। अपने चरमोत्कर्ष काल में सुमात्रा , जावा , मलय , प्रायद्वीप , सियाम ( आधुनिक थाईलैंड ) , यहां तक की फिलिपींस के भी कुछ हिस्से इसमें शामिल थे।
नवी सदी के एक अरब लेखक के अनुसार यह साम्राज्य इतना विशाल था कि तेज – से – तेज चलने वाला जहाज 2 साल में भी इसका पूरा चक्कर नहीं लग सकता था।
शैलेंद्र शासको के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी और चीन के साथ होने वाले व्यापार के समुद्री मार्ग पर उनका नियंत्रण था।
सुमात्रा में स्थित इस साम्राज्य की राजधानी पालेमबांग में कई चीनी और भारतीय विद्वान पहुंचे। पालेमबांग पहले से ही संस्कृत तथा बौद्ध अध्ययन अनुसंधान का केंद्र रहा था।
शैलेंद्र शासको ने इस काल में कई भव्य मंदिर बनवाए। इनमें से सबसे विख्यात बुद्ध को समर्पित बोरोबुदूर का मंदिर है। एक पूरे – के – पूरे पहाड़ को काटकर 9 मंजिलें बनाई गई है जिनके ऊपर एक स्तूप का निर्माण किया गया है। भारत और बाहरी दुनिया
कंबोज साम्राज्य कंबोडिया और अन्नाम में फैला हुआ था। यहां पहले हिंदू संस्कृति के रंग में पगा फूनान का राज्य था। कंबोज साम्राज्य 15वीं सदी तक कायम रहा।
कंबोडिया के अंकोरथोम के निकट बनवाए गए मंदिरों को इसकी सबसे शानदार उपलब्धि माना जा सकता है।
इन मंदिरों के निर्माण का सिलसिला दसवीं सदी से आरंभ हुआ और प्रत्येक शासक अपनी स्मृति को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक – के – बाद – एक मंदिर बनवाता रहा। लगभग 200 वर्षों में 302 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र मंदिरों से भर गया।
इनमें से सबसे बड़ा अंकोरवाट का मंदिर है। इसमें 3 किलोमीटर के छतदार गलियारे हैं। ये गालियारे देवी – देवताओं और अप्सराओं की सुंदर मूर्तियां से सजे हुए हैं। अत्यंत रुचिपूर्ण ढंग से बनाए गए चौखानों में रामायण और महाभारत के दृश्य अंकित किए गए हैं।
यह मंदिर समूह बाहरी दुनिया के लिए विस्मृत हो गया था और यहां जंगल उगे आए थे। आखिर एक फ्रांसीसी ने इसे खोज निकाला। भारत और बाहरी दुनिया
दसवीं से 12वीं सदी भारत में मंदिर निर्माण का सबसे भव्य काल था।
पश्चिमी दुनिया , दक्षिणी – पूर्व एशिया , चीन , मैडागास्कर और अफ्रीका के पूर्वी तट के देशों के साथ भारत का घनिष्ठ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध था।
दक्षिण – पूर्व एशिया के विभिन्न देशों ने भारत और बाहरी दुनिया तथा चीन के बीच व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संपर्कों के सेतु का काम किया।
इन देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक तथा व्यापारिक संबंध तभी भंग हुए जब इंडोनेशिया में डचों का , भारत , बर्मा तथा मलाया में अंग्रेजों का और हिंद – चीन ( इंडो – चाइना ) में फ्रांसीसियों का अपना – अपना वर्चस्व स्थापित हो गया। भारत और बाहरी दुनिया
MCQ
प्रश्न 1 – छठी सदी के तीसरे चरण के अंत तक दुर्धर्ष रोम साम्राज्य दो हिस्सों में बंट चुका था। इसके पश्चिमी हिस्से की राजधानी थी –
उत्तर – रोम
प्रश्न 2 – रोम साम्राज्य के पूर्वी हिस्से की राजधानी थी –
उत्तर – कुस्तुनतुनिया ( इस्तंबोल )
प्रश्न 3 – बैजंतिया साम्राज्य रोम साम्राज्य के किस हिस्से को कहा जाता था ?
उत्तर – पूर्वी हिस्से को
प्रश्न 4 – ‘ ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च ‘ ( यूनानी रूढ़िवादी गिरजाघर ) रोमन साम्राज्य के किस हिस्से में था ?
उत्तर – पूर्वी हिस्से
प्रश्न 5 – पश्चिम में रोम साम्राज्य के पतन के बाद कई सदियों के लिए पश्चिमी यूरोप में नगरों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया और विदेश व्यापार तथा आंतरिक वाणिज्य को गहरा धक्का लगा। इतिहासकार पश्चिमी यूरोप के इस कल को क्या कहते हैं ?
उत्तर – अंधयुग ( डार्क एज )
प्रश्न 6 – रोम साम्राज्य के विघटन के बाद पश्चिमी यूरोप में एक नए प्रकार के समाज और नई शासन – व्यवस्था का उदय हुआ। इस नवोदित व्यवस्था को क्या कहते हैं ?
उत्तर – ” फ्यूडलिज्म ” या ” सामंतवाद “
प्रश्न 7 – सामंतवादी व्यवस्था में ‘ मेनर ‘ किसे कहा जाता था ?
उत्तर – वह इमारत या दुर्ग जहां लार्ड रहता था
प्रश्न 8 – नाईट किसे कहा जाता था ?
उत्तर – वीर योद्धा को
प्रश्न 9 – रकाब और साज का प्रयोग भारत में किस सदी से शुरू हुआ ?
उत्तर – दसवीं
प्रश्न 10 – आठवीं सदी के मध्य में बग़दाद में खलीफा का पद प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की –
उत्तर – अब्बासियों ने
प्रश्न 11 – बगदाद में बैत – उल – हिकमत ( ज्ञान गृह ) की स्थापना किसने की ?
उत्तर – खलीफा अल – मैमून ने
प्रश्न 12 – कंपास ( दिशा – सूचक यंत्र ) , कागज , छपाई , बारूद का आविष्कार किस देश में हुआ ?
उत्तर – चीन
प्रश्न 13 – किस यात्री ने चीन की यात्रा वहाँ आविष्कृत वस्तुओं और ज्ञान की जानकारी के लिए की थी ?
उत्तर – प्रसिद्ध वेंनिशियाई यात्री मार्को पोलो ने
प्रश्न 14 – आधुनिक गणित का आधार दशमलव प्रणाली का विकास पांचवी सदी में हुआ था –
उत्तर – भारत में
प्रश्न 15 – नवी सदी में किस अरब गणितज्ञ ने दशमलव प्रणाली के ज्ञान को अरब संसार में लोकप्रिय बनाया ?
उत्तर – अलख्वारिज्मि
प्रश्न 16 – ‘ सूर्य सिद्धांत ‘ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ जिसे अरबी में अनुदित किया गया किस विषय पर रचित ग्रंथ था ?
उत्तर – खगोल विज्ञान
प्रश्न 17 – किस साहित्यिक कृति ने ईसप की कथाओं के आधार का काम किया ?
उत्तर – पंचतंत्र
प्रश्न 18 – इथियोपिया राज्य था –
उत्तर – अफ्रीका में
प्रश्न 19 – चीन के मंगोल शासको में सबसे अधिक विख्यात नाम है –
उत्तर – कुबलाइखां का
प्रश्न 20 – सातवीं सदी में श्री विजय साम्राज्य के भग्नावशेषों पर किस राज्य का उदय हुआ ?
उत्तर – शैलेंद्र राज्य
प्रश्न 21 – ‘ सियाम ‘ किस देश का प्राचीन नाम था ?
उत्तर – थाइलैण्ड
प्रश्न 22 – शैलेंद्र साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी ?
उत्तर – पालेमबांग