भारत का संवैधानिक इतिहास

भारत का संवैधानिक इतिहास

भारत का संवैधानिक इतिहास :- भारत में ब्रिटिश 1608 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में, व्यापार करने आए।

1765 में, कंपनी ने जो अभी तक सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक की सीमित थी, बंगाल बिहार और उड़ीसा के दीवानी ( अर्थात राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार ) अधिकार प्राप्त कर लिए।

1858 में सिपाही विद्रोह के परिणाम स्वरुप ब्रिटिश ताज ने भारत के शासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षत: अपने हाथों में ले लिया। यह शासन 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अनवरत रूप से जारी रहा।

भारत पर ब्रिटिश शासन को मजबूत और अनुकूल बनाने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई एक्ट पारित किए गए जो भारत के संवैधानिक विकास में सहायक हुए। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

यह अधिनियम भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था।

इस अधिनियम द्वारा पहली बार कंपनी के राजनीतिक प्रशासन के लिए लिखित नियम प्रस्तुत किए गए।

इस अधिनियम के द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई।

इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थी :-

1. इस अधिनियम द्वारा भारत में स्थापित तीनों ब्रिटिश प्रेसीडेंसी – बंगाल, बंबई तथा मद्रास को बंगाल के गवर्नर के अधीन कर दिया गया।

2. बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल का नया नाम दिया गया एवं उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया। उल्लेखनीय है कि ऐसे पहले गवर्नर लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्स थे।

3. इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार वह रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।

4. इस अधिनियम के अंतर्गत कोलकाता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे। जिसके मुख्य न्यायाधीश बने – सर एलिजाह इम्पे।

5. इस अधिनियम के द्वारा, ब्रिटिश सरकार का ‘ कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स ‘ ( कंपनी की गवर्निंग बॉडी ) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया। इसने भारत में इसके राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1781 का संशोधन अधिनियम

रेगुलेटिंग एक्ट ऑफ 1773 की कमियों को ठीक करने के लिए ब्रिटिश संसद ने अमेंडिंग एक्ट ऑफ 1781 पारित किया , जिसे बंदोबस्त कानून के नाम से भी जाना जाता है।

इस कानून की निम्नलिखित विशेषताएं थी :-

1. इसने गवर्नर जनरल , काउंसिल और कंपनी के कर्मचारियों को अपने आधिकारिक कार्यों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से मुक्त कर दिया।

2. इस कानून ने राजस्व संबंधी मामलों, तथा राजस्व वसूली से जुड़े मामलों को भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया।

3. इस कानून द्वारा यह व्यवस्था की गई की प्रांतीय न्यायालयों की अपील गवर्नर जनरल – इन – काउंसिल के यहां दायर हो, न कि सर्वोच्च न्यायालय में।

4. इस कानून में गवर्नर जनरल – इन – काउंसिल को प्रांतीय न्यायालयों एवं काउंसिलों के लिए नियम – विनियम बनाने के लिए अधिकृत किया।

5. इस कानून द्वारा कलकत्ता के सभी निवासियों को सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कर दिया गया।

6. इस कानून में यह भी व्यवस्था बनाई गई कि न्यायालय हिंदुओं के निजी कानूनों के हिसाब से हिंदुओं तथा मुसलमानों के निजी कानूनों के हिसाब से मुसलमानों के वाद या मामले तय करें। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक गतिविधियों पर ब्रिटिश संसद का पूर्ण राजकीय नियंत्रण स्थापित करने के लिए 1783 में तत्कालीन कैबिनेट ने हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने एक बिल पारित किया।

परंतु कंपनी के अंशधारकों के प्रभाव के कारण यह बिल हाउस ऑफ़ कामंस में पारित नहीं हो पाया। फलस्वरूप, लॉर्ड नाथ तथा फाक्स की गठबंधन सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा।

किसी भारतीय मामले में ब्रिटिश सरकार के पतन का यह एकमात्र दृष्टांत है।

इंग्लैंड में नयी विलियम पिट की अगुवाई में बनी। कंपनी की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए एक नया बिल 1784 में पारित किया गया जिसे पिट्स इंडिया एक्ट कहा जाता है।

इस अधिनियम की विशेषताएं इस प्रकार थी :-

1. इस अधिनियम के द्वारा कंपनी के राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को पृथक – पृथक कर दिया गया।

2. कंपनी की व्यापारिक व आर्थिक गतिविधियों को कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के ऊपर छोड़ दिया गया जबकि राजनीतिक गतिविधियों के नियंत्रण के लिए बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल का गठन किया गया।

3. बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल में 6 सदस्य थे जो सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते थे। इस प्रकार, कंपनी की राजनीतिक गतिविधियों पर सम्राट का अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हुआ।

4. भारत के गवर्नर जनरल की नियुक्ति बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल द्वारा ब्रिटिश सरकार की अनुमति से किया जाना निर्धारित किया गया।

5. कंपनी के कर्मचारियों द्वारा भारत में किए गए अपराधों की सुनवाई के लिए इंग्लैंड में एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गई। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1786 का चार्टर एक्ट

इस एक्ट की निम्नलिखित विशेषताएं थी :-

1. इस छोटे से एक्ट के द्वारा भारत में गवर्नर जनरल के पद को अधिक शक्तिशाली बनाया गया।

2. इसके द्वारा गवर्नर जनरल को अपनी परिषद के बहुमत के निर्णय पर वीटो का विशेष अधिकार प्रदान किया गया।

3. इस अधिकार के द्वारा अब गवर्नर जनरल वीटो का प्रयोग कर अपनी परिषद के निर्णय को उलट सकता था।

4. इस एक्ट के द्वारा गवर्नर जनरल को भारत में मुख्य सेनापति का पद भी दे दिया गया।

5. लॉर्ड कॉर्नवालिस पहले व्यक्ति थे जिन्हें गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति – दोनों की शक्तियां प्रदान की गई। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1793 का चार्टर एक्ट

इस एक्ट की निम्नलिखित विशेषताएं थी :-

1. इस एक्ट के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को आश्वस्त किया गया कि भारत के साथ व्यापार में उसके विशेष अधिकार अगले 20 वर्षों तक जारी रहेंगे।

2. इसने लॉर्ड कॉर्नवालिस को दी गई काउंसिल के निर्णयों के ऊपर अधिभावी शक्ति को भविष्य के सभी गवर्नर – जनरलों एवं प्रेसीडेंसियों के गवर्नरों तक विस्तारित कर दिया।

3. इसने व्यवस्था दी की बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल के सदस्यों तथा उनके कर्मचारियों को भारतीय राजस्व से ही भुगतान किया जाएगा। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1813 का चार्टर एक्ट

इस एक्ट ने भारत में कंपनी के व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया, यानी भारतीय व्यापार को सभी ब्रिटिश व्यापारियों के लिए खोल दिया गया। तब भी इस कानून ने चाय के व्यापार तथा चीन के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को बहाल रखा।

इस कानून ने ईसाई मिशनरी को भारत आकर लोगों को ‘ प्रबुद्ध ‘ करने की अनुमति प्रदान की।

इस एक्ट द्वारा कंपनी के व्यापारिक व राजनीतिक व्यय का अलग – अलग लेखा – जोखा तैयार करने का प्रावधान किया गया।

इस एक्ट में भारत में शिक्षा के प्रचार – प्रसार के लिए एक लाख रुपए प्रति वर्ष निर्धारित किए जाने का प्रावधान किया गया। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1833 का चार्टर एक्ट

ब्रिटिश संसद द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए बनाये गये प्रावधानों में सर्वाधिक विस्तृत व प्रभावकारी प्रावधान 1833 के चार्टर एक्ट द्वारा किए गए।

1. इस एक्ट द्वारा कंपनी का व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिया गया। अब कंपनी का कार्य मात्र शासन करना रह गया। भारत के साथ व्यापार को सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए खोल दिया गया।

2. बंगाल के गवर्नर जनरल को संपूर्ण ब्रिटिश भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया। उसे संपूर्ण ब्रिटिश भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया। लार्ड विलियम बैटिंग भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने। इस प्रकार, भारत में केंद्रीकृत शासन प्रणाली का आरंभ हुआ।

3. गवर्नर जनरल की परिषद को राजस्व संबंधी पूर्ण अधिकार दिया गया। उसे संपूर्ण भारत के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार प्रदान किया गया।

4. भारत में ब्रिटिश नागरिकों की बढ़ती संख्या के कारण भारतीय कानूनों को उनके अनुरूप ढाला जाना आवश्यक हो गया था। इसी कारण , भारत में प्रचलित कानूनों की संहिता तैयार करने के लिए एक विधि आयोग का गठन किया गया तथा गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में एक विधिक सदस्य की नियुक्ति का प्रावधान किया गया। लार्ड मैकाले को पहला विधिक सदस्य तथा विधि आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

5. इस एक्ट के द्वारा योग्यता को कंपनी के कर्मचारियों की नियुक्ति का आधार बनाया गया। यह प्रावधान किया गया कि भारतीय क्षेत्र में किसी भी मूल निवासी को धर्म , जन्मस्थान , वंश , रंग या इनमें से किसी आधार पर कंपनी के अधीन किसी भी नियुक्ति के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।

6. यह एक ऐसा प्रावधान था जिसने 1833 को चार्टर एक्ट को महत्वपूर्ण बना दिय। इसे ब्रिटिश भारत के अधीन सभी निवासियों को बराबरी पर लाने का प्रथम प्रयास कहा जा सकता है।

7. इस एक्ट द्वारा गवर्नर जनरल को यह निर्देश दिया गया कि वह भारत में दसों की स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करें। इसी आधार पर, 1843 में कानून बनाकर दास प्रथा को वैध घोषित किया गया। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1853 का चार्टर अधिनियम

1793 से 1853 के दौरान ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए गए चार्टर अधिनियमों की श्रृंखला में यह अंतिम अधिनियम था। संवैधानिक विकास की दृष्टि से यह अधिनियम एक महत्वपूर्ण अधिनियम था।

इस अधिनियम की विशेषताएं इस प्रकार की :-

1. इसने सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का आरंभ किया , इस प्रकार विशिष्ट सिविल सेवा भारतीय नागरिकों के लिए भी खोल दी गई और इसके लिए 1854 में ( भारतीय सिविल सेवा के संबंध में ) मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।

2. विधि निर्माण हेतु 12 सदस्यीय अखिल भारतीय विधायी परिषद की स्थापना की गई। विधायी परिषद में विभिन्न प्रांतो के प्रतिनिधियों को शामिल कर क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया। इसके द्वारा विधायी कार्यों को प्रशासनिक कार्यों से अलग किया गया।

3. इस राजलेख में यह व्यवस्था दी गई कि भारतीय क्षेत्रों पर कंपनी का प्रभुत्व , जब तक संसद न चाहे तब तक, जारी रहेगा। इस प्रकार , ब्रिटिश संसद को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह किसी भी समय भारत में कंपनी के शासन का अंत कर दे। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1858 का भारत सरकार अधिनियम

इस महत्वपूर्ण कानून का निर्माण 1857 के विद्रोह के बाद किया गया।

भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम नाम से प्रसिद्ध इस कानून ने , ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया और गवर्नरों , क्षेत्रों और राजस्व संबंधी शक्तियां ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित कर दी।

इस अधिनियम की विशेषताएं इस प्रकार थी :-

1. इसके तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चल गया। गवर्नर जनरल का पद नाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया। वह ( वायसराय ) भारत में ब्रिटिश का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बन गया। लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने।

2. इस अधिनियम ने नियंत्रण बोर्ड और निर्देशक कोर्ट को समाप्त कर भारत में शासन की द्वैध प्रणाली समाप्त कर दी।

3. एक नए पद , भारत के राज्य सचिव, का सृजन किया गया, जिसमें भारतीय प्रशासन पर संपूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित थी। यह सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य था और अंततः ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।

4. भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यीय परिषद का गठन किया गया, जो एक सलाहकार परिषद थी। परिषद का अध्यक्ष भारत सचिव को बनाया गया।

5. इस कानून के तहत भारत सचिव की परिषद का गठन किया गया, जो एक निगमित निकाय थी और जिसे भारत और इंग्लैंड में मुकदमा करने का अधिकार था। इस पर भी मुकदमा किया जा सकता था।

6. भारत सचिव तथा उसके परिषद के सदस्यों का वेतन – भत्ते भारतीय राजस्व से दिए जाने का प्रावधान किया गया। भारत सचिव को यह अधिकार दिया गया कि वह प्रतिवर्ष ब्रिटिश संसद में भारत का बजट प्रस्तुत करेगा। भारत का संवैधानिक इतिहास 

भारतीय परिषद अधिनियम 1861

1. इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की कार्यपालिका परिषद का विस्तार कर इसमें एक विधि विशेषज्ञ को शामिल किया गया। अब कार्यपालिका परिषद के सदस्यों की संख्या 5 हो गई।

2. गवर्नर जनरल की विधायी परिषद का भी विस्तार किया गया। इसमें कम से कम 6 और अधिकतम 12 अतिरिक्त सदस्यों का प्रावधान किया गया। जो 2 वर्ष के लिए मनोनीत किए जाने थे।

3. इन सदस्यों में से कम से कम आधे गैर सरकारी सदस्य होने थे। इसी आधार पर 1862 में महाराजा पटियाला , महाराजा बनारस तथा ग्वालियर नरेश को परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया।

4. भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार विधान परिषद में भारतीयों को प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।

5. इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल को प्रशासनिक सुविधा के लिए नियम बनाने का अधिकार दिया गया। इसी आधार पर, लॉर्ड कैनिंग ने भारत में प्रशासन के लिए विभागीय प्रणाली की शुरुआत की। अतः लार्ड कैनिंग को भारत में मंत्रिमंडलीय व्यवस्था का जन्मदाता कहा जाता है।

6. गवर्नर जनरल को विधान परिषद में वीटो की शक्ति तथा आपातकाल में बिना काउंसिल की संतुति के अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया गया। ऐसे अध्यादेश की अवधि मात्र 6 माह होती थी।

7. इस एक्ट द्वारा प्रांतों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया। इस प्रकार, प्रांतीय विधायिका का गठन हुआ जिससे शासन के विकेंद्रीकरण का प्रारंभ हुआ।

8. भारत सरकार अधिनियम 1873 के आधार पर ईस्ट इंडिया कंपनी को 1 जनवरी, 1874 को भंग कर दिया गया।

9. 28 अप्रैल, 1876 को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। भारत का संवैधानिक इतिहास 

भारत परिषद अधिनियम 1892

1. इसके माध्यम से केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त ( गैर – सरकारी ) सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई, हालाँकि बहुमत सरकारी सदस्यों का ही रहता था।

2. विधान परिषद के सदस्यों को निर्धारित नियमों के अधीन प्रश्न पूछने तथा वार्षिक बजट के प्रावधानों पर बहस करने का अधिकार दिया गया। लेकिन उन्हें प्रश्न के जवाब का पूरक प्रश्न पूछने, बजट पर मतदान करने या कोई संशोधन प्रस्तुत करने अधिकार नहीं था।

3. परिषद के कुछ गैर सरकारी सदस्यों को नगरपालिकाों , जिला बोर्डों , विश्वविद्यालय तथा वाणिज्य मंडल के प्रतिनिधियों के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाने का प्रावधान किया गया। इन सदस्यों को गवर्नर जनरल द्वारा परिषद में मनोनीत किया जाता था , अतः इन्हें सही अर्थों में निर्वाचित सदस्य नहीं कहा जा सकता। फिर भी , इस अधिनियम द्वारा आंशिक रूप से संसदीय व्यवस्था का आरंभ हुआ। भारत का संवैधानिक इतिहास 

1909 का भारत परिषद अधिनियम

1. इस अधिनियम को मार्ले – मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है ( उस समय लॉर्ड मॉर्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे )।

2. इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय व प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई। केंद्रीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या 16 से बढ़कर 60 कर दी गई। परंतु परिषद में अभी भी सरकारी सदस्यों का बहुमत बरकरार था। दूसरी तरफ, प्रांतीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या में वृद्धि से पहली बार गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित हुआ।

3. इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था।

4. इस एक्ट द्वारा परिषद के सदस्यों को बजट के संबंध में अधिक अधिकार प्रदान किए गए। सदस्यों को बजट के प्रावधानों पर बहस करने, प्रश्न पूछने , पूरक प्रश्न पूछने , बजट के संशोधन में प्रस्ताव पेश करने तथा मत विभाजन की मांग करने का अधिकार दिया गया।

5. इस अधिनियम द्वारा विधान परिषद में निर्वाचित सदस्यों को शामिल किए जाने का प्रावधान किया गया। मतदाताओं को तीन वर्गों – सामान्य मतदाता , वर्ग मतदाता ( जमीदार व मुसलमान ) तथा विशेष मतदाता ( विश्वविद्यालय , वाणिज्य मंडल आदि ) में विभाजित किया गया।

6. स्थानीय निकायों और संगठनों के प्रतिनिधियों को भी परिषद में शामिल किए जाने का प्रावधान किया गया। सदस्यों को 3 वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता था। मतदान का अधिकार सीमित व्यक्तियों को ही प्राप्त था। इस अधिनियम द्वारा , ब्रिटिश भारत में अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की गई।

7. इस अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता थी – सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का आरंभ। मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल तथा पृथक निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रावधान किया गया। मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर केवल मुस्लिम ही उम्मीदवार हो सकते थे तथा मत देने का अधिकार भी केवल मुसलमानों को ही था। भारत का संवैधानिक इतिहास 

भारत परिषद अधिनियम 1919

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड का यह दबाव बना कि वह भारत में संवैधानिक सुधारो की घोषणा करे तथा युद्ध में भारतीयों का सहयोग सुनिश्चित करें। तत्कालीन भारत सचिव मांटेग्यू तथा भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड के प्रयासों से भारत परिषद अधिनियम 1919 ब्रिटिश संसद में पारित किया गया। अतः इसे ‘ मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार ‘ के नाम से भी जाना जाता है।

इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं थी :-

1. केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया। केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को, अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। लेकिन सरकार का ढांचा केंद्रीय और एकात्मक ही बना रहा।

2. इसने प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभक्त किया – हस्तांतरित और आरक्षित। हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और इस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था , जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे। दूसरी ओर आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। शासन की दोहरी व्यवस्था को द्वैध शासन व्यवस्था कहा गया।

3. इस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था आरंभ की। हालंकि मत देने का अधिकार सीमित व्यक्तियों को ही प्राप्त था। इस प्रकार भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया। दोनों सदनों में बहुसंख्यक सदस्यों को प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से निर्वाचित किया जाता था।

4. इसके अनुसार वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से ( कमांड – इन – चीफ को छोड़कर ) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।

5. इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों , भारतीय ईसाइयों , आंग्ल – भारतीयों और यूरोपीयों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया।

6. इससे एक लोक सेवा आयोग का गठन किया। अतः 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।

7. इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया।

8. इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया , जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था। भारत का संवैधानिक इतिहास 

भारत शासन अधिनियम 1935

भारत सरकार अधिनियम 1935 ब्रिटिश भारत में अब तक पारित अधिनियमों में सर्वाधिक विस्तृत का विशाल था। इसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियाँ थी।

इस अधिनियम में नयी प्रस्तावना का अभाव था। इस अधिनियम का वहीं लक्ष्य रखा गया जो भारत परिषद अधिनियम 1919 का था। अतः इसमें 1919 के अधिनियम की ही प्रस्तावना जोड़ दी गई थी।

इस की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थी :-

1. भारत सरकार अधिनियम 1935 में ब्रिटिश भारत के क्षेत्रों और संघ में शामिल होने के इच्छुक देसी रियासतों को मिलाकर एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रस्ताव था। इसके लिए कम से कम आधे देसी रियासतों की सहमति आवश्यक थी। देसी रियासतों के बीच इस संबंध में सहमति नहीं बन पायी , परिणामस्वरूप प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ भी अस्तित्व में न आ सका।

2. भारतीय परिषद अधिनियम 1919 के अनुसार, प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था लागू की गई थी। 1935 के अधिनियम में प्रांतों में लागू द्वैध शासन को समाप्त कर केंद्रीय स्तर पर द्वैध शासन व्यवस्था लागू करने का प्रावधान किया गया था।

3. केंद्रीय कार्यपालिका के कार्यों को आरक्षित वह हस्तांतरित विषयों में वर्गीकृत किया गया था। प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, धार्मिक विषय, जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन आदि आरक्षित विषय में रखे गए थे जिनका प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी परिषद की सहायता से करता था।

4. हस्तांतरित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल को मंत्रिपरिषद की सहायता से करना था। मंत्रिपरिषद केंद्रीय विधानसभा, के प्रति उत्तरदायी थी। पर वास्तव में, केंद्र में 1935 के अधिनियम के तहत मंत्री परिषद का गठन नहीं हो पाया तथा केंद्रीय प्रशासन भारत परिषद अधिनियम 1919 के अनुसार ही जारी रहा।

5. इसने 11 राज्यों में से 6 में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की। इस प्रकार, बंगाल, बंबई , मद्रास , बिहार , संयुक्त प्रांत और असम में द्विसदनीय विधान परिषद और विधानसभा बन गई। हालाँकि इन पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे।

6. इसने दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया।

7. इसने भारत शासन अधिनियम, 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया। इंग्लैंड में भारत सचिव को सलाहकारों की टीम मिल गई।

8. इसने मताधिकार का विस्तार किया। लगभग 10% जनसंख्या को मत का अधिकार मिल गया।

9. इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।

10. इसने न केवल संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की बल्कि प्रांतीय सेवा आयोग और दो या अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना भी की।

11. इसके अंतर्गत एक संघीय न्यायालय का प्रावधान था। लेकिन यह अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं तथा इसके निर्णयों के विरुद्ध प्रीवी काउंसिल में अपील की जा सकती थी।

12. इसी आधार पर, 1 अक्टूबर 1937 को दिल्ली में संघीय न्यायालय का उद्घाटन किया गया जो बाद में चलकर भारत का सर्वोच्च न्यायालय बना।

13. इस अधिनियम के आधार पर प्रांतीय विधानसभों के चुनाव फरवरी 1937 में कराए गए। भारत में पहली बार सामूहिक उत्तरदायित्व के आधार पर मंत्री परिषद का गठन हुआ। प्रांतीय सरकारों के प्रमुख को प्रधानमंत्री कहा जाता था जबकि गवर्नर प्रांत के संवैधानिक प्रमुख की तरह कार्य करता था। भारत का संवैधानिक इतिहास 

भारत का संवैधानिक इतिहास image

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि भारतियों को सत्ता का हस्तांतरण जून 1948 तक कर दिया जाएगा।

24 मार्च, 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय बनाकर भारत आये। जून 1947 में माउंटबेटन ने भारत को दो डोमिनियन राष्ट्र भारत व पाकिस्तान में विभाजन का प्रस्ताव रखा जिसे कांग्रेस व मुस्लिम लीग द्वारा स्वीकार कर लिया गया।

4 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ब्रिटिश संसद में प्रस्तावित हुआ तथा 18 जुलाई को इसे ब्रिटिश सम्राट का अनुमोदन प्राप्त हुआ।

इसके अनुसार, 14 – 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र डोमिनियन राज्य – भारत व पाकिस्तान का गठन किया जाएगा। भारत और पाकिस्तान के लिए एक – एक जनरल की नियुक्ति ब्रिटिश सम्राट द्वारा की जाएगी।

इस अधिनियम की विशेषताएं इस प्रकार थी :-

1. इसने भारत का विभाजन कर दो स्वतंत्र डोमिनयनों – संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया, जिन्हें ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने की स्वतंत्रता थी।

2. इसने भारत में ब्रिटिश राज्य समाप्त कर 15 अगस्त, 1947 को इसे स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया।

3. इसने वायसराय का पद समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर दोनों डोमिनयन राज्यों में गवर्नर – जनरल के पद का सृजन किया , जिसकी नियुक्ति नए राष्ट्र की कैबिनेट की सिफारिश पर ब्रिटेन के ताज को करनी थी। इन पर ब्रिटेन की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होना था।

4. इसने दोनों डोमिनियन राज्यों में संविधान सभाओं को अपने देशों का संविधान बनाने और उसके लिए किसी भी देश के संविधान को अपनाने की शक्ति दी। सभाओं को यह भी शक्ति थी कि वे किसी भी ब्रिटिश कानून को समाप्त करने के लिए कानून बना सकती थी, यहां तक कि उन्हें स्वतंत्रता अधिनियम को भी निरस्त करने का अधिकार था।

5. इसने दोनों डोमिनियन राज्यों की संविधान सभाओं को यह शक्ति प्रदान की गई कि वे नए संविधान का निर्माण एवं कार्यान्वित होने तक अपने – अपने संबंधित क्षेत्रों के लिए विधानसभा बन सकती थी। 15 अगस्त, 1947 के बाद ब्रिटिश संसद में पारित हुआ कोई भी अधिनियम दोनों डोमिनियनों पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक कि दोनों डोमिनियन इस कानून को मानने के लिए कानून नहीं बना लेंगे।

6. इस कानून ने ब्रिटेन में भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया। इसकी सभी शक्तियां राष्ट्रमंडल मामलों के राज्य सचिव को स्थानांतरित कर दी गई।

7. इसने भारतीय रियासतों को यह स्वतंत्रता दी कि वे चाहे तो भारत डोमिनियन या पाकिस्तान डोमिनियन के साथ मिल सकती है या स्वतंत्र रह सकती हैं।

8. इसने 15 अगस्त, 1947 से भारतीय रियासतों पर ब्रिटिश संप्रभुता की समाप्ति की भी घोषणा की। इसके साथ ही आदिवासी क्षेत्र समझौता संबंधों पर भी ब्रिटिश हस्ताक्षर समाप्त हो गया।

9. इस अधिनियम ने नया संविधान बनने तक प्रत्येक डोमिनियन में शासन संचालित करने एवं भारत शासन अधिनियम, 1935 के तहत उनकी प्रांतीय सभाओं में सरकार चलाने की व्यवस्था की। हालाँकि दोनों डोमिनियन राज्यों को इस कानून में सुधार करने का अधिकार था।

10. इसने ब्रिटिश शासक को विधायकों पर मताधिकार और उन्हें स्वीकृत करने के अधिकार से वंचित कर दिया। लेकिन ब्रिटिश शासक के नाम पर गवर्नर जनरल को किसी भी विधेयक को स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त था।

11. इसके अंतर्गत भारत में गवर्नर जनरल एवं प्रांतीय गवर्नरों को राज्यों का संवैधानिक प्रमुख नियुक्त किया गया। इन्हें सभी मामलों पर राज्यों की मंत्री परिषद के परामर्श पर कार्य करना होता था।

12. इसने शाही उपाधि से ‘ भारत का सम्राट ‘ शब्द समाप्त कर दिया।

13. इसने भारत के राज्य सचिव द्वारा सिविल सेवा में नियुक्तियां करने और पदों में आरक्षण करने की प्रणाली समाप्त कर दी। 15 अगस्त, 1947 से पूर्व सिविल सेवा कर्मचारियों को वही सुविधा मिलती रही जो उन्हें पहले से प्राप्त थी। भारत का संवैधानिक इतिहास 

14 – 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को भारत में ब्रिटिश शासन का अंत हो गया और समस्त शक्तियां दो नए स्वतंत्र डोमिनियनों – भारत और पाकिस्तान को स्थानांतरित कर दी गई। लॉर्ड माउंटबेटन नए डोमिनियन भारत के प्रथम गवर्नर – जनरल बने।

उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। 1946 में बनी संविधान सभा को स्वतंत्र भारतीय डोमिनियन की संसद के रूप में स्वीकार कर लिया गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संप्रभुता संपन्न संविधान सभा की प्रथम बैठक 31 अक्टूबर 1947 को आयोजित की गई जिसमें कुल 299 सदस्यों ने भाग लिया।

15 अगस्त 1947 में संविधान लागू होने तक भारत का दर्जा ब्रिटिश राष्ट्रकुल के डोमिनियन राष्ट्र का था।

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के बाद भी भारत ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का सदस्य बन रहा, पर उसकी यह सदस्यता ऐच्छिक है। भारत का संवैधानिक इतिहास 

MCQ

प्रश्न 1. कौन – सा अधिनियम भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था ?

उत्तर – 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

प्रश्न 2. किस अधिनियम के द्वारा बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल का नया नाम दिया गया ?

उत्तर – रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के

प्रश्न 3. किस अधिनियम के अंतर्गत कोलकाता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई ?

उत्तर – रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के

प्रश्न 4. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के अंतर्गत कोलकाता में 1774 में स्थापित उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने –

उत्तर – सर एलिजाह इम्पे

प्रश्न 5. किस अधिनियम के अंतर्गत बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल का नया नाम दिया गया ?

उत्तर – रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के

प्रश्न 6. किस अधिनियम को बंदोबस्त कानून के नाम से भी जाना जाता है ?

उत्तर – 1781 के संशोधन अधिनियम को

प्रश्न 7. किस अधिनियम ने गवर्नर जनरल , काउंसिल और कंपनी के कर्मचारियों को अपने आधिकारिक कार्यों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से मुक्त कर दिया ?

उत्तर – 1781 के संशोधन अधिनियम ने

प्रश्न 8. किस अधिनियम ने राजस्व संबंधी मामलों, तथा राजस्व वसूली से जुड़े मामलों को सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया ?

उत्तर – 1781 के संशोधन अधिनियम ने

प्रश्न 9. किस अधिनियम को पिट्स इंडिया एक्ट कहा जाता है ?

उत्तर – 1784 के अधिनियम को

प्रश्न 10. किस अधिनियम के द्वारा कंपनी के राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को पृथक – पृथक कर दिया गया ?

उत्तर – 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

प्रश्न 11. किस अधिनियम के द्वारा कंपनी के राजनीतिक गतिविधियों के नियंत्रण के लिए बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल का गठन किया गया ?

उत्तर – 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

प्रश्न 12. किस एक्ट ने गवर्नर जनरल को अपनी परिषद के बहुमत के निर्णय पर वीटो का विशेष अधिकार प्रदान किया ?

उत्तर – 1786 का चार्टर एक्ट

प्रश्न 13. किस एक्ट के द्वारा गवर्नर जनरल को भारत में मुख्य सेनापति का पद भी दे दिया गया ?

उत्तर – 1786 का चार्टर एक्ट

प्रश्न 14. वह पहला व्यक्ति जिसे गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति – दोनों की शक्तियां प्रदान की गई –

उत्तर – लॉर्ड कॉर्नवालिस

प्रश्न 15. किस एक्ट ने भारत में कंपनी के व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया , लेकिन चाय के व्यापार तथा चीन के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को बहाल रखा ?

उत्तर – 1813 का चार्टर एक्ट

प्रश्न 16. किस एक्ट में भारत में शिक्षा के प्रचार – प्रसार के लिए एक लाख रुपए प्रति वर्ष निर्धारित किए जाने का प्रावधान किया गया ?

उत्तर – 1813 का चार्टर एक्ट

प्रश्न 17. किस एक्ट द्वारा कंपनी का व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिया गया ?

उत्तर – 1833 का चार्टर एक्ट

प्रश्न 18. किस एक्ट के अंतर्गत बंगाल के गवर्नर जनरल को संपूर्ण ब्रिटिश भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया ?

उत्तर – 1833 के चार्टर एक्ट

प्रश्न 19. किस एक्ट के अंतर्गत भारत में प्रचलित कानूनों की संहिता तैयार करने के लिए एक विधि आयोग का गठन किया गया तथा गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में एक विधिक सदस्य की नियुक्ति का प्रावधान किया गया ?

उत्तर – 1833 के चार्टर एक्ट के अंतर्गत

प्रश्न 20. किस एक्ट के द्वारा योग्यता को कंपनी के कर्मचारियों की नियुक्ति का आधार बनाया गया ?

उत्तर – 1833 का चार्टर एक्ट

प्रश्न 21. कौन – से चार्टर अधिनियम ने सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का आरंभ किया ?

उत्तर – 1853 का चार्टर अधिनियम

प्रश्न 22. किस अधिनियम के तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चल गया ?

उत्तर – 1858 का भारत सरकार अधिनियम

प्रश्न 23. 1858 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत गवर्नर जनरल का पद नाम बदलकर कर दिया गया –

उत्तर – भारत का वायसराय

प्रश्न 24. भारत के प्रथम वायसराय बने –

उत्तर – लॉर्ड कैनिंग

प्रश्न 25. किस अधिनियम के तहत एक नए पद , भारत के राज्य सचिव, का सृजन किया गया, जिसमें भारतीय प्रशासन पर संपूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित थी ?

उत्तर – 1858 का भारत सरकार अधिनियम

प्रश्न 26. भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार विधान परिषद में भारतीयों को प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया –

उत्तर – भारतीय परिषद अधिनियम ,1861 के द्वारा

प्रश्न 27. भारत में मंत्रिमंडलीय व्यवस्था का जन्मदाता कहा जाता है –

उत्तर – लार्ड कैनिंग को

प्रश्न 28. गवर्नर जनरल को काउंसिल की संतुति के बिना अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी –

उत्तर – भारतीय परिषद अधिनियम ,1861 के द्वारा

प्रश्न 29. प्रांतों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया –

उत्तर – भारतीय परिषद अधिनियम ,1861 के द्वारा

प्रश्न 30. भारत सरकार अधिनियम 1873 के आधार पर ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया गया –

उत्तर – 1 जनवरी, 1874 को

प्रश्न 31. 28 अप्रैल, 1876 को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को घोषित किया गया –

उत्तर – भारत की साम्राज्ञी

प्रश्न 32. विधान परिषद के सदस्यों को निर्धारित नियमों के अधीन प्रश्न पूछने तथा वार्षिक बजट के प्रावधानों पर बहस करने का अधिकार दिया गया –

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1892 के द्वारा

प्रश्न 33. किस अधिनियम को मार्ले – मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है ?

उत्तर – 1909 का भारत परिषद अधिनियम

प्रश्न 34. वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने –

उत्तर – सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा

प्रश्न 35. सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का आरंभ किया गया –

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1909 के द्वारा

प्रश्न 36. मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल तथा पृथक निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रावधान किया गया –

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1909 के द्वारा

प्रश्न 37. ‘ मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार ‘ के नाम से जाना जाता है –

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1919 को

प्रश्न 38. केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया –

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1919 के द्वारा

प्रश्न 39. किस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था आरंभ की ?

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1919

प्रश्न 40. किस अधिनियम ने केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया ?

उत्तर – भारत परिषद अधिनियम, 1919

प्रश्न 41. ब्रिटिश भारत के क्षेत्रों और संघ में शामिल होने के इच्छुक देसी रियासतों को मिलाकर एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रस्ताव था –

उत्तर – भारत सरकार अधिनियम, 1935 में

प्रश्न 42. प्रांतों में लागू द्वैध शासन को समाप्त कर केंद्रीय स्तर पर द्वैध शासन व्यवस्था लागू करने का प्रावधान किया गया था –

उत्तर – भारत सरकार अधिनियम, 1935 में

प्रश्न 43. भारत शासन अधिनियम, 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया –

उत्तर – भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने

प्रश्न 44. देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई –

उत्तर – भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत

प्रश्न 45. किस अधिनियम के अंतर्गत 1 अक्टूबर 1937 को दिल्ली में संघीय न्यायालय का उद्घाटन किया गया जो बाद में चलकर भारत का सर्वोच्च न्यायालय बना ?

उत्तर – भारत सरकार अधिनियम, 1935

प्रश्न 46. भारत का विभाजन कर दो स्वतंत्र डोमिनयनों – संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया –

उत्तर – भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने

प्रश्न 47. स्वतंत्र भारतीय डोमिनियन की संसद के रूप में स्वीकार कर लिया गया –

उत्तर – 1946 में बनी संविधान सभा को

प्रश्न 48. 15 अगस्त 1947 में संविधान लागू होने तक भारत का दर्जा था –

उत्तर – ब्रिटिश राष्ट्रकुल के डोमिनियन राष्ट्र का

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *