दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन :- यद्यपि भारत के कई तुर्क सुल्तानों ने अपने को सच्चे मुसलमानों , अर्थात बगदाद के अब्बासी खलीफा का प्रतिनिधि घोषित किया और खुतबा में उसके नाम को भी शामिल किया लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि खलीफा भारत का कानूनी शासक बन गया था। खलीफा की स्थिति मात्रा नैतिक थी
सल्तनत में सुल्तान का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। सारी राजनीतिक , कानूनी और सैनिक सत्ता सुल्तान में निहित थी।
न्याय करना किसी भी शासक का अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व माना जाता था।
बलबन सख्ती से न्याय करता था। वह रिश्तेदारों या ऊंचे अधिकारियों के साथ भी मुरव्वत नहीं बरतता था। मुहम्मद तुगलक ने इस मापदंड को उलेमाओं पर भी लागू किया जबकि पहले ये लोग कठोर दंड से मुक्त थे।
मुसलमान शासको में उत्तराधिकार का कोई स्पष्ट नियम विकसित नहीं हुआ। इस्लामी कानून में शासक के चुनाव की व्यवस्था थी , परंतु गद्दी पर शासक के सभी पुत्रों को बराबरी का दावेदार माना जाता था।
गद्दी हासिल करने में सैनिक शक्ति मुख्य निर्णायक तत्व थी। परन्तु लोकमत की उपेक्षा नहीं की जा सकती थी। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
केंद्रीय प्रशासन
प्रशासन की एक सुनिश्चित प्रणाली का विकास तेरहवीं सदी के अंत तक हो पाया। प्रशासन में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वजीर होता था।
आरंभिक काल में वजीर मुख्य रूप से सैनिक नेता होते थे। चौदहवीं सदी में वजीर को सबसे बढ़कर राजस्व के मामलों का विशेषज्ञ माना जाने लगा।
मुहम्मद तुगलक ने राजस्व विभाग के संगठन की ओर खास ध्यान दिया। उसके वजीर ख्वाजा जहाँ का बहुत आदर था। जब मुहम्मद विद्रोहों को दबाने के लिए बाहर जाता था तब राजधानी को उसी की जिम्मेदारी पर छोड़ जाता था।
वजीर के अधीन एक अलग महालेखा परीक्षक व्यय की जाँच – पड़ताल का काम करता था और महालेखाकार आय की निगरानी करता था।
फिरोज तुगलक ने इस्लाम में धर्मांतरित एक तैलंग ब्राह्मण खान – ए – जहाँ को अपना वजीर बनाया था। 18 साल के लंबे अरसे तक की उसकी वज़ारत को आम तौर पर वजीर के प्रभाव की चरमसीमा माना जाता है। खान – ए – जहाँ के बाद उसका पुत्र द्वितीय खान – ए – जहाँ वजीर बना। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
वजीर के विभाग के बाद राज्य का सबसे महत्वपूर्ण महकमा दीवान – ए – अर्ज या सैन्य विभाग था। इस विभाग के प्रधान को आरिज – ए – ममालिक कहा जाता था। आरिज प्रधान सेनाध्यक्ष नहीं था क्योंकि सारे सैन्यबलों की कमान खुद सुल्तान के हाथ में थी।
सैनिकों की भर्ती करना , उन्हें सभी तरह से सज्जित करना और उनका वेतन देना आरिज के विभाग की मुख्य जिम्मेदारी थी।
भारत में आरिज के एक अलग विभाग की स्थापना सर्वप्रथम बलबन ने की।
अलाउद्दीन का आग्रह सैनिकों की नियमित हाजिरी पर था। उसने घोड़ों को दागने का चलन भी आरंभ किया ताकि सिपाही घटिया दर्जे के घोड़े सेना में न ला सकें। प्रत्येक सैनिक के विवरण की भी एक सूची रखी जाती थी।
दिल्ली के सुल्तानों में से अलाउद्दीन के पास सबसे बड़ी स्थायी सेना थी। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
अलाउद्दीन पहला सुल्तान था जिसने सभी सैनिकों को पूरा वेतन नगद अदा करना शुरू किया। इसके पूर्व तुर्क सिपाहियों को उनके वेतन के एवज में दोआब में बहुत – से गांव सौंप दिए गए थे।
बलबन ने इन गांवों को वापस लेने की कोशिश की , लेकिन इन सैनिकों के आंदोलन खड़ा कर देने और अपने पुराने मित्र दिल्ली के कोतवाल के समझाने – बुझाने पर बाद में उसने अपने आदेश में संशोधन कर दिया।
अलाउद्दीन ने कलम के एक ही झटके में इन गाँवों पर सैनिकों के हकों को समाप्त कर दिया। वह प्रत्येक घुड़सवार को सालाना 238 टंका देता था और जो दो घोड़े रखता था उसे 78 टंके और देता था।
तुर्क शासक बड़ी संख्या में हाथी भी रखते थे , घुड़सवार सेना में तुर्कों और अफ़गानों की प्रधानता थी।
गजनवियों के काल में हिंदुओं को घुड़सवार और पैदल – दोनों सेनाओं में भर्ती किया जाता था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
राज्य के दो और भी महत्वपूर्ण विभाग थे – दीवान – ए – रिसाल और दीवान – ए – इंशा। इनमें से पहला विभाग धार्मिक मामलों , धार्मिक संस्थाओं , सुपात्र विद्वानों और धर्मतत्वज्ञों को दिए जाने वाले अनुदानों का कामकाज संभालता था।
दीवान – ए – रिसाल का सर्वोच्च अधिकारी आला सदर होता था जो आम तौर पर कोई प्रमुख काजी हुआ करता था। सामान्यतः वही आला काजी न्याय विभाग का प्रधान होता था।
काजी दीवानी मुकदमों का फैसला शरीअत के अनुसार करते थे। हिंदुओं पर उनके अपने वैयक्तिक कानून लागू होते थे।
हिंदुओं के मामले में इन कानूनों के अनुसार न्याय करने का काम गांवों में पंचायतें करती थी। फौजदारी कानून शासकों द्वारा समय-समय पर बनाए गए नियमों पर आधारित होते थे।
दीवान – ए – इंशा राज्य में पत्रव्यवहार के कामकाज की देखरेख करता था।
सुल्तान और अन्य देशों के शासकों के बीच तथा सुल्तान और उसके अधीनस्थ अधिकारीयों के मध्य चलने वाले सभी औपचारिक और गोपनीय पत्रव्यवहार को दीवान – ए – इंशा ही संभालता था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
सुल्तान साम्राज्य के विभिन्न भागों में जासूसी करने वाले एजेंट रखते थे , जिन्हें बरीद कहा जाता था।
सुल्तान का पूर्ण विश्वासभाजन और कुलीन व्यक्ति ही मुख्य बरीद के पद पर नियुक्त किया जाता था।
राज्य का एक अन्य विभाग सुल्तान की गृहस्थी की व्यवस्था संभालता था।
फिरोज तुगलक ने गुलामों का एक अलग विभाग खोला था।
तमाम गतिविधियों की देखरेख करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी को वकील – ए – दर कहा जाता था। दरबार में शिष्टाचार का निर्वाह उसी का दायित्व था।
फिरोज ने सार्वजनिक कार्यों के लिए भी एक महकमा खोला। इस विभाग ने कई नहरें और सार्वजनिक इमारतें बनवाई। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
स्थानीय प्रशासन
जब तुर्कों ने इस देश को जीता तो इसे कई प्रदेशों में बाँट दिया था जो इक्ता कहे जाते थे। जिन अमीरों को इक्ता दिया दिए गए थे उन्हें मुकती या वली कहा जाता था। ये प्रदेश ही बाद में प्रांत या सूबा बन गए।
आरंभ में मुकती लगभग स्वतंत्र हुआ करते थे। लेकिन जैसे – जैसे केंद्रीय शासन शक्तिशाली और अनुभवी होता गया त्यों – त्यों उसने मुक्तियों पर अधिक नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया।
सूबे के नीचे शिक और शिक के नीचे परगना होता था।
गांव के सबसे महत्वपूर्ण लोग खूत ( भूस्वामी ) और मुकददम ( मुखिया ) थे। गाँव के पटवारी होने के बारे में भी जानकारी मिलती है। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
आर्थिक और सामाजिक जीवन
दिल्ली सल्तनत के अधीन लोगों की आर्थिक अवस्था के संबंध बहुत कम जानकारी प्राप्त होती है।
समकालीन इतिहासकारों की रूचि आम लोगों की जिंदगी की बजाय दरबार की घटनाओं में अधिक थी।
उत्तर अफ्रीका में टंजियर का निवासी इब्नबतूता चौदहवीं सदी में भारत आया था।
इब्नबतूता मोहम्मद तुगलक के दरबार में 8 वर्षों तक रहा। उसने पूरे देश की यात्रा की। वह भारत की उपजों के बारे में काफी दिलचस्प विवरण छोड़ गया है।
इब्न बतूता कहता है कि भारत की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि साल में दो-दो फसलें उगाई जाती हैं और चावल की तो तीन-तीन फसलें पैदा की जाती है। उसके अनुसार अलसी , गन्ना और कपास भी पैदा की जाती थी। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
किसान और ग्रामीण भद्रजन
पहले की ही तरह देश की आबादी में ज्यादातर लोग किसान थे। वे पूर्ववत कड़ी मेहनत करके किसी तरह गुजरे के लायक कमाते रहे।
वैसे सभी किसान निर्वाह – स्तर पर ही नहीं जीते थे। खूतों और मुकददमों के जीवन का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा था।
अपनी जोतों के अलावा खूतों और मुकददमों के पास और भी जमीन होती थी जिस पर वे रियायती दरों से राजस्व अदा किया करते थे।
इन खूतों और मुकददमों के खिलाफ अलाउद्दीन ने सख्त कदम उठाए और उनके विशेषाधिकारों को कम कर दिया। तब भी उनके जीवन का स्तर किसानों की अपेक्षा बहुत ऊँचा रहा।
अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद उन्होंने फिर से अपने पुराने तौर – तरीके अपना लिए थे।
जीवन – स्तर का उपभोग करने वाला एक वर्ग रायों या स्वायत हिन्दू राजाओं का था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
व्यापार , उद्योग और व्यापारी
चांदी के टंके और तांबे के दिरहम पर आधारित एक ठोस मुद्रा प्रणाली स्थापित हो गई।
इब्नबतूता ने दिल्ली को इस्लामी दुनिया के पूर्वी हिस्से का सबसे बड़ा नगर कहा है।
बंगाल और गुजरात के शहर अपने उत्तम कपड़ों और सोने तथा चांदी के काम के लिए प्रसिद्ध थे। बंगाल के सोनारगांव अपने कच्चे रेशम और मलमल के लिए विख्यात था।
तुर्कों ने कई नई दस्तकारियां शुरू करवाई। इनमें से एक था कागज बनाने का काम। कागज बनाने की विधि का आविष्कार दूसरी सदी में चीनियों ने किया था।
भारत पश्चिम एशिया से उच्च कोटि के कुछ कपड़े , कांच के बर्तनों और घोड़ों का आयात करता था। भारत चीन से कच्चा रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तन मंगवाता था।
जल और थल दोनों मार्गों से चलने वाला भारत का व्यापार एक अंतर्राष्ट्रीय उदयम था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
बरनी बताता है कि मुल्तानी व्यापारी इतने समृद्ध थे कि उनके घर सोने – चांदी से भरे होते थे और उधर अमीर लोग इतने शाह – खर्च थे कि जब भी वे कोई भोज या समारोह आयोजित करना चाहते थे , उन्हें पैसा उधार लेने के लिए मुल्तानियों के घर भागना पड़ता था।
राजमार्ग को अच्छी हालत में रखा जाता था और यात्रियों की सुरक्षा तथा सुविधा के लिए उन पर जगह – जगह सरायें बनी होती थी।
पेशावर से सोनारगांव तक पहुंचने वाले राजमार्ग के अलावा मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली से दौलताबाद तक एक सड़क बनवाई।
देश के एक भाग से दूसरे भाग तक तेजी से डाक पहुंचाने की भी व्यवस्था थी। यह काम हरकारों द्वारा किया जाता था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
जब मुहम्मद तुगलक दौलताबाद में था ( जहां दिल्ली में पहुंचने में 40 दिन लगते थे ) इन्हीं हरकारों द्वारा उसके पीने के लिए रोज गंगाजल ले जाया जाता था।
संचार व्यवस्था में सुधार होने और जल था थल – दोनों मार्गों से व्यापार की वृद्धि होने से इस काल में आर्थिक जीवन में तेजी आई।
तुर्कों ने कई नए शिल्प और तकनीकें आरंभ की या पुराने शिल्पों और तकनीकों को लोकप्रिय बनाया।
रहट से अब सिंचाई के लिए ज्यादा गहराई से पानी निकलना निकाला जा सकता था। कागज बनाना , शीशा बनाना , चरखा और सुधरे किस्म का करघा नए-नए शुरू हुए सुधरे शिल्पो के अन्य उदाहरण थे। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
सुल्तान और अमीर
सुल्तान तथा उसके प्रमुख अमीरों का जीवन – स्तर ऐसा था जिसकी तुलना उस काल की दुनिया के उच्चतम जीवन स्तर से की जा सकती है।
मुहम्मद तुगलक के राजमहल का वर्णन इब्नबतूता ने किया है। सुल्तान से मिलने आने वाले व्यक्ति को तीन ऊंचे – ऊंचे द्वारों से होकर गुजरना पड़ता था। इन सबको पार करके वह ‘ हजारों स्तंभों वाले दरबार ‘ में प्रवेश करता था।
मुहम्मद तुगलक अपने अमीरों को हर साल दो नई पोशाकें दिया करता था – एक सर्दी के मौसम में और दूसरा ग्रीष्म ऋतु में।
फिरोज तुगलक के संबंध में कहा जाता है कि एक बार सुल्तान को एक ही जोड़े जूते के लिए 70000 टंके की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।
शाही इस्तेमाल की ज्यादातर चीजों पर सोने – चाँदी और जवाहरात के काम किए होते थे। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
सुल्तान का एक हरम होता था जिसमें रानियां और विभिन्न देशों की बहुत सारी गुलाम लड़कियां रहती थीं।
सुल्तान की मां , चाची और अन्य सभी रिश्तेदार स्त्रियां भी हराम में ही रहती थी। इनमें से प्रत्येक के रहने के लिए अलग व्यवस्था करनी पड़ती थी।
आडंबरयुक्त रहन – सहन के मामले में अमीर लोग सुल्तान की नकल करने की कोशिश करते थे।
साम्राज्य के द्रूत विस्तार के कारण मुहम्मद तुगलक अमीरों को मोटी – मोटी तनख्वाहें और भत्ते देने लगा। एक स्रोत से मालूम होता है कि उसके वजीर की आय इराक प्रांत की आय के बराबर थी।
फिरोज तुगलक के शासनकाल में कई अमीर अपने पीछे विशाल धनराशियां छोड़ गए। उदाहरण के लिए फिरोज का आरिज – ए – ममालिक बशीर अपनी मृत्यु पर 13 करोड़ टंके की धनराशि छोड़ गया। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
सुल्तान और उसके अमीर भारत में फलों की , खास तौर से खरबूजे और अंगूर की , किस्मों में सुधार करने में गहरी रुचि लेते थे।
गुलामों का सबसे अधिक इस्तेमाल व्यक्तिगत सेवासुश्रूषा के लिए किया जाता था।
कहा जा सकता है कि गुलाम की स्थिति घरेलू नौकर से बेहतर थी , क्योंकि गुलाम के मालिक के लिए उसके खाने – रहने का बंदोबस्त करना जरूरी था , जबकि स्वतंत्र व्यक्ति भूखों मर सकता था।
गुलामों को शादी करने की छूट थी और वे थोड़ी – बहुत संपत्ति भी रख सकते थे।
हिन्दुओं और मुसलमानों – दोनों के बीच गुलाम को आजादी देना सत्कार्य माना जाता था।
480 जीतल का चांदी का एक टांका होता था।
मोहम्मद तुगलक के शासनकाल में कीमतों में भारी वृद्धि हुई , लेकिन फिरोजशाह तुगलक के समय में वे लगभग अलाउद्दीन के समय वाले स्तर पर आ गई। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
जाति तथा सामाजिक रीति – रिवाज
इस काल में हिन्दू समाज की संरचना में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
शूद्रों का परम कर्तव्य अन्य जातियों की सेवा करना था , किंतु उन्हें मांस और मदिरा के अलावा अन्य सभी धंधे करने की छूट दी गई।
शूद्रों द्वारा वेदपाठ पर विरोध अब भी लगा रहा , लेकिन पुराणों के श्रवण पर ऐसी कोई रोक नहीं थी।
हिन्दू समाज में स्त्रियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। पत्नी को छोड़कर भाग जाने , कोई वीभत्स रोग लग जाने आदि कुछ खास परिस्थितियों में विवाह तोड़ा जा सकता था।
इब्नबतूता ने ढोल – बाजों के कर्णभेदी स्वर के बीच अपने पति की चिता पर पत्नी के जल मरने के दृश्य का वर्णन त्रस्तभाव से किया है। उसके अनुसार सती होने के लिए सुल्तान से अनुमति लेनी पड़ती थी। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
धर्मशास्त्रों के टिकाकार संपत्ति के संबंध में पुत्रहीन पति की जायदाद पर पत्नी के अधिकार का समर्थन करते हैं , बशर्ते कि उसकी संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति न हो।
विधवा न केवल संपत्ति की संरक्षिका थी , बल्कि उसको उसे बेचने या चाहे जैसे भी किसी को दे देने का अधिकार था। इस प्रकार मालूम होता है कि हिंदू कानून में संपत्ति पर स्त्रियों के अधिकार में सुधार हुआ।
इस काल में ऊपरी वर्गों की स्त्रियों में पर्दा प्रथा का व्यापक चलन हुआ। ईरानियों , यूनानियों आदि से इस प्रथा को अरबों और तुर्कों ने ग्रहण किया और इसे वे अपने साथ भारत ले आए। उनकी देखा देखी भारत में भी ,खास तौर से उत्तर भारत में पर्दा प्रथा का व्यापक चलन हुआ।
पर्दा प्रथा समाज के ऊंचे तबकों की प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई और जो लोग प्रतिष्ठित माने जाना चाहते थे उन सबने इसे अपनाने की कोशिश की।
सल्तनत काल में मुस्लिम समाज नस्ली समूहों में बँटा रहा। उसमें तुर्क , ईरानी , अफगान और भारतीय मुसलमान की बीच कदाचित ही वैवाहिक संबंध होता हो।
हिंदी समाज के निचले तबकों से मुसलमान बने लोगों के खिलाफ भी भेदभाव का व्यवहार किया जाता था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
राज्य का स्वरूप
भारत में स्थापित तुर्क राज्य सैन्यवादी और कुलीनतांत्रिक था। व्यापार पर हिंदुओं का वर्चस्व था और ग्रामीण कुलीन वर्ग में वही लोग शामिल थे। इसके अलावा प्रशासन का संचालन निचले स्तर पर हिंदुओं के हाथों में था।
औपचारिक दृष्टि से देखें तो राज्य इस्लामी था। इसका मतलब यह था कि सुल्तान इस्लामी कानून के खुल्लमखुल्ला उल्लंघन की इजाजत नहीं देते थे ओर उलेमाओं को राज्य के लाभदायक पदों पर नियुक्त करते थे।
राजकाज का चलाने के लिए सुल्तान को मुस्लिम कानून के अलावा अपनी ओर से जरूरी विनियम भी बनाने पड़ते थे , जिन्हें ” जवाबित ” कहा जाता था।
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली के आला काजी से कहा था कि मुझे नहीं मालूम कि क्या कानूनी है और क्या गैरकानूनी, मैं तो राज्य की जरूरतों के मुताबिक नियम बनाता हूं।
यही कारण है कि इतिहासकार बरनी ने दिल्ली सल्तनत को सच्चा इस्लामी राज्य मानने से इनकार कर दिया। इसकी बजाय उसने उसे ” जहाँदारी ” या दुनियाबी बातों को ध्यान में रखकर चलने वाला राज्य बताया। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
हिंदू प्रजा को अरबों की सिंध – विजय के समय से ही उन्हें ” जिम्मियों ” का दर्जा बख्शा गया था , अर्थात वे मुस्लिम शासन को कबूल लेने वाले और जजिया अदा करने पर सहमत संरक्षित लोग थे।
जजिया वस्तुत: सैनिक सेवा के एवज में अदा किया जाने वाला कर था। अपनी – अपनी औकात और साधनों के मुताबिक अलग-अलग लोगों को यह कर अलग-अलग परिमाणों में देना पड़ता था।
स्त्रियों , बच्चों तथा साधनहीन और विपन्न लोगो को इससे बरी रखा गया। ब्राह्मण भी इससे मुक्त रखे गए यद्यपि मुसलमान कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
आरंभ में जजिया की उगाई भूराजस्व के साथ की जाती थी। बाद में फिरोज ने गैरकानूनी महसूलों को समाप्त करते हुए जजिया को एक अलग कर का रूप दे दिया। उसने ब्राह्मणों पर भी यह कर लगा दिया।
मंदिर आक्रमणकारियों के खास लक्ष्य होते थे जिसका कुछ कारण तो यह था कि वह अपने लोगों के निगाहों में अपने हमले का औचित्य साबित करना चाहते थे और कुछ मंदिरों की अकूत संपत्ति का पर अधिकार करना होता था। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
इस काल में कई हिंदू मंदिरों को मस्जिदों में बदल दिया गया। इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण कुतुबमीनार के निकट कुव्वत – उल – इस्लाम मस्जिद है जो पहले विष्णु मंदिर था।
बरनी के अनुसार जलालुद्दीन खिलजी ने देखा कि राजधानी और सूबाई केंद्रों में भी खुलेआम मूर्ति पूजा की जाती थी और हिंदू धर्मग्रंथो के पाठों का प्रचार किया जाता था। उसने कहा , ” हिंदू लोग मूर्तियों को का यमुना में विसर्जन करने के लिए नाचते – गाते , ढोल बजाते हुए , जलूसों में शाही महल की दीवारों के पास से गुजरते हैं और मैं चुपचाप देखता रह जाता हूं “।
फिरोज ने इस्लाम के रसूल के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने के अपराध पर एक ब्राह्मण को प्राणदंड दे दिया था।
मुसलमान को हिंदू बनाने के भी कुछ उदाहरण मिलते हैं। महान वैष्णव सुधारक चैतन्य ने बहुत से मुसलमानों को हिंदू बना दिया था।
दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने एक बार कहा था – ” कुछ हिंदू जानते हैं कि इस्लाम एक सच्चा धर्म है , लेकिन वे इस्लाम को कबूल नहीं करते। “
सूफी संतों में भी धर्मांतरण में कुछ भूमिका निभाई , यद्यपि आम तौर पर उनका इससे कोई सरोकार नहीं होता था और अपनी संगत में हिंदुओं एवं मुसलमानों – दोनों का ही वे स्वागत करते थे। दिल्ली सल्तनत के अधीन शासन और आर्थिक तथा सामाजिक जीवन
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प्रश्न 1- उलेमा लोग कठोर दंड से मुक्त थे। किस शासक ने उलेमाओं पर भी कठोर दण्ड को लागू किया ?
उत्तर – मुहम्मद बिन तुगलक
प्रश्न 2-मुहम्मद बिन तुगलक विद्रोहों को दबाने के लिए बाहर जाते समय राजधानी की जिम्मेदारी किस पर छोड़ जाता था ?
उत्तर – वजीर ख्वाजा जहाँ पर
प्रश्न 3-सल्तनत काल में किस वजीर के 18 साल के लंबे अरसे तक की वज़ारत को आम तौर पर वजीर के प्रभाव की चरमसीमा माना जाता है ?
उत्तर – खान – ए – जहाँ
प्रश्न 4-दीवान – ए – अर्ज के प्रधान को क्या कहा जाता था ?
उत्तर – आरिज – ए – ममालिक
प्रश्न 5-भारत में आरिज के एक अलग विभाग की स्थापना सर्वप्रथम किसने की थी ?
उत्तर – बलबन
प्रश्न 6-किस सुल्तान ने घोड़ों को दागने का चलन आरंभ किया ताकि सिपाही घटिया दर्जे के घोड़े सेना में न ला सकें ?
उत्तर – अलाउद्दीन खलजी
प्रश्न 7-दिल्ली के सुल्तानों में से किस के पास सबसे बड़ी स्थायी सेना थी ?
उत्तर – अलाउद्दीन खलजी
प्रश्न 8-वह पहला सुल्तान कौन था , जिसने सभी सैनिकों को पूरा वेतन नगद अदा करना शुरू किया ?
उत्तर – अलाउद्दीन खलजी
प्रश्न 9-सल्तनत काल में धार्मिक मामलों , धार्मिक संस्थाओं , सुपात्र विद्वानों और धर्मतत्वज्ञों को दिए जाने वाले अनुदानों का कामकाज कौन – सा विभाग संभालता था ?
उत्तर – दीवान – ए – रिसाल
प्रश्न 10-सुल्तान और अन्य देशों के शासकों के बीच तथा सुल्तान और उसके अधीनस्थ अधिकारीयों के मध्य चलने वाले सभी औपचारिक और गोपनीय पत्रव्यवहार को कौन – सा विभाग संभालता था ?
उत्तर – दीवान – ए – इंशा
प्रश्न 11-सुल्तान द्वारा नियुक्त जासूसी करने वाले एजेंटो को क्या कहा जाता था ?
उत्तर – बरीद
प्रश्न 12-किस सुल्तान ने गुलामों का एक अलग विभाग खोला था ?
उत्तर – फिरोज तुगलक ने
प्रश्न 13-सल्तनत काल में दरबार में शिष्टाचार का निर्वाह करना किस का दायित्व था ?
उत्तर – वकील – ए – दर
प्रश्न 14-जब तुर्कों ने इस देश को जीता तो इसे कई प्रदेशों में बाँट दिया था जो कहे जाते थे –
उत्तर – इक्ता
प्रश्न 15-जिन अमीरों को इक्ता दिया दिए गए थे उन्हें क्या कहा जाता था ?
उत्तर – मुकती या वली
प्रश्न 16-सल्तनत काल का प्रशासनिक विभाजन था :-
उत्तर – सूबा , शिक, परगना , गाँव
प्रश्न 17-टंजियर का निवासी इब्नबतूता चौदहवीं सदी में भारत आया था। वह किस सुल्तान के दरबार में आठ वर्षों तक रहा ?
उत्तर – मोहम्मद तुगलक
प्रश्न 18-दिल्ली को इस्लामी दुनिया के पूर्वी हिस्से का सबसे बड़ा नगर किसने कहा है ?
उत्तर – इब्नबतूता
प्रश्न 19-कागज बनाने की विधि का आविष्कार दूसरी सदी में किसने किया था ?
उत्तर – चीनियों ने
प्रश्न 20-कौन बताता है कि मुल्तानी व्यापारी इतने समृद्ध थे कि उनके घर सोने – चांदी से भरे होते थे ?
उत्तर – बरनी
प्रश्न 21-सल्तनत काल में हरकारे लोग किस व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते थे ?
उत्तर – डाक व्यवस्था
प्रश्न 22-वह सुल्तान कौन था जो अपने अमीरों को हर साल दो नई पोशाकें दिया करता था ?
उत्तर – मुहम्मद तुगलक
प्रश्न 23-किसने ढोल – बाजों के कर्णभेदी स्वर के बीच अपने पति की चिता पर पत्नी के जल मरने के दृश्य का वर्णन त्रस्तभाव से किया है ?
उत्तर – इब्नबतूता
प्रश्न 24-किस काल में ऊपरी वर्गों की स्त्रियों में पर्दा प्रथा का व्यापक चलन हुआ ?
उत्तर – सल्तनत काल
प्रश्न 25-भारत में स्थापित तुर्क राज्य था –
उत्तर – सैन्यवादी और कुलीनतांत्रिक
प्रश्न 26-राजकाज का चलाने के लिए सुल्तान को मुस्लिम कानून के अलावा अपनी ओर से जरूरी विनियम भी बनाने पड़ते थे , जिन्हें कहा जाता था –
उत्तर – जवाबित
प्रश्न 27-किस सुल्तान ने दिल्ली के आला काजी से कहा था -” मुझे नहीं मालूम कि क्या कानूनी है और क्या गैरकानूनी, मैं तो राज्य की जरूरतों के मुताबिक नियम बनाता हूं ” ?
उत्तर – अलाउद्दीन खिलजी
प्रश्न 28-किस इतिहासकार ने दिल्ली सल्तनत को सच्चा इस्लामी राज्य मानने से इनकार कर दिया, इसकी बजाय उसने उसे ” जहाँदारी ” या दुनियाबी बातों को ध्यान में रखकर चलने वाला राज्य बताया ?
उत्तर – बरनी
प्रश्न 29-किस सुल्तान ने जजिया को एक अलग कर का रूप दिया था ?
उत्तर – फिरोज तुगलक
प्रश्न 30-किस महान वैष्णव सुधारक ने बहुत से मुसलमानों को हिंदू बना दिया था ?
उत्तर – चैतन्य
प्रश्न 31-दिल्ली के किस प्रसिद्ध सूफी संत ने कहा था – ” कुछ हिंदू जानते हैं कि इस्लाम एक सच्चा धर्म है , लेकिन वे इस्लाम को कबूल नहीं करते। “
उत्तर – निजामुद्दीन औलिया
प्रश्न 32-कुतुबमीनार के निकट कुव्वत – उल – इस्लाम मस्जिद है ,पहले था –
उत्तर – विष्णु मंदिर