हरिवंशराय बच्चन
उत्तर छायावादी काल के सुप्रसिद्ध कवि तथा हालावादी काव्य के प्रवर्तक श्री हरिवंशराय बच्चन का जन्म सन 1907 ईस्वी में प्रयाग में एक सम्मानित कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री प्रतापनारायण था। इनके माता-पिता धार्मिक और श्रेष्ठ संस्कारों के धनी थे ,अतः स्पष्ट रूप से हरिवंशराय बच्चन जी के व्यक्तित्व पर अपने माता-पिता के संस्कारों का प्रभाव पड़ा।
हरिवंशराय बच्चन जी ने काशी और प्रयाग में उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। बच्चन जी का सन 1927 ईस्वी में श्यामादेवी के साथ विवाह हुआ, परंतु यक्ष्मा से पीड़ित होने के कारण सन 1936 ईस्वी में वे चल बसी।
इससे बच्चन जी को दुख और निराशा ने चारों ओर से घेर लिया। सन 1942 ईस्वी में हरिवंशराय बच्चन जी ने तेजी बच्चन जी के साथ पुनर्विवाह किया, वे ही इनकी काव्य-प्रेरणा बनी।
प्रयाग विश्वविद्यालय में हरिवंशराय बच्चन जी ने कुछ समय तक अंग्रेजी के प्रवक्ता पद पर कार्य किया। इसके बाद सन 1955 ईस्वी में ये दिल्ली में विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त हुए और यहीं से सेवानिवृत्त हुए। इन्हें राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया।
कुछ समय तक बच्चन जी आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे। यह महान विभूति मधुशाला के गायक सन 2003 ईस्वी को सारे सांसारिक बंधनों को छोड़ पंचतत्व में विलीन हो गए।
साहित्यिक परिचय
हरिवंशराय बच्चन हिंदी के उन प्रसिद्ध कवियों में से थे जिन्होंने अपने काव्य – कौशल से राष्ट्रभाषा के स्वरूप को भव्यता, सरलता, सहजता और मधुरता प्रदान की।
इनका दृष्टिकोण अत्यंत व्यवहारिक, आशावादी और स्वस्थ था। बच्चन जी के गीतों में भावात्मकता , केंद्रीयता , संक्षिप्तता , संगीतात्मकता , सरलता , सहजता , चित्रात्मकता और रसात्मकता जैसी विशेषताओं के दर्शन मिलते हैं। हरिवंशराय बच्चन जी हिंदी साहित्याकाश के उज्जवल नक्षत्र थे।
हरिवंशराय बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ
हरिवंशराय बच्चन जी की प्रमुख काव्यकृतियों के नाम इस प्रकार हैं –
मधुशाला , मधुबाला , मधुकलश , निशा-निमंत्रण , एकांत संगीत , आकुल-अंतर , हलाहल , मिलन-यामिनी , सतरंगिनी , बंगाल का अकाल , प्रणय-पत्रिका , खादी के फूल , आरती और अंगारे , बुद्ध का नाचघर , सूत की माला आदि।
भाषा
बच्चन जी ने सामान्य बोल-चाल की भाषा को काव्य भाषा बनाया अर्थात इनकी भाषा सरल-सरस खड़ी बोली है, जिसमें शब्दों का चयन भाव के अनुरूप किया गया है। अनेक भाषाओं के शब्दों को भी इन्होंने अपना कर काव्य में प्रस्तुत किया।
शैली
हरिवंशराय बच्चन जी ने अपने काव्य में गीति शैली को अपनाया। इनकी इस शैली में गीत पद्धति की सभी विशेषताएं उपलब्ध होती हैं। बच्चन जी की शैली में लाक्षिकता , प्रतीकत्मकता , संगीतात्मकता , चित्रात्मकता , बिम्बात्मकता आदि विशेषताओं के दर्शन होते हैं।
इन्होंने अपने काव्य में छंदों का स्वाभाविक और सजीव प्रयोग किया। इन्होंने रचना करते समय छंद के लिए पूर्व योजना कभी नहीं की , जो छंद स्वाभाविक रूप से आ गए , उन्हें बिना किसी झिझक स्वीकार कर लिया।
यही कारण है कि इनके काव्य में बासीपन की बू नहीं आ पाई है। इन्होंने परंपरागत छंदों में रूपमाला, हरिगीतिका, फारसी आदि छंदों के साथ मुक्त छंदों को भी अपनाया।
साहित्य में स्थान
अपने विशिष्ट लेखन और मानवीय भावनाओं की सूक्ष्म अभिव्यक्तियों ने हरिवंशराय बच्चन जी को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। इन्होंने हिंदी की मधुर शैली को जनसाधारण तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
इनकी काव्य रचनाओं में मानवीय भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। बच्चन जी ने अपनी काव्य कृतियों में व्यक्तिवाद पर जोर देने के साथ-साथ सामाजिक जनजीवन पर अपनी मनोभावनाओं को व्यक्त किया।
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