हर्ष और उसका काल
हर्ष और उसका काल :- गुप्तवंश ने बिहार और उत्तर प्रदेश स्थित अपने सत्ता – केंद्र से उत्तर और पश्चिम भारत पर ईसा की छठी सदी के मध्य तक लगभग 160 वर्ष राज किया।
गोरे हूणों ने लगभग 500 ई से कश्मीर , पंजाब और पश्चिमी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
हरियाणा स्थित थानेश्वर के शासक हर्षवर्धन ( 606 – 647 ई ) ने धीरे-धीरे अपनी प्रभुता पड़ोस के अन्य सामंतो पर कायम कर ली।
थानेश्वर स्थित ‘ हर्ष के टीले ‘ की खुदाई में कुछ ईंटों की इमारतें मिली है , पर वे राजमहल जैसी नहीं है।
हर्ष ने कन्नौज को राजधानी बनाया , जहां से उसने चारों ओर अपना प्रभुत्व फैलाया।
सातवीं सदी के आते – आते पाटलिपुत्र के बुरे दिन आ गए और कन्नौज का सितारा चमका। हर्ष और उसका काल
पाटलिपुत्र की सत्ता और महत्ता व्यापार – वाणिज्य पर और मुद्रा – धन के व्यापक प्रचलन पर टिकी थी।
जैसे ही व्यापार में गिरावट आई , मुद्रा दुर्लभ होती गई , और अधिकारियों व सैनिकों को नगद वेतन के बदले भूमि अनुदान दिया जाने लगा वैसे ही नगर का ( पाटलिपुत्र ) महत्त्व समाप्त हो गया।
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित कन्नौज छठी सदी के उत्तरार्ध से राजनीतिक उत्कर्ष पर चढ़ गया।
हर्ष के समय से कन्नौज का राजनीतिक शक्ति के केंद्र के रूप में उभरना उत्तर भारत में सामंत युग के आगमन का सूचक था – ठीक उसी तरह जैसे पाटलिपुत्र मुख्यतया प्राक – सामन्तीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता था।
हर्ष के शासनकाल का आरंभिक इतिहास ‘ बाणभट्ट ‘ से ज्ञात होता है जो हर्ष का दरबारी कवि था और जिसने ‘ हर्षचरित ‘ नामक पुस्तक लिखी। हर्ष और उसका काल
चीनी यात्री हुआन सांग ईशा की सातवीं सदी में भारत आया और लगभग 15 वर्ष इस देश में रहा।
हर्ष के अभिलेखों से विभिन्न प्रकार के करो और अधिकारियों के बारे में जानकारी मिलती है।
हर्ष को भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कहा गया , लेकिन वह न तो कट्टर हिंदू था और ने ही सारे देश का शासक था।
हर्ष का राज्य कश्मीर को छोड़ उत्तर भारत तक सीमित था। राजस्थान , पंजाब , उत्तर प्रदेश और बिहार उसके प्रत्यक्ष नियंत्रण में थे।
पूर्वी भारत में उसका मुकाबला गौड़ के शैव राजा शशांक से हुआ जिसने बोधगया में बोधिवृक्ष को काट डाला था।
दक्षिण की ओर हर्ष के अभियान को नर्मदा के किनारे चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने रोका।
पुलकेशिन आधुनिक कर्नाटक और महाराष्ट्र के बड़े भूभाग पर शासन करता था जिसकी राजधानी कर्नाटक के आधुनिक बीजापुर जिले के बदामी में थी। हर्ष और उसका काल
प्रशासन
हर्ष ने अपने साम्राज्य का प्रशासन गुप्तों की प्रशासनिक व्यवस्था के अनुसार ही किया परंतु हर्ष का प्रशासन अधिक सामन्तिक और विकेंद्रित था।
राज्य को समर्पित विशेष सेवाओं के लिए पुरोहितों को भूमि – दान देने की परंपरा हर्ष के समय में भी जारी रही।
हर्ष ने पदाधिकरियों को शासनपत्र के द्वारा जमीन देने की प्रथा चलायी।
हुआन सांग बताता है कि हर्ष की राजकीय आय चार भागों में बांटी जाती थी – राजा के खर्च के लिए , विद्वानों के लिए , पदाधिकरियों और अमलों के बंदोबस्त के लिए और धार्मिक कार्यों के लिए। हर्ष और उसका काल
हुआन सांग यह भी बताता है कि राजा के मंत्रियों और ऊंचे अधिकारियों को जागीर दी जाती थी।
लगता है कि अधिकारियों को वेतन और पुरस्कार के रूप में भूमिदान देने की सामंती प्रथा हर्ष ने ही शुरू की। इसलिए हम हर्ष के सिक्के अधिक मात्रा में नहीं पाते हैं।
हर्ष के साम्राज्य में विधि – व्यवस्था अच्छी नहीं थी। हुआन सांग के माल – असबाब डाकुओं ने लूट लिए।
हुआन सांग लिखता है कि देश के कानून में अपराध के लिए कड़ी सजा का विधान था। डकैती को दूसरा राजद्रोह माना जाता था जिसके लिए डाकू का दायाँ हाथ काट दिया जाता था।
प्रतीत होता है कि बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण दंड की कठोरता कम कर दी गई। हर्ष और उसका काल
हुआन सांग का विवरण
हर्ष के शासनकाल का महत्व चीनी यात्री हुआन सांग के भ्रमण को लेकर है। वह नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए और भारत से बौद्ध ग्रंथ बटोर कर ले जाने के लिए आया था।
हुआन सांग हर्ष के दरबार में कई वर्ष बिताए और भारत का व्यापक भ्रमण किया।
हुआन सांग के प्रभाव में पड़कर हर्ष ने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
हुआन सांग ने हर्ष के दरबार और उस समय के जीवन का सजीव चित्रण किया है , जो फाह्यान के विवरण से कहीं अधिक पूर्ण और विश्वसनीय है।
हुआन सांग के अनुसार पाटलिपुत्र पतनावस्था में था और वैशाली का भी वही हाल था। दोआब में प्रयाग और कन्नौज महत्वपूर्ण हो चले थे। ब्राह्मण और क्षत्रिय लोग सादा जीवन बिताते थे , पर सामंतों और पुरोहितों का जीवन विलासमय था।
हुआन सांग ने शूद्रों को कृषक कहा है।
हुआन सांग के अनुसार मेहतर , चांडाल आदि गांव के बाहर बसते थे और लहसुन – प्याज खाते थे। अछूत लोग नगर में प्रवेश करने से पहले जोर-जोर से आवाज करते थे ताकि लोग उनके स्पर्श से बच सके। हर्ष और उसका काल
बौद्ध धर्म और नालंदा
हुआन सांग के समय बौद्ध धर्म 18 संप्रदायों में बँटा हुआ था। बौद्ध धर्म के पुराने केंद्र दुर्दिन झेल रहे थे।
नालंदा बौद्ध महाविहार में 10,000 छात्र थे जो सभी बौद्ध भिक्षु थे। उन्हें महायान संप्रदाय का बौद्ध दर्शन पढ़ाया जाता था।
एक अन्य चीनी यात्री इ – त्सिंग 670 ई में नालंदा आया जिसके अनुसार वहां केवल 3000 भिक्षु रहते थे।
इ – त्सिंग द्वारा दी गए जानकारी तर्कसंगत है , क्योंकि यदि नालंदा के सभी टीलों की खुदाई हो जाए तब भी इमारतों में इतनी जगह नहीं होंगी की 10,000 भिक्षु रह सकें।
हुआन सांग के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय का भरण पोषण 100 गांवों के राजस्व से होता था जबकि इ – त्सिंग गांवों की संख्या को 200 कहता है।
हर्ष की धार्मिक नीति सहनशील थी। वह आरंभिक जीवन में शैव था , पर धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का महान संपोषक हो गया। हर्ष और उसका काल
हर्ष ने महायान संप्रदाय के सिद्धांतों के प्रचार के लिए कन्नौज में एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया।
इस सम्मेलन में न केवल हुआन सांग और कामरूप का राजा भास्करवर्मन पधारे , बल्कि 20 देशों के राजा और विभिन्न संप्रदायों के कई हजार पुरोहित भी सम्मिलित हुए।
कन्नौज में एक विशाल मीनार बनवाई गई जिसके बीच में बुद्ध की स्वर्ण – प्रतिमा स्थापित की गई।
सम्मेलन में शास्त्रार्थ का आरंभ हुआन सांग ने किया आगे चलकर उसके प्रतिद्वंदियों ने उसे जान से मारने की साजिश कि। इस पर हर्ष ने चेतावनी दी कि जो कोई भी हुआन सांग को थोड़ी भी हानि पहुंचाएगा उसका सिर काट दिया जाएगा। हर्ष और उसका काल
सम्मेलन में ही अचानक मीनार में आग लग गई और हर्ष पर घातक हमला किया गया। तब हर्ष ने 500 ब्राह्मणों को गिरफ्तार कर उन्हें निर्वासित कर दिया तथा कुछ को मौत की सजा दे दी।
कन्नौज के बाद हर्ष ने प्रयाग में महासम्मेलन बुलाया। इसमें हर्ष ने शरीर के वस्त्रों को छोड़ सभी वस्तुओं का दान कर दिया।
बाणभट्ट ने अपनी आश्रयदाता के आरंभिक जीवन का चटुकारितापूर्ण चित्रण ‘ हर्षचरित्र ‘ नामक पुस्तक में किया किया है।
बाण ने हर्ष को अद्भुत कवित्वप्रतिभा संपन्न कहा है और बाद के कुछ लेखकों ने उसे साहित्यकार – सम्राट कहा है।
हर्ष ने तीन नाटकों की रचना की – प्रियदर्शिका , रत्नावली और नागानंद। कहा जाता है कि ‘ धावक ‘ नमक कवि ने हर्ष से पुरस्कार लेकर उपरोक्त तीनों नाटक लिख दिए। हर्ष और उसका काल
MCQ
प्रश्न 1 – हर्ष के टीले की खुदाई किस जगह से हुई है ?
उत्तर – थानेश्वर
प्रश्न 2 – हर्ष ने किसे अपनी राजधानी बनाया ?
उत्तर – कन्नौज को
प्रश्न 3 – हर्ष ने कन्नौज को राजधानी बनाया , कन्नौज किस जिले में पड़ता है ?
उत्तर – फर्रुखाबाद
प्रश्न 4 – हर्ष के समय से कन्नौज का राजनीतिक शक्ति के केंद्र के रूप में उभरना उत्तर भारत में किस युग के आगमन का सूचक था ?
उत्तर – सामंत
प्रश्न 5 – हर्षचरित नामक पुस्तक किसने लिखी ?
उत्तर – बाणभट्ट
प्रश्न 6 – चीनी यात्री हुआन सांग ने किस शासक के समय में भारत की यात्रा की थी ?
उत्तर – हर्षवर्धन
प्रश्न 7 – भारत का अंतिम हिंदू सम्राट किसे कहा गया है ?
उत्तर – हर्ष को
प्रश्न 8 – पूर्वी भारत में हर्ष को किस राजा से मुकाबला करना पड़ा , जिसने बोधगया में बोधिवृक्ष को काट डाला था ?
उत्तर – शशांक
प्रश्न 9 – दक्षिण की ओर हर्ष के बढ़ते कदमों को नर्मदा के किनारे किस राजा ने रोका ?
उत्तर – चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने
प्रश्न 10 – पुलकेशिन द्वितीय की राजधानी थी –
उत्तर – बदामी में
प्रश्न 11 – राज्य के पदाधिकरियों को शासनपत्र के द्वारा जमीन देने की प्रथा किस राजा ने चलायी ?
उत्तर – राजा हर्ष
प्रश्न 12 – हर्ष की राजकीय आय चार भागों में बांटी जाती थी। इसकी जानकारी हमे कौन देता है ?
उत्तर – हुआन सांग
प्रश्न 13 – अधिकारियों को वेतन और पुरस्कार के रूप में भूमिदान देने की सामंती प्रथा किस ने शुरू की थी ?
उत्तर – हर्ष ने
प्रश्न 14 – हर्ष के साम्राज्य में विधि – व्यवस्था अच्छी नहीं थी , किस विदेशी यात्री का माल – असबाब डाकुओं ने लूट लिए ?
उत्तर – हुआन सांग
प्रश्न 15 – किसके प्रभाव में पड़कर हर्ष ने बौद्ध धर्म को अपना लिया ?
उत्तर – हुआन सांग
प्रश्न 16 – हुआन सांग ने किसको कृषक कहा है ?
उत्तर – शूद्रों को
प्रश्न 17 – हुआन सांग के समय बौद्ध धर्म कितने संप्रदायों में बँटा हुआ था ?
उत्तर – 18
प्रश्न 18 – हर्ष के समय में नालंदा बौद्ध महाविहार बहुत विख्यात था , यहां किस संप्रदाय का बौद्ध दर्शन पढ़ाया जाता था ?
उत्तर – महायान
प्रश्न 19 – 670 ई में किस चीनी यात्री ने नालंदा की यात्रा की थी ?
उत्तर – इत्सिंग
प्रश्न 20 – हर्ष अपने आरंभिक जीवन में था –
उत्तर – शैव
प्रश्न 21 – हर्ष ने महायान संप्रदाय के सिद्धांतों के प्रचार के लिए किस जगह पर एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया जिसमे हर्ष पर घातक हमला किया गया ?
उत्तर – कन्नौज में
प्रश्न 22 – कन्नौज के बाद हर्ष ने किस जगह महासम्मेलन बुलाया, जहां हर्ष ने शरीर के वस्त्रों को छोड़ सभी वस्तुओं का दान कर दिया ?
उत्तर – प्रयाग में
प्रश्न 23 – हर्ष को किन तीन नाटकों की रचना का श्रय दिया जाता है ?
उत्तर – प्रियदर्शिका , रत्नावली और नागानंद
प्रश्न 24 – प्रियदर्शिका , रत्नावली और नागानंद नामक नाटकों का वास्तविक लेखक कौन था ?
उत्तर – धावक