Hindi notes for competition

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हिंदी भाषा का विकास

हिंदी भाषा विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है|

यह विश्व में तीसरी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है।

भारत के अलावा हिंदी और उसकी बोलियां विश्व के अन्य देशों में भी बोली, पढ़ी व लिखि जाती हैं।

हिंदी रूप या आकृति के आधार पर विश्लिष्ट और वियोगात्मक भाषा है।

भाषा – परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है। यह हिंदी ईरानी शाखा के आर्यभाषा उप शाखा के अंतर्गत वर्गीकृत है।

भारत में चार भाषा – परिवार है – भारोपीय, द्रविड़, आस्ट्रिक और चीनी – तिब्बती।

भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा – परिवार है।

भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा हिंदी है।

भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में बाटा जाता है :-

1 प्राचीन भारतीय आर्यभाषा ( वैदिक संस्कृत व लौकिक संस्कृत ) – 1500 ई.पू. – 500 ई.पू.

2 मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश ) – 500 ई.पू. – 1000 ई.पू.

3 आधुनिक भारतीय आर्यभाषा ( हिंदी और हिन्दीतर भाषाएं – उड़िया, बांग्ला, असमिय, मराठी, गुजराती, पंजाबी, सिंधी आदि ) – 1000 ई.पू. -अब तक

प्राचीन भारतीय आर्यभाषा

इस काल में वैदिक संस्कृत व लौकिक संस्कृत का प्रचलन था।

वैदिक संस्कृत


दूसरे नाम : छान्दस् ( यास्क, पाणिनी द्वारा प्रयुक्त नाम )


प्रयोग काल : 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक


इस काल में ऋग्वेद की रचना हुई थी जो वैदिक संस्कृत में है ।

लैंगिक संस्कृत


दूसरे नाम : संस्कृत, भाषा ( पाणिनी द्वारा प्रयुक्त नाम )


प्रयोग काल : 1000 ई. पू. से 500 ई. पू. तक


इस काल में पुराण अथर्ववेद उपनिषदों तथा विभिन्न ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हुई जो लौकिक संस्कृत में है ।

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मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा

1 प्रथम प्राकृत काल : पालि


प्रयोग काल : 500 ई. पू. से 1 ई.


भारत की प्रथम देश भाषा , भगवान बुद्ध के सारे उपदेश पालि भाषा में ही हैं ।

 

2 द्वितीय प्राकृत काल : प्राकृत


प्रयोग काल : 1 ई. से 500 ई. तक


भगवान महावीर के सारे उपदेश प्राकृत में ही है।

 

3 तृतीय प्राकृत काल : अपभंरश, अवहट्ट –


प्रयोग काल : 500 ई. -1000 ई. , 900-1100 ई तक


संक्रमणकालीन/ संक्रान्तिकालीन भाषा

आधुनिक भारतीय आर्यभाषा

1 प्राचीन हिंदी -> 1100 ई. – 1400 ई. तक

2 मध्यकालीन हिंदी -> 1400 ई. – 1850 ई. तक

3 आधुनिक हिंदी -> 1850 ई. – अब तक

संस्कृत को हिंदी की आदि जननी माना जाता है।

हिंदी संस्कृत, पाली, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश , अवहट्ट से गुजरती हुई प्राचीन/प्रारंभिक हिंदी का रूप ले लेती है।

सामान्यतः , हिंदी भाषा के इतिहास का आरंभ अपभ्रंश से माना जाता है।

हिंदी का विकास कम्र 

संस्कृत->पालि->प्राकृत->अपभ्रंश->अवहट्ट->प्राचीन/ प्रारंभिक हिंदी

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अपभ्रंश


अपभ्रंश भाषा का विकास 500 ई. से लेकर 1000 ई. के बीच हुआ |


इसमें साहित्य का आरंभ 8वी सदी ( स्वयंभू कवि के द्वारा ) से हुआ, जो 13वी सदी तक जारी रहा।


प्रमुख रचनाकार : स्वयंभू — अपभ्रंश का वाल्मीकि ( राम काव्य ), धनपाल ( ‘ भविस्सयत कहा ‘ – अपभ्रंश का पहला प्रबंध काव्य ), पुष्पदंत ( ‘ महापुराण ‘, ‘ जसहर चरिऊ ‘) आदि।


अपभ्रंश शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है ‘पतन’ किन्तु अपभृंश साहित्य से अभीष्ट है ।

अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास –

अपभ्रंश के रूप

शौरसेनी

अर्द्धमागधी

मागधी

खस

ब्राचड़

महाराष्ट्री

आधुनिक भारतीय आर्यभाषा

पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी गुजराती

पूर्वी हिंदी

बिहारी, उड़िया, बांग्ला, असमिया

पहाड़ी ( शौरसेनी से प्रभावित )

पंजाबी ( शौरसेनी से प्रभावित ) , सिन्धी

मराठी

अवहट्ट


अवहट्ट ‘ अपभ्रष्ट ‘ शब्द का विकृत रूप है।


इसे ‘ अपभ्रंश का अपभ्रंश ‘ या परवर्ती अपभ्रंश कह सकते है।


अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओ के बीच की संक्रमणकालीन/संक्रान्तिकालीन भाषा है।


प्रमुख रचनाकार : अब्दुर रहमान ( ‘ संनेह रासय ‘/ ‘ संदेश रासक ‘) , रोड कवि ( ‘ राउलवेल ‘ ) , विद्यापति (‘ कीर्तिलता ‘ ) ,दामोदर पंडित आदि।

पुरानी या प्राचीन/आरंभिक या प्रारंभिक / आदिकालीन हिंदी

प्राचीन हिंदी से अभिप्रिय है की अपभ्रंश-अवहट्ट के बाद की भाषा।


हिंदी का आदिकाल हिंदी भाषा का शिशु काल है।


यह वह काल था जब अपभ्रंश-अवहट्ट का प्रभाव हिंदी भाषा पर मौजूद था और हिंदी की बोलियों के निश्चित व स्पष्ट स्वरूप विकसित नहीं हुए थे।


‘ हिन्दी ‘ शब्द भाषा विशेष का वाचक नहीं है बल्कि यह भाषा – समूह का नाम है, जिसमें आज हिन्दी प्रदेश / क्षेत्र की 5 उपभाषाएँ तथा 17 बोलियाँ शामिल हैं।

हिन्दी शब्द की उत्पत्ति

‘ हिन्दी ‘ शब्द की व्युत्पत्ति भारत के उत्तर – पश्चिम में प्रवाहित सिंधु नदी से संबंधित है।


ईरान के साथ भारत के पुराने समय से काफी अच्छे संबंध थे। वे ‘ सिंधु ‘ को ‘ हिन्दू ‘ बोलते थे|


‘ हिन्दू’ से ‘ हिन्द ‘ बना और फिर बाद में ‘ हिन्द ‘ में फ़ारसी भाषा के संबंध कारक प्रत्यय ‘ ई ‘ लगने से ‘ हिन्दी ‘ बन गया है।


हिन्दी का अर्थ है :-‘ हिन्द का ‘।


इस प्रकार हिन्दी शब्द की उत्पत्ति हिन्द देश के निवासियों के अर्थ में हुई।


आगे चलकर यह शब्द ‘ हिन्द की भाषा ‘ के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।