जयशंकर प्रसाद
बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1890 ईस्वी में काशी के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद तंबाकू के प्रसिद्ध व्यापारी तथा साहित्य प्रेमी थे। इस प्रकार जयशंकर प्रसाद जी को जन्म से ही साहित्यिक वातावरण प्राप्त हुआ।
प्रसाद जी ने बाल्यावस्था में ही अपने माता-पिता के साथ देश के विभिन्न स्थानों की यात्रा की। कुछ समय बाद ही इनके पिता-माता का निधन हो गया। ऐसी अवस्था में जयशंकर प्रसाद जी की देखभाल का भार उनके भाई शंभूरत्न पर आ गया। उस समय जयशंकर प्रसाद जी क्वीन्स कॉलेज में सातवीं कक्षा में पढ़ते थे।
इसके पश्चात इनकी पढ़ाई का प्रबंध घर पर ही कर दिया गया। जयशंकर प्रसाद जी ने घर पर ही हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी की शिक्षा प्राप्त की। दुर्भाग्य से 17 वर्ष की अवस्था में इनके भाई भी इस संसार से चल बसे।
बाल्यकाल से ही इनकी कविता के प्रति रुचि जागृत हो गई थी। इन्हें कवियों का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। पहले जयशंकर प्रसाद जी ब्रज भाषा में कविताएँ लिखते थे, किंतु बाद में इन्होंने खड़ी बोली में कविताएँ लिखनी शुरू की। अपना पैतृक कार्य करते-करते भी इनका मन कविता में रमा रहता और अवसर मिलते ही ये अपने भावों की अनुभूतियो को दुकान के बहीखाते के पन्नों पर उतार दिया करते थे।
जयशंकर प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न तथा शिव के उपासक थे। प्रसाद जी ने एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार एवं निबंधकार के रूप में हिंदी-साहित्य की अपूर्व सेवा की। जयशंकर प्रसाद जी ने भारतीय इतिहास एवं दर्शन का अध्ययन किया।
प्रसाद जी हिंदी के महान कवि होने के साथ सर्वश्रेष्ठ नाटककार भी थे। इन्हें हिंदुस्तान ऐकेडमी और काशी नागरी प्रचारिणी ने पुरस्कृत किया। हिंदी-साहित्य को जयशंकर प्रसाद जी ने जो नवज्योति प्रदान की वह युगो तक हिंदी साहित्यकारों का पथ – प्रदर्शन करती रहेगी।
अपने जीवन-संघर्षों, आत्मीयजनों से बिछड़ना, पत्नी-वियोग आदि कष्टपूर्ण जीवन को झेलते हुए भी हिंदी काव्य जगत को इन्होंने काव्यरूपी बहुमूल्य रतन दिए हैं। अत्यधिक श्रम और क्षय रोग से पीड़ित रहने के कारण सन 1937 ईस्वी को मात्र 48 वर्ष की अल्पायु में ही इनका निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय
जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी-काव्य-जगत के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। इन्होंने अपनी नवीन काव्य शैली द्वारा एक नए युग का सूत्रपात किया। इन्होंने अपनी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूतियों का रहस्यवादी चित्रण करना प्रारंभ किया, जो इनके काव्य की एक प्रमुख विशेषता है।
हिंदी साहित्य के इतिहास में जयशंकर प्रसाद जी का काल ‘छायावादी युग’ के नाम से जाना जाता है। और प्रसाद जी ‘छायावादी युग के प्रवर्तक’ के नाम से जाने जाते है।
इनके द्वारा रचित काव्यकृति ‘कामायनी’ हिंदी साहित्य की अमर कृति है। इस कृति पर इन्हें ‘ हिंदी साहित्य सम्मेलन ‘ की ओर से ‘ मंगलाप्रसाद पारितोषिक ‘ प्राप्त हुआ था।
‘कामायनी’ में छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां और विशेषताएं दिखाई देती है। जयशंकर प्रसाद जी ने हंस और इंदु नामक पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कराया।
जयशंकर प्रसाद जी की रचनाएँ
काव्य – कामायनी, झरना, लहर,आँसू, चित्राधार, प्रेम-पथिक, कानन-कुसुम आदि।
नाटक – स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री आदि।
कहानी-संग्रह – आकाशदीप, इंद्रजाल, छाया और आँधी।
उपन्यास – कंकाल और तितली।
निबंध – काव्य और कला।
भाषा
जयशंकर प्रसाद जी की भाषा शुद्ध संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक, परिष्कृत और परिमार्जित खड़ी-बोली है। व्यंजना और लक्षण शब्द-शक्तियों के माध्यम से इन्होंने सूक्ष्म भावों को व्यक्त किया है।
इन्होंने तीनों गुणों ( प्रसाद, माधुर्य, ओज ) का यथासंभव प्रयोग किया है। सुगठित शब्द योजना इनके काव्य की विशेषता है। इनका वाक्य-विन्यास तथा शब्द चयन साहित्य में अद्वितीय है।
शैली
जयशंकर प्रसाद जी की शैली नवीनतम और मौलिक है। इनकी शैली पर विषय, स्वभाव, गंभीर-अध्ययन तथा व्यक्तित्व का पूर्ण प्रभाव है। इनकी शैली परिष्कृत, गंभीर और स्पष्ट है, किलष्ट होते हुए भी इनमें सौंदर्य है।
इन्होंने छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करके अपनी शैली को प्रभावपूर्ण और सरल बना दिया है। इनकी शैली में प्रयास के स्थान पर स्वाभाविकता का अधिक पुट है।
इनकी शैली में व्यंजकता, चित्रोपमता, लाक्षिणकता, ध्वन्यात्मकता, चुटिलापन, ओजस्विता, संवेदनशीलता आदि गुणों की छटा दर्शनीय है। इन्हेंने छंद के बंधनों को स्वीकार नहीं किया है।
साहित्य में स्थान
प्रसाद प्रसाद जी विराट एवं विलक्षण प्रतिभा वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। इनमें हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने की अपार संभावनाएं छिपी हुई थी।
इन्होंने हिंदी साहित्य में जिस विधा में भी अपनी लेखनी चलाई, उसी विधा में इन्हें अपार ख्याति प्राप्त हुई। इनकी कृतियां हिंदी साहित्य के अमूल्य रत्न हैं, जिनका हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है।
प्रसाद जी ने एक नए युग का सूत्रपात किया। कविता को सूक्ष्मता, सौंदर्य और रमणीयता के शिखर पर पहुंचाने वाले प्रसाद जी का हिंदी साहित्य जगत में सम्मानित और मूधर्न्य स्थान है।
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