जीवाणु
एंटोनी वान ल्यूवेनहॉक ( 1675 ई ) अपने ही द्वारा विकसित सूक्ष्मदर्शी की सहायता से जीवाणु ( bacteria) को सर्वप्रथम देखा। जीवाणु ( bacteria) सभी जगहों पर पाए जाते हैं तथा उनका आमाप सूक्ष्म होता है।
जीवाणु ( bacteria) का औसत आमाप 1.25 माइक्रो मीटर व्यास का होता है। सबसे छोटे जीवाणु ( bacteria) की लंबाई दण्डरूप जीवाणु ( bacteria) की होती है जो 0.15 माइक्रो मीटर होती है।
सबसे बड़ा सर्पिल आकार का जीवाणु ( bacteria) होता है जो 15 माइक्रोमीटर लंबा तथा 1.5 माइक्रोमीटर व्यास वाला होता है।
जीवाणु की संरचना
जीवाणु ( bacteria) की संरचना एक आदिम कोशिका जैसी होती है। उनके झिल्लीदर कोशिकांग नहीं होते तथा कोई विकसित केंद्रक नहीं होता है। कोशिका भित्ति कठोर होती है जिसका संघटन दूसरी कोशिकाओं की तुलना में अलग होता है।
कोशिकाद्रव्य कणिकामय , श्यान होता है एवं केंद्रिक पदार्थ तथा प्लाज्मा झिल्ली के बीच में पाया जाता है। यह कोलाइडी प्रकृति का होता है तथा इसमें 70 से 85% आद्रता की मात्रा होती है।
कुछ जीवाणु ( bacteria) अपनी सतह पर अवपंकी तथा गोंद – सा स्त्राव करते हैं। जब ये पदार्थ कोशिका सतह पर सघन तरीके से रहता है तो ये एक कैप्सूल बनाता है। परन्तु जब पदार्थ विकसित रूप में होता है तो यह एक चिपचिपी सतह बनाता है।
जीवाणुाओं के प्रकार
आकर के आधार पर जीवाणुाओं को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(i) बैसिलस या दंडाकर :- लैक्टोबैसिलस , बैसिलस तथा स्यूड़ामोनाज इनके कुछ उदाहरण है।
(ii) कोकस या गोलाकार :- स्ट्रेप्टोकोकस , सारसिना तथा माइक्रोकोकस इनके कुछ उदाहरण है।
(iii) सर्पाकार या सर्पिलाकार :- इन जीवाणुाओं का शरीर कोमा के आकार या सर्पिल दंड के आकार का होता है। विबरियों , ट्रिपोनिमा ,केम्फिलोवेक्टर इस वर्ग के कुछ सामान्य उदाहरण है। उनके शरीर पर एक या एक से अधिक पक्षाभ या कशाभ होती है।
ग्राम अभिरंजन के साथ उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर जीवाणुाओं को दो समूह में विभाजित किया जाता है ( ग्राम पॉजिटिव तथा ग्राम निगेटिव )। कुछ रंजक को बदध करते हैं जबकि कुछ अन्य ऐसे नहीं करते।
पोषण
जीवाणुाओं में पोषण के दो समूह होते हैं ,
( i ) स्वपोषित :- जो संश्लेषण के द्वारा अपना भोजन स्वयम बनाते हैं जैसे पौधे तथा
( ii ) परपोषित :- जो दूसरे जीवो द्वारा संश्लेषित भोजन का उपयोग करते हैं।
स्वपोषित को पुनः दो भागों में विभाजित किया जाता है :-
( i ) प्रकाश संश्लेषी :- ये सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेते हैं।
( ii ) रसायन संश्लेषी :- ये अकार्बनिक अवयवों से ऊर्जा प्राप्त करते है।
विषमपोषी जीवाणु ( bacteria) या तो मृतजीवी होते है या परपोषी होते है।
प्रजनन
अनुकूल तापमान , पोषण , आद्रता जैसे वातावरण में जीवाणु ( bacteria) की संख्या में बढ़ोतरी बहुत तेजी से होती है। प्रजनन का सबसे सामान्य तरीका है कोशिका विभाजन या द्वि – खंडन।
कुछ जीवाणु ( bacteria) प्रतिकूल वातावरण में बीजाणु ( अंत : बीजाणु ) उत्पन्न करते हैं। यह बनावट में अत्यधिक प्रतिरोधी होते हैं तथा इनका कोशिकाद्रव्य बहुत ही गाढ़ा होता है।
ये बीजाणु भित्ति और एक बीजाणु परत से बंद रहती है। जीवाणु ( bacteria) लैंगिक जनन क्रिया द्वारा भी उत्पन्न होते हैं।
निष्कर्ष
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