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केदारनाथ अग्रवाल

केदारनाथ अग्रवाल

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केदारनाथ अग्रवाल

हिंदी साहित्य की प्रगतिवादी काव्यधारा के कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म सन 1911 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन नामक गांव में हुआ था। इन्होंने स्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से तथा एल-एल बी. डी. ए. वी. कॉलेज कानपुर से किया था।

इन्होंने अपने गृह जनपद में पर्याप्त समय तक वकालत की तथा फौजदारी मुकदमें देखने वाले जिला प्रशासन के परामर्शदाता भी रहे। अग्रवाल जी को हिंदी सम्मेलन सम्मेलन प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ की मानद उपाधि तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी द्वारा डी. लिट. की उपाधि प्रदान की गई।

केदारनाथ अग्रवाल की साहित्यिक उपलब्धियों का सम्मान करते हुए इन्हें समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया। इन पुरस्कारों में ‘ सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार’ , उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ का ‘विशिष्ट सम्मान’ , ‘साहित्य अकादमी सम्मान’ , मध्य प्रदेश साहित्य परिषद भोपाल का ‘तुलसी सम्मान’ तथा मध्य प्रदेश साहित्य परिषद भोपाल का ‘मैथिलीशरण गुप्त’ सम्मान प्रमुख है।

केदारनाथ अग्रवाल जी का निधन 22 जून 2000 ईस्वी को हुआ।

साहित्यिक परिचय

केदारनाथ अग्रवाल जी ने 1930 ईस्वी से लेखन कार्य आरंभ किया। इन्होंने प्रगतिशील विचारवादी कविताओं की रचना की तथा देश और समाज के सजग प्रहरी के समान रचनाधर्मिता को सार्थकता प्रदान की।

केदारनाथ अग्रवाल जी प्रगतिवादी कवियों में अत्यंत कलात्मक सोच के कवि थे। इनके काव्य की विशेषता जनजीवन और उससे उपजी रागात्मकता का साक्षात्कार माननीय स्तर पर हुआ है।

‘नया साहित्य’ और ‘हंस’ पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं निरंतर छपती रही। इन्होंने कई रचनाओं का अनुवाद भी किया। केदारनाथ अग्रवाल जी ने विभिन्न विधियों में साहित्य की रचना, इनमें निबंध, यात्रा-वृतांत, पत्र-साहित्य के अतिरिक्त प्रमुख रूप से कविताएं सम्मिलित है।

इन्होने कुल 24 काव्य-संग्रह, दो यात्रा वृतांत, तीन निबंध संग्रह, एक अनुवाद तथा एक पत्र साहित्य की रचना की। इनका प्रथम काव्य-संग्रह ‘युग की गंगा’ का प्रकाशन सन 1947 ईस्वी में हुआ। इनके रचना-संग्रह का विस्तार 1947 से लेकर 1996 ईस्वी तक है।

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केदारनाथ अग्रवाल जी की रचनाएँ

केदारनाथ अग्रवाल जी का प्रथम काव्य-संग्रह ‘युग की गंगा’ सन 1947 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। इनके प्रमुख काव्य-कृतियों में योग की गंगा, नींद के बादल, लोक और आलोक, अपूर्वा, बोले बोल अबोल, अनहारी हरियाली, फूल नहीं रंग बोलते हैं, पंख और पतवार, हे मेरी तुम, मार प्यार के थापे, खुली ऑंखें खुले डैने तथा पुष्प-दीप आदि है।

भाषा

केदारनाथ अग्रवाल की भाषा में यथार्थ और छायावाद की भाषा का मिश्रण दिखाई पड़ता है। आम बोलचाल के व्यवहारिक भाषा – शैली , रचनात्मकता के विस्तार और नए प्रगतिशील मुहावरों के गठन ने इन्हें काव्य जगत में विशेष बना दिया।

इनका काव्य आम आदमी के जीवन से जुड़ा काव्य है, जिसके माध्यम से इन्होनें यथार्थ का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया।

शैली

यधपि केदारनाथ अग्रवाल जी ने अपनी कविताओं में आम बोलचाल की सरल और साधारण भाषा का प्रयोग किया है तथापि इनकी भावाभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावपूर्ण है।

वे अपनी रचनात्मक विस्तार में जगह-जगह प्रगतिवाद के प्रचलित मुहावरों का निषेध करते हुए नए ढंग की प्रगतिशीलता गढ़ते हैं जिसकी आस्था मनुष्य और जीवन में है।

जनता मे श्रम, सौंदर्य एवं जीवन की विविधता का वर्णन करने वाले केदारनाथ अग्रवाल जी हिंदी की प्रगतिवादी कविता का अलग ही चेहरा थे।
शैली के रूप में इन्होंने मुक्त शैली को ही प्राथमिकता दी है। इन्होंने नवीन प्रतीक, बिम्बों द्वारा मुक्त छंद और गीत छंदों का प्रयोग बड़ी सफलता के साथ किया है।

साहित्य में स्थान

प्रगतिवादी कवि केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक कविता के श्रेष्ठ कवि हैं। इनकी कविताओं में प्रकृति और मानव की संघर्षपूर्ण स्थिति का वर्णन किया गया है।

अपनी कविताओं के माध्यम से इन्होंने मानव-जीवन की प्रगतिशीलता, उनके प्रति आस्था तथा चेतना को जीवंतता प्रदान की है। इन्होने जनता के श्रम, सौंदर्य व जीवन के विविध रूपों का जो वर्णन अपने काव्य में किया है, वह हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय है।

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