मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम :- लगभग 200 ईसा- पूर्व मध्य एशिया और भारत के बीच घनिष्ठ और व्यापक संपर्क स्थापित हुए।
हिंद – यूनानी
लगभग 200 ईसा पूर्व से विदेशी आक्रमणों का क्रम शुरू हो गया।
सर्वप्रथम यूनानियों ने हिंदूकुश को पार किया। वे बैक्ट्रिया में राज करते थे।
चीन की महादीवार बन जाने के कारण शक लोग चीन की सीमाओं से बाहर कर दिए गए। अब उन लोगों ने अपना ध्यान पड़ोसी यूनानियों और पार्थियनों की ओर मोड़ा।
शकों के दबाव के चलते बैक्ट्रियाई यूनानी भारत पर चढ़ाई करने के लिए मजबूर हो गए।
अशोक के कमजोर उत्तराधिकारी इन आक्रमणों को रोकने में असमर्थ थे।
भारत पर आक्रमण सबसे पहले उन यूनानियों ने किए , जो ‘ हिन्द – यूनानी ‘ या ‘ बैक्ट्रियाई यूनानी ‘ कहलाते हैं। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
ईसा – पूर्व दूसरी सदी के आरंभ में हिन्द – यूनानियों ने पश्चिमोत्तर भारत के विशाल क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यह क्षेत्र सिकंदर द्वारा जीते गए क्षेत्र से भी बड़ा था।
कहा जाता है कि हिन्द – यूनानी अयोध्या और पाटलिपुत्र तक बढ़ गए थे। परंतु वे लोग भारत में मिलजुल कर शासन स्थापित नहीं कर सके।
दो यूनानी राजवंशों ने एक ही समय में पश्चिमोत्तर भारत में समानांतर शासन किया।
सबसे विख्यात हिन्द – यूनानी शासक ‘ मिनांदर ‘ ( 165 – 145 ईसा पूर्व ) हुआ जिसे ‘ मिलिंद ‘ के नाम से भी जाना जाता है। उसकी राजधानी पंजाब में ‘ शाकल ‘ ( आधुनिक सियालकोट ) में थी। उसने गंगा – यमुना दोआब पर आक्रमण किया।
मिनांदर को नागसेन ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। नागसेन ‘ नागार्जुन ‘ के नाम से भी जाना जाता है।
मिनांदर ने नागसेन से बौद्ध धर्म पर अनेक प्रश्न पूछे। ये प्रश्न और नागसेन द्वारा दिए गए उन के उत्तर एक पुस्तक के रूप में संगृहीत है जिसका नाम है ‘ मिलिंदपञ्हो ‘ अर्थात मिलिंद के प्रश्न।
भारत के इतिहास में हिन्द – यूनानी शासन का महत्त्व इसलिए है कि यूनानी शासकों ने भारी संख्या में सिक्के जारी किए। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
हिन्द – यूनानी भारत के पहले शासक हुए जिनके जारी किए गए सिक्कों के बारे में निश्चित रूप से कहा जाता है कि सिक्के किन-किन राजाओं के हैं।
पूर्व के आहत मुद्राओं का संबंध किसी राजवंश से निश्चित रूप से जोड़ना संभव नहीं है।
सबसे पहले भारत में हिन्द – यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए , पर इनकी मात्रा कुषाणों के शासन में जोर से बढ़ी।
हिन्द – यूनानी शासको ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में यूनान की कला चलाई जिसे ‘ हेलेनिस्टिक ‘ आर्ट कहते है। यह गैर यूनानियों के साथ उनके संपर्क का परिणाम था। भारत में गान्धार कला इसका उत्तम उदाहरण है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
शक
यूनानियों के बाद शक आए और उन्होंने यूनानियों से भी बड़े भाग पर कब्जा किया।
शकों की पांच शाखाएं थी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भाग में थी।
शकों की एक शाखा अफगानिस्तान में बस गई। दूसरी शाखा पंजाब में बसी जिसकी राजधानी तक्षशिला में थी। तीसरी शाखा मथुरा में बसी। चौथी शाखा ने अपनी सत्ता पश्चिम भारत में स्थापित की जहां उसने ईसा की चौथी सदी के आरंभ तक शासन किया। शकों की पांचवी शाखा ने ऊपरी दक्कन पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
लगभग 57 – 58 ईसा पूर्व में उज्जैन के एक राजा ने जो अपने को ‘ विक्रमादित्य ‘ कहता था , शकों को युद्ध में पराजित किया। 57 ईसा पूर्व में शकों पर उसकी विजय के परिणामस्वरूप ‘ विक्रम संवत् ‘ प्रारंभ हुआ।
भारतीय इतिहास में 14 विक्रमादित्यों के बारे में जानकारी मिलती है। गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक विख्यात ‘ विक्रमादित्य ‘ था।
भारतीय राजा ( खासकर पश्चिमी भारत और पश्चिमी दक्कन के ) ईसा की 12वीं सदी तक ‘ विक्रमादित्य ‘ उपाधि का प्रयोग करते रहे। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
पश्चिम भारत में राज्य स्थापित करने वाले शकों ने लम्बे समय ( लगभग चार सदियों तक ) तक शासन किया। वे गुजरात में चल रहे समुद्री व्यापार से लाभान्वित हुए और उन्होंने भारी संख्या में चांदी के सिक्के चलाए।
सबसे विख्यात शक शासक ‘ रुद्रदामन प्रथम ‘ ( 130 -150 ई ) था जिसका शासन सिंध , कोंकण , नर्मदा घाटी , मालवा , काठियावाड़ और गुजरात के बड़े भाग पर था।
रुद्रदामन प्रथम ने सिंचाई के काम में आने वाली मौर्यकालीन ‘ सुदर्शन झील ‘ का जीर्णोद्धार किया।
रुद्रदामन ने सर्वप्रथम विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख जारी किया। पूर्व के जो भी लम्बे अभिलेख इस देश में पाए गए है , सभी प्राकृत भाषा में रचित है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
पार्थियाई या पह्लव
पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्थियाई लोगो का आधिपत्य कायम हुआ।
प्राचीन भारत के अनेक संस्कृत ग्रंथों में इन दोनों जनों के एक साथ उल्लेख ‘ शकपह्लव ‘ के रूप में मिलते हैं।
शकों और पार्थियनों ने कुछ समय तक इस देश में समानांतर शासन किया।
पार्थियाई लोगों का मूल निवास स्थान ईरान में था , जहां से वे भारत आए। ये लोग ईसा की पहली सदी में पश्चिमोत्तर भारत के एक छोटे से भाग पर ही सत्ता जमा सके।
सबसे प्रसिद्ध पार्थियाई राजा ‘ गोंडोफनिर्स ‘ हुआ जिसके शासनकाल में सेंट टॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए भारत आया था।
शकों की तरह पार्थियाई भी भारतीय समाज के अंग बन गए। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
कुषाण
पार्थियाईयों के बाद कुषाण आए , जो ‘ यूची ‘ और ‘ तोखारी ‘ भी कहलाते थे।
यूची नमक कबीला पांच भागों में बंट गया जिसमें से एक ‘ कुषाण ‘ भी थे।
कुषाण उत्तरी मध्य एशिया के हरित मैदानों के खानाबदोश लोग थे और चीन के पड़ोस में रहते थे।
कुषाणों ने पहले बैक्ट्रिया और उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा किया और वहां से शकों को भगा दिया। अंतत: उन्होंने निचली सिंधु घाटी तथा गंगा के मैदान के अधिकतर हिस्सों पर भी अधिकार कर लिया।
कुषाणों का साम्राज्य अमुदरिया से गंगा तक , मध्य एशिया के खुरासन से उत्तर प्रदेश के वाराणसी तक फैल गया। इसके नाना प्रकार के लोगों और संस्कृतियों के आपस में घुल – मिल जाने का विलक्षण अवसर मिला। इससे एक ऐसी संस्कृति ने जन्म लिया जो आज के 9 देशों में फैली हुई है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
हम कुषाणों के दो राजवंश पाते हैं जो एक के बाद एक आए। पहले राजवंश की स्थापना कैडफाइसिस नामक सरदारों के एक घराने ने की। इस वंश में दो राजा हुए जिन्होंने 50 ई से 28 वर्षों तक शासन किया।
उपरोक्त राजवंश का पहला शासक ‘ कैडफाइसिस प्रथम ‘ हुआ जिसने रोमन सिक्कों की नकल करके तांबे के सिक्के ढ़लवाए। दूसरा राजा ‘ कैडफाइसिस द्वितीय ‘ हुआ जिसने बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं जारी की और अपना राज्य सिंधु नदी के पूर्व में फैलाया।
कैडफाइसिस राजवंश के बाद कनिष्क राजवंश आया जिसने ऊपरी भारत और निचली सिंधु घाटी में अपना प्रभुत्व फैलाया।
आरंभिक कुषाण राजाओं ने बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं जारी की जो शुद्धता में गुप्तों की स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट हैं।
कुषाणों की स्वर्ण मुद्राएं तो मुख्यत: सिंधु के पश्चिम में ही पाई गई हैं , पर उनके अभिलेख न केवल पश्चिमोत्तर भारत और सिंधु में ही , बल्कि मथुरा , श्रावस्ती , कौशांबी और वाराणसी तक में बिखरे पड़े हैं।
मथुरा में कुषाणों के सिक्के , अभिलेख , संरचनाएं और मूर्तियां मिली हैं उनसे प्रकट होता है कि मथुरा भारत में कुषाणों की द्वितीय राजधानी थी। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
कुषाणों की पहली राजधानी आधुनिक पाकिस्तान में अवस्थित ‘ पुरुषपुर ‘ या पेशावर में थी। वहां कनिष्क ने एक मठ और विशाल स्तूप का निर्माण कराया।
कनिष्क सर्वाधिक विख्यात कुषाण शासक था। उसे भारत की सीमाओं के बाहर चीनियों से हार खानी पड़ी।
कनिष्क ने 78 ईस्वी में एक संवत चलाया जो ‘ शक संवत ‘ कहलाता है और भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
उसने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया और कश्मीर में बौद्धों का चौथा सम्मेलन आयोजित किया जिसमें बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को अंतिम रूप दिया गया।
कनिष्क कला और संस्कृत साहित्य का भी महान संरक्षक था। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
कनिष्क ने उत्तराधिकारी पश्चिमोत्तर भारत पर लगभग 230 ई तक राज करते रहे और उनमें से कुछ ने तो शुद्ध भारतीय नाम भी धारण कर लिए , जैसे वासुदेव।
ईसा की तीसरी सदी के मध्य में अफगानिस्तान और सिंधु के पश्चिम के क्षेत्र ईरान के ‘ सासनियों ‘ ने कुषाणों से छीन लिए। परंतु , भारत में कुषाण राजवंश लगभग 100 वर्षों तक बना रहा।
ख्वारिज्म के ‘ टोपरक – कला ‘ नामक स्थान से विशाल कुषाण प्रासाद खुदाई में निकला है जो तीसरी – चौथी सदियों का है। इसमें प्रशासनिक अभिलेखागार था जहां आरामाइक लिपि और ख़्वारिज़्मी में भाषा में लिखे पुरालेख और दस्तावेज रखे हुए थे। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
मध्य एशिया से संपर्कों के प्रभाव
भवन और मृदभांड
शक – कुषाण काल में भवन – निर्माण के कार्यों में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
उत्खननों से प्राप्त संरचना से पता चलता है की फर्श बनाने में पकी ईंटों का प्रयोग किया गया है , खपरों ( टाइलों ) का प्रयोग फर्श और छत दोनों में किया गया है। लेकिन सुर्खी और खपरा शायद बाहर से अपनाई गई वस्तु नहीं थे।
इस काल की एक विशेषता है ईंटों के कुँओं का निर्माण।
कुषाण काल का अपना खास मृदभांड है लाल बर्तन , जो सादा भी है और पालिशदार भी और बनावट में मध्यम से उत्तम तक। इस समय के असाधारण बर्तन है फुहारों और टोटियों वाले पात्र।
इन बर्तनों में मध्य एशिया में इसी काल के कुषाण स्तरों में पाए गए सूक्ष्म बनावट वाले मृदभांडों से समानता है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
उत्कृष्ट अश्वारोही सेना
शक और कुषाण सदा के लिए भारतवासी हो गए और अपने को भारतीय संस्कृति की धारा में पूर्णत: विलीन कर दिया। चूंकि उनके पास अपनी लिपि , लिखित भाषा और कोई सुव्यवस्थित धर्म नहीं था , अत उन्होंने संस्कृति के इन उपादानों को भारत से लिया।
उन्होंने बड़े पैमाने पर उत्तम अश्वारोही सेना और अश्वारोहण की परंपरा चलाई। उन्होंने लगाम और जीन का प्रयोग प्रचलित किया।
शक और कुषाण विलक्षण अश्वारोही थे। अफगानिस्तान के बेगराम से कुषाण काल की मिट्टी की पकी घुड़सवार की मूर्तिकाएं मिली है।
वे रस्सी का बना एक प्रकार का अंगूठा – रकाब लगते थे जिससे घुड़सवारी में सुविधा होती थी।
शकों और कुषाणों ने पगड़ी , कुरती , पाजामा और भारी लंबे कोट चलाए।
मध्य एशिया वालों ने यहां टोपी , शिरस्त्राण और बूट चलाए जिनका इस्तेमाल योद्धा लोग करते थे। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
व्यापार और खेती
मध्य एशियाई लोगों के आने से मध्य एशिया और भारत के बीच घने संपर्क स्थापित हुए।
भारत को मध्य एशिया के अल्ताई पहाड़ों से भारी मात्रा में सोना प्राप्त हुआ। रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार के माध्यम से भी भारत को सोना प्राप्त हुआ।
कुषाणों ने रेशम के उस प्रख्यात मार्ग पर नियंत्रण कर लिया जो चीन से चलकर कुषाण साम्राज्य में शामिल मध्य एशिया और अफगानिस्तान से गुजरते हुए ईरान और पश्चिम एशिया जाता था।
‘ रेशम मार्ग ‘ कुषाणों की आय का एक बड़ा स्रोत था और वे इस मार्ग पर व्यापारियों से उगाही गई चुंगी की बदौलत ही विशाल और समृद्ध साम्राज्य स्थापित कर सके। भारत में बड़े पैमाने पर सोने का सिक्का चलाने वाले प्रथम शासक कुषाण ही थे।
कुषाणों ने खेती को भी बढ़ाया। कुषाण काल की विस्तृत सिंचाई के पुरातात्विक अवशेष पाकिस्तान , अफगानिस्तान और पश्चिमी मध्य एशिया में पाए जाते हैं। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
राज्य व्यवस्था
मध्य एशियाई विजेताओं ने अनेक छोटे-छोटे देशी राजाओं पर अपना शासन लाद दिया जिससे सामंती व्यवस्था के विकास में सहायता मिली।
कुषाण राजाओं ने ‘ महाराजाधिराज ‘ की गौरवपूर्ण उपाधि ग्रहण की।
शकों और कुषाणों ने इस विचार को बढ़ावा दिया कि राजा देवता का अवतार होता है।
कुषाण राजा ‘ देवपुत्र ‘ कहलाते थे। यह उपाधि कुषाणों ने चीनियों से ली जो अपने राजा को ‘ स्वर्ग का पुत्र ‘ कहते थे।
स्मृतिकार मनु ने कहा है कि राजा बच्चा ही क्यों ना हो उसका आदर किया जाना चाहिए , क्योंकि वह मानव रूप धारण करके शासन करने वाला देवता होता है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
कुषाणों ने राज्य – शासन में क्षत्रप प्रणाली चलाई।
कुषाणों ने दो अनुवांशिक राजाओं की ‘ संयुक्त शासन – प्रणाली ‘ चलायी जिसमें एक ही समय में एक ही राज्य पर दो राजाओं का शासन होता था। हम पिता और पुत्र दोनों को एक ही समय संयुक्त रूप से शासन करते पाते हैं।
यूनानियों ने सेनानी – शासन ( मिलिटरी गवर्नरशिप ) की प्रथा चलाई। वे इसके लिए शासक सेनानियों की नियुक्ति करते थे जिसे ‘ स्ट्रेटेगोस ‘ कहा जाता था।
सेनानी शासकों की आवश्यकता विजित प्रजा पर नए राजाओं का प्रभाव जमाने के लिए होती थी। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
भारतीय समाज में नए तत्व
यूनानी , शक , पार्थियन और कुषाण सभी अंततः भारत में अपनी – अपनी पहचान खो बैठे और कालांतर में वे पूरे भारतीय बन गए।
उपरोक्त सभी भारतीय समाज में योद्धाओं के वर्ग में अर्थात क्षत्रिय वर्ण में समाविष्ट हुए।
स्मृतिकार मनु ने कहा है कि अपने कर्तव्यों से च्युत हुए अधम क्षत्रिय ही शक और पह्लव हुए। दूसरे शब्दों में , उन्हें द्वितीय श्रेणी के क्षत्रियों का स्थान मिला।
भारतीय समाज में विदेशियों का आत्मसातकरण जितना अधिक मौर्योत्तर काल में हुआ उतना शायद प्राचीन भारत के इतिहास में और किसी काल में नहीं हुआ। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
धार्मिक विकास
कई विदेशी शासको ने वैष्णव संप्रदाय को अपना लिया।
यूनानी राजदूत ‘ हीलियोडोरस ‘ ने मध्य प्रदेश स्थित विदिशा में ईसा – पूर्व लगभग दूसरी सदी के मध्य में वासुदेव की आराधना के लिए एक स्तंभ खड़ा किया।
‘ मिलिंदपान्हों ‘ मौर्योत्तर काल के बौद्धिक इतिहास का अच्छा स्रोत है।
कुषाण शासक शिव और बुध दोनों के उपासक थे। कुषाण मुद्राओं पर इन दोनों देवताओं के चित्र है।
कई कुषाण शासक वैष्णव हो गए जैसे – ‘ वासुदेव ‘ जिनका नाम विष्णु के अवतार कृष्ण का पर्यायवाची है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
बौद्ध महायान संप्रदाय का उद्भव
मौर्योत्तर काल में भारतीय धर्म में बहुत परिवर्तन हुए। इसके दो प्रमुख कारण थे – व्यापारियों और शिल्पियों के कार्यकलाप में असाधारण तेजी का आना और मध्य एशिया से भारी संख्या में नए-नए लोगों का आगमन।
उपरोक्त कारणों का विशिष्ट प्रभाव बौद्ध धर्म पर पड़ा। बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ व्यापारियों से नगद दान लेने का लोभ दबा नहीं पाए।
आंध्र प्रदेश के ‘ नागार्जुनकोंडा ‘ के मठ – क्षेत्रों में भारी संख्या में सिक्के मिले हैं।
बौद्धों ने उन विदेशियों का भी स्वागत किया जो मांस खाते थे।
अब तपस्वी की तरह जीवन जीने वाले भिक्षुओं और भिक्षुणियों के दैनिक जीवन के नियमों में ढलाई आ गई। कुछ भिक्षु संघ को छोड़कर गृहस्थ जीवन में लौट आए। भिक्षु अब सोना – चाँदी दान में लेने लगे , मांसाहार करने लगे और उत्तम कपड़े पहनने लगे। बौद्ध धर्म का यह नया रूप ‘ महायान ‘ कहलाया। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
बौद्ध धर्म के पुराने शुद्धचारी रूप में , बुद्ध से संबंधित कुछ वस्तुओं की उनके प्रतीक के रूप में पूजा होती थी। ईस्वी सन के आरंभ में इन वस्तुओं की जगह बुद्ध की प्रतिमा ने ले लिया।
महायान का उदय होने पर बौद्ध धर्म का पुराना शुद्धाचारी संप्रदाय ‘ हीनयान ‘ कहलाने लगा।
कनिष्क महायान का महान संरक्षक था। उसने कश्मीर में बौद्धों की एक परिषद आयोजित की।
परिषद के सदस्यों ने तीन लाख शब्दों में एक ग्रंथ की रचना की जिसमें तीनों ‘ पिटकों ‘ या बौद्ध साहित्य के संग्रहों की पूरी तरह व्याख्या की गई। कनिष्क ने इस ग्रंथ को लाल ताम्रपत्रों पर खुदवाया तथा ताम्रपत्रों को प्रस्तर – पात्र में रखकर उसके ऊपर स्तूप बनवाया।
कनिष्क ने बुद्ध के स्मारक स्वरूप और भी अनेक स्तूप खड़े किए। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
कला की गंधार और मथुरा शैली
कुषाण साम्राज्य ने विभिन्न शैलियों और देशों में प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों और अन्य कारीगरों को इकट्ठा किया। इससे कला की कई नई शैलियाँ विकसित हुई , जैसे गांधार और मथुरा शैली।
मध्य एशिया से जो मूर्तिशिल्प की कृतियाँ प्राप्त हुई है उनमें बौद्ध धर्म के प्रभाव की छाया में भारतीय और स्थानीय दोनों लक्षणों का मिश्रण पाया जाता है।
भारतीय शिल्पकारों का , विशेषकर भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत गंधार में , मध्य एशियाई, यूनानी और रोमन शिल्पकारों के साथ संपर्क हुआ। इससे नई कला शैली का उदय हुआ , जिसमें बुद्ध की प्रतिमाएं यूनान और रोम की मिश्रित शैली में बनाई गई।
गांधार कला का प्रभाव मथुरा में भी पहुंचा , हालांकि वह मूलत: देसी कला का केंद्र था।
मथुरा में बुध की विलक्षण प्रतिमाएं बनी , परंतु इसकी ख्याति कनिष्क के शिरोहिन खड़ी मूर्ति को लेकर है जिसके निचले भाग में कनिष्क का नाम खुदा है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
मथुरा में वर्धमान महावीर की भी कई प्रस्तर – मूर्तियां बनी। इसकी गुप्त – पूर्व मूर्तियों और अभिलेखों में कृष्ण अपेक्षित है जबकि मथुरा उनका जन्म स्थान और बाल – लीला भूमि मानी जाती है।
कला की मथुरा शैली ईस्वी सन की आरंभिक सदियों में विकसित हुई , और इसकी लाल बलुआ पत्थर की कृतियाँ मथुरा के बाहर में पाई जाती है।
संप्रति मथुरा संग्रहालय में कुषाण कालीन मूर्तियों का भारत भर में सबसे अधिक संग्रह है।
महाराष्ट्र में चट्टानों को काटकर सुंदर बौद्ध गुफाएं बनाई गई।
आंध्र प्रदेश में नागार्जुनकोंडा और अमरावती बौद्ध कला के महान केंद्र बन गए , जहां बुद्ध के जीवन की कथाएं अनगिनत पटटों पर चित्रित की गई है।
बौद्ध धर्म से संबंधित सबसे प्राचीन पट्टचित्र गया , साँची , भरहुत में पाए जाते हैं , जो ईसा – पूर्व दूसरी सदी के हैं। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
साहित्य और विद्या
विदेशी राजाओं ने संस्कृत – साहित्य का संरक्षण – सम्पोषण किया।
काव्य – शैली का प्रथम नमूना रुद्रदामन का काठियावाड़ में जुनागढ़ अभिलेख है जिसका समय लगभग 150 ई है। इसके बाद से अभिलेख परिष्कृत संस्कृत भाषा में लिखे जाने लगे।
प्राकृत भाषा में अभिलेखों को लिखने की परंपरा ईसा की चौथी सदी या उसके आगे तक चलती रही।
अश्वघोष को कुषाणों का संरक्षण प्राप्त था। उसने बुद्ध की जीवनी ‘ बुद्धचरित ‘ लिखी। उसने ‘ सौन्दरनन्द ‘ नामक काव्य भी लिखा जो संस्कृत काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
महायान बौद्ध संप्रदाय की प्रगति के फलस्वरूप अनेक ‘ अवदानों ‘ की रचना हुई। कई अवदान बौद्धों की मिश्रित संस्कृत भाषा में लिखे गए है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
अवदानों का अन्यतम उद्देश्य लोगों को महायान के उपदेश के अवगत कराना है। इस कोटि की प्रमुख कृतियां हैं – महावस्तु और दिव्यावदान।
यूनानियों ने पर्दे का प्रचलन प्रारंभ कर भारतीय नाट्यकला के विकास में योगदान दिया। चूंकि परदा यूनानियों की देन था इसलिए वह ‘ यवनिका ‘ के नाम से विदित हुआ।
धार्मिकेत्तर साहित्य का सबसे अच्छा उदाहरण है – वात्स्यायन का कामसूत्र। इसका काल ईसा की तीसरी सदी माना जाता है। यह रतिशास्त्र या कामशास्त्र की प्राचीनतम पुस्तक है जिसमे रति और प्रीति का विवेचन किया गया है।
कामसूत्र में नागरजीवी पुरुष का जीवन चित्रित किया गया है , जो शहरी जीवन के विकास – काल की झांकी देता है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
मौर्योत्तर काल में यूनानियों के संपर्क से खगोल और ज्योतिष शास्त्र में खूब प्रगति हुई।
यूनानी शब्द ‘ होरोस्कोप ‘ संस्कृत में होराशास्त्र हो गया जिसका अर्थ संस्कृत में फलित ज्योतिषशास्त्र होता है।
यूनानी सिक्के जो आकृति और छाप में उत्कृष्ट हैं , वस्तुत: आहत मुद्राओं के ही सुधरे रूप हैं।
यूनानियों ने ब्राह्मी लिपि अपनाई और अपने सिक्कों पर कई भारतीय रूपांक चलाए।
कुत्ते , मवेशी , मसाले और हाथी दांत की वस्तुएं यूनानी लोग यहां से बाहर भेजते थे।
भारतीयों ने यूनानियों से चिकित्साशास्त्र , वनस्पतिशास्त्र और रसायनशास्त्र में कई महत्वपूर्ण चीज प्राप्त नहीं की। इन तीनों शास्त्रों का विवेचन चरक और सुश्रुत ने किया है। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
‘ चरकसंहिता ‘ में उन अनगिनत वनस्पतियों के नाम है जिनसे रोग की चिकित्सा के लिए दवाएँ बनाई जाती थी।
रोगों के इलाज के लिए प्राचीन भारतीय वैद्य मुख्यतः पौधों पर ही निर्भर थे जिन्हें संस्कृत में औषधि कहते हैं।
कनिष्क को पतलून और चुस्त पायजामा और लंबे जूतों में चित्रित किया गया है। चमड़े के जूते बनाने का प्रचलन भारत में संभवत: इसी कल से आरंभ हुआ।
कुषाणों ने भारत में जो सोने के जो सिक्के ढलवाए वे रोमन स्वर्ण मुद्राओं की नकल थे।
सन 27 – 28 ईस्वी में रोमन सम्राट ‘ आगस्टस ‘ और सन 110 – 120 ईस्वी में रोमन सम्राट ‘ ट्राजन ‘ के दरबार में भारत के राजदूत भेजे गए थे।
इस काल में शीशे के काम पर विदेशी विचारों और तरीकों का विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। प्राचीन भारत में किसी भी अन्य काल में शीशे के काम में ऐसी प्रगति नहीं हुई जैसी इस काल में। मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
MCQ
प्रश्न 1 – सर्वप्रथम किसने हिंदूकुश पार कर भारत पर आक्रमण किए ?
उत्तर – यूनानियों ने
प्रश्न 2 – किन के दबाव के चलते बैक्ट्रियाई यूनानी भारत पर चढ़ाई करने के लिए मजबूर हो गए ?
उत्तर – शकों के
प्रश्न 3 – भारत पर आक्रमण सबसे पहले उन यूनानियों ने किए , जो कहलाते हैं –
उत्तर – ‘ हिन्द – यूनानी ‘ या ‘ बैक्ट्रियाई यूनानी ‘
प्रश्न 4 – सबसे विख्यात हिन्द – यूनानी शासक कौन था जिसे नागसेन ने बौद्ध धर्म की दीक्षा दी ?
उत्तर – मिनांदर
प्रश्न 5 – मिनांदर को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया –
उत्तर – नागसेन ने
प्रश्न 6 – नागार्जुन के नाम से जाना जाता है –
उत्तर – नागसेन को
प्रश्न 7 – मिनांदर ने नागसेन से बौद्ध धर्म पर अनेक प्रश्न पूछे। ये प्रश्न और नागसेन द्वारा दिए गए उन के उत्तर एक पुस्तक के रूप में संगृहीत है जिसका नाम है –
उत्तर – ‘ मिलिंदपञ्हो ‘ अर्थात मिलिंद के प्रश्न
प्रश्न 8 – सबसे पहले भारत में सोने के सिक्के किसने जारी किए ?
उत्तर – हिन्द – यूनानियों ने
प्रश्न 9 – भारत के पहले शासक , जिनके जारी किए गए सिक्कों के बारे में निश्चित रूप से कहा जाता है कि सिक्के किन-किन राजाओं के हैं –
उत्तर – हिन्द – यूनानी
प्रश्न 10 – हिन्द – यूनानी शासको ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में यूनान की कला चलाई जिसे कहा जाता है ?
उत्तर – हेलेनिस्टिक आर्ट
प्रश्न 11 – भारत में हेलेनिस्टिक आर्ट का उत्तम उदाहरण है ?
उत्तर – गान्धार कला
प्रश्न 12 – विक्रम संवत् का आरंभ माना जाता है ?
उत्तर – 57 ईसा पूर्व
प्रश्न 13 – भारतीय इतिहास में विक्रमादित्यों की संख्या कितनी है ?
उत्तर – 14
प्रश्न 14 – किस शक शासक ने मौर्यकालीन ‘ सुदर्शन झील ‘ का जीर्णोद्धार कराया ?
उत्तर – रुद्रदामन प्रथम
प्रश्न 15 – किस शासक ने सर्वप्रथम विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख जारी किया ?
उत्तर – रुद्रदामन ने
प्रश्न 16 – किस पह्लव शासक के शासनकाल में सेंट टॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए भारत आया था ?
उत्तर – गोंडोफनिर्स
प्रश्न 17 – कुषाणों का संबंध किस कबीले से था ?
उत्तर – यूची
प्रश्न 18 – किस शासक ने रोमन सिक्कों की नकल करके तांबे के सिक्के ढ़लवाए ?
उत्तर – कैडफाइसिस प्रथम
प्रश्न 19 – किन राजाओं ने बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं जारी ?
उत्तर – कुषाण
प्रश्न 20 – भारत में कुषाणों की द्वितीय राजधानी थी –
उत्तर – मथुरा
प्रश्न 21 – कुषाणों की पहली राजधानी थी –
उत्तर – पुरुषपुर
प्रश्न 22 – सर्वाधिक विख्यात कुषाण शासक था –
उत्तर – कनिष्क
प्रश्न 23 – किस शासक ने 78 ईस्वी में एक संवत चलाया जो ‘ शक संवत ‘ कहलाता है और भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है ?
उत्तर – कनिष्क
प्रश्न 24 – किस शासक ने कश्मीर में बौद्धों का चौथा सम्मेलन आयोजित किया जिसमें बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को अंतिम रूप दिया गया ?
उत्तर – कनिष्क
प्रश्न 25 – महाराजाधिराज की गौरवपूर्ण उपाधि ग्रहण की –
उत्तर – कुषाण राजाओं ने
प्रश्न 26 – कुषाण राजा ‘ देवपुत्र ‘ कहलाते थे। यह उपाधि कुषाणों ने किससे प्राप्त की ?
उत्तर – चीनियों से
प्रश्न 27 – भारत को मध्य एशिया के किन पहाड़ों से भारी मात्रा में सोना प्राप्त हुआ ?
उत्तर – अल्ताई
प्रश्न 28 – राज्य – शासन में क्षत्रप प्रणाली चलाई –
उत्तर – कुषाणों ने
प्रश्न 29 – सेनानी – शासन ( मिलिटरी गवर्नरशिप ) की प्रथा चलाई –
उत्तर – यूनानियों ने
प्रश्न 30 – किस स्मृतिकार ने कहा है कि अपने कर्तव्यों से च्युत हुए अधम क्षत्रिय ही शक और पह्लव हुए ?
उत्तर – मनु
प्रश्न 31 – किस यूनानी राजदूत ने मध्य प्रदेश स्थित विदिशा में ईसा – पूर्व लगभग दूसरी सदी के मध्य में वासुदेव की आराधना के लिए एक स्तंभ खड़ा किया ?
उत्तर – हीलियोडोरस
प्रश्न 32 – कुषाण राजा कनिष्क बौद्ध धर्म के किस संप्रदाय का संरक्षक था ?
उत्तर – महायान
प्रश्न 33 – किस जगह से कनिष्क के शिरोहिन खड़ी मूर्ति मिली है ?
उत्तर – मथुरा
प्रश्न 34 – कुषाण कालीन मूर्तियों का भारत भर में सबसे अधिक संग्रह किस संग्रहालय में है ?
उत्तर – मथुरा संग्रहालय
प्रश्न 35 – अश्वघोष को किन शासको का संरक्षण प्राप्त था ?
उत्तर – कुषाणों का
प्रश्न 36 – बुद्धचरित और सौन्दरनन्द किस की रचना है ?
उत्तर – अश्वघोष की
प्रश्न 37 – पर्दे का प्रचलन प्रारंभ कर भारतीय नाट्यकला के विकास में योगदान दिया –
उत्तर – यूनानियों ने
प्रश्न 38 – किस ग्रंथ में नागरजीवी पुरुष का जीवन चित्रित किया गया है , जो शहरी जीवन के विकास – काल की झांकी देता है ?
उत्तर – वात्स्यायन का कामसूत्र
प्रश्न 39 – यूनानी शब्द ‘ होरोस्कोप ‘ संस्कृत में होराशास्त्र हो गया जिसका अर्थ संस्कृत में होता है –
उत्तर – फलित ज्योतिषशास्त्र
प्रश्न 40 – कुषाणों ने भारत में जो सोने के जो सिक्के ढलवाए, वे नकल थे –
उत्तर – रोमन स्वर्ण मुद्राओं की