महाजनपद | जनपद – राज्य और प्रथम मगध साम्राज्य

जनपद - राज्य और प्रथम मगध साम्राज्य

महाजनपद :- ईसा – पूर्व छठी सदी से पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में लोहे का व्यापक प्रयोग होने से बड़े-बड़े प्रादेशिक राज्यों के निर्माण के लिए उपयुक्त परिस्थिति बनी।

लोहे के हथियारों के कारण योद्धा वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगा।

खेती के लिए नए औजारों और उपकरणों की मदद से किसान आवश्यकता से अधिक अनाज पैदा करने लगे।

इस फाजिल अनाज को अब राजा अपने सैनिकों और प्रशासनिक परियोजनाओं के लिए इकट्ठा कर सकता था।

यह फाजिल – अनाज उन शहरों को भी मिल सकता था जो ईसा – पूर्व छठी – पांचवी सदियों में उदित हुए थे।

अब किसान अपनी जमीन से बंध गए और लोगों में प्रादेशिक भावना प्रबल हुई। लोगों की जो प्रबल निष्ठा पहले अपने जन या कबीले के प्रति थी वह अब अपने ‘ जनपद ‘ या संबंध भूभाग से हो गई। महाजनपद

महाजनपद

बुद्ध के समय में हम 16 बड़े-बड़े राज्य पाते हैं जो ‘ महाजनपद ‘ कहलाते थे। इनमें अधिकतर राज्य विंध्य के उत्तर में थे और पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत से बिहार तक फैले हुए थे।

महाजनपदों में मगध , कोसल , वत्स और अवंती ये चार शायद अधिक शक्तिशाली थे।

पूर्व के ‘ अंग ‘ जनपद में आज के मुंगेर और भागलपुर जिले पड़ते हैं , जिसकी राजधानी ‘ चंपा ‘ थी। यहां पांचवी सदी ईसा – पूर्व के लगभग का मिट्टी का किला मिला है। अंतत: अंग को मगध राज्य ने अपने में मिल लिया।

मगध में आधुनिक पटना और गया जिला तथा शाहाबाद का कुछ हिस्सा पड़ता था। यह अपने समय का सबसे प्रमुख राज्य था।

गंगा के उत्तर में आज के तिरहुत प्रमंडल में ‘ वज्जियों ‘ का राज्य था। यह आठ जनों का एक संघ था। इनमें सबसे शक्तिशाली ‘ लिच्छवि ‘ थे। इनकी राजधानी ‘ वैशाली ‘ में थी। वैशाली की पहचान आधुनिक वैशाली जिले के बसाढ़ नमक गांव से की गई है।

पुराण वैशाली को अधिक प्राचीन नगरी बताते है , परन्तु ,पुरातत्व के अनुसार बसाढ़ की स्थापना ईसा – पूर्व छठी सदी से पहले नहीं हुई थी। महाजनपद

मगध के पश्चिम में ‘ काशी ‘ जनपद था जिसकी राजधानी ‘ वाराणसी ‘ थी। राजघाट की खुदाई से पता चलता है कि यहां सबसे पुराना वास लगभग 500 ईसा – पूर्व का था और उस समय यह मिट्टी के बांध से गिरा हुआ था।

प्रारंभ में काशी सबसे शक्तिशाली जान पड़ता है , परंतु बाद में उसने कोसल की शक्ति के सामने आत्म समर्पण कर दिया।

‘ कोसल ‘ जनपद में पूर्वी उत्तर प्रदेश पड़ता था। इसकी राजधानी ‘ श्रावस्ती ‘ थी।

‘ श्रावस्ती ‘ की पहचान उत्तर प्रदेश के गोंडा और बहराइच जिलों के सीमा पर के सहेत – महेत स्थान से की जाती है।

कोसल में ही महत्वपूर्ण नगरी अयोध्या भी थी , जिसका संबंध रामकथा से जोड़ा जाता है। परंतु उत्खनन से पता चलता है कि 500 ईसा – पूर्व पहले यहां आबादी नाम मात्र की थी।

कोसल में ही शाक्यों का कपिलवस्तु गणराज्य भी शामिल था। कपिलवस्तु की राजधानी की पहचान बस्ती जिले के ‘ पिपरहवा ‘ से की गई है। महाजनपद

शाक्यों की दूसरी राजधानी पिपरहवा से 15 किलोमीटर दूर नेपाल में ‘ लुम्बिनी ‘ नामक स्थान पर थी। अशोक के एक अभिलेख में इसे गौतम बुद्ध का जन्म स्थान कहा गया है।

कोसल के पड़ोस में मल्लों का गणराज्य था। जिसकी सीमा वज्जि राज्य की उत्तरी सीमा से जुडी थी।

‘ मल्लों ‘ की राजधानी ‘ कुसीनारा ‘ मे थी , जहां बुद्ध की मृत्यु हुई थी। कुसीनारा की पहचान देवरिया जिला के कसिया नामक स्थान से की गई है।

यमुना के तट पर ‘ वत्स ‘ जनपद था जिसकी राजधानी इलाहाबाद के पास कौशांबी मे थी।

वत्स लोग वही कुरु – जन थे जो हस्तिनापुर को छोड़कर कौशांबी में बस गए। उन्होंने इसे इसलिए पसंद किया कि वह स्थल गंगा – जमुना के संगम के नजदीक था।

उत्खनन से पता चला है कि ईसा – पूर्व पांचवी सदी में कौशांबी की मिट्टी से किलेबंदी की गई थी। महाजनपद

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्राचीन कुरू – पंचाल जनपदों का अस्तित्व था परंतु उत्तर वैदिक काल की तरह अब उनका राजनीतिक महत्व नहीं रहा।

‘ अवन्ति ‘ राज्य मध्य मालवा और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैला था। इस राज्य के दो भाग थे , उत्तरी भाग की राजधानी ‘ उज्जैन ‘ थी जबकि दक्षिणी भाग की ‘ माहिष्मति ‘।

उत्खननों से पता चलता है कि उपरोक्त दोनों नगर ईसा पूर्व छठी सदी से महत्त्व प्राप्त करते गए और अंत में ‘ उज्जैन ‘ नए ‘ माहिष्मती ‘ को पीछे छोड़ दिया। यहां बड़े पैमाने पर लौहकर्म का विकास हुआ और इसकी मजबूत किलेबंदी की गई।

अंतत: मगध राज्य सबसे शक्तिशाली बन गया और एक साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ। महाजनपद

मगध साम्राज्य की स्थापना और विस्तार

बिंबिसार के शासनकाल में मगध ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। वह हर्यंक कुल का था तथा बुद्ध का समकालीन था।

बिंबिसार द्वारा प्रारंभ की गई विजय और विस्तार की नीति अशोक की कलिंग विजय के साथ समाप्त हुई।

बिंबिसार ने अंग देश पर अधिकार कर लिया और इसका शासन अपने पुत्र अजातशत्रु को सौंपा।

बिंबिसार ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए वैवाहिक संबंधों का भी सहारा लिया। उसने तीन विवाह किए।

बिंबिसार की प्रथम पत्नी कोसल राज की पुत्री और प्रसेनजित की बहन थी। उस के साथ दहेज में प्राप्त काशी ग्राम से उसे एक लाख की आय होती थी। इससे पता चलता है कि राजस्व सिक्कों में वसूल किया जाता था।

बिंबिसार की दूसरी पत्नी वैशाली की लिच्छवि राजकुमारी ‘ चेल्लणा ‘ थी जिससे अजातशत्रु का जन्म हुआ था।

बिंबिसार की तीसरी पत्नी पंजाब के मद्र कुल के प्रधान की पुत्री थी। महाजनपद

विभिन्न राजकुलों से वैवाहिक संबंधों के कारण बिंबिसार को बड़ी राजनीतिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई और मगध को पश्चिम और उत्तर की ओर फैलाने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

मगध राज्य का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी अवन्ति था जिसकी राजधानी उज्जैन थी। इसके राजा ‘ चण्डप्रद्योत महासेन ‘ की बिंबिसार से लड़ाई हुई , किंतु अंत में दोनों दोस्त बन गए।

जब प्रद्योत को पीलिया रोग हो गया तो बिंबिसार ने अवन्तिराज के अनुरोध पर अपने राजवैद्य ‘ जीवक ‘ को उज्जैन भेजा था।

गंधार के राजा ने बिंबिसार के पास एक पत्र और दूत मंडल भेजा था।

बिंबिसार ने विजय और कूटनीति से मगध को ईसा – पूर्व छठी सदी में सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य बना दिया। बताया जाता है कि उसके राज्य में 80000 गांव थे।

मगध की प्रथम राजधानी ‘ राजगीर ‘ में थी जिसे उस समय ‘ गिरिव्रज ‘ कहते थे। यह स्थल पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ था तथा इसका खुला भाग चारों ओर से पत्थर की दीवारों से घेर दिया गया था। इस तरह राजगीर अभेद्य दुर्ग हो गया था।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिंबिसार ने लगभग 544 से 492 ईसा – पूर्व तक 52 साल शासन किया। महाजनपद

अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके सिंहासन ( 492 – 460 ईसा पूर्व ) प्राप्त किया।

अजातशत्रु के काल में हर्यक राजकुल का वैभव अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। उसने दो लड़ाइयां लड़ी , और तीसरी के लिए तैयारी की। उसने विस्तारवादी आक्रमक नीति अपनाई।

काशी और कोसल ने मिलकर अजातशत्रु का मुकाबला किया। मगध और कोसल के बीच लंबे समय तक संघर्ष जारी रहा। अंत में अजातशत्रु की विजय हुई। कोसल नरेश ने अपनी पुत्री का विवाह अजातशत्रु से किया और काशी पर उसके एकमात्र अधिकार को स्वीकार कर लिया।

अजातशत्रु की माता लिच्छवि – कुल की राजकुमारी थी , फिर भी उसने वैशाली पर आक्रमण किया। बहाना यह ढूंढा गया कि लिच्छवी कोसल के मित्र हैं।

अजातशत्रु ने लिच्छवियों में फूट डालने के लिए षड्यंत्र रचा और अंत में उन पर हमला करके उन्हें हराया। वैशाली को नष्ट करने में उसे 16 वर्ष लगे।

अजातशत्रु को सफलता इसलिए मिली क्योंकि उसके पास पत्थर फेंकने वाला युद्ध – यंत्र और गदा जैसे हथियार से जुड़ रथ था। महाजनपद

अजातशत्रु के प्रतिद्वंदियों में अवन्ति का शासक अधिक शक्तिशाली था। अवन्ति ने कौशांबी के वत्सों को हराया था और अब वह मगध पर हमला करने की धमकी दे रहे थे।

अजातशत्रु के जीवन काल में अवन्ति को मगध पर हमला करने का अवसर नहीं मिला।

अजातशत्रु के बाद उदायिन ( 460 – 444 ईसा पूर्व ) मगध के सिंहासन पर बैठा। उसने पटना में गंगा और सोन के संगम पर एक किला बनवाया क्योंकि यह मगध साम्राज्य के केंद्र में पड़ता था।

उदायिन के बाद शिशुनागों के वंश का शासन शुरू हुआ। उन्होंने कुछ समय के लिए वैशाली को राजधानी बनाया। इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि अवन्ति ( जिसकी राजधानी उज्जैन थी ) की शक्ति को तोड़ देना था। इसके बाद अवन्ति राज्य मगध राज्य का हिस्सा बन गया और मौर्य साम्राज्य के अंत तक बना रहा।

शिशुनागों के बाद नंदों का शासन शुरू हुआ। ये मगध के सबसे शक्तिशाली शासक सिद्ध हुए। इस समय सिकंदर भी पंजाब से पूर्व की ओर आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। महाजनपद

महापद्मनंद ने कलिंग को जीतकर मगध की शक्ति को बढ़ाया। विजय – स्मारक के रूप में वह कालिंग से ‘ जिन ‘ की मूर्ति उठा लाया तथा अपने को ‘ एकराट ‘ कहा।

ऐसा जान पड़ता है कि उसने न केवल कलिंग पर कब्जा किया बल्कि उसके खिलाफ विद्रोह करने वाले कोसल को भी हथिया लिया।

नंद शासक परम् धनी और शक्तिशाली थे। इनकी सेना में दो लाख पदाति 20000 घुड़सवार और 3000 से लेकर 6000 तक हाथी थे।

बाद के नंद शासक दुर्बल और अलोकप्रिय सिद्ध हुए। उनके बाद मगध में मौर्य वंश का शासन स्थापित हुआ। मौर्यों के शासनकाल में मगध का वैभव अपने शिखर पर पहुंचा गया। महाजनपद

महाजनपद image

मगध की सफलता के कारण

लौह – युग में मगध की भौगोलिक स्थिति बड़ी उपयुक्त थी। लोहे के समृद्ध भंडार राजगीर के पास ही थे। फलतः मगध के शासक प्रभावशाली हथियार तैयार कर सके। उनके विरोधी ऐसे हथियार आसानी से प्राप्त नहीं कर सकते थे।

मगध की दोनों राजधानियाँ – प्रथम राजगीर और द्वितीय पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान पर थी।

राजगीर पांच पहाड़ियों की श्रृंखला से घिरा था , इसलिए वह दुर्भेद्य था।

पाटलिपुत्र साम्राज्य के केंद्र में था , अतः इसके साथ सभी दिशाओं से संचार – संबंध स्थापित किए जा सकते थे।

पाटलिपुत्र गंगा , गंडक और सोन नदियों के संगम पर स्थित था , और इससे थोड़ी ही दूरी पर घागर नदी भी गंगा से मिलती थी। जल – मार्गो से सेना को उत्तर , पश्चिम , दक्षिण और पूर्व की ओर आसानी से भेजा जा सकता था।

चारों ओर से नदियों द्वारा घिरे होने के कारण पाटलिपुत्र की स्थिति अभेद्य को गयी थी। सही माने में पाटलिपुत्र एक जलदुर्ग था। महाजनपद

मगध राज्य मध्य गंगा के मैदान के बीच में पड़ता था। इस अत्यधिक उर्वरक प्रदेश से जंगल साफ हो चुके थे। भारी वर्षा के कारण बीना सिंचाई के भी इलाके को उत्पादक बनाया जा सकता था। फलतः यहां के किसान अपनी आवश्यकता से अधिक अन्न पैदा कर लेते थे। इससे राजा को कर मिलना आसान हो गया।

मगध के शासको ने नगरों के उत्थान और धातु के बने सिक्कों के प्रचलन से भी लाभ उठाया। पूर्वोत्तर भारत में व्यापार – वाणिज्य की वृद्धि के कारण शासन अब वाणिज्य वास्तुओं पर चुंगी लगा सकते थे , और सेना के खर्च के लिए धन एकत्र कर सकते थे।

मगध की पहली पहला राज्य था जिसने अपने पड़ोसियों के विरुद्ध युद्ध में हाथियों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। देश के पूर्वांचल से मगध के शासक के पास हाथी पहुंचते थे। यूनानी स्रोतों से ज्ञात होता है कि नंदो की सेना में 6000 हाथी थे। महाजनपद

मगध का समाज रूढ़िविरोधी था। कट्टर ब्राह्मण यहां बसे हुए किरात और मगध लोगों को निम्न कोटि के समझते थे। चूँकि मगध का वैदिकीकरण हाल में हुआ था , इसलिए आरंभ में ही वैदिक प्रभाव में आए हुए राज्यों की अपेक्षा मगध में विस्तार के लिए अधिक उत्साह था।

उपर्युक्त कारणों से मगध दूसरे राज्यों को हराने में और भारत के प्रथम साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

अवन्ति राज्य को भी लोहा आसानी से प्राप्त हो जाता था क्योकि लोहे की खानें पूर्वी मध्य प्रदेश में भी मिलती है , जो उज्जैन राजधानी वाले अवन्ति राज्य से अधिक दूर नहीं थी। वहां के लोहार भी संभवत: बहुत अच्छी किस्म के हथियार तैयार करते थे।

यही कारण है कि उत्तर भारत कि प्रभुता के लिए अवन्ति और मगध के बीच कड़ा संघर्ष हुआ। उज्जैन पर कब्जा करने में मगध को लगभग सौ साल का समय लगा। महाजनपद

MCQ

प्रश्न 1 – बुद्ध के समय में हम 16 बड़े-बड़े राज्य पाते हैं जो कहलाते थे –

उत्तर – महाजनपद

प्रश्न 2 – अंग राज्य की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – चंपा

प्रश्न 3 – लिच्छवि राज्य की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – वैशाली

प्रश्न 4 – काशी जनपद की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – वाराणसी

प्रश्न 5 – कोसल जनपद की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – श्रावस्ती

प्रश्न 6 – किस जगह की पहचान उत्तर प्रदेश के गोंडा और बहराइच जिलों के सीमा पर के सहेत – महेत स्थान से की जाती है ?

उत्तर – श्रावस्ती की

प्रश्न 7 – मल्लों की राजधानी , जहां बुद्ध की मृत्यु हुई थी –

उत्तर – कुसीनारा

प्रश्न 8 – किस जगह की पहचान देवरिया जिला के कसिया नामक स्थान से की गई है ?

उत्तर – कुसीनारा

प्रश्न 9 – वत्स जनपद की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – कौशांबी

प्रश्न 10 – अवन्ति राज्य के उत्तरी भाग की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – उज्जैन

प्रश्न 11 – अवन्ति राज्य के दक्षिणी भाग की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – माहिष्मति

प्रश्न 12 – बिंबिसार किस कुल का था ?

उत्तर – हर्यंक कुल

प्रश्न 13 – अजातशत्रु की माता का क्या नाम था ?

उत्तर – चेल्लणा

प्रश्न 14 – मगध राज्य का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी था –

उत्तर – अवन्ति राज्य

प्रश्न 15 – किस के अनुरोध पर बिंबिसार ने अपने राजवैद्य ‘ जीवक ‘ को उज्जैन भेजा था ?

उत्तर – चण्डप्रद्योत महासेन

प्रश्न 16 – मगध की प्रथम राजधानी कहाँ थी ?

उत्तर – राजगीर ( गिरिव्रज )

प्रश्न 17 – बिंबिसार के बाद मगध के सिंहासन पर बैठा –

उत्तर – अजातशत्रु

प्रश्न 18 – अजातशत्रु के बाद मगध के सिंहासन पर बैठा –

उत्तर – उदायिन

प्रश्न 19 – किस शासक ने पटना में गंगा और सोन के संगम पर एक किला बनवाया ?

उत्तर – उदायिन

प्रश्न 20 – कुछ समय के लिए वैशाली को मगध की राजधानी बनाया –

उत्तर – शिशुनाग वंश ने

प्रश्न 21 – किस शासक ने अपने को एकराट कहा है ?

उत्तर – महापद्मनंद

प्रश्न 22 – पाटलिपुत्र ( मगध की द्वितीय राजधानी ) किन नदियों के संगम पर स्थित था ?

उत्तर – गंगा , गंडक और सोन

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