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मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद

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मुंशी प्रेमचंद

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में कायस्थ परिवार में सन 1880 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री अजायबराय और माता का नाम आनंदी देवी था। बचपन में प्रेमचंद को पिता धनपतराय के नाम से और चाचा नवाबराय के नाम से पुकारते थे। जब इनके पिता की मृत्यु हुई , तब इनकी आयु बहुत कम थी। इनका विद्यार्थी जीवन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण ठीक प्रकार से व्यतीत नहीं हुआ। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात इन्होने एक स्कूल में अध्यापन कार्य आरम्भ किया। इंटरमीडिएट परीक्षा में असफल हो जाने के कारण इनका विद्यार्थी – जीवन यही पर समाप्त हो गया।

शिक्षण कार्य करते हुए ही इन्होने बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और शिक्षा विभाग में सब – डिप्टी इंस्पेक्टर नियुक्त किए गए। किंतु देश प्रेमी होने के कारण इस सरकारी पद की अधिक समय तक शोभा नहीं बढ़ा सके। इनके दो विवाह हुए थे। इन्होंने मारवाड़ी विद्यालय कानपुर और काशी विद्यापीठ के प्रधानाध्यापक के पद पर भी कार्य किया। यहां से त्याग – पत्र देकर स्वतंत्र रूप से साहित्य – लेखन में प्रवेश किया। इन्होंने ‘ मर्यादा ‘ , ‘ माधुरी ‘ , ‘ जागरण ‘ , ‘ हंस ‘ आदि पत्रिकाओं का संपादन किया। निरंतर अभावों में रहने के कारण यह लम्बी बीमारी से ग्रस्त हो गए। 8 अक्टूबर , 1936 ई को इनका का निधन हो गया।

साहित्यक परिचय

मुंशी प्रेमचंद आरम्भ से ही बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न थे। इन्होने प्रारम्भ में उर्दू में लिखना शुरू किया। उर्दू में मुंशी प्रेमचंद जी ‘ नवाब राय ‘ नाम से कहानियाँ और उपन्यास लिखा करते थे। इनके द्वारा रचित कुछ राजनैतिक कहानियाँ ‘ धनपत राय ‘ के नाम से प्रकाशित हुई। उर्दू में रचित इनकी एक कृति ‘ सोजे – वतन ‘ ने इतनी हलचल मचा दी कि अंग्रेज सरकार ने उसे जब्त कर लिया।

द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने ‘ प्रेमचंद ‘ नाम से हिंदी – साहित्य जगत में पदार्पण किया। इनकी रचनाओं में तत्कालीन निम्न एवं मध्यम वर्ग का यथार्थ चित्रण दिखाई देता है । इन्हें ‘ उपन्यास सम्राट ‘ और ‘ कलम का सिपाही ‘ की उपाधि से विभूषित किया गया। प्रेमचंद को ‘ आधुनिक कथा साहित्य का जनक ‘ भी कहा जाता है।

मानव – जीवन की विभिन्न समस्याओं का वास्तविक चित्रण इनकी कहानियों और उपन्यासों में दिखाई देता है। इन समस्याओं में विधवा विवाह , पर्दा – प्रथा , भ्रष्टाचार , रिश्वत , दहेज प्रथा , किसानो की समस्याएँ आदि प्रमुख थी।

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मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएँ

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित है :-

उपन्यास :- ‘ गोदान ‘ , ‘ सेवासदन ‘, ‘ कर्मभूमि ‘ , ‘ रंगभूमि ‘, ‘ गबन ‘ , ‘ प्रेमाश्रय ‘ , ‘ निर्मला ‘ , ‘ वरदान ‘ , ‘ प्रतिज्ञा तथा कायाकल्प ‘ , ‘ मंगलसूत्र ‘ आदि।

कहानी – संग्रह :- मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन कल में लगभग 300 कहानियाँ लिखी , जिसमे ‘ सप्तसरोज ‘ , ‘ नवनिधि ‘ , ‘ प्रेम पचीसी ‘, ‘ प्रेम – प्रसून ‘ , ‘ प्रेम – तीर्थ ‘ , ‘ प्रेम – सदन ‘, ‘ प्रेम – पूर्णिमा ‘, ‘ कफ़न ‘ , ‘ मानसरोवर ‘, ‘ अग्नि – समाधि ‘, आदि।

नाटक :- ‘ संग्राम ‘ , ‘ प्रेम की वेदी ‘, ‘ कर्बला ‘ तथा ‘ रूठी रानी ‘, आदि।

निबंध :- ‘ कुछ विचार ‘, और ‘ साहित्य का उद्देश्य ‘ आदि।

अनुदित :- ‘ अहंकार ‘, ‘ सुखदास ‘ , ‘ आजाद – कथा ‘, ‘ चाँदी की डिबिया ‘ , ‘ हड़ताल ‘ आदि।

संपादन :- ‘ माधुरी ‘, ‘ हंस ‘ , ‘ मर्यादा ‘, जागरण ‘ आदि।

भाषा

मुंशी प्रेमचंद की भाषा सहज , प्रवाहपूर्ण , मुहावरेदार और प्रभावशाली है। इनकी भाषा में अद्भुत व्यंजन – शक्ति विद्यमान है। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है , तो कहीं – कहीं इन्होने उर्दू , फ़ारसी और अंग्रेजी शब्दों का यथास्थान प्रयोग किया है।

शैली

मुंशी प्रेमचंद जी ने साहित्य का निर्माण जनसाधारण के लिए किया है। इनकी शैली इनके व्यक्तित्व के अनुरूप है। सरलता तथा सजीवता इनकी शैली का प्रधान गुण है। इनके साहित्य में प्रयुक्त शैलियों का वर्णन इस प्रकार है –

विचारात्मक शैली – गंभीर विचारों को प्रस्तुत करने के लिए मुंशी प्रेमचंद जी ने इस शैली का प्रयोग किया है।

परिचयात्मक शैली – मुंशी प्रेमचंद जी का अधिकांश साहित्य इसी शैली में लिखित है। इस शैली की भाषा सरल तथा सरस है।

आलोचनात्मक शैली – इस शैली का प्रयोग मुंशी प्रेमचंद जी ने अपने निबंधों में किया है। इनकी भाषा शुद्ध , परिमार्जित तथा गंभीर है।

हास्य – व्यंग्यप्रधान शैली – सामाजिक असमानतााओं का चित्रण करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया है।

मनोवैज्ञानिक शैली – मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी रचनाओं में पत्रों की अंतर्द्वंदता को प्रकट करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया है।

हिंदी - साहित्य में स्थान

मुंशी प्रेमचंद जी अपने युग के प्रतिनिधि साहित्यकार हैं। इन्होनें भारतीय समाज की समस्याओं को देखा – परखा तथा उनका अपने कथा – साहित्य में समाधान प्रस्तुत किया। एक श्रेष्ठ कथाकार और उपन्यास सम्राट के रूप में प्रेमचंद जी हिंदी – साहित्य की प्रगति में महत्वपूर्ण स्थान है।

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