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सोहनलाल द्विवेदी

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सोहनलाल द्विवेदी

कवि सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन 1906 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी नामक कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री वृंदावनप्रसाद द्विवेदी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा फतेहपुर में तथा उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में हुई।

सोहनलाल द्विवेदी जी ने बी ए , एल-एल बी तक शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हें संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। द्विवेदी जी सदैव देशोद्धार और समाज-सुधार के कार्यों में संगलन रहे।

इन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत, जोशीली कविताओं की रचना कर नवयुवकों को भी आंदोलन में भाग लेने के लिए उत्साहित किया। इनकी राष्ट्रभक्ति के पीछे पंडित मदनमोहन मालवीय का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है।

द्विवेदी जी ने ‘बाल-सखा’ और ‘अधिकार’ नामक पत्रों का कुशल संपादन किया। द्विवेदी जी में काव्य प्रतिभा जन्मजात थी। इन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही रचनाएं करनी आरंभ कर दी थी।

इन्हें ‘साहित्य-वारिधि’ और ‘डी लिट’ की मानद उपाधि तथा भारत सरकार की ओर ओर से ‘पदमश्री’ के पुरस्कार से अलंकृत किया गया। दूरदर्शन द्वारा इनके ऊपर एक वृत्तचित्र का भी निर्माण हुआ।

सोहनलाल द्विवेदी जी राष्ट्रपति महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हुए। इनकी रचनाओं में गांधीवाद की स्पष्ट छाया देखी जा सकती है। आजीवन साहित्य-सेवा में लीन रहने वाले द्विवेदी जी सन 1988 ईस्वी में 82 वर्ष की अवस्था में पंचतत्त्व में विलीन हो गए।

साहित्यिक परिचय

हिंदी – काव्य में गांधीवादी विचारों का प्रयोग करने वाले पंडित सोहनलाल द्विवेदी जी की हिंदी-साहित्य में वही स्थान है , जो मैथिलीशरण गुप्त, मखनलाल चतुर्वेदी और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का है।

राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत इनकी काव्य-वाणी युग-युग तक हिंदी प्रेमियों के गले की कण्ठहार बनी रहेगी। श्रेष्ठ बाल-साहित्य के सृजन के लिए सोहनलाल द्विवेदी जी स्मरणीय हैं। वास्तव में द्विवेदी जी की कविताओं में जीवन की प्रेरक शक्ति विद्यमान है।

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सोहनलाल द्विवेदी जी की रचनाएँ

काव्य – संग्रह – पूजा के स्वर, भैरवी, पूजा-गीत, युगाधार, प्रभाती, चेतना, वासंती, चित्रा आदि।

प्रबंध – काव्य – कुणाल, वासवदत्ता और विषपान।

बाल – साहित्य – दूध-बताशा, शिशु-भारती, बाल-भारती, झरना, बच्चों के बापू आदि।

भाषा

सोहनलाल द्विवेदी जी ने सरल, सरस एवं प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली में काव्य-रचना की है। इनकी भाषा में मुहावरों, उर्दू के शब्दों और व्यवहारिक शब्दों का प्रचुर मात्रा में सटीक प्रयोग मिलता है। कविता में व्यर्थ के अलंकारों का प्रयोग नहीं है।

शैली

सोहनलाल द्विवेदी जी की शैली इनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही है। यही कारण है कि इनकी शैली में सरसता, मधुरता, स्पष्टता और प्रवाह सवर्त्र दिखाई देता है। इस प्रकार इन की शैली भाषा के समान ही स्पष्ट और सुबोध है।

द्विवेदी जी ने वर्णनात्मक और गीतात्मक शैली में अपने काव्य की रचना की है। इनकी गीतात्मक शैली में गंभीरता, तन्मयता, संगीतात्मकता और संक्षिप्तता जैसे गुणों के दर्शन होते हैं।

इनकी राष्ट्रीय कविताएं ओजपूर्ण है। इस प्रकार द्विवेदी जी की शैली रोचक, ओजपूर्ण, सरल, सुबोध और प्रभावशाली बंद पड़ी है।

हिंदी साहित्य में स्थान

कविवर सोहनलाल द्विवेदी जी ऐसे कवि हैं, जिनकी काव्यधारा राष्ट्र चेतना से ओत-प्रोत है। सत्य, अहिंसा और राष्ट्रप्रेम इनकी कविताओं का मूल स्वर था।

द्विवेदी जी प्रत्येक भारतीय के हृदय में राष्ट्रप्रेम की भावना को उत्पन्न करना चाहते थे। अपनी काव्य रचनाओं द्वारा युवाओं में देश प्रेम की भावनााओं और उत्साह का संचार करने वाले कवियों में सोहनलाल द्विवेदी जी का विशेष स्थान है।

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