संघ और राज्य क्षेत्र
संघ और राज्य क्षेत्र – संविधान के भाग 1 के अंतर्गत अनुच्छेद 1 से 4 तक में संघ एवं इसके क्षेत्रों की चर्चा की गई है।
अनुच्छेद 1 में कहा गया है कि इंडिया यानी भारत बजाय ‘ राज्यों के समूह ‘ के ‘ राज्यों का संघ ‘ होगा।
यह व्यवस्था दो बातों को स्पष्ट करती है – एक , देश का नाम, और दूसरा , राजपद्धति का प्रकार।
भारतीय संविधान में भारत के दो नाम ‘ इंडिया ‘ और ‘ भारत ‘ को समावेश किया गया है।
राज्यों का संघ उक्ति को समझाते हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि राज्यों के संघ उक्ति को संघीय राज्य के स्थान पर महत्व देने के दो कारण है – एक – भारतीय संघ राज्यों के बीच में कोई समझौते का परिणाम नहीं है , जैसे – अमेरिकी संघ, दूसरा – राज्यों को संघ से विभक्त होने का कोई अधिकार नहीं है। संघ और राज्य क्षेत्र
अनुच्छेद 1 के अनुसार , भारतीय क्षेत्र को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है –
1. राज्यों के क्षेत्र
2. संघ क्षेत्र
3. ऐसे क्षेत्र जिन्हें किसी भी समय भारत सरकार द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।
राज्यों एवं संघ शासित राज्यों के नाम, उनके क्षेत्र विस्तार को संविधान की पहली अनुसूची में दर्शाया गया है।
‘ भारत के क्षेत्र ‘ ‘ भारत का संघ ‘ से ज्यादा व्यापक अर्थ समेटे हैं क्योंकि बाद वाले में सिर्फ राज्य शामिल है , जबकि पहले में न केवल राज्य वरन बल्कि संघ शासित क्षेत्र एवं वे क्षेत्र , जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा भविष्य में कभी भी अधिगृहित किया जा सकता है , शामिल है।
संघीय व्यवस्था में राज्य इसके सदस्य हैं और केंद्र के साथ शक्तियों के बंटवारे में हिस्सेदार हैं। दूसरी तरफ संघ शासित क्षेत्र एवं केंद्र द्वारा अधिगृहीत क्षेत्र में सीधे केंद्र सरकार का प्रशासन होता है।
एक संप्रभु राज्य होने के नाते भारत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत विदेशी क्षेत्र का भी अधिग्रहण कर सकता है। उदाहरण के तोर पर सत्तांतरण ( संधि के अनुसार , खरीद , उपहार या लीज ) , व्यवसाय ( जिसे अभी तक किसी मान्य शासक ने अधिगृहीत न किया हो ) ,जीत या हराकर। संघ और राज्य क्षेत्र
भारतीय संविधान अनुच्छेद 1, संघ का नाम एवं राज्य क्षेत्र
(i) भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा।
(ii) राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट है।
(iii) भारत के राज्य क्षेत्र में अर्जित किए गए अन्य राज्य क्षेत्र समाविष्ट होंगे। संघ और राज्य क्षेत्र
भारतीय संविधान अनुच्छेद 2 , नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
अनुच्छेद 2 में संसद को यह शक्ति दी गई है कि संसद , विधि द्वारा , ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे , संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
अनुच्छेद 2 संसद को दो शक्तियां प्रदान करता है –
( अ ) नए राज्यों को भारत के संग में शामिल करें और
( ब ) नए राज्यों को गठन करने की शक्ति।
पहली शक्ति उन राज्यों के प्रवेश को लेकर है जो पहले से अस्तित्व में है।
दूसरी शक्ति नए राज्यों जो अस्तित्व में नहीं है के गठन को लेकर हैं , अर्थात अनुच्छेद 2 उन राज्यों , जो भारतीय संघ के हिस्से नहीं है , के प्रवेश एवं गठन से संबंधित है। संघ और राज्य क्षेत्र
भारतीय संविधान अनुच्छेद 3 , नए राज्यों का निर्माण एवं वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों , सीमाओं और नाम में परिवर्तन
अनुच्छेद 3 के तहत सांसद विधि द्वारा
( क ) किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलकर राज्य का निर्माण कर सकेगी।
( ब ) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी।
( स ) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी।
( द ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी।
( ड़ ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी। संघ और राज्य क्षेत्र
दूसरे शब्दों में अनुच्छेद 3 , भारतीय संघ के राज्यों के पुनसीमन की व्यवस्था करता है।
हालाँकि इस संबंध में अनुच्छेद 3 में दो शर्तों का उल्लेख किया गया है।
एक – उपरोक्त परिवर्तन से संबंधित कोई विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बाद ही संसद में पेश किया जा सकता है।
दूसरा – संस्तुति से पूर्व राष्ट्रपति उस विधेयक को संबंधित राज्य के विधान मंडल का मत जानने के लिए भेजता है। यह मत निश्चित सीमा के भीतर दिया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति या संसद राज्य विधान मंडल के मत को मानने के लिए बाध्य नहीं है , और इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है , भले ही उसका मत समय पर आ गया हो।
इस विधेयक के संसद में आने पर हर बार राज्य के विधानमंडल के लिए नए संदर्भ बनाना जरूरी नहीं है। संघ और राज्य क्षेत्र
संघ क्षेत्र के मामले में संबंधित विधानमंडल के संदर्भ की कोई आवश्यकता नहीं है संसद जब उचित समझे स्वयं कदम उठा सकती हैं।
अतः संविधान के द्वारा प्रदत्त शक्ति से सांसद अपने अनुसार भारत के राजनीतिक मानचित्र का पुनर्निर्धारण कर सकती है।
इस तरह संविधान द्वारा क्षेत्रीय एकता या राज्य के अस्तित्व को गारंटी नहीं दी गई है।
अतः भारत विभक्त राज्यों का अविभाज्य संघ है।
अमेरिका में क्षेत्रीय एकता या राज्यों के अस्तित्व को संविधान द्वारा गारंटी दी गई है।
अमेरिकी संघीय सरकार नए राज्यों का निर्माण या उनकी सीमाओं में परिवर्तन बिना संबंधित राज्यों की अनुमति के नहीं कर सकती।
अतः अमेरिका को अविभाज्य राज्यों का अविभाज्य संघ कहते हैं। संघ और राज्य क्षेत्र
भारतीय संविधान अनुच्छेद 4 , पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियाँ
संविधान ( अनुच्छेद 4 ) में स्वयं यह घोषित किया गया है कि नए राज्यों का प्रवेश या गठन ( अनुच्छेद 2 के अंतर्गत ) , नये राज्यों का निर्माण , सीमाओं , क्षेत्रों और नाम में परिवर्तन ( अनुच्छेद 3 के अंतर्गत ) को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा।
अर्थात इस प्रकार का विधायक अन्य विधेयकों की तरह साधारण बहुमत से पारित किया जा सकेगा।
संसद को किसी राज्य या उसके किसी भाग को विदेशी राज्यों को सौंपने की शक्ति नहीं है।
9वें संविधान संशोधन विधेयक 1960 को पारित कर बेरुबारी संघ को पाकिस्तान को सौंपा गया। संघ और राज्य क्षेत्र
1969 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि भारत और अन्य देश के बीच सीमा निर्धारण विवाद को हल करने के लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत नहीं है। यह कार्य कार्यपालिका द्वारा किया जा सकता है। इसमें भारतीय क्षेत्र को विदेश को सौंपना शामिल नहीं है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की भौगोलिक सीमा में 552 देशी रियासतें थी। 549 भारत में शामिल हो गयीं और बची हुई तीन रियासतों ( हैदराबाद , जूनागढ़ और कश्मीर ) ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया।
रियासतों को भारत में शामिल करने के लिए 22 जून 1947 को भारत सरकार द्वारा सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में रियासती मंत्रालय बनाया गया।
15 अगस्त 1947 तक , हैदराबाद , जूनागढ़ तथा कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी रियासतों ने ‘ विलय के सहमति पत्र ‘ पर हस्ताक्षर कर दिए थे। संघ और राज्य क्षेत्र
भारतीय एकीकरण में सरदार पटेल के सहयोग के कारण ही उन्हें ‘ लौह पुरुष ‘ या ‘ भारत के विश्वकर्मा ‘ की संज्ञा दी जाती है।
जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर , हैदराबाद की रियासत को पुलिस कार्रवाई के माध्यम से और जम्मू कश्मीर रियासत को विलय पत्र पर हस्ताक्षर के द्वारा भारत में मिलाया गया।
जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। हैदराबाद का निजाम पाकिस्तान की सहायता से स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहता था। जम्मू कश्मीर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाना चाहता था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग उठाई जाने लगी। संघ और राज्य क्षेत्र
भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं, इसकी जांच के लिए संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एस. के. धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय भाषायी प्रांत आयोग की नियुक्ति की। ( जून 1948 )
इस आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया और प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया।
इस आयोग ने 10 दिसंबर 1948 को अपनी रिपोर्ट संविधान सभा को सौंपी।
इस रिपोर्ट के प्रति जनता की प्रतिक्रिया के कारण कांग्रेस कार्य समिति ने अपने जयपुर अधिवेशन में भाषीय आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के मामले पर विचार करने के लिए जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल तथा पट्टाभिसीतारमैया की एक समिति (J.V.P समिति )गठित की।
इसने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 1949 में पेश की और भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग को खारिज कर दिया। संघ और राज्य क्षेत्र
जेवीपी समिति (J.V.P समिति ) की रिपोर्ट के बाद मद्रास राज्य के तेलुगू भाषियों ने पोट्टी श्रीरामुलु के नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ कर दिया।
56 दिनों के आमरण अनशन के बाद 15 दिसंबर 1952 को पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु हो गई।
पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने तेलुगू भाषीयों के लिए पृथक आंध्र प्रदेश के गठन की घोषणा कर दी।
1 अक्टूबर 1953 को आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हो गया। यह राज्य स्वतंत्र भारत में भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था।
आंध्र प्रदेश के निर्माण से अन्य क्षेत्रों से भी भाषा के आधार पर राज्य बनाने की मांग उठने लगी। संघ और राज्य क्षेत्र
इसके कारण भारत सरकार ने दिसंबर 1953 को न्यायमूर्ति फजल अली के अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। इसके अन्य सदस्य थे – पंडित हृदय नाथ कुंजुरू और के. एम. पणिक्कर।
फजल अली आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में पेश की और इस बात को व्यापक रूप से स्वीकार किया कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 में पास किया गया। 7वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 द्वारा राज्यों की श्रेणिओं को समाप्त कर 14 राज्य एवं 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया।
पांडिचेरी सहित भारतीय क्षेत्र में फ्रांस के उपनिवेश ( पांडिचेरी , कराइकल , माहे और यमन ) का 1954 में भारत में विलय किया गया तथा 1956 में उसे संघ राज्य क्षेत्र का दर्जा दिया गया।
फ्रांसीसी उपनिवेशों का भारत में विलय आपसी समझौतों के परिणामस्वरुप संभव हुआ। संघ और राज्य क्षेत्र
18 दिसंबर 1961 – गोवा , दमन एवं दीव को सैनिक कार्रवाई ( ऑपरेशन विजय ) द्वारा पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त कराकर संघ राज्य क्षेत्र का दर्जा दिया गया।
1 मई 1960 – मराठी और गुजराती भाषा के आधार पर बम्बई राज्य का विभाजन कर महाराष्ट्र और गुजरात नामक दो राज्यों का गठन किया।
1 दिसंबर 1963 – असम से नागालैंड को अलग कर राज्य का दर्जा दिया गया।
1 नवंबर 1966 – भाषायी आधार पर पंजाब को पंजाब व हरियाणा राज्यों में विभाजित किया गया जबकि चंडीगढ़ संघ शासित प्रदेश बना।
25 जनवरी 1971 – हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। संघ और राज्य क्षेत्र
21 जनवरी 1972 – उत्तर पूर्वी क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम पारित कर मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
26 अप्रैल 1975 – सिक्किम विधानसभा के अनुरोध और जनमत संग्रह के आधार पर सिक्किम को भारत का राज्य 22 वां राज्य बनाया गया।
20 फरवरी 1987 – मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
30 मई 1987 – गोवा को भारत का 25 वां राज्य बनाया गया।
1 नवंबर 2000 – छत्तीसगढ़ ( 26 वां ) राज्य का गठन।
9 नवंबर 2000 – उत्तराखंड ( 27 वां ) राज्य का गठन।
15 नवंबर 2000 – झारखंड ( 28 वां ) राज्य का गठन संघ और राज्य क्षेत्र
मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ , उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड तथा बिहार से झारखंड राज्य के क्षेत्र को अलग किया गया।
2 जून , 2014 – आंध्र प्रदेश राज्य को विभाजित कर भारत के 29 वें राज्य तेलंगाना का गठन।
35वें संशोधन, 1974 के द्वारा सिक्किम को भारत में ‘ सहयुक्त राज्य ‘ के रूप में शामिल किया गया था। 36वें संविधान संशोधन, 1975 द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। संघ और राज्य क्षेत्र
गुजरात भारतीय संघ का 15 वां राज्य बना
नागालैंड भारतीय संघ का 16 वां राज्य बना
हरियाणा भारतीय संघ का 17 वां राज्य बना
हिमाचल प्रदेश भारतीय संघ का 18 वां राज्य बना
मणिपुर भारतीय संघ का 19 वां राज्य बना
त्रिपुरा भारतीय संघ का 20 वां राज्य बना
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मेघालय भारतीय संघ का 21 वां राज्य बना
सिक्किम भारतीय संघ का 22 वां राज्य बना
मिजोरम भारतीय संघ का 23 वां राज्य बना
अरुणाचल प्रदेश भारतीय संघ का 24 वां राज्य बना
गोवा भारतीय संघ का 25 वां राज्य बना
छत्तीसगढ़ भारतीय संघ का 26 वां राज्य बना
उत्तराखंड भारतीय संघ का 27 वां राज्य बना
झारखंड भारतीय संघ का 28 वां राज्य बना
तेलंगाना भारतीय संघ का 29 वां राज्य बना
वर्तमान में भारत में 28 राज्य एवं 8 संघ राज्य क्षेत्र है।
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नामों में परिवर्तन
संयुक्त प्रांत पहला राज्य था जिसका नाम परिवर्तन किया गया। इसका नया नाम 1950 में उत्तर प्रदेश किया गया।
1969 में मद्रास का नया नाम तमिलनाडु रखा गया।
1973 में मैसूर का नया नाम कर्नाटक रखा गया। इसी वर्ष लकादीव मिनिकॉय एवं अमीनदीवी का नया नाम लक्ष्यद्वीप रखा गया।
1992 में संघशासित प्रदेश दिल्ली का नया नाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली रखा गया ( इसे बिना पूर्ण राज्य का दर्जा दिया ) यह बदलाव 69वें संविधान संशोधन अधिनियम 1991 के द्वारा हुआ।
वर्ष 2006 में उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। इसी वर्ष पांडिचेरी का नाम बदलकर पुडुचेरी किया गया।
वर्ष 2011 में उड़ीसा का पुनः नामकरण ओडिशा के रूप में हुआ। संघ और राज्य क्षेत्र