उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष - 1

उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1 – 1398 ईस्वी में दिल्ली पर तैमूर का हमला और हमले से डर कर तुगलक सुल्तान का राजधानी छोड़कर भाग खड़े होने से दिल्ली सल्तनत की कमजोरी सबके सामने आ गयी।

इसके परिणामस्वरूप सल्तन के अधीन कई सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

लगभग पंद्रहवी सदी के मध्य से दिल्ली में लोदियों की शक्ति के उदय के फलस्वरुप गंगा – यमुना दोआब के स्वामित्व के लिए उनके और जौनपुर के शासको के बीच संघर्ष छिड़ गया।

15वीं सदी के अंत में लोदी सुल्तान द्वारा जौनपुर के अपनी सल्तनत में मिला दिए जाने के बाद परिस्थिति बदलने लगी।

मालवा पर कब्जा करने के लिए गुजरात , मेवाड़ और लोदियों के बीच चलने वाला संघर्ष उत्तर भारत के स्वामित्व के लिए चल रही जोर – आजमाई का अखाड़ा बन गया।

शायद इसी तीव्र प्रतिदवंद्विता के कारण राणा सांगा ने बाबर को हमला करने के लिए आमंत्रित किया था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

पूर्वी भारत : बंगाल ,असम और उड़ीसा

जब मोहम्मद तुगलक सल्तनत के विभिन्न भागों में भड़क रहे विद्रोहों को दबाने में व्यस्त था , उसी समय 1338 ईस्वी में बंगाल फिर दिल्ली से स्वतंत्र हो गया था।

चार साल बाद इलियास खां नामक एक आमिर ने लखनौती और सोनारगांव पर कब्जा कर लिया और सुल्तान शम्सुद्दीन इलियास खां की उपाधि धारण करके बंगाल की गद्दी पर आसीन हो गया। उसने पश्चिम में अपने राज्य का विस्तार तिरहुत , चंपारन तथा गोरखपुर तक किया और अंत में बनारस पर भी अधिकार कर लिया।

इलियास खां के चंपारन और गोरखपुर के नवविजित इलाकों से होते हुए फिरोज तुगलक ने बंगाल पहुंच कर उसकी राजधानी पंडुआ पर कब्जा कर लिया। इलियास खां को एकदाला के किले में शरण लेनी पड़ी।

अंत में दोनों में मित्रता की एक संधि हुई जिसके अनुसार बिहार से होकर बहने वाली कोसी नदी को दोनों राज्य की सीमा निर्धारित किया गया।

दिल्ली के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों का लाभ उठाकर इलियास खां ने कामरूप राज्य पर ( आधुनिक असम में ) अधिकार कर लिया।

इलियास खां लोकप्रिय राजा था और उसे कई उपलब्धियों का श्रेय प्राप्त है। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

इलियास खां के राजवंश का सबसे प्रसिद्ध सुल्तान गयासुद्दीन आजमशाह ( 1389 ई – 1409 ई ) था। वह अपनी न्याय प्रियता के लिए विख्यात था।

अपने समय के प्रसिद्ध विद्वानों से आजमशाह का घनिष्ट संबंध था। इनमे शिराज का फ़ारसी शायर हाफिज भी था।

उसने चीनियों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किया। चीनी सम्राट ने उसके दूत का हार्दिक स्वागत किया।

1400 ईस्वी में चीनी सम्राट ने सुल्तान और उसकी पत्नी के लिए उपहारों के साथ अपना दूत सुल्तान के पास भेजा , जिसकी मारफत उसने चीन को बौद्ध भिक्षु भेजने का भी अनुरोध किया। सुल्तान ने उसका अनुरोध पूरा किया।

चटगांव चीन के साथ व्यापार का एक फल फूलता – फलता बंदरगाह बन गया। वहां से चीनी माल का दूसरे देशों को पुनर्निर्यात किया जाने लगा।

इस काल में राजा गणेश के अधीन हिंदू शासन का भी एक छोटा सा दौर आया , लेकिन गणेश के बेटों ने मुसलमान बनकर ही शासन करना पसंद किया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

बंगाल के सुल्तानों ने पंडुआ और गोंड की अपनी दोनों राजधानियों को शानदार इमारतों से सजाया। इन इमारतों की अपनी एक अलग शैली थी जो दिल्ली में विकसित शैली से भिन्न थी।

बंगाल के सुल्तानों ने बंगला भाषा को भी प्रश्रय दिया। ऐसा प्रश्रय पानेवालों में श्रीकृष्णा – विजय का संकलनकर्ता मालाधर बसु भी था। उसे गुणराज खां की उपाधि दी गई। उसके पुत्र को सत्यराज खां की उपाधि से सम्मानित किया गया।

बंगला भाषा के विकास का सबसे महत्वपूर्ण काल अलाउद्दीन हुसैन का शासन काल ( 1493 ई – 1519 ई ) था। उस काल के कुछ प्रसिद्ध बंगाली लेखक उसी के शासन में फूले – फले।

अलाउद्दीन हुसैन हिंदुओं को ऊंचे ऊंचे पद प्रदान किए। उदाहरण के लिए उसका वजीर एक मेधावी हिंदू था। उसका आला हकीम , अंगरक्षक दल का प्रधान और खानों का मुख्य अधिकारी उसके सब हिंदू थे।

धर्मात्मा वैष्णवों के रूप में विख्यात दो भाई – रूपा और सनातन – ऊंचे पदों पर आसीन थे। उनमें से एक तो सुल्तान का निजी सचिव था। कहते हैं , सुल्तान महान वैश्णव संत चैतन्य का बहुत आदर करता था।

उन दिनों उत्तर बंगाल और असम आपस में झगड़ते रहने वाले दो राज्य थे। पश्चिम में कामता ( जिसे उस युग के लेखक कामरूप कहते थे ) और पूर्व में अहोम राज्य था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

अहोम उत्तर बर्मा के मंगोली मूल के एक कबीले के लोग थे। तेहरवी सदी में उन्होंने असम में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना करने में सफलता प्राप्त की थी। कालांतर से वे लोग हिंदू संस्कृति के रंग में रंग गए थे। असम नाम अहोम से ही व्युत्पन्न हुआ है।

सुहुगमुंग को अहोम शासको में सबसे बड़ा माना जाता है। उसने अपना नाम बदलकर स्वर्ग नारायण रखा। यह अहोम लोगों के तेजी से हो रहे हिन्दूकरण का सूचक था।

वैष्णव सुधारक शंकर देव सुहुगमुंग का समकालीन था। उसने इस क्षेत्र में वैष्णव धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

बंगाल पर दिल्ली सल्तनत के शासन के दौर में उड़ीसा के गंग राजाओं ने राधा ( दक्षिण बंगाल ) पर हमले किए थे और लखनौती को भी जीतने की कोशिश की थी। लेकिन उनके हमलों को नाकाम कर दिया गया था।

अपने शासन काल के आरम्भ में इलियास शाह ने जाजनगर ( उड़ीसा ) पर आक्रमण किया। कहते हैं सारे प्रतिरोधों पर विजय प्राप्त करता हुआ वह चिल्का झील तक पहुंच गया और वहां से बहुत – सा लूट का माल लेकर लौटा। इस माल में बड़ी तादाद में हाथी भी शामिल थे।

1360 ईस्वी में अपने बंगाल अभियान से लौटते हुए फिरोज तुगलक ने भी उड़ीसा पर आक्रमण किया। उसने राजधानी पर कब्जा कर लिया , बहुत – से लोगों को मार डाला और प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की पवित्रता भंग की।

कालांतर से गजपति राजवंश नामक एक नए शासक घराने का उदय हुआ। गजपति शासन काल उड़ीसा के इतिहास का उत्कर्ष काल है। दक्षिण में कर्नाटक की ओर उड़ीसा के शासन का विस्तार करने का श्रेय मुख्य रूप से गजपति शासको को ही प्राप्त है। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

पश्चिमी भारत : गुजरात , मालवा और मेवाड़

फरोज तुगलक के अधीन गुजरात पर एक सौम्य सूबेदार का शासन था जिसने हिंदू धर्म को प्रोत्साहन दिया। उसके बाद जफर खां सूबेदार बना।

जफर खां का पिता मुलतः एक साधारण राजपूत था , लेकिन उसने बाद में इस्लाम कबूल करके फिरोज तुगलक से अपनी बहन का विवाह कर दिया था।

1407 ईस्वी में जफर खां दिल्ली के नाममात्र की अधीनता का त्याग करके स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया और मुजफ्फर शाह के नए नाम से गुजरात की गद्दी पर बैठ गया। परंतु गुजरात राज्य का वास्तविक संस्थापक मुजफ्फर शाह का पौत्र अहमदशाह प्रथम ( 1411 ई – 43 ई था )

अहमदशाह प्रथम राजधानी को पटना से हटकर अहमदाबाद के नए नगर में ले गया जिसका शिलान्यास उसने 1413 ईस्वी में किया था।

अहमदशाह प्रथम ने गुजरात की समृद्ध जैन वास्तु – परंपरा से काफी कुछ ग्रहण करके स्थापत की एक ऐसी शैली का विकास किया जो दिल्ली की शैली से बहुत भिन्न थी।

क्षीण कंगूरे , पत्थरों में की गई सुंदर नक्काशी, अलंकृत दीवारगीरें आदि इस शैली की कुछ खास विशेषताएं हैं। अहमदाबाद की जामा मस्जिद तथा तीन – दरवाजा इस शैली के स्थापत्य के उसके शासनकाल के उत्कृष्ट नमूने हैं। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

अहमदशाह ने प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल सिधपुर पर आक्रमण किया और वहां अनेक मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया। उसने गुजरात के हिंदुओं पर जजिया लगाया जो वहां पहले कभी नहीं लगाया गया था।

अहमदशाह नए हिंदू मंदिरों के विनाश का आदेश देकर तो धर्मांतरण का व्यवहार किया , लेकिन बहुत – से हिंदुओं को शासन में स्थान देने में उसने कोई संकोच नहीं किया।

बनिया या व्यापारी जाति में हिंदू मानिकचंद और मोतीचंद उसके मंत्री थे। न्यायप्रिय तो वह इतना था कि उसने अपने दामाद को हत्या के आरोप में सरे – बाजार मृत्यु दंड दिया।

मुजफ्फरशाह ने मालवा के शासक हुशांग शाह को पराजित करके बंदी बना लिया था। लेकिन मालवा पर अपना काबू बनाए रखना मुश्किल पाकर उसने कुछ साल के बाद हुशांग शाह को छोड़ दिया और उसका राज्य उसे वापस दे दिया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

महमूद बेगढ़ा

गुजरात का सबसे प्रसिद्ध सुल्तान महमूद बेगढ़ा था। उसने 50 वर्षों से अधिक काल तक ( 1459 ई – 1511 ई ) गुजरात पर शासन किया।

उसे बेगढ़ा इसलिए कहा जाता था कि उसने दो अत्यंत शक्तिशाली गढ़ों को – सौराष्ट्र ( अब जूनागढ़ ) में गिरनार और दक्षिण गुजरात में चंपानेर को जीता था।

गिरनार की उपयोगिता को देखते हुए महमूद बेगढ़ा ने गिरनार को जीत लिया। गिरनार के अभेद्य दुर्ग के पतन के पीछे राजद्रोह का हाथ था।

राजा ने कामदार ( मंत्री अभिकर्ता ) की पत्नी छीन ली थी और उसी ने चुपचाप किले के पतन की योजना बनाई थी। किले के पतन के बाद राजा ने इस्लाम कबूल कर लिया और उसे सुल्तान की सेवा में स्थान दे दिया गया।

सुल्तान ने पहाड़ी की तलहटी से मुस्तफाबाद नामक एक नए शहर की स्थापना की। वहां उसने कई शानदार इमारतें बनवाई और अपने सभी अमीरों से भी इमारतें बनवाने को कहा। इस तरह मुस्तफाबाद गुजरात की दूसरी राजधानी बन गया।

आगे चलकर महमूद ने द्वारका पर हमला किया जिसका मुख्य कारण यह था कि वहां जल – दस्यु छिपे रहते थे जो मक्का जाने वाले हाजियों को लूट लेते थे। लेकिन इस हमले में वहां के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों को भी तोड़ा गया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

चंपानेर के सामरिक महत्व के कारण 1454 ईस्वी में महमूद ने उस पर अधिकार कर लिया। महमूद ने चंपानेर के निकट मुहम्मदबाद नामक एक नया शहर बसाया।

चंपानेर अब ध्वस्त अवस्था में है लेकिन जो इमारत अब भी ध्यान उत्कृष्ट करती हैं वह है वहां की जामा मस्जिद जिसमें जैन स्थापत्य के सिद्धांतों का भरपूर उपयोग किया गया है।

महमूद बेगड़ा की पुर्तगालियों से भी संघर्ष करना पड़ा वे पश्चिम एशिया के देशों के साथ गुजरात के व्यापार में दखलंदाजी कर रहे थे।

पुर्तगालियों की नौसैनिक ताकत को लगाम देने के लिए महमूद ने मिस्र के शासक के साथ मित्रता की , लेकिन अपने इस मकसद में वह कामयाब नहीं हो सका।

यद्यपि महमूद बेगढ़ा ने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी , तथापि विद्वानों की सतत संगति से उसने काफी ज्ञान अर्जित किया था।

महमूद के शासनकाल में बहुत – सी रचनाएं अरबी से फारसी में अनूदित की गई। उदयराज उसका दरबारी कवि था जो संस्कृत में कविताएं लिखता था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

महमूद बेगढ़ा देखने में विचित्र था। उसकी खुली दाढ़ी उसकी कमर तक जाती थी और मूंछे इतनी लंबी थी कि वह उन्हें लपेट कर अपने सिर पर बाँधता था।

यात्री बारबोसा के अनुसार महमूद को बचपन से ही जहर दिया जाता रहा था जिससे यदि उसके हाथ पर कोई मक्खी बैठ जाती थी तो वह तुरंत सूज कर मर जाती थी।

महमूद अपनी तीव्र क्षुधा के लिए भी विख्यात था। कहते हैं , नाश्ते में वह एक कप शहद , एक कप मक्खन और 100 से डेढ़ सौ केले तक खा जाता था। वह प्रतिदिन 10 से 15 किलो भोजन चट कर जाता था।

महमूद बेगढ़ा के अधीन गुजरात राज्य अपने चरम विस्तार पर पहुंच गया। गुजरात उस काल के सबसे अधिक शक्तिशाली तथा सुप्रशासित राज्य के रूप में उभरा। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

मालवा और मेवाड़

मालवा राज्य नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच ऊंचे पठार पर स्थित था। वह गुजरात को उत्तर भारत और उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले मुख्य मार्गों पर पड़ता था।

पंद्रहवीं सदी के दौरान मालवा राज्य अपने वैभव के उच्चतम शिखर पर था। राजधानी को धार से हटकर मांडू ले जाया गया।

यहां की स्थापत्य शैली गुजरात की शैली से भिन्न थी। मालवा शैली में विशालता थी जो इमारतों की कुर्सियों की ऊंचाई के कारण और भी विशाल दिखाई देती थी।

बड़े पैमाने पर रंगीन और चिकनी टाइलों के इस्तेमाल से इमारत की छटा में विविधता आ जाती थी। जमा मस्जिद , हिंडोला महल और जहाज महल वहां की सबसे विख्यात इमारतें हैं।

मालवा के एक आरंभिक शासक हुशांगशाह ने धार्मिक सहिष्णुता की उदार नीति अपनाई। बहुत – से राजपूतों को मालवा में बसने को प्रोत्साहित किया गया। उदाहरण के लिए , मेवाड़ के राणा मोकल के दो भाइयों को मालवा में जागीरें दी गई।

ललितपुर मंदिर का निर्माण इसी काल में हुआ। इसके अभिलेखों से मालूम होता है कि मंदिरों के निर्माण पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

हुशांगशाह ने जैनों को, जो इस क्षेत्र के प्रमुख व्यापारी और साहूकार थे , प्रश्रय दिया। मसलन , सफल सौदागर नरदेव सोनी हुशांगशाह शहर का खजांची और सलाहकार था।

महमूद खिलजी ( 1436 ई – 69 ई ) ने , जो मालवा के शासको में सबसे अधिक शक्तिशाली माना जाता है , मेवाड़ के राणा कुंभा और पड़ोसी हिंदू राजाओं से अपने संघर्ष के दौरान बहुत – से मंदिरों को नष्ट कर दिया।

महमूद खिलजी अधीर और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने लगभग सभी पड़ोसियों से लड़ाई की। इनमें गुजरात , गोंडवाना और उड़ीसा के राजा , बहमनी सुल्तान और यहां तक की दिल्ली का सुल्तान भी शामिल था। लेकिन उसने सबसे ज्यादा जोर दक्षिण राजपूताना को हराने और मेवाड़ को परास्त करने में लगाया।

15वीं सदी में मेवाड़ का उदय उत्तर भारत की राजनीति की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसकी राजधानी जोधपुर ( 1465 ईस्वी में स्थापित ) में थी।

इस क्षेत्र का दूसरा महत्वपूर्ण राज्य नागौर का मुस्लिम राज्य था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

मेवाड़ राज्य को एक प्रबल शक्ति का दर्जा दिलाने का श्रय राणा कुंभा ( 1433 ई – 68 ई ) को प्राप्त है।

अपने शासन के पूरे दौर में कुंभा गुजरात और मालवा से जूझने में व्यस्त रहा। साथ ही उसे मारवाड़ के राठौरों से भी निपटना पड़ा।

कुंभा विद्वानों को संरक्षण देता था और खुद भी एक अच्छा विद्वान था। उसने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें से कुछ आज भी पढ़ने को उपलब्ध है। उसके राजमहल के ध्वंसावशेष और चित्तौड़ का उसका कीर्तिस्तंभ इस बात का साक्षी है कि वह एक उत्साही निर्माता भी था।

गद्दी हासिल करने के लिए कुंभा के बेटे उदा ने उसकी हत्या कर दी। यद्यपि उदा को शीघ्र ही अपदस्थ कर दिया गया।

भाइयों की जान के ग्राहक बने भाइयों के बीच चलने वाले लंबे संघर्ष के बाद 1508 ईस्वी में कुंभ का एक पौत्र सांगा मेवाड़ की गद्दी पर बैठा।

1511 ईस्वी में राणा एक लड़ाई में महमूद द्वितीय ( मालवा सुल्तान ) को हराकर बंदी के रूप में उसे चित्तौड़ ले गया। लेकिन कहते हैं , 6 महीने के बाद महमूद के एक बेटे को बंधक रखकर राणा ने उसे मुक्त कर दिया। पूर्वी मालवा , जिसमें चंदेरी भी शामिल था , राणा के प्रभुत्व में आ गया।

दिल्ली के लोदी शासक सुल्तान इब्राहिम लोदी ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया , लेकिन घटोली की लड़ाई में राणा सांगा से बुरी तरह हराकर वह दिल्ली लौट गया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

उत्तर पश्चिमी और उत्तर भारत सक्रिय लोधी सुल्तान तथा कश्मीर

तैमूर के हमले के बाद दिल्ली की गद्दी की इज्जत मिट्टी में मिल चुकी थी। महत्वाकांक्षी अमीरों और जमीदारों ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी।

गंगा की घाटी में अपनी आजादी की घोषणा सबसे पहले करने वालों में एक था मलिक सरवर जो फिरोजशाह तुगलक के समय का एक प्रमुख अमीर था।

मलिक सरवर कुछ समय तक वजीर रहा था और उसके बाद से मालिक – उस – शर्क ( पूर्व के स्वामी ) के ख़िताब के साथ सुल्तान के पूर्वी क्षेत्र का शासक बना दिया था। उसके इस ख़िताब के कारण ही उसके उत्तराधिकारी शर्की कहलाए।

शर्की सुल्तानों ने जौनपुर को ( पूर्वी उत्तर प्रदेश में ) अपनी राजधानी बनाया और उसे शानदार इमारतों , मस्जिदों और मकबरों से सजाया।

शर्की सुल्तानों ने अपनी एक अलग शैली विकसित की जिसकी विशेषता ऊंचे – ऊंचे सिंहद्वारा और विशालकाय मेहराबों से प्रकट होती है।

शर्की सुल्तानों ने विदवत्ता और संस्कृति को भरपूर संरक्षण दिया। जौनपुर में कवियों और साहित्यकारों , संतों और विद्वानों का जमघट – सा लगा रहता था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

कालांतर से जौनपुर को ‘ पूर्व का शिराज ‘ कहा जाने लगा। प्रसिद्ध हिंदी महाकाव्य ‘ पद्मावत ‘ का रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी जौनपुर का ही निवासी था।

शर्की सल्तनत अपनी उत्कर्ष काल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ से लेकर उत्तर बिहार के दरभंगा तक और उत्तर में नेपाल की सीमा से लेकर दक्षिण में बुंदेलखंड तक फैली हुई थी।

अंत में 1484 ईस्वी में सुल्तान बहलोल लोदी ने जौनपुर को जीतकर शर्की राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिला दिया।

तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली में एक नए राजवंश का उदय हुआ। यह था सैयद राजवंश।

बहलोल लोदी को सरहिंद का इक्ता बख्शा गया था। बहलोल ने खोखर नमक खूंखार लड़ाका कबीले के लोगों की बढ़ाते हुए शक्ति पर अंकुश लगाया।

सुल्तान ने बहलोल को मालवा के सुल्तान के आसन्न आक्रमण के खिलाफ मदद करने के लिए दिल्ली बुलाया तो बहलोल दिल्ली में ही जाकर बैठ गया। उसकी मृत्यु के बाद 1451 ईस्वी में बहलोल ने विधिवत्त सुल्तान का ताज धारण कर लिया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

दिल्ली के इससे पहले के सभी सुल्तान तुर्क थे , लेकिन लोदी अफगान थे। यद्यपि दिल्ली सल्तनत की सेना में अफ़गानों की संख्या अच्छी खासी थी तथापि बहुत कम अफगान सरदारों को महत्वपूर्ण स्थान दिए गए थे।

बहलोल लोदी को अपनी ताकत का इस्तेमाल मुख्य रूप से शर्की शासकों को सर करने में करना पड़ा।

लोदी सुल्तानों में सबसे बड़ा सिकंदर लोदी ( 1489 ई – 1517 ई ) हुआ। गुजरात के महमूद बेगढ़ा और मेवाड़ के राणा सांगा के समकालीन सिकंदर लोदी ने इन ताकतों के साथ भावी संघर्ष के निमित्त दिल्ली सल्तनत को तैयार करना शुरू कर दिया।

अफगान सरदारों को अपने श्रेष्ठ स्थान का अहसास करने के लिए सिकंदर ने अपनी उपस्थिति में इन सरदारों को खड़े रहने के लिए मजबूर किया। जब कोई शाही फरमान भेजा जाता था तो सभी सरदारों को आदर पूर्वक उसे ग्रहण करने के लिए शहर से बाहर आना पड़ता था।

लेकिन सरदारों को नियंत्रित करने में सिकंदर लोदी को सीमित सफलता ही मिली। बहलोल लोदी ने अपनी मृत्यु के समय अपने राज्य को अपने बेटों और रिश्तेदारों के बीच बांट दिया थी। लेकिन सिकंदर ने इस बँटवारे को ख़ारिज कर दिया था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

सिकंदर लोदी ने अपने राज्य में कुशल प्रशासन की स्थापना की। न्याय पर उसका बहुत जोर रहता था। साम्राज्य की सभी मुख्य मार्गों को डाकुओं और लुटेरों से मुक्त कर दिया गया था। सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें काफी कम थी।

सुल्तान ( सिकंदर लोदी ) कृषि के मामले में गहरी दिलचस्पी लेता था। उसने अनाजों पर से चुंगी हटा दी। उसने पैमाइश का एक नया पैमाना शुरू किया जो गज्ज – ए – सिकंदरी कहलाता था। यह पैमाना मुगल काल तक प्रचलित रहा।

सिकंदर लोदी के समय में लगानों की जो सूचियाँ तैयार की गई उनका इस्तेमाल बाद में शेरशाह के समय में तैयार की गई सूचियों के लिए आधार के तौर पर किया गया।

सिकंदर लोदी एक कट्टर , बल्कि धर्मांध शासक माना जाता है। उसने मुसलमानों को शरीयत के खिलाफ जाने वाली रीति – रिवाजों पर चलने से शक्ति से मना कर दिया। उदाहरण के लिए इस तरह स्त्रियों को पीरों की मजारों पर जाने या उनकी याद में जुलूस निकालने की मनाही कर दी गई।

उसने हिंदुओं पर फिर से जजिया लगा दिया और एक ब्राह्मण को इस कारण मृत्युदंड दिया कि उसने हिंदू और मुसलमानों – दोनों के धर्मग्रंथो को समान रूप से पवित्र बताया था। अपने सैनिक अभियानों के दौरान उसने कुछ प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों को भी तोड़ा था – जैसे नगरकोट के मंदिर को। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

सिकंदर लोदी ने विद्वानों , तत्वचिंताकों और साहित्यकारों को बड़े-बड़े इनाम बख्शीश दिए जिससे सुल्तान के प्रयत्नों से संस्कृत की गई कृतियां फारसी में अनूदित की गई।

सिकंदर लोदी की संगीत में भी गहरी रुची थी। उसने संगीत पर संस्कृत की कई रचनाओं का फारसी में अनुवाद करवाया। उसके काल में बहुत से हिंदुओं ने फारसी पढ़ना शुरू कर दिया। फारसी के जानकार हिन्दुओं को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया गया।

सिकंदर लोदी ने धौलपुर और ग्वालियर को जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया। इन्हीं सैनिक कार्रवाइयों के दौरान सिकंदर लोदी ने सावधानी के साथ सर्वेक्षण करके और पूरे सोच – विचार के बाद आगरा नगर के ठिकाने का चयन 1506 ईस्वी में किया।

आगरा को बसाने के पीछे प्रयोजन यह था कि यहां से पूर्वी राजस्थान के प्रदेशों और मालवा तथा गुजरात को जाने वाले मार्गों पर नियंत्रण रखा जा सकता था। कालांतर से आगरा एक विशाल नगर और लोदियों की दूसरी राजधानी बन गया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

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कश्मीर की सुंदर घाटी दीर्घकाल से सभी बहरी लोगों के लिए वर्जित थी। अलबरूनी के अनुसार , कश्मीर में ऐसे हिंदुओं को भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता था जो वहां के सरदारों से व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं थे।

उस काल में कश्मीर शैव धर्म के केंद्र के रूप में विख्यात था। लेकिन चौदहवीं सदी के मध्य के आसपास हिंदू शासन की समाप्ति के साथ स्थिति बदल गई।

मंगोल नायक दलूचा द्वारा 1320 ईस्वी में कश्मीर पर किया गया हमला हिंदू शासन के अंत का आरंभ था। कहते हैं कि दलूचा ने पुरुषों का कत्लेआम कर देने का हुक्म दिया और उनकी स्त्री और बच्चों को गुलाम बनाकर मध्य एशिया के व्यापारियों के हाथों बेच दिया।

मंगल हमले के 100 साल बाद जैनुल आबिदीन कश्मीर की गद्दी पर बैठा। उसे कश्मीर के मुसलमान शासको में सबसे बड़ा माना जाता है।

सिकंदर शाह के शासनकाल ( 1389 ईस्वी – 1413 ईस्वी ) में ब्राह्मणों पर अत्याचार किया जाना शुरू हुआ। सुल्तान ने हुक्म जारी किया कि या तो सभी ब्राह्मण और पढ़े-लिखे हिंदू मुसलमान बन जाएँ या घाटी छोड़कर चले जाएँ। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

सुल्तान के हुकुम के मुताबिक हिंदू के मंदिरों को धूल में मिला देना था और सोना – चांदी की प्रतिमाओं को गलाकर उनसे सिक्के ढालने थे। कहते हैं कि यह हुकुम राजा के मंत्री सुहा भट्ट की सलाह पर जारी किया गया जिसने हिंदू धर्म का त्याग करके इस्लाम को अपनाया था और अब वह अपने पूर्व सहधर्मियों को सता रहा था।

जैनुल आबिदीन ( 1420 ई – 70 ई ) की गद्दी – नशीनी के साथ यह स्थिति बदल गई। उसने उक्त सभी आदेशों को रद्द करवा दिया। जैनुल आबिदीन ने कश्मीर छोड़कर चले जाने वाले सभी गैर – मुसलमानों को समझा – बूझकर वापस बुलाया।

जो लोग फिर से हिंदू धर्म में वापस जाना चाहते थे या जिन्होंने सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान होने का दिखावा किया था उन्हें अपनी इच्छा अनुसार चाहे जिस धर्म को मानने की छूट दे दी गई। उसने हिंदुओं के पुस्तकालय उन्हें वापस कर दिए और उन्हें अपने पहले जो अनुदान मिलते थे उन्हें फिर से चालू करवा दिया।

जैनुल आबिदीन ने सहिष्णुता और उदारता की नीति को अन्यान्य क्षेत्रों में भी लागू कर दिया। उसने जजिया और गोवध बंद करवा दिया और हिंदुओं की इच्छा का आदर करते हुए सती प्रथा पर लगी पाबंदी उठा ली। उसकी सरकार में हिंदू कई ऊँचे पदों पर आसीन थे। उदाहरण के लिए श्रेया भट्ट न्याय विभाग का मंत्री और दरबारी वैद्य था। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

जैनुल आबिदीन काफी पढ़ा – लिखा था और कविता लिखता था। वह फ़ारसी , कश्मीरी , संस्कृत और तिब्बती भाषाओं में पारंगत था। उसने संस्कृत और फारसी के विद्वानों को संरक्षण दिया। उसके आदेश पर संस्कृत की कई रचनाओं का फारसी में अनुवाद किया गया। इनमें महाभारत के अलावा कल्हण द्वारा लिखा गया कश्मीर का इतिहास राजतरंगिणी भी शामिल था।

जैनुल आबिदीन संगीत का प्रेमी था और जब ग्वालियर के राजा को इसकी जानकारी मिली तो उसने संगीत पर दो दुर्लभ कृतियां उसे भेंट के तौर पर भेजी।

सुल्तान जैनुल आबिदीन ने कश्मीर के आर्थिक विकास की ओर भी ध्यान दिया। उसने दो व्यक्तियों को कागज बनाने और जिल्दसाजी की कला सीखने के लिए समरकंद भेजा।

जैनुल आबिदीन ने कश्मीर में कई शिल्पो को बढ़ावा दिया – जैसे पत्थर काटना और पत्थर पर पॉलिश करना , बोतल बनाना , स्वर्णकारी आदि।

जैनुल आबिदीन ने शाल बनाने की कारीगरी को भी बढ़ावा दिया जिसके लिए कश्मीर आज भी इतना प्रसिद्ध है। कश्मीर में कट्टे बनाने और आतिशबाजी की कला का भी विकास हुआ था।

सुल्तान जैनुल आबिदीन ने बड़ी संख्या में बांध , नहरें और पुल बनवाकर कृषि को बढ़ावा दिया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

जैनुल आबिदीन एक उत्साहित निर्माता भी था। जैना लंका उसकी अभियंतन ( इंजीनियरिंग ) संबंधी उत्कृष्ट उपलब्धि थी। यह वुलूर झील में तैयार कृत्रिम द्वीप था जिस पर उसका राजमहल और मस्जिद बनवाई गई थी।

जैनुल आबिदीन ( जैन – उल – आबिदीन ) को कश्मीर आज भी बड़शाह ( बड़ा शाह ) कहते है। उसने लद्दाख पर मंगोल हमले को नाकाम कर दिया। उसने बाल्टिस्तान क्षेत्र ( जिसे तिब्बत – ए – खुर्द कहा जाता था ) को जीता और जम्मू , राजौरी वगैरह पर अपना नियंत्रण कायम रखा। इस प्रकार उसने कश्मीरी राज्य का एकीकरण किया।

15वीं सदी के घटनाक्रम के इस संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट है कि क्षेत्रीय शक्ति – संतुलन भारत को न तो शांति दे सका और न स्थिरता । परंतु क्षेत्रीय राज्यों ने सांस्कृतिक विकास में भरपूर योगदान किया। उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष – 1

Questions And Answers

प्रश्न 1 – तैमूर ने दिल्ली पर कब हमला किया ?

उत्तर – 1398 ईस्वी में।

प्रश्न 2 – सुल्तान तुगलक ने तैमूर के हमले के दौरान क्या किया ?

उत्तर – राजधानी छोड़कर भाग गए।

प्रश्न 3 – तैमूर के हमले का दिल्ली सल्तनत पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर – सल्तनत की कमजोरी उजागर हो गई और कई सूबेदारों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 4 – लोदी शासन का उदय कब हुआ ?

उत्तर – 15वीं सदी के मध्य में।

प्रश्न 5 – लोदियों और जौनपुर के शासकों के बीच किसके लिए संघर्ष हुआ ?

उत्तर – गंगा-यमुना दोआब के स्वामित्व के लिए।

प्रश्न 6 – जौनपुर का लोदी सल्तनत में विलय कब हुआ ?

उत्तर – 15वीं सदी के अंत में।

प्रश्न 7 – उत्तर भारत के स्वामित्व के लिए किसके बीच संघर्ष हुआ ?

उत्तर – गुजरात, मेवाड़, और लोदियों के बीच।

प्रश्न 8 – राणा सांगा ने बाबर को क्यों बुलाया ?

उत्तर – तीव्र प्रतिद्वंद्विता के कारण।

प्रश्न 9 – इलियास खां ने किस उपाधि के साथ बंगाल पर शासन किया ?

उत्तर – सुल्तान शम्सुद्दीन इलियास खां।

प्रश्न 10 – फिरोज तुगलक और इलियास खां के बीच किस नदी को सीमा बनाया गया ?

उत्तर – कोसी नदी।

प्रश्न 11 – इलियास खां के राजवंश का सबसे प्रसिद्ध सुल्तान कौन था ?

उत्तर – गयासुद्दीन आजमशाह ( 1389 ई – 1409 ई )।

प्रश्न 12 – बंगाल के शासको में से कौन – सा शासक न्यायप्रियता के लिए अधिक विख्यात था तथा जिसका घनिष्ठ संबंध शिराज के फारसी शायर हाफिज के साथ था ?

उत्तर – गयासुद्दीन आजमशाह

प्रश्न 13 – बंगाल के किस शासक ने चीनियों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए तथा चीनी सम्राट ने उसके दूत का हार्दिक स्वागत किया।

उत्तर – गयासुद्दीन आजमशाह

प्रश्न 14 – बंगला भाषा के विकास का सबसे महत्वपूर्ण काल किस शासक का शासन काल था ?

उत्तर – अलाउद्दीन हुसैन

प्रश्न 15 – चटगांव किसके व्यापारिक बंदरगाह के रूप में उभरा ?

उत्तर – चीन के साथ व्यापार का।

प्रश्न 16 – बंगला भाषा के विकास का सबसे महत्वपूर्ण काल किस शासक का शासन काल था ?

उत्तर – अलाउद्दीन हुसैन ( ( 1493 ई – 1519 ई ) ।

प्रश्न 17 – ‘ श्रीकृष्णा – विजय ‘ का संकलनकर्ता कौन था जिसे गुणराज खां की उपाधि दी गई ?

उत्तर – मालाधर बसु

प्रश्न 18 – धर्मात्मा वैष्णवों के रूप में विख्यात दो भाई – रूपा और सनातन – किस के शासन काल में ऊंचे पदों पर आसीन थे ?

उत्तर – अलाउद्दीन हुसैन।

प्रश्न 19 – अहोम राज्य की स्थापना किसने की ?

उत्तर – उत्तर बर्मा के मंगोली मूल के कबीले ने।

प्रश्न 20 – सुहुगमुंग जिसे अहोम शासको में सबसे बड़ा माना जाता है , उसने अपना नाम क्या रखा ?

उत्तर – स्वर्ग नारायण।

प्रश्न 21 – सुहुगमुंग का समकालीन वैष्णव सुधारक जिसने वैष्णव धर्म के प्रचार में अहम भूमिका निभाई –

उत्तर – शंकर देव।

प्रश्न 22 – गजपति शासकों का इतिहास में क्या योगदान है ?

उत्तर – उड़ीसा के शासन का विस्तार और उत्कर्ष काल।

प्रश्न 23 – फिरोज तुगलक ने उड़ीसा पर कब आक्रमण किया ?

उत्तर – 1360 ईस्वी में।

प्रश्न 24 – 1360 ईस्वी में जगन्नाथ मंदिर पर आक्रमण किसने किया ?

उत्तर – फिरोज तुगलक ने।

प्रश्न 25 – गुजरात के पहले सौम्य सूबेदार ने किस धर्म को प्रोत्साहन दिया ?

उत्तर – हिंदू धर्म।

प्रश्न 26 – जफर खां का पिता कौन था ?

उत्तर – एक साधारण राजपूत जिसने इस्लाम स्वीकार कर लिया था।

प्रश्न 27 – जफर खां ने गुजरात की गद्दी पर किस नाम से शासन किया ?

उत्तर – मुजफ्फर शाह।

प्रश्न 28 – गुजरात राज्य का वास्तविक संस्थापक कौन था ?

उत्तर – अहमदशाह प्रथम (1411-1443 ईस्वी)।

प्रश्न 29 – अहमदशाह प्रथम ने राजधानी कहां स्थानांतरित की ?

उत्तर – पटना से अहमदाबाद।

प्रश्न 30 – अहमदाबाद का शिलान्यास किसने और कब किया ?

उत्तर – अहमदशाह प्रथम ने (1413 ईस्वी में ) ।

प्रश्न 31 – अहमदशाह के स्थापत्य शैली की खास विशेषताएं क्या थीं ?

उत्तर – क्षीण कंगूरे, सुंदर नक्काशी, और अलंकृत दीवारगीरें।

प्रश्न 32 – अहमदशाह प्रथम की स्थापत्य शैली के उत्कृष्ट नमूने कौन से हैं ?

उत्तर – अहमदाबाद की जामा मस्जिद और तीन-दरवाजा।

प्रश्न 33 – गुजरात के हिंदुओं पर सर्वप्रथम जजिया किसने लगाया ?

उत्तर – अहमदशाह प्रथम।

प्रश्न 34 – हिंदू व्यापारी मानिकचंद और मोतीचंद किस के मंत्री थे ?

उत्तर – अहमदशाह प्रथम के

प्रश्न 35 – मुजफ्फरशाह ने मालवा के किस शासक को पराजित कर बंदी बना लिया , लेकिन मालवा पर नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल होने के कारण उसे छोड़ दिया ?

उत्तर – हुशांग शाह को ।

प्रश्न 36 – गुजरात का सबसे प्रसिद्ध सुल्तान कौन था ?

उत्तर – महमूद बेगढ़ा।

प्रश्न 37 – महमूद बेगढ़ा को ” बेगढ़ा ” क्यों कहा जाता था ?

उत्तर – उसने गिरनार और चंपानेर जैसे दो शक्तिशाली किलों को जीता था।

प्रश्न 38 – मुस्तफाबाद शहर की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर – महमूद बेगढ़ा ने ।

प्रश्न 39 – द्वारका पर महमूद बेगढ़ा ने हमला क्यों किया ?

उत्तर – वहां जल-दस्यु मक्का जाने वाले हाजियों को लूटते थे।

प्रश्न 40 – महमूद बेगढ़ा ने चंपानेर पर कब अधिकार किया ?

उत्तर – 1454 ईस्वी में।

प्रश्न 41 – चंपानेर के निकट महमूद ने कौन सा नया शहर बसाया ?

उत्तर – मुहम्मदबाद।

प्रश्न 42 – चंपानेर की जामा मस्जिद में किस स्थापत्य शैली का उपयोग हुआ ?

उत्तर – जैन स्थापत्य के सिद्धांतों का।

प्रश्न 43 – महमूद बेगढ़ा ने पुर्तगालियों के खिलाफ किसके साथ मित्रता की ?

उत्तर – मिस्र के शासक के साथ।

प्रश्न 44 – उदयराज ( जो संस्कृत में कविताएं लिखता था ) किस का दरबारी कवि था ?

उत्तर – महमूद बेगढ़ा।

प्रश्न 45 – कौन – सा राज्य गुजरात को उत्तर भारत और उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले मुख्य मार्गों पर पड़ता था ?

उत्तर – मालवा राज्य।

प्रश्न 46 – पंद्रहवीं सदी के दौरान मालवा की राजधानी कहां स्थानांतरित की गई ?

उत्तर – धार से मांडू।

प्रश्न 47 – मालवा की स्थापत्य शैली की विशेषता क्या थी ?

उत्तर – विशालता, ऊंची इमारतें, और रंगीन चिकनी टाइलों का उपयोग।

प्रश्न 48 – मालवा की प्रसिद्ध इमारतें कौन सी हैं ?

उत्तर – जमा मस्जिद, हिंडोला महल, और जहाज महल।

प्रश्न 49 – मालवा के आरंभिक शासक हुशांगशाह ने किस नीति का पालन किया ?

उत्तर – धार्मिक सहिष्णुता की उदार नीति।

प्रश्न 50 – मालवा के प्रसिद्ध सौदागर और खजांची कौन थे ?

उत्तर – नरदेव सोनी।

प्रश्न 51 – मालवा के सबसे शक्तिशाली शासक कौन थे ?

उत्तर – महमूद खिलजी (1436 ई – 1469 ई)।

प्रश्न 52 – महमूद खिलजी ने किस क्षेत्र को हराने पर सबसे ज्यादा जोर दिया ?

उत्तर – दक्षिण राजपूताना और मेवाड़।

प्रश्न 53 – मेवाड़ को एक प्रबल शक्ति का दर्जा किसने दिलाया ?

उत्तर – राणा कुंभा (1433 ई – 1468 ई)।

प्रश्न 54 – राणा कुंभा की उपलब्धियों का प्रमुख उदाहरण क्या है ?

उत्तर – चित्तौड़ का कीर्तिस्तंभ और उनके राजमहल के ध्वंसावशेष।

प्रश्न 55 – कुंभा की हत्या किसने की ?

उत्तर – उनके बेटे उदा ने।

प्रश्न 56 – राणा सांगा ( कुंभ का एक पौत्र ) मेवाड़ की गद्दी पर कब बैठे ?

उत्तर – 1508 ईस्वी में।

प्रश्न 57 – घटोली की लड़ाई में राणा सांगा ने किसे हराया ?

उत्तर – दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को।

प्रश्न 58 – मलिक सरवर कौन था, और उसे कौन-सा ख़िताब दिया गया ?

उत्तर – वह फिरोजशाह तुगलक का एक प्रमुख अमीर था, जिसे ‘ मालिक-उस-शर्क ‘ का ख़िताब दिया गया।

प्रश्न 59 – शर्की सुल्तानों की राजधानी कहां थी ?

उत्तर – जौनपुर।

प्रश्न 60 – जौनपुर को किस उपनाम से जाना गया ?

उत्तर – ‘ पूर्व का शिराज ‘।

प्रश्न 61 – प्रसिद्ध हिंदी महाकाव्य ‘पद्मावत’ के रचयिता कौन थे ?

उत्तर – मलिक मुहम्मद जायसी ( जौनपुर निवासी )।

प्रश्न 62 – शर्की सल्तनत का अंत किसने किया ?

उत्तर – 1484 ईस्वी में सुल्तान बहलोल लोदी ने।

प्रश्न 63 – लोदी सुल्तानों में सबसे बड़ा शासक कौन था ?

उत्तर – सिकंदर लोदी (1489 ई – 1517 ई)।

प्रश्न 64 – पैमाइश का एक नया पैमाना ‘ गज्ज – ए – सिकंदरी ‘ किसने शुरू किया ? जो मुगल काल तक प्रचलित रहा।

उत्तर – सिकंदर लोदी।

प्रश्न 65 – सिकंदर लोदी ने आगरा नगर की स्थापना कब की ?

उत्तर – 1506 ईस्वी में।

प्रश्न 66 – मंगोल नायक दलूचा द्वारा 1320 ईस्वी में कश्मीर पर किया गया हमला किस शासन के अंत का आरंभ था ?

उत्तर – हिंदू शासन।

प्रश्न 67 – कश्मीर के सबसे बड़े मुस्लिम शासक कौन माने जाते हैं ?

उत्तर – जैनुल आबिदीन (1420 ई – 1470 ई) ।

प्रश्न 68 – जैनुल आबिदीन ने किस नीति का पालन किया?

उत्तर – सहिष्णुता और उदारता।

प्रश्न 69 – जैनुल आबिदीन ने किस भाषा के विद्वानों को संरक्षण दिया ?

उत्तर – फारसी, कश्मीरी, संस्कृत, और तिब्बती।

प्रश्न 70 – कश्मीर की प्रसिद्ध शिल्प कला का विकास किसने किया ?

उत्तर – जैनुल आबिदीन ने।

प्रश्न 71 – जैनुल आबिदीन ने वुलूर झील में क्या बनाया ?

उत्तर – जैना लंका नामक कृत्रिम द्वीप।

प्रश्न 72 – जैनुल आबिदीन को कश्मीर में क्या कहा जाता है ?

उत्तर – बड़शाह (बड़ा शाह)।