विज्ञान और सभ्यता की विरासत
विज्ञान और सभ्यता की विरासत :- प्रकृति की कृपालुता और क्रूरता दोनों ने मानव को धर्म और अलौकिक शक्ति के विषय में सोचने को बाध्य कर दिया।
भारत में ब्राह्मण धर्म या हिंदू धर्म पूर्व काल में प्रभावशाली रूप में विकसित हुआ। इसने कला और साहित्य के साथ समाज को भी प्रभावित किया।
ब्राह्मणीय धर्म के साथ-साथ भारत में जैन और बौद्ध धर्म भी उदित हुए। ईसाई धर्म इस देश में ईसा की पहली सदी के आसपास आया।
अपने प्रचार – प्रसार के क्रम में बौद्ध धर्म ने पड़ोसी क्षेत्रों को भारतीय कला , भाषा और साहित्य से उद्भासित किया।
जैन धर्म भारत में , बौद्ध धर्म के विपरीत , टिका रहा और यहां की कला और साहित्य के विकास में प्रेरणा देता रहा। आज भी इस धर्म के अनुयायी लोग विशेषकर व्यापारी वर्ग में , राजस्थान , गुजरात और कर्नाटक में काफी संख्या में है। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
वर्णव्यवस्था
भारत में धर्म के प्रभाव से विशेष प्रकार के सामाजिक वर्गों का गठन हुआ। यहां वर्ण – संबंधी नियमों को राज्य और धर्म दोनों का समर्थन प्राप्त था।
ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के कर्तव्य विधि द्वारा परिभाषित किए गए थे और विश्वास प्रचलित था कि यह वर्ण – व्यवस्था देवी शक्ति द्वारा निश्चित की गई है।
अगर कोई व्यक्ति अपने निर्धारित कर्तव्यों से च्युत होता था और अपराधी पाया जाता था तो उसे लौकिक दंड के साथ-साथ प्रायश्चित और अनुष्ठान करने पड़ते थे। दंड अपराधी के वर्ण के अनुसार भिन्न-भिन्न कोटि के होते थे। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
धीरे – धीरे कानून और धर्म दोनों ने वर्णों और जातियों को कर्ममूलक से जन्ममूलक या अनुवांशिक बना दिया।
श्रम – विभाजन और व्यवसाय के विशेषीकारण के सिद्धांत पर टिकी यह अद्भुत वर्ण – व्यवस्था आरंभिक अवस्था में अवश्य ही सामाजिक और आर्थिक विकास में सहायक हुई। वर्ण – व्यवस्था का हाथ राज्य के विकास में भी रहा।
उत्पादक वर्ग और श्रमिक वर्ग अर्थात वैश्य और शूद्र दोनों अस्त्रहीन कर दिए गए।
भगवदगीता के अनुसार दूसरे का धर्म अपनाने के बदले धर्म की रक्षा के लिए मर जाना अच्छा है क्योंकि दूसरे धर्म को अपनाने का परिणाम संकटपूर्ण होता है। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
दार्शनिक पद्धतियां
भारतीय चिंतकों ने संसार को माया समझ तथा आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंधों की गंभीर विवेचना की।
प्राचीन भारत दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध माना जाता है।
भारत में उदित छह दार्शनिक पद्धतियों के बीच हम भौतिकवादी दर्शन के तत्व सांख्य में पाते हैं , जिसके संस्थापक ‘ कपिल ‘ का जन्म 580 ईसा – पूर्व के आसपास हुआ था।
कपिल के अनुसार आत्मज्ञान के साधन है प्रत्यक्ष , अनुमान और शब्द। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
सांख्यदर्शन में ईश्वर का अस्तित्व नहीं माना गया है। इसके अनुसार संसार की सृष्टि ईश्वर ने नहीं , प्रकृति ने की है तथा संसार और मानव जीवन की नियामिका स्वयं प्रकृति है।
भौतिकवादी दर्शन को ठोस बनाने का सबसे बड़ा श्रेय ‘ चार्वाक ‘ को है , जो ईसा – पूर्व छठी सदी के आसपास हुए थे। चार्वाक का दर्शन ‘ लोकायत ‘ कहलाता है। इस दर्शन के अनुसार जिसका अनुभव मनुष्य अपनी इंद्रियों द्वारा नहीं कर सकता है , उसका वास्तव में अस्तित्व नहीं है। इसके अनुसार ईश्वर का अस्तित्व नहीं है।
उपनिषदों में लोगों को उपदेश दिया गया है कि सांसारिक विषयों से दूर रहे और ज्ञान पाने की चेष्टा करें।
प्रख्यात जर्मन दार्शनिक ‘ शोपेनहावर ‘ ने अपनी दार्शनिक विचारधारा में वेदों और उपनिषदों को भी स्थान दिया है। वह कहा करते थे कि उपनिषदों ने उन्हें इस जन्म में दिलासा दी है और मृत्यु के बाद भी देती रहेंगी। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
शिल्प और प्रौद्योगिकी
भारतीय शिल्पी रंगाई करने तथा तरह-तरह के रंग बनाने में परम दक्ष थे। भारत में बनाए गए मूल रंग इतने चमकीले और पक्के होते थे कि अजंता और एलोरा के मोहक चित्र आज भी ज्यों के त्यों हैं।
भारत के लोग इस्पात बनाने में भी परम कुशल थे। इस्पात बनाने की कला सबसे पहले भारत में ही विकसित हुई। आगे चलकर इस्पात ‘ उत्स ‘ कहलाने लगा।
विश्व का कोई अन्य देश इस्पात की वैसी तलवारें नहीं बना सकता था जैसी भारतीय शिल्पी बनाते थे। पूर्वी एशिया से लेकर पूर्वी यूरोप तक इन तलवारों की भारी मांग थी। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
राजतंत्र
कौटिल्य के ‘ अर्थशास्त्र ‘ से इस बात में कोई शंका नहीं है कि भारत के लोग विशाल साम्राज्य का प्रशासन चला सकते थे और जटिल समाज की समस्याओं को हल कर सकते थे।
यूनान के अलावा भारत ही एक ऐसा देश है जहां किसी – न – किसी प्रकार के गणतंत्र का प्रयोग – परीक्षण किया गया हो। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
विज्ञान और गणित
प्राचीन काल में धर्म और विज्ञान आपस में गुंथे – से थे।
इस देश में खगोल – विद्या में इसलिए बहुत प्रगति हुई कि ग्रह देवता माने जाते थे और उनकी गति का गहन अवलोकन आरंभ हो गया।
ग्रहों का अध्ययन इसलिए भी आवश्यक हो गया कि उनका ऋतुओं और मौसमों के परिवर्तनों से संबंध था और इन परिवर्तनों की जानकारी खेती के काम में आवश्यक थी।
व्याकरण और भाषाविज्ञान का उद्धव इसलिए हुआ कि ब्राह्मण पुरोहित वेद की रचनाओं और मंत्रों के उच्चारण की शुद्धता को बहुत महत्त्व देते थे।
ईसा पूर्व चौथी सदी में संस्कृत भाषा के नियमों को सुव्यवस्थित रूप से संकलित करके पाणिनि ने व्याकरण लिखी जो ‘ अष्टाध्यायी ‘ के नाम से प्रख्यात है। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
ईसा पूर्व तीसरी सदी में आकर गणित , खगोलविद्या और आयुर्विज्ञान तीनों का विकास अलग-अलग प्रारंभ हुआ।
गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों ने तीन विशिष्ट योगदान किए – अंकन पद्धति , दाशमिक पद्धति और शून्य का प्रयोग। दाशमिक पद्धति के प्रयोग का सबसे प्राचीन उदाहरण ईसा की पांचवी सदी के आरंभ का है।
भारतीय अंकन पद्धति को अरबों ने अपनाया और उसको पश्चिमी दुनिया में फैलाया। अंग्रेजी में भारतीय अंकमाला को अरबी अंक ( अरेबिक न्यूमरल्स ) कहते हैं , किंतु अरबों ने स्वयं अपनी अंकमाला को ‘ हिंदसा ‘ कहा।
भारतीय अंकमाला का प्रयोग अशोक के अभिलेखों में पाया जाता है , जो ईसा – पूर्व तीसरी सदी के में लिखे गए।
दाशमिक पद्धति का प्रयोग सबसे पहले भारतीयों ने किया। प्रख्यात गणितशास्त्री आर्यभट्ट ( 370 – 500 ई ) इससे परिचित थ। चीनियों ने यह पद्धति बौद्ध धर्म प्रचारकों से सीखी और पश्चिमी जगत ने अरबों से सीखी जब वे भारत के संपर्क में आए। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
शून्य का आविष्कार भारतीयों ने ईसा – पूर्व दूसरी सदी में किया। जब इसका आविष्कार हुआ , भारतीय गणितज्ञ इसको पृथक अंक समझने लगे और इस रूप में शून्य का प्रयोग अंकगणना में होने लगा।
अरब देश में शून्य का प्रयोग सबसे पहले 1873 ईस्वी में पाया जाता है। अरबों ने इसे भारत से सीखा और यूरोप में फैलाया।
बीजगणित में भारतीयों और यूनानियों दोनों का योगदान रहा परंतु पश्चिमी यूरोप में उसका ज्ञान यूनान से नहीं , बल्कि अरब से मिला , जो अरब ने भारत से प्राप्त किया था।
हड़प्पा में बनी ईंटों की इमारतों से प्रकट होता है कि पश्चिमोत्तर भारत में लोगों को मापन और ज्यामिति का अच्छा ज्ञान था। यह ज्ञान वैदिक लोगों को भी था जो ईसा – पूर्व पांचवी सदी के आस – पास के ‘ शुल्वसूत्रों ‘ में दिखाई देता है।
ईसा – पूर्व दूसरी सदी में राजाओं के उपयुक्त यज्ञवेदी बनाने के लिए ‘ आपस्तम्ब ‘ ने व्यावहारिक ज्यामिति की रचना की। इसमें न्यूनकोण , अधिककोण और समकोण का वर्णन किया गया है। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
आर्यभट्ट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम निकाला जिसके फलस्वरुप ‘ त्रिकोणमिति ‘ का जन्म हुआ। इस कल की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है ‘ सूर्यसिद्धांत ‘। समकालीन प्राचीन काल में इस तरह की कोई दूसरी कृति नहीं पाई गई है।
खगोलशास्त्र में आर्यभट्ट और वराहमिहिर दो महान विद्वान हुए। आर्यभट्ट पांचवी सदी में हुए और वराहमिहिर छठी सदी में।
आर्यभट्ट ने बेबिलोनियाई विधि से ग्रह – स्थिति की गणना की। उसने चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के कारण का पता लगाया। उसने अनुमान के आधार पर पृथ्वी की परिधि का मान निकाला जो आज भी शुद्ध माना जाता है। उसने बताया कि सूर्य स्थिर है , पृथ्वी घूमती है। आर्यभट्ट की पुस्तक का नाम है – ‘ आर्यभट्टीय ‘।
वराहमिहिर की सुविख्यात कृति है – ‘ बृहतसंहिता ‘ जो ईसा की छठी सदी की है। उसने बताया कि चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। उसने ग्रहों के संचार और अन्य खगोलीय समस्याओं के अध्ययन में यूनानियों की अनेक कृतियों का सहारा लिया।
भारतीय शिल्पियों ने रसायन विज्ञान की प्रगति में बहुत योगदान दिया। भारतीय रंगरेजों ने टिकाऊ रंगों का विकास किया और नील का आविष्कार किया। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
आयुर्विज्ञान
प्राचीन भारत में वैद्यों ने ‘ शरीर – रचना विज्ञान ‘ का अध्ययन किया , रोगों के निदान की विधियां बनाई और इलाज के लिए औषधि बताई।
औषधि का उल्लेख सबसे पहले ‘ अथर्ववेद ‘ में मिलता है।
ईसा की दूसरी सदी में भारत में आयुर्वेद के दो महान विद्वान उत्पन्न हुए – ‘ सुश्रुत ‘ और ‘ चरक ‘। अपनी ‘ सुश्रुतसंहिता ‘ में सुश्रुत ने मोतियाबिंद , पथरी तथा और कई रोगों का शल्योपचार बताया है। उन्होंने शल्य – क्रिया के 121 उपकरणों का उल्लेख किया है। रोगों के इलाज के लिए उन्होंने आहार और सफाई पर जोर दिया है।
चरक की ‘ चरकसंहिता ‘ भारतीय चिकित्साशास्त्र का विश्वकोश है। इसमें ज्वार , कुष्ठ , मिर्गी और यक्ष्मा के अनेक प्रकारों का वर्णन है। इनकी पुस्तक में भारी संख्या में उन पेड़ – पौधों का वर्णन है जिनका प्रयोग दवा के रूप में होता है। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
भूगोल
प्राचीन भारतीयों को देश से बाहर की दुनिया का भौगोलिक ज्ञान अत्यल्प था , परंतु देश की के विभिन्न प्रदेशों की नदियों , पर्वतों और तीर्थ स्थलों का विशद वर्णन ‘ रामायण ‘ , ‘ महाभारत ‘ और पुराणों में मिलता है।
चूँकि , भारतीयों को समुद्र की ओर से कोई खतरा नहीं था , इसलिए प्राचीन भारत के राजाओं ने नौपरिवहन की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।
प्राचीन भारतीयों को समुद्रयात्रा का कुछ ज्ञान था और उन्होंने जहाज बनाने की कला में कुछ योगदान दिया। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
कला और साहित्य
प्राचीन भारत के राजमिस्त्री और शिल्पी सुन्दर – सुन्दर कलाकृतियां बनाते थे।
अशोक द्वारा बनाए गए अखंड प्रस्तर के स्तंभ अपनी चमकदार पॉलिश के लिए प्रसिद्ध है जिसकी तुलना उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड की पॉलिश से की जा सकती है।
मौर्यकालीन पॉलिशदार स्तंभों के शीर्ष पर पशुओं , विशेषकर सिंहों की मूर्तियां हैं। सिंह की मूर्ति वाले स्तंभशीर्ष को , भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिन्ह स्वीकार किया है।
अजंता के गुहा – मंदिर और चित्र उल्लेखनीय है, जो ईस्वी सन के आरंभ काल के है।
एक प्रकार से अजंता एशियाई कला का जन्मस्थान है। वहां ईसा – पूर्व दूसरी और ईसा की सातवीं सदियों के बीच अनेक गुहा – मंदिर बने जिनकी संख्या 30 तक है। चित्रों की रचना ईसा की दूसरी सदी में शुरू हुई। अधिकतर चित्र गुप्तकाल के बने हैं। चित्रों के विषय जातक कथाओं और प्राचीन साहित्य से लिए गए हैं। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
अजंता की रेखाएं और रंग ऐसी निपुणता प्रदर्शित करते हैं जो यूरोपीय पुनर्जागरण के पहले संसार भर में कहीं नहीं पाई गई है।
भारतीय और यूनानी कला दोनों के तत्वों के सम्मिश्रण से एक नई कला – शैली का जन्म हुआ जो ‘ गांधार शैली ‘ के नाम से प्रसिद्ध है। बुद्ध की पहली प्रतिमा इसी शैली में बनी है।
गांधार शैली में बुद्ध के नाक – नक्श तो भारतीय है , लेकिन उनके आकार , सिर की रचना और वस्त्र – विन्यास में यूनानी प्रभाव दिखाई देता है।
दक्षिण भारत में बने मंदिर दक्षिण – पूर्व एशिया में मंदिर निर्माण के आदर्श बन गए। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा का महाविहार उल्लेखनीय है। वहां तिब्बत और चीन से भी बौद्ध छात्र पढ़ने के लिए आते थे। इसमें प्रवेश केवल उन्हीं का होता था जो ‘ द्वारापंडित ‘ द्वारा ली गई परीक्षा में उत्तीर्ण होते थे।
नालंदा का महाविहार आवासीय – सह – शिक्षण संस्था का सबसे प्राचीन उदाहरण है , जहां विद्या , दर्शन और ध्यान के प्रति समर्पित हजारों भिक्षु रहते थे।
साहित्य के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों ने ऋग्वेद की रचना की जो हिंदू – आर्य साहित्य की सबसे पुरानी कृति है।
गुप्त काल में हम कालिदास की कृतियां पाते हैं। कालिदास के नाटक ‘ अभीज्ञानशाकुंतलम ‘ का अनुवाद विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में हुआ है। विज्ञान और सभ्यता की विरासत
MCQ
प्रश्न 1 – ईसाई धर्म भारत में किस सदी में आया ?
उत्तर – ईसा की पहली सदी के आसपास
प्रश्न 2 – किस – सा ग्रंथ यह सिखाता है कि दूसरे का धर्म अपनाने के बदले धर्म की रक्षा के लिए मर जाना अच्छा है क्योंकि दूसरे धर्म को अपनाने का परिणाम संकटपूर्ण होता है ?
उत्तर – भगवदगीता
प्रश्न 3 – भारत में उदित छह दार्शनिक पद्धतियों के बीच किस दर्शन में भौतिकवादी दर्शन के तत्व पाते हैं ?
उत्तर – सांख्य
प्रश्न 4 – सांख्यदर्शन के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर – कपिल
प्रश्न 5 – कपिल के अनुसार आत्मज्ञान के साधन है –
उत्तर – प्रत्यक्ष , अनुमान और शब्द
प्रश्न 6 – भौतिकवादी दर्शन को ठोस बनाने का सबसे बड़ा श्रेय किसे प्राप्त है जिन्होंने लोकायत दर्शन कि स्थापना की ?
उत्तर – चार्वाक
प्रश्न 7 – कौन से दार्शनिक यह कहा करते थे कि उपनिषदों ने उन्हें इस जन्म में दिलासा दी है और मृत्यु के बाद भी देती रहेंगी ?
उत्तर – शोपेनहावर
प्रश्न 8 – इस्पात बनाने की कला सबसे पहले कहाँ विकसित हुई ?
उत्तर – भारत
प्रश्न 9 – उत्स किसे कहा जाता था ?
उत्तर – इस्पात को
प्रश्न 10 – ईसा पूर्व चौथी सदी में संस्कृत भाषा के नियमों को सुव्यवस्थित रूप से संकलित करके पाणिनि ने व्याकरण लिखी वह किस नाम से प्रख्यात है ?
उत्तर – अष्टाध्यायी
प्रश्न 11 – अरबों ने ‘ हिंदसा ‘ किसे कहा ?
उत्तर – अपनी अंकमाला को
प्रश्न 12 – अंग्रेजी में भारतीय अंकमाला को क्या कहते हैं ?
उत्तर – अरेबिक न्यूमरल्स
प्रश्न 13 – दाशमिक पद्धति का प्रयोग सबसे पहले किसने किया ?
उत्तर – भारतीयों ने
प्रश्न 14 – शून्य का आविष्कार भारतीयों ने किस सदी में किया ?
उत्तर – ईसा – पूर्व दूसरी सदी में
प्रश्न 15 – व्यावहारिक ज्यामिति जिसमे न्यूनकोण , अधिककोण और समकोण का वर्णन किया गया है , की रचना किसने की ?
उत्तर – आपस्तम्ब
प्रश्न 16 – किस विद्वान ने त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम निकाला जिसके फलस्वरुप ‘ त्रिकोणमिति ‘ का जन्म हुआ ?
उत्तर – आर्यभट्ट
प्रश्न 17 – सूर्य स्थिर है और पृथ्वी घूमती है – यह किसने बताया था ?
उत्तर – आर्यभट्ट
प्रश्न 18 – बृहतसंहिता किस की कृति है ?
उत्तर – वराहमिहिर
प्रश्न 19 – औषधि का उल्लेख सबसे पहले किस ग्रंथ में मिलता है ?
उत्तर – अथर्ववेद
प्रश्न 20 – भारतीय चिकित्साशास्त्र का विश्वकोश किसे माना जाता है ?
उत्तर – चरकसंहिता
प्रश्न 21 – भारतीय और यूनानी कला दोनों के तत्वों के सम्मिश्रण से एक नई कला – शैली का जन्म हुआ , वह किस नाम से प्रसिद्ध है ?
उत्तर – गांधार शैली
प्रश्न 22 – बुद्ध की पहली प्रतिमा किस शैली में बनी है ?
उत्तर – गांधार शैली
प्रश्न 23 – हिंदू – आर्य साहित्य की सबसे पुरानी कृति है –
उत्तर – ऋग्वेद