जायांग
जायांग फूलों के मादा जनन अंग होते हैं। ये एक अथवा अधिक अंडप से मिलकर बनते हैं। अंडप के तीन भाग होते है – वर्तिका , वर्तिकाग्र तथा अंडाशय। अंडाशय का आधारी भाग फूला हुआ होता है जिस पर एक लंबी नली होती है जिसे वर्तिका कहते हैं।
वर्तिका अंडाशय को वर्तिकाग्र से जोड़ती है। वर्तिकाग्र प्रायः वृत्तिका की चोटी पर होती है।और परागकण को ग्रहण करती है। जायांग
प्रत्येक अंडाशय में एक अथवा अधिक बीजाण्ड होते हैं जो चपटे , गद्देदार बीजाण्डासन से जुड़े रहते हैं। जब एक से अधिक अंडप होते हैं तब वे पृथक ( मुक्त ) हो सकते हैं , ( जैसे कि गुलाब और कमल में ) इन्हे वियुक्तांडपी ( एपोकार्पस ) कहते हैं।
जब अंडप जुड़े होते हैं , जैसे मटर तथा टमाटर , तब उन्हें युक्तांडपी ( सिनकार्पस ) कहते है। निषेचन के बाद बीजाण्ड से बीज तथा अंडाशय से फल बन जाते है। जायांग
बीजांडन्यास : – अंडाशय में बीजांड के लगे रहने का क्रम को बीजांडन्यास ( प्लेसेनटेशन ) कहते है। बीजांडन्यास सीमांत , स्तंभीय , भित्तीय , आधारी , केंद्रीय तथा मुक्त स्तंभीय प्रकार का होता है।
सीमांत में बीजांडासन अंडाशय के अधर सीवन के साथ – साथ कटक बनता है और बीजांड कटक पर स्थित रहते है जो दो कतारें बनाते हैं जैसे कि मटर में। जायांग
जब बीजांडासन अक्षीय होता है और बीजांड बहुकोष्ठकी अंडाशय पर लगे होते है तब ऐसे बीजांडन्यास को स्तंभीय कहते है। इसका उदाहरण है गुड़हल , टमाटर तथा नींबू। भित्तीय बीजांडन्यास में बीजांड अंडाशय की भीतरी भित्ति पर अथवा परिधीय भाग में लगे रहते हैं।
अंडाशय एक कोष्ठक होता है लेकिन आभासी पट बनने के कारण दो कोष्ठक में विभक्त हो जाता है। इसके उदाहरण है क्रुसीफर ( सरसों ) तथा आर्जेमोन है। जायांग
जब बीजांड केंद्रीय कक्ष में होता है और यह पुटीय नहीं होता जैसे कि डायऐन्थस तथा प्रिमरोज , तब इस प्रकार के बीजांडन्यास को मुक्तस्तंभीय कहते है।
आधारी बीजांडन्यास में बीजांडासन अंडाशय के आधार पर होता है और इसमें केवल एक बीजांड होता है। इसके उदाहरण सूरजमुखी , गेंदा है। जायांग
निष्कर्ष
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