नए साम्राज्य और राज्य
नए साम्राज्य और राज्य : – समुद्रगुप्त के बारे में हमें इलाहबाद में अशोक स्तंभ पर खुदे एक लंबे अभिलेख से पता चलता है।
इस अभिलेख की रचना समुन्द्रगुप्त के दरबार में कवि व मंत्री रहे हरिषेण द्वारा एक काव्य के रूप में की गई थी।
यह एक विशेष किस्म का अभिलेख है , जिसे प्रशस्ति कहते है। यह एक संस्कृत शब्द है , जिसका अर्थ ‘ प्रशंसा ‘ होता है।
प्रशस्तियाँ लिखने का प्रचलन पहले भी था। परन्तु गुप्तकाल में इनका महत्त्व और बढ़ गया।
हरिषेण ने इसमें समुन्द्रगुप्त की एक योद्धा , युद्धों को जीतने वाले राजा , विद्वान् तथा एक उत्कृष्ट कवि के रूप में भरपूर प्रशंसा की है। नए साम्राज्य और राज्य
यहाँ तक कि उसे ईश्वर के बराबर बताया गया है।
यह प्रशस्ति समुन्द्रगुप्त के प्रपितामह , पितामह यानी कि परदादा , दादा , पिता और माता के बारे में बताती है।
उनकी माँ कुमार देवी , लिच्छवि गण कि थीं और पिता चन्द्रगुप्त गुप्तवंश के पहले शासक थे , जिन्होंने महाराजाधिराज जैसी बड़ी उपाधि धारण कि। समुन्द्रगुप्त ने भी यह उपाधि धारण की।
उनके दादा और परदादा का महाराजा के रूप में ही उल्लेख है। इससे यह आभास मिलता है कि धीरे – धीरे इस वंश का महत्व बढ़ता गया। नए साम्राज्य और राज्य
समुन्द्रगुप्त के बारे में हमें उनके बाद के शासकों , जैसे उनके बेटे चन्द्रगुप्त द्वितीय की वंशावली ( पूर्वजों की सूची ) से भी जानकारी मिलती है।
उनके बारे में अभिलेखों तथा सिक्कों से पता चलता है।
उन्होंने पश्चिम भारत में सैन्य अभियान में अंतिम शक शासक को परास्त किया।
बाद में ऐसा विश्वास किया जाने लगा कि उनका दरबार विद्वानों से भरा था। कवि कालिदास और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट उनके दरबार में थे। नए साम्राज्य और राज्य
विक्रम संवत
58 ईसा पूर्व में प्रारंभ होने वाले विक्रम संवत को परंपरागत रूप से गुप्त राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय के नाम से जोड़ा जाता है और ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने शकों पर विजय के प्रतीक के रूप में इस संवत की स्थापना की तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने विक्रम संवत को भी अपने राष्ट्रिय कैलेंडर में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ स्थान दिया है। नए साम्राज्य और राज्य
हर्षवर्धन तथा हर्षचरित
करीब 1400 साल पहले उत्तरी भारत में हर्षवर्धन ने शासन किया।
उनके दरबारी कवि बाणभट्ट ने संस्कृत में उनकी जीवनी हर्षचरित लिखी है। इसमें हर्षवर्धन की वंशावली देते हुए उनके राजा बनने तक का वर्णन है।
चीनी तीर्थयात्री श्वैन त्सांग (ह्वेनसांग) काफी समय के लिए हर्ष के दरबार में रहे। उन्होंने वहाँ जो कुछ देखा , उसका विस्तृत विवरण दिया हैं।
हर्ष अपने पिता के सबसे बड़े बेटे नहीं थे पर अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु हो जाने पर थानेसर के राजा बने।
उनके बहनोई कन्नौज के शासक थे। जब बंगाल के शासक ने उन्हें मार डाला , तो हर्ष ने कन्नौज को अपने अधीन कर लिया और बंगाल पर आक्रमण कर दिया। नए साम्राज्य और राज्य
मगध तथा बंगाल को जीतकर उन्हें पूर्व में जितनी सफलता मिली थी , उतनी सफलता अन्य जगहों पर नहीं मिली।
जब हर्ष ने नर्मदा नदी को पार कर दक्कन की ओर आगे बढ़ने की कोशिश की तब चालुक्य नरेश , पुलकेशिन द्वितीय ने उन्हें रोक दिया।
पल्ल्व , चालुक्य और पुलकेशिन द्वितीय की प्रशस्तियाँ
इस काल में पल्लव और चालुक्य दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राजवंश थे।
पल्लवों का राज्य उनकी राजधानी काँचीपुरम के आस – पास के क्षेत्रों से लेकर कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला था। नए साम्राज्य और राज्य
चालुक्यों का राज्य कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित था।
चालुक्यों की राजधानी ऐहोल थी। यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था जो धीरे – धीरे एक धार्मिक केंद्र भी बन गया।
पल्लव और चालुक्य एक – दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करते थे। मुख्य रूप से राजधानियों को निशाना बनाया जाता था जो समृद्ध शहर थे।
पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा थे। नए साम्राज्य और राज्य
पुलकेशिन द्वितीय के बारे में हमें उनके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति से पता चलता है। इसमें उनके पूर्वजों , खासतौर से पिछली चार पीढ़ियों के बारे में बताया गया है।
पुलकेशिन द्वितीय को अपने चाचा से यह राज्य मिला था।
पुलकेशिन द्वितीय ने ही हर्ष को आगे बढ़ने से रोका।
हर्ष का अर्थ ‘ आनंद ‘ होता है। कवि ( रविकीर्ति ) का कहना है कि इस पराजय के बाद हर्ष अब ‘ हर्ष ‘ नहीं रहा। नए साम्राज्य और राज्य
पुलकेशिन द्वितीय ने पल्ल्वाव राजा के ऊपर भी आक्रमण किया , जिसे काँचीपुरम की दीवार के पीछे शरण लेनी पड़ी।
चालुक्यों की विजय अल्पकालीन थी। लड़ाई से दोनों वंश दुर्बल होते गए।
पल्लवों और चालुक्यों को अंततः राष्ट्रकूट तथा चोलवंशों ने समाप्त कर दिया। नए साम्राज्य और राज्य
राज्यों का प्रशासन
पहले के राजाओं की तरह इन राजाओं के लिए भूमि कर सबसे महत्वपूर्ण बना रहा।
प्रशासन की प्राथमिक इकाई गाँव होते थे। लेकिन धीरे – धीरे कई नए बदलाव आए।
राजाओं ने आर्थिक , सामाजिक , राजनितिक या सैन्य शक्ति रखने वाले लोगों का समर्थन जुटाने के लिए कई कदम उठाए। उदाहरण के तौर पर :
कुछ महत्वपूर्ण प्रशासकीय पद आनुवंशिक बन गए। जैसे कि कवि हरिषेण अपने पिता की तरह महादण्डनायक अर्थात मुख्य न्याय अधिकारी थे। नए साम्राज्य और राज्य
कभी – कभी एक ही व्यक्ति कई पदों पर कार्य करता था जैसे कि हरिषेण एक महादण्डनायक होने के साथ – साथ कुमारामात्य तथा एक संधि – विग्रहिक भी थे।
संभवतः वहाँ के स्थानीय प्रशासन में प्रमुख व्यक्तियों का बहुत बोलबाला था।
प्रमुख व्यक्तियों में नगर – श्रेष्ठि यानी मुख्य बैंकर या शहर का व्यापारी , सार्थवाह यानी व्यापारियों के काफिले का नेता , प्रथम – कुलिक अर्थात मुख्य शिल्पकार तथा कायस्थों यानी लिपिकों के प्रधान जैसे लोग होते थे। नए साम्राज्य और राज्य
सेना
अब सेना में कुछ सेनानायक भी होते थे , जो आवश्यकता पड़ने पर राजा को सैनिक सहायता दिया करते थे।
इन सेनानायकों को वेतन के बदले भूमिदान दिया जाता था।
दी गई भूमि से ये कर वसूलते थे जिससे वे सेना तथा घोड़ों की देखभाल करते थे।
साथ ही वे इससे युद्ध के लिए हथियार जुटाते थे। इस तरह के व्यक्ति सामंत कहलाते थे।
जहाँ कहीं भी शासक दुर्बल होते थे , ये सामंत स्वतंत्र होने की कोशिश करते थे। नए साम्राज्य और राज्य
दक्षिण के राज्यों में सभाएँ
पल्लवों के अभिलेखों में कई स्थानीय सभाओं की चर्चा है।
इनमें से एक थी ब्राह्मण भूस्वामियों का संगठन जिसे सभा कहते थे।
ये सभाएँ उप – समितियों के जरिए सिंचाई , खेतीबाड़ी से जुड़ी विभिन्न काम , सड़क निर्माण ,स्थानीय मंदिरों की देखरेख आदि का काम करती थीं। नए साम्राज्य और राज्य
जिन इलाकों के भूस्वामी ब्राह्मण नहीं थे वहाँ उर नामक ग्राम सभा के होने की बात कही गई है।
नगरम व्यापारियों के एक संगठन का नाम था।
संभवतः इन सभाओं पर धनी तथा शक्तिशाली भूस्वामियों और व्यापारियों का नियंत्रण था। नए साम्राज्य और राज्य
अन्यत्र
लगभग 1400 साल पहले पैगंबर मुहम्मद ने अरब में इस्लाम नामक एक नए धर्म की शुरुआत की।
कालिदास अपने नाटकों में राज – दरबार के जीवन के चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।
कालिदास के नाटकों में राजा और अधिकांश ब्राह्मण संस्कृत बोलते है जबकि अन्य लोग और महिलाएँ प्राकृत बोलते हैं। नए साम्राज्य और राज्य
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
गुप्त वंश की शुरुआत ( 1700 साल पहले )
हर्षवर्धन का शासन ( 1400 साल पहले )
MCQ
प्रश्न 1. इलाहबाद का अशोक स्तंभ किसके शासन के बारे में सूचना प्रदान करता है ?
उत्तर- समुन्द्रगुप्त
प्रश्न 2. समुन्द्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने की थी ?
उत्तर- हरिषेण
प्रश्न 3. ‘ प्रशस्ति ‘ एक संस्कृत शब्द है , जिसका अर्थ होता है –
उत्तर- प्रशंसा
प्रश्न 4. समुन्द्रगुप्त की माता कुमार देवी किस गण से संबंधित थी ?
उत्तर- लिच्छवि गण
प्रश्न 5. गुप्तवंश के पहले शासक , जिन्होंने महाराजाधिराज जैसी बड़ी उपाधि धारण कि –
उत्तर- चन्द्रगुप्त प्रथम
प्रश्न 6. कवि कालिदास और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट किस के दरबारी थे ?
उत्तर- चन्द्रगुप्त द्वितीय
प्रश्न 7. विक्रम संवत की स्थापना तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी –
उत्तर- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने
प्रश्न 8. हर्षचरित के लेखक कौन थे –
उत्तर- बाणभट्ट
प्रश्न 9. बाणभट्ट किसके दरबारी कवि थे ?
उत्तर- हर्षवर्धन
प्रश्न 10. चीनी तीर्थयात्री जो काफी समय के लिए हर्ष के दरबार में रहा –
उत्तर- श्वैन त्सांग (ह्वेनसांग)
प्रश्न 11. हर्ष को किस चालुक्य नरेश ने पराजित किया ?
उत्तर- पुलकेशिन द्वितीय
प्रश्न 12. पल्लवों की राजधानी थी –
उत्तर- काँचीपुरम
प्रश्न 13. चालुक्यों की राजधानी थी –
उत्तर- ऐहोल
प्रश्न 14. पुलकेशिन द्वितीय के बारे में हमें पता चलता है –
उत्तर- रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति से
प्रश्न 15. रविकीर्ति दरबारी कवि थे –
उत्तर- पुलकेशिन द्वितीय के